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बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Animal Conflict)

Samsul Ansari December 19, 2023 11:28 150 0

संदर्भ 

कर्नाटक के मैसूरु और चामराजनगर जिलों में बाघों की संख्या में वृद्धि के कारण पिछले तीन महीनों में कई वन्यजीव संघर्ष तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा है।

संबंधित तथ्य 

  • बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष: वन अधिकारियों के अनुसार, ये मौतें बाघों की आपसी लड़ाई के कारण हुई हैं।
  • हाल ही में बाघ और तेंदुए की आबादी में वृद्धि के साथ-साथ वन क्षेत्र में कमी के कारण इस क्षेत्र में संघर्ष हुआ।
    • मैसूरु क्षेत्र में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष से वन्यजीव प्रेमी एवं पर्यावरणविद चिंतित हैं।
    • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority -NTCA) द्वारा आयोजित वर्ष 2022 की टाइगर जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में देश में बाघों की अधिकतम संख्या (785) है, जिसमें पिछले चार वर्षों में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इसके बाद कर्नाटक ( 563), उत्तराखंड (560) और महाराष्ट्र (444) हो गई है।

  • जीवन की क्षति: बाघों और मनुष्यों के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण कई मौतें हुई हैं।
    • बाँदीपुर टाइगर रिजर्व में एक बाघ ने 54 वर्षीय आदिवासी व्यक्ति को मार डाला।
    • यह संघर्ष केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि बड़ी बिल्लियाँ (शेर, बाघ आदि) हर महीने असंख्य पशुओं एवं कुत्तों का शिकार करती हैं।
  • मलाई महादेश्वरा हिल्स (Malai Mahadeshwara Hills) टाइगर रिजर्व का निर्माण: इसे कर्नाटक में बनाया जाना प्रस्तावित है।
    • पर्यावरणविदों के अनुसार, इससे माले महादेश्वर स्वामी मंदिर के भक्तों और अन्य वनवासियों को परेशानी होगी।

मानव-वन्यजीव  संघर्ष  (Human-Animal Conflict- HWC) क्या है?

  • परिभाषा: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और WWF द्वारा जारी संयुक्त रिपोर्ट जिसका शीर्षक ‘सभी के लिए भविष्य-मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व की आवश्यकता‘, है के अनुसार, जब मनुष्यों एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष से नकारात्मक परिणाम आते हैं, जैसे संपत्ति, आजीविका और यहाँ तक कि जीवन की हानि, जिसके परिणामस्वरूप लोगों और वन्यजीवों दोनों को पीड़ा होती है तो इसे मानव-वन्यजीव संघर्ष कहा जाता है।
  • भारत पर मानव-वन्यजीव संघर्ष का अधिक प्रभाव: रिपोर्ट के अनुसार, भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष से सबसे अधिक प्रभावित होगा क्योंकि यहाँ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव आबादी के साथ-साथ बाघ, एशियाई हाथियों, एक सींग वाले गैंडे, एशियाई शेर और अन्य प्रजातियों की भी बड़ी आबादी निवास करती है।

काजीरंगा (कार्बी आंगलोंग कॉरिडोर)

  • यह कॉरिडोर काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के हाथियों के आवासों को कार्बी आंगलोंग वन से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 37 के पूर्वी किनारे पर काजीरंगा की ओर गलियारा क्षेत्र ज्यादातर कृषि के अधीन है।
  • खतरे: राष्ट्रीय राजमार्ग 37 पर भारी यातायात, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और NH 37 की सीमाओं के बीच कृषि भूमि।

  • मानव जनसंख्या वृद्धि: लगातार बढ़ती आबादी की जरूरतें वन्यजीवों के आवासों में अतिक्रमण और स्थानीय समुदायों के साथ सीधी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देती हैं।
    • भूमि और प्राकृतिक संसाधनों की उच्च माँग लोगों और वन्यजीवों के बीच संबंधों को तीव्र करती है क्योंकि वे अक्सर स्पष्ट सीमाओं के बिना रहने की जगह साझा करते हैं।
  • प्राकृतिकवास की हानि, क्षरण एवं विखंडन: प्रजातियों के आवास का नुकसान, क्षरण और विखंडन, जनसंख्या वृद्धि तथा भूमि उपयोग से जुड़े हुए हैं।
    • सड़कें और बिजली की लाइनें, उत्खनन, रेत खनन आदि जैसे रैखिक अतिक्रमण और गैर-वन उपयोगों के लिए वन्य भूमि के विचलन ने नए वन किनारों का निर्माण किया है।
  • भूमि उपयोग में परिवर्तन: उप-शहरीकरण और पशुधन चराई का विस्तार प्रजातियों को उनके क्षेत्रीय और संचलन व्यवहार को बदलने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, जंगली प्रजातियाँ लोगों के साथ अधिक बार संपर्क में आती हैं।
  • फसलों की हानि और आजीविका पर प्रभाव: हाथियों की कृषि फसलों पर बढ़ती निर्भरता का नुकसान हाशिए पर रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

हाथियों से संबंधित नवीनतम डेटा

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-2015 और 2018-2019 के बीच 500 से अधिक हाथी मारे गए, जो कि ज्यादातर मानव-हाथी संघर्ष के कारण हुआ।
    • इसी अवधि के दौरान, हाथियों के साथ संघर्ष के परिणामस्वरूप 2,361 लोग मारे गए।
  • सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ  स्टडीज (Centre for Wildlife Studies-CWS) के शोध के अनुसार, भारत एक अधिक वन्य जीवन संघर्ष वाला देश है, जहाँ प्रति वर्ष औसतन 80,000 घटनाएँ दर्ज की जाती हैं।
  • CWS एक गैर-लाभकारी संस्था है जो वन्यजीव अनुसंधान, संरक्षण, नीति और शिक्षा पर काम करती है।
    • हाथियों द्वारा प्रति वर्ष लगभग 500 लोग मारे जाते हैं और हजारों परिवारों को हाथियों के कारण फसल एवं संपत्ति की हानि का सामना करना पड़ता है।

  • पर्यावरण पर्यटन और प्राकृतिक भंडारों तक पहुँच बढ़ाना: मनोरंजक गतिविधियों में वृद्धि और वन्यजीव प्रजातियों में बढ़ती सार्वजनिक रुचि ने संरक्षित क्षेत्रों में मानव उपस्थिति में वृद्धि की है।
    • इसने सार्वजनिक पहुँच और संरक्षित क्षेत्रों के व्यापक उपयोग को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और विनियमित करने की क्षमता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
  • जलवायु संबंधी कारक: इससे वानस्पतिक पारिस्थितिकी तंत्र और जानवरों के चरागाह और वन उपयोग के पैटर्न में बदलाव आता है।
    • जैसे-जैसे जानवर अपनी गतिविधियों को बदलते हैं, वे पारिस्थितिकी तंत्र को काफी हद तक बदल देते हैं। उदाहरण के लिए, हाथी हिमाचल प्रदेश और देश के अन्य ठंडे इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ पहले हाथियों की मौजूदगी न के बराबर थी।
  • विदेशी प्रजातियों का आक्रमण: इसका मुख्य कारण गैर-जिम्मेदाराना आयात एवं निर्यात है। कुछ विदेशी प्रजातियों के आक्रमणों के कारण देशी प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं। साथ ही इसका देशज पर्यावरण पर भी प्रभाव पड़ता है।
    • जब हाथी अपने मूल वातावरण में वापस नहीं लौटते हैं तो वे मौजूदा जंगलों को बदल देते हैं, जिससे कई स्थापित प्रजातियों के अस्तित्व पर असर पड़ता है।
    • आक्रामक प्रजाति एक पौधे या पशु की प्रजाति है जो किसी क्षेत्र की मूल निवासी नहीं है और उस निवास स्थान में तेजी से फैलती है तथा मूल प्रजातियों एवं पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष का प्रभाव

  • स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: वन्यजीवों के साथ संघर्ष के परिणामस्वरूप चोटें आती हैं और जानमाल तथा पशुधन, फसल या अन्य संपत्ति की हानि होती है।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष के ऐसे नकारात्मक प्रभाव कमजोर, गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर और बढ़ गए हैं जिनके पास वैकल्पिक आय स्रोतों की कमी हो सकती है।
    • औसतन, क्षेत्र के किसानों को प्रति एकड़ भूमि के 15 क्विंटल के कुल उत्पादन में से औसतन लगभग 10 क्विंटल रागी का नुकसान होता है।
  • वन्य जीवन पर प्रभाव: यह मानव-वन्यजीव संघर्ष, मांसाहारी जानवरों की बदले की भावना से हत्या और अवैध शिकार को बढ़ावा दे रहा है।
    • सार्वजनिक जीवन की सुरक्षा के लिए, उन्हें पकड़ लिया जाता है और बाड़ों के अंदर जीवन बिताने की सजा दी जाती है।
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-20 में दो बाघों को कैद किया गया था, जो संख्या वर्ष 2020-21 और वर्ष 2021-22 में बढ़कर पाँच हो गई, जबकि वर्ष 2022 में कुल सात बाघों को कैद किया गया।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में जानवरों के हमलों के कारण मरने या घायल होने वाले लोगों की संख्या में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • जूनोटिक रोगों का बढ़ना: वन्यजीवों से मनुष्यों में और इसके विपरीत प्रसारित होने वाली जूनोटिक बीमारियाँ मानव-पशु संघर्ष का प्रत्यक्ष परिणाम हैं।
    • जानवरों और मनुष्यों के बीच बढ़ते संपर्क के साथ, जानवरों के रोगाणुओं के लोगों में स्थानांतरित होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • उभरती बीमारियों (जैसे- इबोला, जीका, निपाह इन्सेफेलाइटिस) और महामारी (जैसे- एवियन इन्फ्लुएंजा, एचआईवी/एड्स, COVID-19) में से अधिकांश (70%) जूनोटिक हैं, जो HWC का प्रत्यक्ष परिणाम हैं।
  • सामाजिक गतिशीलता पर प्रभाव: HWC का फसल के नुकसान, संपत्ति की क्षति और जीवन की हानि का सामना करने वाले लोगों पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को संबोधित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप

  • भारतीय वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972: यह जंगली जानवरों एवं पौधों की विभिन्न प्रजातियों की सुरक्षा के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • यह राज्यों के मुख्य वन्यजीव संबंधित क्षेत्रों को राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के अंदर और बाहर मनुष्यों तथा वन्यजीवों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए उपाय करने का अधिकार देता है।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना 2017-2035 : इसमें HWC के प्रबंधन पर केंद्रित एक समर्पित अध्याय है।
    • इसमें राष्ट्रीय और क्षेत्रीय संघर्ष प्रबंधन योजनाओं को विकसित करने, संघर्ष के बाद राहत प्रदान करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और स्थानीय कार्य योजनाओं के निर्माण के लिए प्रासंगिक पारिस्थितिकी जानकारी एकत्र करने का आह्वान किया गया है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) के प्रबंधन के लिए सलाह: राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) की स्थायी समिति ने भारत में HWC के प्रबंधन के लिए सलाह को मंजूरी दे दी।
    • इसने मानव-वन्यजीव संघर्ष स्थितियों से निपटने के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए महत्त्वपूर्ण सिफारिशें कीं और अंतर-विभागीय समन्वित एवं प्रभावी कार्रवाइयों में तेजी लाने की माँग की।
  • फसल बीमा कवरेज: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना HWC के कारण फसल क्षति के खिलाफ मुआवजा और वन क्षेत्रों के भीतर चारे एवं पानी के स्रोतों को बढ़ाने का प्रावधान करती है।
  • आगे की राह
  • वन्यजीव मुआवजा निधि: संघर्षों से होने वाले नुकसान की भरपाई एक महत्त्वपूर्ण शमन रणनीति है।
    • कई राज्य वन्यजीव मुआवजे के लिए धन आवंटित करते हैं। हालाँकि, चुनौती यह सुनिश्चित करने में है कि मानव-पशु संघर्ष के कारण नुकसान का सामना करने वाले व्यक्तियों को इन निधियों तक पहुँच प्राप्त हो।
  • संघर्ष प्रबंधन समिति: संसदीय स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि संघर्ष के मामलों से निपटने के लिए एक संघर्ष प्रबंधन समिति तैयार की जानी चाहिए।
    • इसने राज्य वन्यजीव बोर्डों की स्थायी समिति में गैर-आधिकारिक सदस्यों को शामिल करने का भी सुझाव दिया।
  • HWC को CBD का लक्ष्य बनाना: मानव और वन्यजीवों के सह-अस्तित्व को जैविक विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity-CBD) प्रक्रिया का एक स्पष्ट लक्ष्य बनाया जाना चाहिए, जिसका उद्देश्य ‘प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने’ के वर्ष 2050 के दृष्टिकोण को साकार करना है।
    • जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention on Biological Diversity- UNCBD) एक संयुक्त राष्ट्र संधि है, जो दुनिया भर में जैविक विविधता के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है।
  • SDG के तहत HWC को शामिल करना: दीर्घकालिक सतत विकास और वन्यजीव संरक्षण के लिए SDG ढाँचे के कार्यान्वयन में मनुष्यों एवं वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को शामिल करें।
  • सुनियोजित हितधारक भागीदारी: भारत के असम में, कई जनसमुदायों को वन्यजीवों के कारण नुकसान का सामना करना पड़ता है जो दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं और उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है।
    • इन समुदायों को सरकारी मदद मुहैया करायी जानी चाहिए।
  • मानव वन्यजीव संघर्षों को संबोधित करने में समग्र दृष्टिकोण: इसमें शामिल है-
    • मानव वन्यजीव संघर्ष संबंधी शमन रणनीतियों को संबोधित करना।
    • HWC घटनाओं की प्रभावी रोकथाम के लिए उपायों को मजबूत करना।
    • फसल परिवर्तन और मुआवजे के विकल्प, क्षति मूल्यांकन पद्धति, बीमा विकल्प, मूल्य शृंखला विश्लेषण आदि के माध्यम से लोगों और वन्यजीवों को होने वाले नुकसान को कम करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने और HWC के शमन के लिए सहयोग प्राप्त करने के लिए अंतर-राज्य/अंतरराष्ट्रीय संवाद।

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