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हिमालय: एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र

Lokesh Pal March 01, 2024 07:09 122 0

संदर्भ 

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने शिमला की पहली विकास योजना शिमला विकास योजना- 2041’ (Shimla Development Plan- 2041) को जारी रखने पर सहमति दे दी है। यह सहमति हिमालयी क्षेत्रों की बढ़ती संवेदनशीलता एवं चुनौतियों के विवाद को उजागर करती है।

संबंधित तथ्य

  • हिमालयी शहरों में मास्टर प्लान की कमी: केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ऑर्गनाइजेशन (TCPO) के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 13 हिमालयी राज्यों में किसी भी टियर 1 शहर (वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 0.1 मिलियन से अधिक की आबादी वाला) या मेट्रो शहर (1 मिलियन से अधिक की आबादी वाले) के पास शहरी विकास को विनियमित करने के लिए मास्टर प्लान नहीं है।
  • अमृत योजना के तहत प्लान: 22 जनवरी, 2024 तक केंद्र सरकार की अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत) योजना के तहत केवल आठ शहरों के ड्राफ्ट मास्टर प्लान तैयार हैं- लद्दाख में कारगिल और लेह, कुल्लू (हिमाचल प्रदेश), शिलांग (मेघालय), ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश), कोहिमा और दीमापुर (नागालैंड), इंफाल (मणिपुर) और मिजोरम में आइजोल।

कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन (अमृत) 

 (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT)

इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर घर में जल की सुनिश्चित आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन के साथ नल की पहुँच हो, हरियाली और अच्छी तरह से बनाए गए खुले स्थानों (पार्कों) को विकसित करके शहरों की सुविधाएँ बढ़ाना और सार्वजनिक परिवहन पर स्विच करके या गैर-मोटर चालित परिवहन (जैसे- पैदल एवं साइकिल चलाने) के लिए सुविधाओं का निर्माण करके प्रदूषण को कम करना।

विकास संबंधी योजना की आवश्यकता

  • आपदा जोखिम योजना पर विशेषज्ञों के मत: आपदाएँ भूकंप एवं भूस्खलन के उच्च जोखिम में है, के भयावह परिणाम हैं और मास्टर प्लान या व्यापक विकास दिशा-निर्देशों के अभाव में बेतरतीब ढंग से विकसित हुआ है।
    • क्षेत्र के सतत् विकास के लिए एक सुविचारित एवं व्यापक योजना की आवश्यकता है।

शिमला विकास योजना 2041 (Shimla Development Plan 2041) के बारे में

  • तैयार किया गया: इस योजना को हिमाचल प्रदेश के ‘टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग’ द्वारा एक पर्यटन स्थल के रूप में शहर की क्षमता और भावी पीढ़ी एवं अस्थायी आबादी को समायोजित करने की क्षमता के आधार पर तैयार किया गया है।
  • एक दीर्घकालिक योजना: यह अगले दो दशकों में हिमालयी शहर और उसके उपांत/सीमांत, जिसे शिमला प्लानिंग एरिया (Shimla Planning Area) के रूप में भी जाना जाता है, के सतत् विकास के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करता है।
  • अनुमानित अनुमान: इस प्लानिंग दस्तावेज का अनुमान है कि वर्ष 2041 तक, शिमला में 4,98,000 लोग निवास कर रहे होंगे और यह शहर लगभग 1,27,000 अस्थायी आबादी की मेजबानी करेगा, जिनमें ज्यादातर पर्यटक शामिल होंगे।

विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई चिंताएँ

  • उच्च तल क्षेत्र अनुपात (Floor Area Ratio- FAR): विकास योजना में नए FAR  दिशा-निर्देश में उच्च आधार FAR  है, जिससे पहले से ही भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में अधिक निर्माण होगा।
    • FAR भवन निर्माण उपनियमों का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह सीधे तौर पर किसी शहर में आवास घनत्व, घरेलू घनत्व और साथ ही जनसंख्या घनत्व को निर्धारित करता है।
    • वर्तमान में शिमला के केंद्रीय और गैर-केंद्रीय क्षेत्रों में FAR 1.5 और 1.75 है, किंतु इस विकास योजना के लक्ष्य का आधार FAR को 1.75 पर रखना है।
  • जलवायु-लचीली योजनाओं पर कोई फोकस नहीं: तापमान में वृद्धि, शहरों के लिए  अनुकूलन और शमन उपायों को एकीकृत करके जलवायु-लचीले मास्टर प्लान की आवश्यकता है। हालाँकि, यह योजना इस पर प्रभावपूर्ण नहीं है।
  • कोई उपयुक्तता नहीं: विकास योजना पहाड़ी शहरों के लिए उपयुक्त नहीं है। पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण क्षेत्रीकरण भू-विज्ञान की दृष्टि से किया जाना चाहिए। क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए, अधिकारियों को केवल निर्माण और गैर-निर्माण क्षेत्र बनाना चाहिए था।
  • NGT  के दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं: विकास योजना NGT की सिफारिशों के अनुरूप नहीं थी, जिसके लिए अधिकरण ने विकास योजना को ‘अवैध’ घोषित कर दिया था।

शीर्ष न्यायालय द्वारा स्वीकृति

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि शिमला विकास योजना- 2041 मेंपर्यावरण और पारिस्थितिकी चिंताओं (टिकाऊ विकास) का प्रबंधन और समाधान करते हुए विकास की आवश्यकता को संतुलित करने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय हैं

हिमालय: प्राकृतिक रूप से आपदाओं के लिए तैयार एक पारिस्थितिकी तंत्र

  • आँकडे: भारत में दर्ज की गई सभी आपदाओं में से 44% के लिए हिमालय क्षेत्र जिम्मेदार है।
  • एक गंभीर खतरा: इसके विभिन्न प्रभावकारी कारक भूकंप, भूस्खलन, धँसाव, बाढ़, हिमस्खलन और यहाँ तक कि बादल फटने और वनाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए अतिसंवेदनशील वातावरण का निर्माण करते हैं।

हिमालय का भारत के लिए महत्त्व

  • हिमालय में भारत की सबसे प्रमुख भौगोलिक विशेषता शामिल है। दुनिया में कहीं भी किसी अन्य पर्वत शृंखला ने लोगों के जीवन को प्रभावित नहीं किया है और किसी राष्ट्र की प्रगति को इतना प्रभावित नहीं किया है, जितना कि भारत के संबंध में हिमालय ने किया है।
  • जलवायु प्रभाव: उच्च अक्षांश, लंबाई और स्थान से समृद्ध हिमालय, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाले ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावी ढंग से रोकता है, जिससे वर्षा और हिम वर्षा होती है।
    • वे मध्य एशिया की ठंडी महाद्वीपीय वायुराशियों को भारत में प्रवेश करने से रोकते हैं।
    • हिमालय जेट स्ट्रीम को दो शाखाओं में विभाजित करने के लिए जिम्मेदार है और भारत में मानसून लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • नदियों का स्रोत: हिमालय उत्तर भारतीय नदियों जैसे- गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि के लिए जल के विशाल भंडार के रूप में कार्य करता है। गर्मियों में पिघलने वाली बर्फ शुष्क मौसम के दौरान भी इन नदियों को जल प्रदान करती है और इसलिए ये बारहमासी नदियाँ हैं।
  • उपजाऊ मिट्टी: हिमालय का निर्माण टेथिस सागर में जमा तलछट से हुआ है, जो हिमालय की नदियों द्वारा ले जाया जाता है और उपजाऊ मिट्टी के रूप में उत्तरी मैदान में जमा होता है, जिससे यह मैदान दुनिया की सबसे उपजाऊ भूमि बन जाता है।
  • जलविद्युत: हिमालय में गहरी घाटियाँ बाँधों के निर्माण के लिए सबसे उपयोगी स्थल हैं, जो जलविद्युत के उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं।
  • वन संसाधन: हिमालय पर्वतमाला वन संसाधनों में समृद्ध है। बढ़ती ऊँचाई के साथ-साथ  हिमालय पर्वतमाला उष्णकटिबंधीय से अल्पाइन तक वनस्पति आवरण का क्रम दर्शाती है।
  • कृषि: हिमालय की ढलानें सीढ़ीदार कृषि के लिए उपयुक्त हैं। सीढ़ीदार ढलानों पर चावल एवं चाय की खेती की जाती है। सेब, आड़ू, अखरोट, चेरी, खुबानी आदि भी हिमालय क्षेत्र में उगाए जाते हैं।
  • पर्यटन: यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता और स्वस्थ वातावरण के कारण पर्यटन के लिए अनुकूल स्थान है।
  • सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से: हिमालय सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण है। इस पर्वतमाला में कई मंदिर, गुरद्वारे एवं मठ स्थापित हैं। उदाहरण- कैलाश, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, वैष्णो देवी मंदिर आदि।
    • हिमालय हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म सहित कई संस्कृतियों और धर्मों का आध्यात्मिक केंद्र है।
  • खनिज: हिमालय क्षेत्र में कई मूल्यवान खनिज पाए जाते हैं जैसे- कोयला, ताँबा, सीसा, जस्ता, निकेल, कोबाल्ट, टंगस्टन, सोना, चाँदी, चूना पत्थर, आदि।
    • हालाँकि, जटिल स्थलाकृति के कारण हिमालय पर्वतमाला से खनिज निष्कर्षण संभव नहीं है।
  • भू-वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि: हिमालय का अध्ययन पृथ्वी की विवर्तनिक गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करता है और वैज्ञानिकों को पर्वत निर्माण की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है।

हिमालयी आपदाओं के लिए जिम्मेदार कारक

  • स्थलाकृतिक कटाव: दुनिया की सबसे नवीन पर्वत शृंखला होने के कारण हिमालय में स्थलाकृतिक कटाव की अत्यधिक संभावना है।
    • जहाँ भी नदियाँ सर्पाकार मार्ग अपनाती हैं, वहाँ तटों का कटाव भी व्यापक होता है।

  • उच्च भूकंपीय क्षेत्र: यह क्षेत्र उच्च भूकंपीय क्षेत्र में आता है।
    • जलवायु संबंधी चरम घटनाएँ: वर्षा और बादल फटना।

डेटा के संबंध में

  • EM-DAT अंतरराष्ट्रीय आपदा डेटाबेस पर उपलब्ध डेटा का विश्लेषण: यह दर्शाता है कि हिमालयी क्षेत्र [लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और असम (दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल को छोड़कर)] भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 18% हिस्सा है, लेकिन पिछले 110 वर्षों में यहाँ 35% बड़ी आपदाओं को दर्ज किया गया है।

EM-DAT

  • EM-DAT एकमात्र डेटाबेस है, जो 1900 के दशक से इस तरह की आपदा जानकारी प्रदान करता है।
  • यह केवल प्रमुख आपदाओं को रिकॉर्ड करता है, जिसे उन आपदाओं के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनमें या तो 10 या अधिक मौतें दर्ज की गई हैं, 100 या अधिक लोग प्रभावित हुए हैं, जिसके कारण आपातकाल की स्थिति घोषित की गई है या अंतरराष्ट्रीय सहायता के लिए आग्रह किया गया।

  • हाल के दशकों में ये आपदाएँ अधिक बार घटित हो रही हैं और अधिक गंभीर होती जा रही हैं, जिससे मानव जीवन एवं संपत्ति की क्षति हो रही है। पिछले दशक (2013-2022) में सबसे अधिक 68 आपदाएँ दर्ज की गईं और भारत में दर्ज की गई सभी आपदाओं में इनका योगदान 44% था।
  • राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS): केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाले इस केंद्र ने बताया है कि हिमालयी राज्यों में वर्ष 2009 और 2021 के बीच 2,687 भूकंप दर्ज किए गए हैं, लेकिन अधिकांश कम तीव्रता के थे।

राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS)

  • NCS देश में भूकंप गतिविधियों की निगरानी के लिए भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।
  • यह 160 स्टेशनों के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान नेटवर्क का रखरखाव करता है, जिनमें से प्रत्येक में अत्याधुनिक उपकरण हैं और यह पूरे देश में फैला हुआ है।

    • हालाँकि आपदाओं की ऐसी बढ़ती घटनाओं के कारणों का पता लगाने के लिए कोई व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया गया है।

हिमालय क्षेत्र में आने वाली आपदाएँ एवं चुनौतियाँ

  • बाढ़: इस क्षेत्र में बाढ़ सबसे सामान्य आपदा है, जो वर्ष 1903 के बाद से दर्ज की गईं 240 आपदाओं में से 132 के लिए जिम्मेदार है।

    • बाढ़ के बाद भूस्खलन (37), अत्यधिक तापमान (20) और भूकंप (17) आते हैं।
      • पिछले दशक (2013-2022) में भी बाढ़ (36) सबसे सामान्य आपदा प्रकार बनी हुई है, इसके बाद तड़ित झंझावात, चक्रवाती तूफान, भूस्खलन और भूकंप आते हैं।

  • हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना: यह सबसे गंभीर दीर्घकालिक क्षति है। हिमालय में औसत सतह के तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हुई है। इससे हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल और सिकुड़ रहे हैं।
    • कारण: ग्लेशियरों के पिघलने का एक प्रमुख कारण वायुमंडल में ब्लैक कार्बन एरोसोल का उत्सर्जन है, क्योंकि ब्लैक कार्बन अधिक प्रकाश को अवशोषित करता है और अवरक्त विकिरण उत्सर्जित करता है, जिससे तापमान बढ़ जाता है।
  • हिमनद झीलों की उच्च मात्रा: ग्लेशियरों से पिघली बर्फ हिमालयी शृंखला में हिमनद झीलों का निर्माण कर रही है। बादल फटने की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के कारण ये झीलें ओवरफ्लो हो रही हैं या उनके किनारे टूट रहे हैं
    • ऐसी पहली आपदा वर्ष 2013 में केदारनाथ के ऊपरी इलाकों में आई थी। भागीरथी नदी में आई बाढ़ ने आधिकारिक तौर पर 6,074 लोगों की जान ले ली।
    • फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली में इसी तरह की ‘लेकबर्स्ट’ हुआ और अलकनंदा नदी के किनारे बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा था।

    • सबसे हालिया हिमनदीय झील का विस्फोट 4 अक्टूबर, 2023 को सिक्किम में हुआ और इसमें 400 से अधिक लोगों की जान चली गई।
  • ग्लेशियर रिट्रीट: हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के पश्चिम में, हिंदूकुश हिमालय शृंखला में ग्लेशियर हर वर्ष 5.9 से 6.7 मीटर तक कम या सिकुड़ रहे हैं।
  • आक्रामक प्रजातियों की वृद्धि: तापमान में वृद्धि के साथ, आक्रामक प्रजातियों के लिए नए आवास उपलब्ध होते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संवेदनशील संतुलन को बाधित करते हैं और देशज प्रजातियों के अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।

आगे की राह

उच्चतम न्यायालय की पहल: अगस्त 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने पहाड़ी कस्बों और शहरों की भार वहन क्षमता के पुनर्मूल्यांकन का विचार रखा, जिसके लिए केंद्र ने 13 सदस्यीय तकनीकी समिति बनाने का प्रस्ताव दिया है। जिसका पाँच सूत्रीय एजेंडा है:-

  • पर्यावरणीय संकट को समझना: किसी क्षेत्र में स्थलाकृतिक ढलान, जल निकासी और उच्च वनस्पति एवं वन भूमि आवरण पर पड़ने वाले दबाव के प्रभाव को समझने की आवश्यकता है।
  • जलवायु जोखिम और कमजोरियों का आकलन: जलवायु जोखिम का आकलन करने और संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण करने के लिए अनुमान एवं अनुरूपण की आवश्यकता होती है, क्योंकि चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि के साथ, नुकसान और क्षति का पैमाना अधिक होता है।
  • जोखिम और प्रभाव आकलन को मुख्यधारा में लाना: जोखिम संभावना और संचयी प्रभाव आकलन को मुख्यधारा में लाकर विकास नियमों के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। चूँकि, विकास कार्य तेजी से बढ़ रहे हैं और इनके गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं जैसे कि वनों का ह्रास, नदी के मार्ग में परिवर्तन, जैव विविधता की हानि आदि।

हिमालयी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए सरकारी पहल

  • हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को कायम रखने पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem)
  • SECURE हिमालय परियोजना (SECURE Himalaya Project)
  • मिश्रा समिति रिपोर्ट, 1976: समिति ने इस क्षेत्र में भारी निर्माण कार्य, सड़क मरम्मत और अन्य निर्माण के लिए बोल्डर हटाने हेतु विस्फोट या खुदाई तथा पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की।
  • NGT  निर्देश: जुलाई 2018 में, NGT ने केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में वहन क्षमता अध्ययन करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया। जो हवा, पानी, आवास, जैव विविधता, भूमि, ध्वनि और पर्यटन के संदर्भ में पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों पर दबाव का आकलन करेगा।

  • अनुकूलन क्षमता और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना: सेवाओं एवं बुनियादी ढाँचे को मजबूत कर, कम पर्यावरणीय फुटप्रिंट वाले समाधानों को प्राथमिकता देते हुए और समुदायों को शामिल करके अनुकूलन क्षमता में सुधार किया जा सकता है। चूँकि पहाड़ी शहरों की आबादी बढ़ती है तो जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन की उनकी क्षमता कम हो जाती है।
  • पर्यटन और संसाधन प्रबंधन: यातायात, जल एवं अपशिष्ट सहित मजबूत पर्यटन और संसाधन प्रबंधन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में अस्थायी आबादी का एक बड़ा प्रवाह देखा जाता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण कदम जिन्हें उठाए जाने की आवश्यकता 

  • तकनीकी प्रगति: भारत में मौसम संबंधी सेवाओं की सटीकता और विश्वसनीयता में हाल के वर्षों में काफी सुधार हुआ है तथा इसे और अधिक अद्यतन करने की आवश्यकता है।
  • अधिक वित्तीय सहायता: ग्लेशियरों और हिमनद झीलों की निगरानी के लिए अतिरिक्त बजटीय प्रावधानों की आवश्यकता है ताकि निवारक उपाय किए जा सकें और समय पर निकासी तथा राहत प्रदान की जा सके एवं बाद में पुनर्स्थापन व पुर्नवास किया जा सके।
  • जीवाश्म ईंधन के विकल्प: जीवाश्म ईंधन की माँग को कम करने और ऊर्जा स्रोत को तेजी से नवीकरणीय स्रोतों से बदलने की आवश्यकता है।
  • सीमा पार सहयोग: हिमालयी देशों को एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की आवश्यकता है, जो निगरानी करेगा और प्रारंभिक चेतावनी की सुविधा प्रदान करेगा।
  • शिक्षा और जागरूकता: लोगों को भू-वैज्ञानिक भेद्यता और पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के बारे में और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है, साथ ही इसकी सुरक्षा के लिए संबंधित कानूनों और विनियमों की भी आवश्यकता है।

स्थानीय सरकारों द्वारा कार्रवाई: इमारतों और अन्य संबंधित कानूनों को मंजूरी देते समय स्थानीय सरकारें अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकती हैं।

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