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PESA की भारत में वन संरक्षण में भूमिका

Lokesh Pal June 26, 2024 04:06 147 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस रिव्यू में ‘प्रतिनिधित्व एवं वन संरक्षण: भारत के अनुसूचित क्षेत्रों से साक्ष्य’ (Representation and Forest Conservation: Evidence from India’s Scheduled Areas) शीर्षक नाम से एक पेपर प्रकाशित हुआ। 

संबंधित तथ्य

  • यह शोधपत्र स्थानीय स्वशासन और वन क्षेत्र के तुलनात्मक आँकड़े प्रस्तुत करता है, जो भौगोलिक और समय के अनुसार भिन्न हैं:
    • अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन वाले गाँवों के लिए (अनिवार्य ST प्रतिनिधित्व के साथ)
    • अनिवार्य ST प्रतिनिधित्व के बिना स्थानीय स्वशासन वाले गाँवों के लिए।
    • जिन गाँवों ने पहले PESA अपनाया, एवं जिन्होंने बाद में अपनाया। 
  • निष्कर्ष ‘रिमोट-सेंसिंग माइक्रोडेटा’ पर आधारित थे, जो हाल ही में उपग्रहों से उपलब्ध हुए हैं, जैसे कि लैंडसैट (LANDSAT), सेंटिनल (Sentinel) एवं रक्षा मौसम विज्ञान उपग्रह कार्यक्रम (Defense Meteorological Satellite Program- DMSP)
  • वे वर्ष 2001-17 के लिए ऐसे दो डेटासेट MEaSURES वनस्पति सतत् क्षेत्र (Vegetation Continuous Fields- VCF) एवं ग्लोबल फॉरेस्ट कवर (Global Forest Cover- GFC) डेटासेट का उपयोग करते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु (संस्थागत तंत्र जो संरक्षण में बेहतर परिणाम दे सकता है)

1. वंचित समुदायों, अनुसूचित जनजातियों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व, वन संरक्षण पर प्रभाव  

    • वृक्ष आवरण में वृद्धि: अनुसूचित जनजातियों के लिए औपचारिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने से वृक्ष आवरण में प्रति वर्ष औसतन 3% की वृद्धि हुई एवं साथ ही वनों वनोन्मूलन में भी कमी आई है।
      • PESA से पूर्व: खदानों के निकट के क्षेत्रों में वनोन्मूलन  की दर अधिक थी। 
      • PESA के बाद प्रभाव: वृक्षावरण में वृद्धि एवं वनों की कटाई में गिरावट देखने को मिलती है। 
        • ST के लिए अनिवार्य प्रतिनिधित्व के बिना केवल PRI या स्थानीय स्वशासन (वर्ष 1993 से शुरू) का कोई महत्त्व नहीं था।
    • इसका कारण: जब राजनीतिक हितधारकों के रूप में सशक्त किया गया, तो ST को पेड़ों की रक्षा करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन मिला, जिसकी उन्हें गैर-लकड़ी वन उपज की बिक्री और दैनिक कैलोरी सेवन पर केंद्रित अपनी आजीविका के लिए आवश्यकता थी।
      • इस निर्भरता ने उन्हें वाणिज्यिक लकड़ी और खनन के प्रति शत्रुतापूर्ण बना दिया, जिससे वनों की कटाई हुई।

2. अम्ब्रेला इंस्टिट्यूशन में शक्तियाँ निहित होना – राजनीतिक संस्था जो वंचितों  को सशक्त बनाती है।

  • अम्ब्रेला इंस्टिट्यूशन के लाभ 
    • विकास एवं संरक्षण के दोहरे नीतिगत उद्देश्यों को कैसे संतुलित किया जाए इसका प्रावधान करना ।
    • यह सत्ता को अधिक ठोस एवं सार्थक लोकतांत्रिक प्राधिकार में समेकित कर सकता है।
  • प्रशासनिक विकेंद्रीकरण एवं लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के बीच अंतर 
    • प्रशासनिक विकेंद्रीकरण यहाँ प्राथमिकता ‘कुशल निष्पादन’ है।
      • यह संभव है कि ग्राम स्तरीय शासकीय परिषदों को क्रियान्वयन के लिए बजट का अधिकार दिया जाए, लेकिन संसाधन प्रबंधन पर विवेकाधीन शक्ति का अभाव हो।
    • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: इसका तात्पर्य प्रतिनिधि और निचले स्तर पर जवाबदेह स्थानीय प्राधिकारियों से है, जिनके पास स्वायत्त, विवेकाधीन निर्णय लेने का क्षेत्राधिकार  होता है तथा लोगों के जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की शक्ति एवं संसाधन होते हैं।

PESA की पृष्ठभूमि 

  • स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता: ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1992 में 73वाँ संवैधानिक संशोधन किया गया था।
    • 73वें संवैधानिक संशोधन ने गैर-अनुसूचित क्षेत्रों में त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्थानों (PRI) के माध्यम से स्थानीय स्वशासन को औपचारिक रूप दिया। 
    • लेकिन इस संशोधन में “अनुसूचित जनजातियों के लिए अनिवार्य प्रतिनिधित्व” के बिना ऐसा किया गया।
    • PESA ने इसे एक कदम आगे बढ़ाया: इसने अनुसूचित क्षेत्रो में एक निर्वाचन कोटा की व्यवस्था की, जिसके अनुसार सभी अध्यक्ष पदों के साथ-साथ प्रत्येक स्थानीय सरकारी परिषद में कम-से-कम आधी सीटें ST व्यक्तियों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है।
  • भूरिया समिति (Bhuria Committee)
    • सरकार ने दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसका कार्य यह तय करना था कि जनजातीय क्षेत्रों और अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं के समान ढाँचे कैसे बनाए जाएँ तथा उनकी शक्तियाँ कैसे परिभाषित की जाएँ।
    • भूरिया समिति ने जनवरी 1995 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

PESA क्या है?

  • अधिनियमन: PESA को कुछ अपवादों एवं संशोधनों के साथ संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए 24 दिसंबर, 1996 को अधिनियमित किया गया था।
  • ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन: अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए PESA अधिनियम लागू किया गया था।
  • जनजातीय समुदायों के अधिकार: PESA अधिनियम उन जनजातीय समुदायों के अधिकारों को मान्यता देता है, जो जनजातीय समुदायों के निवासी हैं एवं प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को भी स्वीकार करता है।
  • अधिनियम के तहत राज्य: इसमें पाँचवीं अनुसूची के 10 राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों को अधिसूचित किया है, जो इनमें से प्रत्येक राज्य में कई जिलों को (आंशिक रूप से या पूरी तरह से) कवर करते हैं।
    • ये राज्य हैं, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान एवं तेलंगाना।

PESA अधिनियम का महत्त्व

  • सशक्त ग्राम सभाएँ: वे विकास योजनाओं को मंजूरी देने एवं सामाजिक क्षेत्र की  विकास योजनाओं को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • जनजातीय एकता: विकेंद्रीकृत शासन जनजातीय लोगों की शिकायतों को कम करने में मदद करता है एवं मुख्यधारा के साथ एकीकरण में विश्वास उत्पन्न करता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा: PESA ग्राम सभाओं के माध्यम से जनजातियों को पारिस्थितिकी तंत्र के साथ उनके संबंध को बनाए रखने के लिए सशक्त बनाता है। 
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2013 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ओडिशा सरकार को ओडिशा के कालाहांडी एवं रायगढ़ जिले में बॉक्साइट खनन के लिए ग्राम सभा की अनुमति लेने का आदेश दिया, जिसके कारण नियमगिरि पहाड़ियों पर खनन रद्द कर दिया गया।
  • आदिवासी हितों और अधिकारों की रक्षा: संस्थानों एवं पदाधिकारियों पर नियंत्रण जनजातियों पारंपरिक संस्कृति, धर्म तथा पहचान के साथ-साथ संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है।

PESA अधिनियम की सीमाएँ

  • राज्यों द्वारा नियमों का न बनाया जाना: छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा ने अभी तक इस संबंध में किसी भी प्रकार के नियम नहीं बनाए हैं।
  • कानून को दरकिनार करने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग: भूमि का अधिग्रहण अन्य अधिनियमों के तहत होता है, जो PESA के मूल उद्देश्य, अर्थात् आदिवासी भूमि की सुरक्षा और ग्राम सभाओं की सहमति का उल्लंघन करता है।
    • छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में, अधिकारियों ने वर्ष 1957 के कोल बेयरिंग अधिनियम का उपयोग करके भूमि अधिग्रहण करने का निर्णय लिया।
  • कानून अनुचित  कार्यान्वयन: इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा आंध्र प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड एवं उड़ीसा में ‘पेसा की स्थिति’ पर वर्ष 2010 के एक अध्ययन में अधिनियम के खराब कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला गया। उदाहरण के लिए, झारखंड के खूँटी जिले में, जिनकी जमीन अधिग्रहित की गई, उनमें से 65% लोगों से इसके बारे में पूछा तक नहीं गया। 
  • स्पष्टता की कमी, कानूनी कमजोरी, नौकरशाही की उदासीनता एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी कुछ अन्य चिंताएँ हैं।

PESA अधिनियम के लिए आगे की राह 

  • भूरिया समिति की सिफारिशों के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्रों में नगरपालिका विस्तार (Municipal Extension to Scheduled Areas- MESA) लागू किया जाना चाहिए।
  • क्षमता निर्माण: ग्राम सभाओं को कर, शुल्क, टोल लगाने एवं एकत्र करने के लिए प्रशिक्षण तथा संसाधन, पर्याप्त जिम्मेदारियों से लैस करना।
  • जनजातीय विकास के लिए नए जनजातीय विकास समुदाय मॉडल का निर्माण करना।
  • अन्य नियमों के साथ PESA का अभिसरण:  वन अधिकार अधिनियम (2006), उचित मुआवजे का अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता आदि को PESA के साथ जोड़ना।

अनुसूचित क्षेत्र क्या हैं?

  • अनुसूचित क्षेत्रों को अनुच्छेद-244 (1) के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा परिभाषित क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है।
  • अनुसूचित क्षेत्रों की पहचान भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची द्वारा की जाती है। 
  • अनुसूचित क्षेत्र के अंतर्गत भारत के 10 राज्य शामिल है, जिनमें आदिवासी समुदायों की जनसंख्या प्रमुख रूप से निवासरत  है।

पाँचवीं एवं छठी अनुसूची

  • पाँचवीं अनुसूची: पाँचवीं अनुसूची का प्रावधान किसी भी राज्य (असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों के अतिरिक्त) में अनुसूचित क्षेत्रों तथा अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण पर लागू होगा।
  • छठी अनुसूची: छठी अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्य के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होंगे।

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