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घरेलू खपत व्यय 2022-23

Lokesh Pal February 27, 2024 05:55 257 0

संदर्भ

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (भारत सरकार) के तहत राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) ने अगस्त 2022 से जुलाई 2023 तक आयोजित घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Household Consumer Expenditure Survey- HCES) जारी किया।

संबंधित तथ्य

  • इस सर्वेक्षण के परिणाम वर्ष 2011-12 में आयोजित अंतिम सर्वे के बाद से 11 वर्ष के आँकड़ों के भारतीय घरेलू खपत एवं पैटर्न दिखाते हैं।
  • HCES, 2022-24 के दूसरे वर्ष के लिए आँकड़े जुटाने का कार्य अगस्त 2023 से प्रारंभ हुआ है।
  • उद्देश्य: देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों, राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों एवं विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के लिए घरेलू मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (Monthly Per Capita Consumption Expenditure- MPCE) व इसके वितरण का अलग-अलग अनुमान तैयार करना। 

सर्वेक्षण में देरी क्यों?

  • सर्वेक्षण प्रत्येक पाँच वर्ष में होना चाहिए। हालाँकि नवीनतम पुनरावृत्ति पिछले एक दशक से भी अधिक समय बाद आई है, जब भारत सरकार ने डेटा गुणवत्ता के मुद्दों का हवाला देते हुए वर्ष 2017-18 के सर्वेक्षण को विवादास्पद रूप से रद्द कर दिया था।
  • सरकार ने कहा कि उपभोग पैटर्न के स्तर एवं बदलाव की दिशा में महत्त्वपूर्ण अंतर है।

मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (Monthly Per Capita Consumption Expenditure- MPCE)

  • 30 दिनों की अवधि के अंतर्गत MPCE को घरेलू आकार से विभाजित करके NSSO द्वारा घरेलू उपभोक्ता व्यय के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • MPCE के आधार पर गरीबी रेखा को परिभाषित किया जाता है।

सर्वेक्षण के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष

  • उपभोग व्यय में वृद्धि: प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू व्यय वर्ष 2011-12 की तुलना में वर्ष 2022-23 में दोगुने से अधिक हो गया।
  • औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय: यह सभी श्रेणियों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में 3,773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,459 रुपये था।
    • 0-5% फ्रैक्टाइल वर्ग का औसत प्रति व्यक्ति मासिक व्यय ग्रामीण क्षेत्रों में 1,373 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2,001 रुपये आँका गया है।
  • शहरी-ग्रामीण अंतर को कम करना: ग्रामीण क्षेत्रों में खपत शहरी क्षेत्रों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, जिससे अंतर कम हो रहा है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में खपत में करीब 2.5 गुना की बढ़ोतरी हुई है।
    • सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2011-12 में अंतर 84% था और वर्ष 2022-23 में 71% तक पहुँच गया। वर्ष 2004-05 में यह अंतर 91% के अपने चरम पर था।

अनाज और भोजन की खपत में उल्लेखनीय गिरावट

  • ग्रामीण क्षेत्रों में: औसत MPCE में हिस्सेदारी के रूप में अनाज की खपत वर्ष 1999-2000 में 22% और वर्ष 2011-12 में 10.7% से घटकर अब 5% से भी कम हो गई है।
    • औसत MPCE के हिस्से के रूप में भोजन की कुल खपत वर्ष 1999-2000 में लगभग 60% और वर्ष 2011-12 में 53% से घटकर अब 46% हो गई है।
  • शहरी क्षेत्रों में: शहरी क्षेत्रों में अनाज और भोजन की खपत वर्ष 1999-2000 में 12% और वर्ष 2011-12 में 6% से घटकर अब 4% से भी कम हो गई है।
    • जबकि औसत MPCE में भोजन की कुल खपत पहली बार वर्ष 1999-2000 में लगभग 50% और वर्ष 2011-12 में 43% से घटकर 39% हो गई है।
  • उच्च मूल्य वाली वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि: अंडे, मछली, मांस, फल और सब्जियों जैसी उच्च मूल्य वाली वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि हुई है।
    • ग्रामीण भारत में यह व्यय वर्ष 2011-12 में 6.18% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 9.01% हो गया है, जबकि शहरी भारत में यह वर्ष 2011-12 में 8.91% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 10.54% हो गया है।

  • गैर-खाद्य वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि: सभी श्रेणियों में गैर-खाद्य वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि हुई है, जिसमें परिवहन और संचार पर सबसे अधिक व्यय है।
    • ग्रामीण भारत में यह व्यय वर्ष 2011-12 में 6.4% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 14.65% हो गया है, जबकि शहरी भारत में वर्ष 2011-12 में 15.25% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 23.69% हो गया है।

शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि

  • शिक्षा पर: ग्रामीण भारत में यह व्यय वर्ष 2011-12 में 3.71% से बढ़कर 2022-23 में 6.08% हो गया है, जबकि शहरी भारत में यह वर्ष 2011-12 में 7.07% से बढ़कर 2022-23 में 8.07% हो गया है। 
  • स्वास्थ्य पर: ग्रामीण भारत में यह व्यय वर्ष 2011-12 में 6.67% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 8.25% हो गया है, जबकि शहरी भारत में यह वर्ष 2011-12 में 5.88% से बढ़कर 2022-23 में 7.13% हो गया है।
  • कृषि क्षेत्र में अंतर कम होना: कृषि परिवारों के MPCE और ग्रामीण परिवारों के समग्र औसत के बीच अंतर पिछले कुछ वर्षों में कम हो रहा है।

घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Household Consumer Expenditure Survey- HCES) के बारे में

  • यह एक सर्वेक्षण है, जिसका उद्देश्य देश भर में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के  घरों के उपभोक्ता खर्च पैटर्न पर जानकारी एकत्र करना है।
  • सर्वेक्षण की आवृत्ति: पंचवर्षीय (प्रत्येक पाँच वर्ष)
  • संचालनकर्ता: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO)

सर्वेक्षण की उपयोगिता

  • डेटा का उपयोग भारत में जीवन स्तर के अध्ययन और पूर्ण गरीबी के मापन के लिए किया जाता है, जिसमें राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों, क्षेत्रों, सामाजिक-आर्थिक वर्गों आदि में असमानताओं पर अध्ययन शामिल है।
  • यह घरेलू मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय (MPCE) के अनुमान के साथ-साथ MPCE वर्गों में घरों और व्यक्तियों के वितरण तक पहुँचने में मदद करता है।
  • इसका उपयोग उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद और खुदरा मुद्रास्फीति जैसे अन्य व्यापक आर्थिक संकेतकों को पुनः आधार बनाने के लिए किया जाएगा।

सर्वेक्षण की पद्धति में नए परिवर्तन

  • HCES 2022-23 की प्रश्नावली: इसमें वर्ष 2011-12 में 347 वस्तुओं की तुलना में 405 वस्तुएँ शामिल हैं।
  • तीन प्रश्नावली: HCES: 2022-23 में, तीन अलग-अलग प्रश्नावली में (i) खाद्य पदार्थ, (ii) उपभोग्य वस्तुएँ और सेवा आइटम (iii) टिकाऊ सामान का उपयोग किया गया है।
  • हालाँकि पहले, घरेलू उपभोग व्यय पर सभी NSS सर्वेक्षणों में एक ही प्रश्नावली का उपयोग किया जाता था।
  • अतिरिक्त प्रश्नावली: घरेलू विशेषताओं और परिवारों के सदस्यों की जनसांख्यिकीय विशिष्टताओं के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए एक और प्रश्नावली तैयार की गई है।
  • एक अलग संग्रह: HCES 2022-23 में विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों द्वारा मुफ्त में प्राप्त और उपभोग की जाने वाली कई वस्तुओं की खपत की मात्रा पर जानकारी एकत्र करने का एक अलग प्रावधान भी शामिल है।
  • हालाँकि, परिवारों को मुफ्त में मिलने वाली शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं का मूल्य नहीं आँका गया है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO ) के बारे में

  • महानिदेशक की अध्यक्षता वाला NSSO अखिल भारतीय आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नमूना सर्वेक्षण करने के लिए जिम्मेदार है।
  • मुख्य रूप से डेटा विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) आदि पर राष्ट्रव्यापी घरेलू सर्वेक्षणों के माध्यम से एकत्र किया जाता है।
  • यह शहरी क्षेत्रों में नमूना सर्वेक्षणों में उपयोग के लिए शहरी क्षेत्र इकाइयों का एक ढाँचा भी बनाए रखता है।

  • वर्ष 2022-23 में ‘कृषि में स्व-रोजगार’ परिवारों का औसत MPCE 3,702 रुपये था, जबकि ग्रामीण परिवारों का कुल औसत 3,773 रुपये था।
  • औसत खर्च पर: वर्ष 2011-12 में, कृषि परिवारों का MPCE 1,436 रुपये था, जो औसत ग्रामीण खर्च 1,430 रुपये से थोड़ा अधिक है।
    • ‘कृषि में नियमित वेतन/वेतन वाली कमाई’ वाले परिवारों का औसत MPCE 3,597 रुपये था, जबकि ‘गैर-कृषि में नियमित वेतन/वेतन वाली कमाई’ वाले परिवारों का औसत MPCE 4,533 रुपये था।
  • आकस्मिक श्रमिकों के लिए: इसी प्रकार, ‘कृषि में आकस्मिक श्रम’ में लगे परिवारों का औसत MPCE 3,273 रुपये था, जबकि ‘गैर-कृषि में आकस्मिक श्रम’ के लिए यह 3,315 रुपये था। 
    • शीर्ष और निचले स्तर पर राज्य: सिक्किम ग्रामीण (₹7,731) और शहरी क्षेत्र (₹12,105) दोनों के लिए MPCE सबसे अधिक है। यह छत्तीसगढ़ में सबसे कम है, जहाँ ग्रामीण परिवारों के लिए यह ₹2,466 और शहरी परिवारों के लिए ₹4,483 था। 
    • औसत MPCE में ग्रामीण-शहरी अंतर: मेघालय में सबसे अधिक (83%), उसके बाद छत्तीसगढ़ (82%) है।
    • केंद्रशासित प्रदेशों में: MPCE चंडीगढ़ में सबसे अधिक है (ग्रामीण 7,467 रुपये और शहरी 12,575 रुपये) और ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के लिए लद्दाख (4,035 रुपये) एवं लक्षद्वीप (5,475 रुपये) में सबसे कम है।
  • अनुमानित औसत MPCE डेटा पर: NSSO ने विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों द्वारा मुफ्त प्राप्त वस्तुओं का एक अनुमानित मूल्य प्रदान किया है। इन वस्तुओं में शामिल हैं: 

    1. खाद्य पदार्थ जैसे- चावल, गेहूँ, आटा, दालें, नमक, चीनी, खाद्य तेल आदि। 
    2. गैर-खाद्य पदार्थ जैसे- लैपटॉप/PC, टैबलेट, मोबाइल हैंडसेट, साइकिल, मोटरसाइकिल/स्कूटर, कपड़े (स्कूल यूनिफॉर्म), जूते (स्कूल जूते, आदि)।
      • ग्रामीण और शहरी परिवारों (जिसमें मुफ्त भोजन और गैर-खाद्य वस्तुओं का मूल्य शामिल है) का MPCE, ग्रामीण और शहरी परिवारों (जिसमें मुफ्त वस्तुएँ शामिल नहीं हैं) MPCE की तुलना में अधिक है।
    • MPCE का एक फ्रैक्टाइल वर्ग दो फ्रैक्टाइल के भीतर स्थित जनसंख्या का खंड है।
    • ग्रामीण परिवारों में, आबादी के निचले 0-5% लोगों को मुफ्त वस्तुओं के अनुमानित मूल्य के संदर्भ में सबसे कम खर्च (महज 68 रुपये) करना पड़ता है। 
      • 70-80% फ्रैक्टाइल में आबादी को सबसे अधिक लाभ मिला और यहाँ तक कि शीर्ष 5% आबादी को 80 रुपये मिले।

सर्वेक्षण के सकारात्मक परिणाम

  • स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सावधानी: उच्च मूल्य वाली वस्तुओं पर खर्च में वृद्धि से पता चलता है कि भारतीय परिवार अधिक पौष्टिक और विविध आहार ले रहे हैं, जिसका उनके स्वास्थ्य और कल्याण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • खाने-पीने की चीजों में लोग दूध, फल और सब्जियों पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
  • अवसरों का निर्माण: परिवहन और संचार पर व्यय में वृद्धि, गतिशीलता और कनेक्टिविटी की बढ़ती माँग को दर्शाती है, जो शहरीकरण, प्रवासन, शिक्षा और रोजगार के अवसरों जैसे कारकों से प्रेरित हो सकती है।

  • उच्च जीवन स्तर: गैर-खाद्य वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि से पता चलता है कि लोग अतिरिक्त आय से समृद्ध हो रहे हैं।
    • सबसे खास बात यह है कि लोग प्रोसेस्ड फूड पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
      • प्रसंस्कृत खाद्य: वह भोजन जिसे तैयार करने के दौरान किसी तरह से बदल दिया गया हो।
    • गैर-खाद्य वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि से संकेत मिलता है कि भारतीय परिवारों के पास अधिक खर्च करने योग्य आय है और वे कपड़े, जूते, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन जैसी विवेकाधीन वस्तुओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं।
  • जीवन गुणवत्ता पर ध्यान: शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यय में वृद्धि से संकेत मिलता है कि भारतीय परिवार, मानव पूँजी और जीवन की गुणवत्ता में अधिक निवेश कर रहे हैं।
    •  उल्लेखनीय है कि यह पहली बार है कि भोजन पर खर्च में गिरावट आई है। 

उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI) संशोधन पर

  • सरकार इस डेटा का उपयोग करके CPI बास्केट में भी बदलाव और अद्यतन करेगी।
  • नई CPI शृंखला में खाद्य और पेय पदार्थों के लिए कम वजन और मुख्य वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए अधिक वजन होने की संभावना है।
  • CPI संशोधन में कुछ समय लगेगा और कार्यप्रणाली तथा प्रश्नावली में बदलाव के कारण दो बैक-टू-बैक सर्वेक्षणों की आवश्यकता होगी।
    • नई अपडेटेड CPI सीरीज को जारी होने में संभवतः जुलाई-अगस्त 2025 तक का समय लगेगा।

  • नीति-निर्माताओं के लिए आकलन में मदद: यह डेटा उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI) को अद्यतन करने के लिए आवश्यक है, नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों को घरों की आय और व्यय स्तर पर एक आकलन देता है और नीतिगत उपायों की प्रभावकारिता का आकलन करता है। 
  • संकेतक के रूप में: इनका उपयोग खुदरा मुद्रास्फीति को मापने और अन्य व्यापक आर्थिक संकेतक प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मूल्य सूचकांकों को संकलित करने हेतु भार आरेख तैयार करने के लिए किया जाता है।
  • उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और इच्छाओं को उजागर करता है: डेटा बदलते खर्च पैटर्न और वितरण में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और व्यवसायों के लिए एक मूल्यवान संसाधन के रूप में कार्य करता है, जो उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुरूप उत्पादों तथा सेवाओं के विकास का मार्गदर्शन करता है।
  • आवश्यकता का सार प्रदान करता है: डेटा विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक समर्थन में जीवन स्तर और कल्याण में सुधार में चुनौतियों तथा अवसरों को रेखांकित करता है।
  • RBI के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपाय: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), खुदरा मुद्रास्फीति के आधार पर नीतिगत दर को बढ़ाने या घटाने का निर्णय लेता है, जिसका विकास पर प्रभाव पड़ता है।
    • कम ब्याज दर, कम दरों पर ऋण की सुविधा प्रदान करके आर्थिक विकास में मदद करेगी। किंतु यदि गलत डेटा RBI का प्रयोग किया जाता है, तो इससे ब्याज दरों पर किसी भी कार्रवाई में देरी होने की संभावना है।
      • पॉलिसी दर एक रेपो दर है, वह ब्याज दर जिस पर केंद्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है।

संबंधित चिंताएँ 

  • कृषि में स्व-रोजगार के मूल्य में गिरावट: पहली बार, कृषि में स्व-रोजगार ग्रामीण घरेलू औसत 3,773 रुपये से कम है। इसका तात्पर्य यह है कि बाद वाले ने अन्य समूहों के साथ तालमेल नहीं रखा है।

  • कृषि परिवारों के औसत MPCE में गिरावट: समग्र ग्रामीण परिवारों की तुलना में, कृषि परिवारों के औसत MPCE में कमी आई है।
    • कृषि परिवारों का औसत MPCE (3,783 रुपये) अभी भी ग्रामीण परिवारों के समग्र औसत (3,860 रुपये) से कम था।
    • कृषि में लगे आकस्मिक मजदूरों और नियमित वेतन भोगियों का MPCE भी ग्रामीण औसत से कम था।
      • MPCE गरीबी मापने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक प्रमुख संकेतक है। समग्र ग्रामीण परिवारों की तुलना में कृषि परिवारों के औसत MPCE में यह गिरावट हाल के वर्षों में कृषि विरोध को देखते हुए महत्त्वपूर्ण है।
  • उच्च आय स्तर पर असमानता में वृद्धि: भारत की ग्रामीण और शहरी आबादी के शीर्ष 5% का औसत MPCE क्रमशः 10,581 रुपये और 20,846 रुपये है।
    • भारत की ग्रामीण आबादी के निचले 5% लोगों का औसत MPCE 1,441 रुपये है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2,087 रुपये है।
    • ग्रामीण और शहरी MPCE के बीच अंतर में शीर्ष पर एक बड़ा अंतर है, जो उच्च आय स्तरों पर असमानता में वृद्धि को दर्शाता है। उच्चतम 10% परिवारों के लिए 85% से अधिक का अंतर पिरामिड के शीर्ष पर बढ़ती आय असमानता को दर्शाता है।
  • कल्याण कार्यक्रमों के लिए अलग-अलग गणना: उद्धृत MPCE नंबर विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों जैसे कि पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) या राज्य द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से व्यक्तियों द्वारा मुफ्त में प्राप्त वस्तुओं के अनुमानित मूल्यों को ध्यान में नहीं रखते हैं।
    • उनकी गणना अलग से की गई, जबकि ऐसी योजनाओं के माध्यम से प्राप्त कुछ गैर-खाद्य वस्तुओं को शामिल किया गया, जिनमें कंप्यूटर, मोबाइल फोन, साइकिल और कपड़े शामिल थे।

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