असम के जोरहाट जिले में स्थित होलांगापार गिब्बन अभयारण्य (Hollangapar Gibbon Sanctuary) में रेलवे ट्रैक पर कैनोपी ब्रिज बनाया जाएगा।
संबंधित तथ्य
मरियानी-डिब्रूगढ़ रेलवे ट्रैक (1.65 किमी. लंबा) जिसका दोहरीकरण एवं विद्युतीकृत किया जाना है, असम में 2,098.62 हेक्टेयर के होलोंगापार गिब्बन अभयारण्य को दो हिस्सों में विभाजित करता है।
उद्देश्य: कैनोपी पुलों को स्थापित करने का निर्णय ट्रैक पर गिब्बन की आसान आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए लिया गया है।
डिजाइन: असम के गिब्बन अभयारण्य में प्रस्तावित कैनोपी ब्रिज को पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (NFR) की सलाह से भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा डिजाइन किया गया है।
कैनोपी पुलों के सिरों के साथ-साथ गाँठों को भी उचित और उच्च-श्रेणी की बंधन सामग्री एवं तकनीकों का उपयोग करके सुरक्षित और क्लैंप द्वारा सुसज्जित किया जाएगा।
सुरक्षा तंत्र: इन प्रजातियों को गलती से पुलों से गिरने से बचाने के लिए, मुख्य पुल के नीचे सुरक्षा जाल लगाए जाएँगे, ताकि वे सुरक्षित रहें।
प्राकृतिक डिजाइन: छतरीनुमा रस्सी पुल प्राकृतिक डिजाइन की नकल करके बनाए गए हैं, जिसमें लिआना (liana) और लताएँ उनके साथ संयोजित कर दी जाती हैं।
होलांगापार गिब्बन अभयारण्य (Hollangapar Gibbon Sanctuary)
25 मई, 2004 को होलांगापार गिब्बन अभयारण्य का नाम बदल दिया गया, जिसे पहले गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य या होल्लोंगापार रिजर्व फॉरेस्ट के नाम से जाना जाता था।
अवस्थिति: यह असम के जोरहाट जिले में स्थित सदाबहार वन का एक संरक्षित क्षेत्र है।
वनस्पति: वनों के उपरी भाग में होल्लोंग वृक्ष का प्रभुत्व है, जबकि अभयारण्यकेमध्य में नाहर नामक वनस्पति पाई जाती है।
निम्न भाग में सदाबहार झाड़ियाँ और जड़ी-बूटियाँ पाई जाती हैं।
जीव-जंतु: अभयारण्य में समृद्ध जैव विविधता है और यह भारत के एकमात्र वानरों, पश्चिमी हूलॉक का आवास है, साथ ही पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों में पाए जाने वाले एकमात्र रात्रिचर प्राइमेट, ‘बंगाल स्लो लोरिस’ का भी आवास है।
इसके अलावा यहाँ स्टंप-टेल्ड मैकाक, नार्थ पिग-टेल्ड मैकाक, पूर्वी असमिया मैकाक, रीसस मैकाक और कैप्ड लंगूर आदि भी पाए जाते हैं।
हूलॉक गिब्बन
परिचय
गिब्बन, जो अपनी आवाज के लिए जाना जाता है, जो अपना अधिकतम समय हॉलोंग (डिप्टरोकार्पस मैक्रोकार्पस)वृक्ष पर बिताते हैं।
गिब्बन दक्षिण-पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय वनों में पाए जाते हैं तथा इन्हें सभी वानरों में सबसे छोटे एवं समझदार वानरों के रूप में भी जाना जाता है।
इनमें अन्य वानरों के समान तीष्ण बुद्धि, विशिष्ट समझ होती है।
ये विश्व भर में पाई जाने वाली 20 गिब्बन प्रजातियों में से एक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हूलॉक गिब्बन भारत की एकमात्र वानर प्रजाति है।
भारत में गिब्बन प्रजातियाँ
पश्चिमी हूलॉक गिब्बन (Western Hoolock Gibbon)
ये पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण और दिबांग नदी के पूर्व क्षेत्र के बीच सीमित हैं। भारत के बाहर यह पूर्वी बांग्लादेश तथा उत्तर-पश्चिम म्याँमार में पाया जाता है।
IUCN की रेड लिस्ट: संकटग्रस्त
पूर्वी हूलॉक गिब्बन (Eastern Hoolock Gibbon)
यह भारत में अरुणाचल प्रदेश और असम के विशिष्ट इलाकों में और भारत के बाहर दक्षिणी चीन तथा उत्तर-पूर्व म्याँमार में पाया जाता है।
IUCN की रेड लिस्ट: असुरक्षित
भारत में दोनों प्रजातियाँ भारतीय (वन्यजीव) संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध हैं।
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