राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) के एक हालिया अध्ययन ने पूरे भारत में भूजल में फ्लोराइड संदूषण की महत्त्वपूर्ण मात्रा पर प्रकाश डाला है।
फ्लोराइड (Fluoride)
फ्लोराइड एक अकार्बनिक, एकल परमाणु आयन है, जो रासायनिक सूत्र (F−) के साथ फ्लोरीन का घटक है।
फ्लोराइड लवण आमतौर पर सफेद या रंगहीन होते हैं, इनका स्वाद कड़वा होता है और ये गंधहीन होते हैं।
यह प्राकृतिक रूप से भूजल में पाया जाता है।
यह भूमिगत जलभृतों में फ्लोराइड युक्त खनिजों के निक्षालन और विघटन के माध्यम से जल में प्रवेश करता है।
भूजल में फ्लोराइड संदूषण पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
भूजल में फ्लोराइड संदूषण
पश्चिमी भारत: शुष्क और शुष्क जलवायु वाले पश्चिमी भारतीय क्षेत्रों में भूजल में आमतौर पर फ्लोराइड की मात्रा अधिक होती है।
मानसून से पहले और मानसून के बाद सबसे अधिक फ्लोराइड सांद्रता: राजस्थान में मानसून से पहले और मानसून के बाद दोनों अवधियों के दौरान भूजल में फ्लोराइड का उच्चतम स्तर दर्ज किया गया।
मानसून से पहले इसकी सांद्रता 1.41 मिलीग्राम/लीटर और मानसून के बाद 1.44 मिलीग्राम/लीटर थी, जो अधिकतम स्वीकार्य सीमा के करीब थी।
जैसलमेर जिला सबसे अधिक प्रभावित: राजस्थान के जैसलमेर जिले में फ्लोराइड की सबसे खराब संदूषण की मात्रा पाई गई है।
दक्षिणी भारत
कर्नाटक, तमिलनाडु और झारखंड सहित कई अन्य राज्यों में भी मानसून के बाद फ्लोराइड का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक पाया गया।
पूर्वी भारत: झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ में फ्लोराइड का स्तर उच्च है।
संदूषण में मौसमी बदलाव
भूजल में फ्लोराइड संदूषण का उच्चतम स्तर शुष्क, मानसून-पूर्व महीनों (मार्च-मई) के दौरान देखा गया।
इस अवधि के दौरान, फ्लोराइड का स्तर अनुमेय सीमा से 8.65% अधिक था।
मानसून के बाद के महीनों में भी महत्त्वपूर्ण संदूषण देखा गया, जिसका स्तर सामान्य से 7.1% अधिक था।
फ्लोरोसिस का खतरा
स्केलटल फ्लोरोसिस (Skeletal fluorosis): भूजल में 2% फ्लोराइड सांद्रता भी स्केलटल फ्लोरोसिस का एक महत्त्वपूर्ण जोखिम पैदा करती है।
स्कलटल फ्लोरोसिस एक अस्थि रोग है, जो शरीर में बहुत अधिक फ्लोराइड के कारण होता है, जो हड्डियों को कमजोर बनाता है।
दाँतों की सड़न: भूजल में फ्लोराइड का स्तर 40% तक पहुँचने पर यह जोखिम बढ़ जाता है।
पेयजल में फ्लोराइड की सुरक्षित सीमा 1.50 मिलीग्राम/लीटर है और इससे ऊपर के स्तर को असुरक्षित माना जाता है।
फ्लोराइड संदूषण को प्रभावित करने वाले कारक
भू-विज्ञान: किसी क्षेत्र में चट्टानों और मृदा का प्रकार फ्लोराइड के स्तर को प्रभावित कर सकता है।
जलवायु: शुष्क और सूखे क्षेत्र, विशेष रूप से पश्चिमी भारत में, आर्द्र क्षेत्रों की तुलना में उच्च फ्लोराइड स्तर के लिए अधिक प्रवण हैं।
मौसम: शुष्क, प्री-मानसून महीनों के दौरान फ्लोराइड का स्तर अधिक होता है।
Latest Comments