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सार्वजनिक नीति द्वारा व्यक्तिगत पसंद और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करना

Lokesh Pal July 19, 2024 02:24 116 0

संदर्भ

सार्वजनिक नीति अक्सर लोगों को निष्क्रिय लाभार्थी मानती है और उनकी व्यक्तिगत पसंद तथा सामाजिक संबंधों को नजरअंदाज कर देती है। इससे महिलाएँ विशेष रूप से प्रभावित होती हैं, उन्हें अक्सर सक्रिय एजेंट के बजाय मात्र प्राप्तकर्ता के रूप में देखा जाता है।

लैंगिक भेद को दूर करने के लिए अपनाई गई कल्याणकारी योजनाएँ 

इसका उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें समान अवसर और संसाधनों तक पहुँच मिले।

लैंगिक भेद के अंतर को कम करने के उद्देश्य से कुछ उल्लेखनीय योजनाएँ एवं पहल यहाँ दी गई हैं:

1. शैक्षिक पहल (Educational Initiatives)

  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
    • इस योजना का उद्देश्य लैंगिक आधार पर पक्षपातपूर्ण लिंग चयनात्मक उन्मूलन को रोकना, बालिकाओं का अस्तित्व और संरक्षण सुनिश्चित करना तथा बालिकाओं की शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करना है।
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya- KGBV): यह विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों की वंचित समूहों की लड़कियों के लिए आवासीय स्कूली शिक्षा की सुविधा प्रदान करता है।

2. सामाजिक सुरक्षा और संरक्षण

  • वन स्टॉप सेंटर और महिला हेल्पलाइनों का सार्वभौमीकरण
    • वन स्टॉप सेंटर (OSCs), जिन्हें ‘सखी केंद्र’ के नाम से जाना जाता है: यह हिंसा से प्रभावित महिलाओं को पुलिस सुविधा, चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता, मनोवैज्ञानिक-सामाजिक परामर्श और अस्थायी आश्रय सहित एकीकृत सेवाएँ प्रदान करता है।
    • महिला हेल्पलाइन (WHL) योजना: यह एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर (181) के माध्यम से हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24 घंटे आपातकालीन और गैर-आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करता है, जिसमें बचाव वैन, परामर्श और महिला कल्याण योजनाओं की जानकारी जैसी सहायता प्रदान की जाती है।
  • स्वाधार गृह योजना (Swadhar Greh Scheme): कठिन परिस्थितियों में रहने वाली महिलाओं को सम्मानपूर्वक जीवन जीने में मदद करने के लिए संस्थागत सहायता प्रदान करता है।
  • उज्ज्वला योजना (Ujjawala Scheme): इसका उद्देश्य तस्करी को रोकना तथा वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए तस्करी के पीड़ितों को बचाना, पुनर्वास, पुनः एकीकरण तथा प्रत्यावर्तन प्रदान करना है।
  • कामकाजी महिला छात्रावास (Working Women Hostel): शहरी, अर्द्ध-शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक स्थान पर आवास उपलब्ध कराया जाता है, साथ ही उनके बच्चों के लिए डे केयर सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जाती हैं।

3. आर्थिक सशक्तीकरण (Economic Empowerment)

  • दीन दयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM)
    • यह ग्रामीण विकास मंत्रालय (भारत सरकार) का प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य गरीबों, विशेषकर महिलाओं के लिए मजबूत संस्थाओं का निर्माण करके गरीबी में कमी लाना तथा इन संस्थाओं को विभिन्न वित्तीय सेवाओं एवं आजीविका तक पहुँच प्रदान करना है।
    • महिलाओं की आजीविका बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता, कौशल विकास और बाजार संपर्क प्रदान करता है।
  • महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम को समर्थन (STEP): महिलाओं को रोजगार योग्य बनाने के लिए कौशल प्रदान करना तथा महिलाओं को स्वरोजगार/उद्यमी बनने के लिए सक्षम बनाने हेतु दक्षता और कौशल प्रदान करना।
  • महिला ई-हाट (Mahila E-Haat): महिला उद्यमियों, स्वयं सहायता समूहों और गैर-सरकारी संगठनों को समर्थन देने के लिए एक ऑनलाइन विपणन मंच।

4. स्वास्थ्य और पोषण

  • प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना (PMMVY): एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम, जो गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके पहले जीवित बच्चे के जन्म पर स्वास्थ्य एवं पोषण परिणामों में सुधार के लिए नकद प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवाएं (ICDS): 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों और उनकी माताओं को भोजन, पूर्वस्कूल शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

5. राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी

  • पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण: स्थानीय शासन निकायों में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी एवं नेतृत्व को बढ़ाने के लिए उनके लिए 33% सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया है।
  • महिला शक्ति केंद्र (MSK): सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना तथा महिलाओं के लिए बनाई गई योजनाओं एवं कार्यक्रमों के अंतर-क्षेत्रीय अभिसरण को सुगम बनाना।
  • महिला आरक्षण अधिनियम, 2023: यह लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिनमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।

व्यक्तिगत पसंद और सामाजिक संबंधों पर सार्वजनिक नीति का प्रभाव

  • वित्तीय नीतियाँ
    • कर नीतियाँ, न्यूनतम मजदूरी कानून और सामाजिक कल्याण कार्यक्रम व्यक्तिगत वित्तीय निर्णयों और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
    • व्यक्तिगत स्वायत्तता आर्थिक स्वायत्तता से संबंधित है: आर्थिक स्वतंत्रता महिलाओं की व्यक्तिगत स्वायत्तता को बढ़ाती है।
    • नकद हस्तांतरण से परिवार के भीतर सौदेबाजी की शक्ति बढ़ती है और महिलाओं को कष्टकारी या अपमानजनक वैवाहिक रिश्तों से छुटकारा पाने में मदद मिल सकती है।
    • नीतियों का लक्ष्य आर्थिक सुरक्षा के लिए महिलाओं के तयशुदा विवाह और रिश्तेदारी संबंधों पर निर्भरता को कम करना होना चाहिए।
  • सामाजिक मानदंड और मूल्य
    • कुछ व्यवहारों को बढ़ावा देने या प्रतिबंधित करने वाली नीतियाँ सामाजिक मानदंडों और मूल्यों को प्रभावित कर सकती हैं।
    • उदाहरण: LGBTQ+ अधिकारों या लैंगिक समानता का समर्थन करने वाली नीतियाँ सामाजिक दृष्टिकोण को बदल सकती हैं तथा समावेशिता एवं स्वीकृति को बढ़ावा दे सकती हैं।
  • सामाजिक संबंध और समुदाय: शहरी नियोजन और आवास नीतियाँ भौतिक और सामाजिक वातावरण को आकार देकर सामाजिक संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।
  • पारिवारिक नीतियाँ: माता-पिता की छुट्टी, बच्चों की देखभाल और पारिवारिक सहायता से संबंधित नीतियाँ पारिवारिक गतिशीलता और कॅरियर एवं पारिवारिक जीवन के बारे में व्यक्तिगत विकल्पों को प्रभावित कर सकती हैं। ये नीतियाँ कार्य-जीवन की जिम्मेदारियों को संतुलित करने और पारिवारिक सामंजस्य का समर्थन करने में मदद कर सकती हैं।
  • विनियमन और व्यवहार
    • सार्वजनिक नीतियाँ अक्सर ऐसे व्यवहारों को विनियमित करती हैं, जो व्यक्तिगत विकल्पों को प्रभावित करते हैं, जैसे सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध, अनिवार्य सीटबेल्ट कानून और टीकाकरण आवश्यकताएँ।
    • विनियमनों का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देना है, लेकिन ये व्यक्तिगत व्यवहार और जीवनशैली विकल्पों को भी आकार दे सकते हैं।

सार्वजनिक नीति और हाशिए पर खड़ी महिलाओं की स्वायत्तता पर इसका प्रभाव

सार्वजनिक नीति, जिसका उद्देश्य समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों को सहायता प्रदान करना और उन्हें सशक्त बनाना है, कभी-कभी अनजाने में ऐसे कर्तव्य लागू कर सकती है, जो व्यक्तिगत स्वायत्तता और अधिकारों में बाधा डाल सकते हैं:

  • सामाजिक अपेक्षाएँ और मानदंड
    • लैंगिक भूमिकाओं का सुदृढ़ीकरण: ऐसी नीतियाँ जो स्पष्ट या अप्रत्यक्ष रूप से पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं (जैसे, प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में महिलाएँ) को सुदृढ़ बनाती हैं, वे सामाजिक मानदंडों को कायम रख सकती हैं, जो महिलाओं की स्वायत्तता को प्रतिबंधित करती हैं और व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक विकास के उनके अवसरों को सीमित करती हैं।
    • कल्याण पर पारंपरिक दृष्टिकोण पर सवाल उठाना: महिलाओं को अक्सर उनके कथित ‘अच्छे व्यवहार’ के आधार पर कल्याणकारी लाभों के लिए लक्षित किया जाता है।
      • आँकड़े दर्शाते हैं कि महिलाएँ कल्याणकारी धनराशि को परिवार कल्याण पर खर्च करती हैं, लेकिन वे विविधतापूर्ण दृष्टिकोण भी रखती हैं और केवल निष्क्रिय प्राप्तकर्ता नहीं हैं।
      • सशक्त महिलाओं को नीति निर्माताओं के समक्ष अपनी विश्वसनीयता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
    • सामुदायिक जिम्मेदारियाँ: पर्याप्त संसाधन या प्रशिक्षण प्रदान किए बिना महिलाओं को समुदाय आधारित जिम्मेदारियाँ (जैसे- स्थानीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों या शैक्षिक पहलों का प्रबंधन) सौंपने से उन पर अत्यधिक बोझ पड़ सकता है और वे तनावग्रस्त हो सकती हैं।
  • आर्थिक स्वतंत्रता
    • संपत्ति का स्वामित्व: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के अनुसार, जिसमें 15 से 49 वर्ष की आयु की महिलाओं का साक्षात्कार लिया गया था, केवल 13 प्रतिशत के पास अपना मकान है, जबकि 29 प्रतिशत के पास संयुक्त स्वामित्व है।
      • सरकारी कार्यक्रमों ने संपत्ति स्वामित्व और श्रम शक्ति में लैंगिक अंतर को दूर करने के लिए महिलाओं को प्राथमिक लाभार्थी बनाने पर जोर दिया है।
      • व्यक्तिगत स्वायत्तता: स्वतंत्र आर्थिक सुरक्षा विवाहों को पारंपरिक दबावों से मुक्त कर सकती है तथा प्रेम आधारित विवाहों को बढ़ावा दे सकती है।
    • अवैतनिक देखभाल कार्य: ऐसी नीतियाँ जो महिलाओं से बिना किसी पर्याप्त सहायता के अवैतनिक देखभाल कार्य (जैसे, बुजुर्गों या विकलांगों की देखभाल) करने की अपेक्षा करके पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को अपनाती हैं या उन्हें सुदृढ़ बनाती हैं, उनकी आर्थिक स्वतंत्रता तथा व्यक्तिगत विकास को सीमित कर सकती हैं।
  • अनुपालन का बोझ
    • सशर्त कल्याण योजनाएँ: कल्याणकारी योजनाएँ जो कुछ व्यवहारों (जैसे, बच्चों की स्कूल में उपस्थिति, सामुदायिक गतिविधियों में भागीदारी) पर सशर्त होती हैं, महिलाओं की उन विकल्पों को चुनने की स्वतंत्रता को सीमित कर सकती हैं, जो उनकी व्यक्तिगत एवं पारिवारिक परिस्थितियों के अनुकूल हों।

संतुलित दृष्टिकोण: आगे का राह

यह सुनिश्चित करने के लिए कि सार्वजनिक नीतियां हाशिए पर खड़ी महिलाओं की स्वायत्तता में बाधा डालने के बजाय उसका समर्थन करें, नीति निर्माताओं को निम्नलिखित दृष्टिकोणों पर विचार करना चाहिए:

  • नीतिगत बहसों में मानव-केंद्रित मूल्यों को शामिल करना
    • समग्र नीति ढाँचा: ऐसा नीतिगत ढाँचा विकसित करना जिसमें गरिमा, स्वायत्तता और मानव विकास से संबंधित लक्ष्य स्पष्ट रूप से शामिल हों।
    • मानक कल्याण कार्यक्रम मूल्यांकन, उपभोग संतुलन और रिसाव जैसे आर्थिक मापदंडों पर केंद्रित होते हैं।
    • मूल्यांकन में यह भी मापा जाना चाहिए कि कार्यक्रम गरिमा एवं व्यक्तिगत स्वायत्तता पर किस प्रकार प्रभाव डालते हैं।
    • नीतिगत चर्चाओं में लाभार्थियों की मानवता पर विचार किया जाना चाहिए, तथा प्रेम, आनंद और उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • सुरक्षा जाल और शक्ति संरचनाओं को पुनः परिभाषित करना
    • प्रभावी सुरक्षा जाल प्रमुख पुरुष सत्ता संरचनाओं को चुनौती दे सकते हैं।
    • कल्याणकारी कार्यक्रमों का पारस्परिक संबंधों एवं सामाजिक बंधनों पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर अध्ययन किया जाना चाहिए।
    • कल्याणकारी योजनाओं के गुणात्मक प्रभावों के अध्ययन में अधिक निवेश की आवश्यकता है।
  • लचीलापन और विकल्प
    • लचीली शर्तें: लचीली शर्तों के साथ कल्याणकारी कार्यक्रम तैयार करना जो महिलाओं को उनकी परिस्थितियों के अनुकूल तरीके से आवश्यकताओं को पूरा करने की अनुमति दें।
    • बहुविकल्पीय विकल्प: नीतिगत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बहुविकल्पीय विकल्प प्रदान करना, जिससे महिलाओं को सबसे उपयुक्त और कम बोझिल मार्ग चुनने की सुविधा मिले।
  • सहभागितापूर्ण नीति डिजाइन
    • हितधारक सहभागिता: नीति निर्माण और मूल्यांकन में हाशिए पर पड़े समुदायों सहित विविध प्रकार के हितधारकों को शामिल करना। इससे यह सुनिश्चित होता है कि नीतियाँ उन लोगों की वास्तविक ज़रूरतों और आकांक्षाओं के प्रति उत्तरदायी हों जिनकी वे सेवा करना चाहते हैं।
  • फीडबैक, निगरानी और मूल्यांकन
    • फीडबैक तंत्र: लाभार्थियों के अनुभवों और इनपुट के आधार पर नीतियों में निरंतर फीडबैक तथा समायोजन के लिए तंत्र स्थापित करना।
    • प्रभाव आकलन: मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों तरीकों का उपयोग करके महिलाओं की स्वायत्तता तथा अधिकारों पर नीतियों के प्रभाव की नियमित निगरानी एवं मूल्यांकन करना।
    • समायोजन और सुधार: मूल्यांकन निष्कर्षों के आधार पर नीतियों में आवश्यक समायोजन करें ताकि उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सके और स्वायत्तता पर नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।
  • नैतिक विचार: सुनिश्चित करना कि नीतियाँ नैतिक सिद्धांतों पर आधारित हों, जो मानवीय गरिमा का सम्मान करें और सामाजिक न्याय को बढ़ावा दें।
    • पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण से बचें और व्यक्तियों को अपना स्वयं का निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाएँ।

निष्कर्ष

  • योजनाओं के विश्वसनीय प्रभाव को न केवल उपभोग को सुचारू बनाने और रिसाव के मानक उपायों से मापा जाना चाहिए, बल्कि यह भी देखा जाना चाहिए कि ये नीतिगत साधन हाशिए पर पड़े लोगों की गरिमा और व्यक्तिगत स्वायत्तता को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
  • आखिरकार, हममें से हर कोई प्रेम, आनंद और उद्देश्य के लिए जीता है; उत्पादकता और लाभ के लिए नहीं।
  • कल्याणकारी नीति पर इस बहस में वास्तविक मानव और उनकी मानवता को नहीं भूला जा सकता।

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