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विकसित भारत के लिए मानव पूँजी

Lokesh Pal December 30, 2025 02:50 16 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित मुख्य सचिवों के पाँचवें राष्ट्रीय सम्मेलन (NCCS) में, विकसित भारत की नींव के रूप में मानव पूँजी को मजबूत करने के लिए एक समन्वित राष्ट्रीय ढाँचा अपनाया गया।

मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन (NCCS) के बारे में

  • उत्पत्ति और संस्थागत स्वरूप: मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन को वर्ष 2022 में संस्थागत रूप दिया गया, जिसका पहला सम्मेलन जून 2022 में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आयोजित किया गया था।
    • यह भारत सरकार द्वारा केंद्र-राज्य प्रशासनिक समन्वय को मजबूत करने के लिए गठित एक गैर-वैधानिक, कार्यकारी स्तर का समन्वय मंच है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य कानून बनाने या विवाद सुलझाने के बजाय कार्यान्वयन और क्रियान्वयन पर कार्य करना है।
  • संरचना और प्रतिभागी: सम्मेलन में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिव, केंद्रीय सचिव और वरिष्ठ केंद्रीय अधिकारी एक साथ आते हैं।
    • यह राज्यों के बीच क्षैतिज समन्वय और केंद्र तथा राज्यों के बीच ऊर्ध्वाधर समन्वय सुनिश्चित करता है, जिससे नीतिगत सामंजस्य स्थापित हो पाता है।
  • उद्देश्य और शासन का औचित्य: केंद्र द्वारा नीति निर्माण और राज्यों द्वारा जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के बीच के अंतराल को पाटना।
    • संस्थागत विषमताओं को दूर करके और परिणाम-आधारित शासन को बढ़ावा देकर सहकारी संघवाद को मजबूत करना।
    • निगरानी योग्य लक्ष्यों, सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान और राज्यों के बीच सहभागितापूर्ण शिक्षण पर जोर दिया जाता है।
  • विषयगत फोकस और सुधार उन्मुखीकरण: NCCS अवसंरचना, विनिर्माण, मानव पूँजी विकास, डिजिटल शासन, स्वास्थ्य और जलवायु कार्रवाई जैसे राष्ट्रीय प्राथमिकता आधारित क्षेत्रों पर विचार-विमर्श करता है।
    • यह विकेंद्रीकरण, क्षेत्रीय अधिकारियों के सशक्तीकरण और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के उपयोग सहित प्रशासनिक सुधारों को बढ़ावा देता है।
  • वर्ष 2025 का विषय: ‘विकसित भारत के लिए मानव पूँजी’।

मुख्य सचिवों के पाँचवें राष्ट्रीय सम्मेलन की प्रमुख बिंदु

  • रणनीतिक शासन और नीतिगत रोडमैप
    • दस वर्षीय कार्ययोजनाएँ: सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UTs) को पहले, दूसरे, पाँचवें और दसवें वर्ष के लिए विशिष्ट लक्ष्यों के साथ दस वर्षीय रोडमैप तैयार करने का निर्देश दिया गया।
    • राज्य स्तरीय प्रगति: बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए, राज्यों से वास्तविक समय की निगरानी के लिए ‘सक्रिय शासन और समयबद्ध कार्यान्वयन’ (PRAGATI) प्लेटफॉर्म के अपने संस्करण स्थापित करने का आग्रह किया गया।
    • प्रशासनिक सुधार: प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि जिला कलेक्टरों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को प्रति सप्ताह दो घंटे तक सीमित किया जाना चाहिए, ताकि वे क्षेत्र भ्रमण तथा जमीनी स्तर के प्रशासन पर अधिक समय व्यतीत कर सकें।
    • डेटा रणनीति संबंधी इकाइयाँ: मुख्य सचिवों को व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने और व्यापार सुगमता में वृद्धि के लिए डेटा रणनीति इकाइयाँ और विनियमन प्रकोष्ठ स्थापित करने की सलाह दी गई।
  • विनिर्माण एवं आर्थिक आत्मनिर्भरता
    • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM): प्रधानमंत्री ने आगामी राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन की शुरुआत की घोषणा करते हुए राज्यों से वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा तैयार करने का आह्वान किया।
    • आत्मनिर्भरता: केंद्र और राज्य मिलकर घरेलू विनिर्माण के लिए 100 उत्पादों की पहचान करेंगे, जिससे भारत की आयात पर निर्भरता में उल्लेखनीय कमी आएगी।
    • गुणवत्ता मानक: “जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट” (ZEZD) मॉडल पर नए सिरे से जोर दिया गया, ताकि भारतीय निर्मित उत्पाद वैश्विक गुणवत्ता मानकों को पूरा करें और पर्यावरण पर उनका कोई प्रभाव न पड़े।
    • सेवा क्षेत्र: सूचना प्रौद्योगिकी (IT) के अलावा, राज्यों को स्वास्थ्य सेवा, परिवहन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
  • मानव संसाधन एवं खेल विकास
    • शिक्षा एवं कौशल विकास: सम्मेलन में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECCE) को सुदृढ़ करने और वैश्विक बाजार की माँगों को पूरा करने के लिए कार्यबल कौशल का आकलन करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • वर्ष 2036 का ओलंपिक रोडमैप: वर्ष 2036 के ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों की मेजबानी की तैयारी के तहत, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय खेल कैलेंडर को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने और जिला स्तर पर प्रतिभा पहचान पर जोर दिया।
    • पर्यटन एक रोजगारदाता के रूप में: प्रत्येक राज्य को युवा रोजगार और स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कम-से-कम एक विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल विकसित करने का कार्य सौंपा गया।
  • नवाचार, संस्कृति और कृषि
    • ज्ञान भारतम् मिशन: प्राचीन पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण के लिए एक नई पहल प्रस्तावित की गई, जिसमें AI का उपयोग करके ऐतिहासिक ज्ञान को आधुनिक अनुप्रयोगों के साथ संश्लेषित किया जाएगा।
    • एग्रीस्टैक: स्मार्ट आपूर्ति शृंखला का निर्माण करने और किसानों के लिए बाजार पहुँच में सुधार करने के लिए एग्रीस्टैक (कृषि के लिए एक डिजिटल आधार) के कार्यान्वयन को प्राथमिकता दी गई।
    • आयुष एकीकरण: राज्यों को आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) प्रणालियों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा वितरण नेटवर्क में एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
  • सुरक्षा एवं आंतरिक मामले
    • वामपंथी उग्रवाद के बाद की रणनीति: घरेलू खतरों को कम करने में मिली सफलता के बाद, वामपंथी उग्रवाद से मुक्त भविष्य के लिए प्रशासनिक और विकासात्मक योजनाएँ बनाने हेतु सत्र आयोजित किए गए।

विकसित भारत के बारे में

  • राष्ट्रीय परिकल्पना: विकसित भारत, स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र में परिवर्तित करने का राष्ट्रीय रोडमैप है।
  • संवैधानिक सिद्धांत: यह परिकल्पना संविधान के अनुच्छेद-38 में निहित है, जो राज्य को कल्याणकारी सामाजिक व्यवस्था को बढ़ावा देने का दायित्व देता है, और यह SDG-8 (सभ्य कार्य और समावेशी विकास) के अनुरूप है।
  • आर्थिक महत्त्वाकांक्षा और विस्तार: इसका मुख्य उद्देश्य दो दशकों के भीतर भारत को 30 ट्रिलियन डॉलर की विकसित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करना है, जो 1.65 अरब की अनुमानित जनसंख्या संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, साथ ही उच्च विकास दर, उत्पादकता और लचीलापन बनाए रख सके।
  • जनसांख्यिकीय अवसर: लगभग 70% जनसंख्या कामकाजी आयु वर्ग में होने के कारण, भारत एक महत्त्वपूर्ण बिंदु पर खड़ा है।
    • अमृत काल की सबसे बड़ी चुनौती जनसांख्यिकीय लाभांश को उत्पादक, कुशल और नवोन्मेषी मानव पूँजी में परिवर्तित करना है, न कि इसे जनसांख्यिकीय भार बनने देना।
  • समावेशी विकास ढाँचा: विकसित भारत की परिकल्पना समावेशी और सतत् विकास पर बल देती है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • जीवन और व्यापार में सुगमता
    • विश्व स्तरीय अवसंरचना
    • सामाजिक कल्याण और समानता
    • पर्यावरण स्थिरता
    • इन स्तंभों का संयुक्त उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक परिवर्तन किसी विशेष क्षेत्र तक सीमित न रहकर व्यापक, न्यायसंगत और भविष्य के लिए तैयार हो।
  • चार स्तंभ: युवा, गरीब, महिला और किसान।
  • विकसित भारत का मुख्य विषय
    • सशक्त भारतीय (स्वास्थ्य, शिक्षा, नारी शक्ति, खेल, संस्कृति और देखभाल आधारित समाज)।
    • समृद्ध और सतत् अर्थव्यवस्था (उद्योग, ऊर्जा, कृषि, अवसंरचना, सेवाएँ, हरित अर्थव्यवस्था और शहर)।
    • नवाचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी (अनुसंधान और विकास, स्टार्टअप और डिजिटल)।
    • सुशासन और सुरक्षा
    • विश्व में भारत की स्थिति।
  • प्रमुख क्षेत्र
    • शिक्षा: विद्यालयों के बुनियादी ढाँचे का उन्नयन, विद्यालयों में छात्रों की संख्या में वृद्धि और शैक्षिक मानकों को सशक्त बनाना।
    • स्वास्थ्य सेवा: यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक नागरिक को सुलभ और उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो।
    • प्रौद्योगिकी: राष्ट्रीय प्रगति के लिए तकनीकी समाधानों को अपनाना और उनमें अग्रणी भूमिका निभाना।
    • बुनियादी ढाँचा: परिवहन, संचार नेटवर्क और शहरी सुविधाओं जैसे मजबूत बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
    • कृषि: उन्नत कृषि पद्धतियों को अपनाना और किसानों को उनकी उपज और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सहायता प्रदान करना।
    • पर्यावरण: पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को बढ़ावा देना और हमारी प्राकृतिक संपदाओं की रक्षा करना ताकि भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण स्वच्छ और समृद्ध बना रहे।
  • वर्ष 2047 में सफलता के लिए प्रमुख मापदंड
    • मानव विकास: वर्ष 2047 तक उच्च मानव विकास सूचकांक (HDI) में उच्च स्थान (0.800 से ऊपर) प्राप्त करना, जो वर्तमान में 0.685 (130वाँ स्थान) है।
    • लैंगिक समानता: आर्थिक भागीदारी के अंतर को कम करके वैश्विक स्तर पर शीर्ष 50 देशों में शामिल होना, जो वर्तमान में 131वें स्थान से ऊपर है।
    • आर्थिक औपचारिकीकरण: सामाजिक सुरक्षा एकीकरण और लघु एवं मध्यम उद्यमों के औपचारिकीकरण के माध्यम से अनौपचारिक कार्यबल को 90% से घटाकर 30% से नीचे लाना।

विकसित भारत के लिए मानव संसाधन विकसित करने की आवश्यकता

मानव संसाधन विकास से तात्पर्य व्यक्तियों की प्रतिभाओं, योग्यताओं और कौशलों के पोषण तथा संवर्द्धन के लिए अपनाए जाने वाले व्यवस्थित दृष्टिकोण से है, जिससे राष्ट्रीय विकास में योगदान मिलता है।

  • जनसांख्यिकीय अवसर और जोखिम: लगभग 70% आबादी कामकाजी आयु वर्ग में होने के कारण, भारत एक ऐतिहासिक बिंदु पर है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य सेवा के बिना जनसांख्यिकीय लाभांश, बेरोजगारी से ग्रस्त जनसांख्यिकीय भार में परिवर्तित कर सकता है।
  • आर्थिक परिवर्तन: शिक्षा, कौशल और स्वास्थ्य में निवेश मानव पूँजी को 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलने की कुंजी है, जिससे लोग (जन) विकास के प्राथमिक इंजन बन सकें।
  • भविष्य के कार्य के लिए तत्परता: वैश्विक अर्थव्यवस्था दोहरे परिवर्तन (डिजिटल और हरित) से गुजर रही है। मानव संसाधन विकास को पारंपरिक पद्धति से आगे बढ़कर उच्च स्तरीय संज्ञानात्मक कौशल, डिजिटल कौशल और AI, उद्योग 4.0 और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के अनुरूप हरित कौशल विकसित करने होंगे।
  • अनुकूलनशीलता और आजीवन अधिगम: मजबूत मानव संसाधन विकास प्रणालियाँ वृद्धि, कौशल विकास और आजीवन अधिगम को बढ़ावा देती हैं, जिससे कार्यबल तेजी से हो रहे रोजगार संबंधी परिवर्तनों के बीच प्रासंगिक बना रहता है।
  • समावेशी एवं समतावादी विकास: एक विकसित भारत समावेशी होना चाहिए और अंत्योदय के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। लक्षित मानव संसाधन विकास से लैंगिक असमानता, क्षेत्रीय असमानता और श्रम बाजार में अनौपचारिकता को कम करने में मदद मिलती है।
  • सामाजिक गतिशीलता एवं सामंजस्य: शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुँच से उत्पादकता, सामाजिक गतिशीलता और सामाजिक सामंजस्य बढ़ता है, जिससे विकास के माध्यम से सभी के जीवन स्तर में सुधार सुनिश्चित होता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कुशल और स्वस्थ कार्यबल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए एक रणनीतिक आकर्षण के रूप में कार्य करता है, वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में भारत की भूमिका को मजबूत करता है और विश्व स्तरीय स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है।
  • ज्ञान नेतृत्व: उच्च मूल्य वाले कौशल, बौद्धिक संपदा और नवाचार का निर्यात करने वाले वैश्विक सेवा और नवाचार केंद्र बनने की भारत की आकांक्षा में मानव संसाधन विकास (HD) केंद्रीय भूमिका निभाता है।
  • शासन और स्थिरता: शिक्षित और स्वस्थ नागरिक संस्थागत क्षमता को मजबूत करते हैं, लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ाते हैं और डिजिटल शासन प्लेटफॉर्मों के प्रभावी उपयोग को सक्षम बनाते हैं।
  • संवैधानिक अधिदेश: जनता में निवेश अनुच्छेद-38 का अनुपालन करता है, कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को सुदृढ़ करता है और साझा समृद्धि के माध्यम से दीर्घकालिक राष्ट्रीय स्थिरता सुनिश्चित करता है।

विकसित भारत के लिए मानव संसाधन विकास के तरीके

  • शिक्षा और कौशल विकास में परिवर्तन: शिक्षा प्रणाली में पारंपरिकता के स्थान पर व्यावहारिक अनुप्रयोग और 21वीं सदी की दक्षताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • परियोजना-आधारित शिक्षा: भारत फिनलैंड के शिक्षा मॉडल से सीख ले सकता है, जहाँ अनुभव-आधारित शिक्षा, रटने के बजाय रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच की संस्कृति को बढ़ावा देती है।
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग: IIT मद्रास रिसर्च पार्क जैसे सहजीवी संस्थान सैद्धांतिक शिक्षा को व्यावहारिक आवश्यकताओं से जोड़ते हैं, जिससे छात्रों की रोजगार क्षमता में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है।
    • सतत् व्यावसायिक विकास: सिंगापुर की एकीकृत प्रणाली का अनुसरण करते हुए, शिक्षकों को आजीवन सीखने और बदलते शैक्षिक परिदृश्यों के अनुकूल होने के लिए प्रतिवर्ष 100 घंटे के प्रशिक्षण में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
    • व्यावसायिक एकीकरण: जर्मनी के द्विविध व्यावसायिक प्रशिक्षण का अनुकरण करते हुए, भारत “कौशल उत्सव” और मेलों का आयोजन कर सकता है, ताकि युवाओं को व्यावसायिक कौशल प्रदर्शित करने और विभिन्न कॅरियर विकल्पों का पता लगाने के लिए मंच प्रदान किया जा सके।
  • स्वास्थ्य, कल्याण और पोषण सुरक्षा: एक उत्पादक कार्यबल का निर्माण सुदृढ़ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की नींव पर होता है।
    • किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ: सभी के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना, साथ ही टेलीमेडिसिन के माध्यम से प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना (जैसा कि केरल ने कोविड-19 के दौरान सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया) ताकि ग्रामीण-शहरी स्वास्थ्य सेवा अंतराल को कम किया जा सके।
    • कुपोषण का निवारण: तमिलनाडु में अम्मा उनावगम् (सामुदायिक रसोई) जैसी पहल शहरी भूख और कुपोषण से निपटने के साथ-साथ स्थानीय किसानों का समर्थन करने तथा महिलाओं को रोजगार प्रदान करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
    • रोकथाम पर ध्यान केंद्रित: जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के शीघ्र निदान और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आयुष्मान भारत प्रणाली को मजबूत करना।
  • अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी को अपनाना: “ज्ञान महाशक्ति” बनने के लिए भारत को अनुसंधान एवं विकास तथा डिजिटल अवसंरचना में भारी निवेश करना होगा।
    • अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ बनाना: अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) की स्थापना का उद्देश्य शिक्षा जगत, उद्योग और ISRO जैसी सरकारी एजेंसियों के बीच गहन संबंध स्थापित करके नवाचार को बढ़ावा देना है।
    • इनक्यूबेशन केंद्र: IIT बॉम्बे के SIANE जैसे केंद्रों की सफलता की कहानियाँ संस्थागत स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देने की शक्ति को दर्शाती हैं, जिससे स्वदेशी अनुसंधान और स्टार्ट-अप को प्रोत्साहन मिलता है।
    • डिजिटल विभाजन को पाटना: महाराष्ट्र में डिजिटल बस परियोजना जैसी मोबाइल शिक्षा इकाइयाँ यह दर्शाती हैं कि कैसे प्रौद्योगिकी को सीधे वंचित समुदायों तक पहुँचाकर डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • लैंगिक समानता और सामाजिक समावेशन: मानव संसाधन विकास तभी पूर्ण होता है, जब वह लैंगिक और सामाजिक स्तर के प्रति समावेशी हो।
    • मेंटरशिप कार्यक्रम: महिलाओं को संरचित मेंटरशिप प्रदान करने और तेजी से विकसित हो रहे STEM क्षेत्र में उनकी उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिए WISE (Women in Science and Engineering) जैसे मॉडल लागू करना।
    • समावेशी योजनाएँ: मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए समग्र शिक्षा योजना और अल्पसंख्यक संस्थानों में अवसंरचना विकास (IDMI) का उपयोग करके यह सुनिश्चित करना कि कोई भी समुदाय पीछे न छूटे।
    • महिला नेतृत्व वाली पहल: वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र में महिला शोधकर्ताओं और उद्यमियों को समर्थन देने के लिए WEST (Women in Engineering, Science, and Technology) पहल का विस्तार करना।
  • सरकारी ढाँचों का लाभ उठाना: भारत सरकार ने मानव विकास को सुव्यवस्थित करने के लिए कई मिशनों को संस्थागत रूप दिया है:-
    • कौशल एवं कार्यबल संवर्द्धन: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और श्रेयस योजना जैसे कार्यक्रमों का विस्तार करते हुए उद्योग-विशिष्ट प्रमाणन और शिक्षुता प्रदान करना।
    • आधारभूत मिशन: स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी और सुधार के लिए मध्याह्न भोजन योजना (पीएम-पोषण) और राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) को सुदृढ़ करना।
    • सामाजिक सुरक्षा: प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) के माध्यम से कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को सुदृढ़ करना और कार्यबल को सुरक्षा प्रदान करना।
  • कौशल में ‘मध्यम स्तर की कमी’ को दूर करना: हालाँकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और हरित प्रौद्योगिकी जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियाँ महत्त्वपूर्ण हैं, मानव पूँजी की नींव मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक कौशल (FLN) पर आधारित है। उच्च नामांकन प्रायः निम्न शिक्षण परिणामों को छिपा देता है।
    • भारत को उच्च स्तरीय अनुसंधान एवं विकास के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि संज्ञानात्मक रूप से सशक्त और कुशल कार्यबल का निर्माण हो सके।
  • प्रौद्योगिकी आधारित शासन – मानव-एआई सीमा
    • शासन में मानव-केंद्रित एआई: वर्ष 2025 के मुख्य सचिव सम्मेलन ने प्रौद्योगिकी को एक “उपकरण” से शासन की “संरचना” के रूप में देखने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को चिह्नित किया। इसका मुख्य उद्देश्य “सुरक्षित और विश्वसनीय AI” प्रदान करना है, जो नवाचार और जवाबदेही के बीच संतुलन बनाए रखे।
    • अवसर और आधुनिकीकरण: ज्ञान भारतम् मिशन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो प्राचीन ज्ञान को आधुनिक ज्ञान प्रणालियों में संश्लेषित करने के लिए AI का उपयोग करता है।
      • इसी प्रकार, एग्रीस्टैक कृषि को एक स्मार्ट आपूर्ति-शृंखला पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तित कर रहा है, जिससे किसानों के लिए डेटा-आधारित बाजार पहुँच सुनिश्चित हो रही है।
    • जोखिमों का निवारण: वर्ष 2025-26 के लिए शासन रोडमैप में डीपफेक, कल्याण वितरण में एल्गोरिदम पूर्वाग्रह और साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए डिजाइन द्वारा समझने योग्य” प्रणालियों को प्राथमिकता दी गई है, जिससे डिजिटल परिवर्तन समावेशी बना रहे।
    • वैश्विक दोहरी परिवर्तन प्रक्रिया: भारत “दोहरी परिवर्तन प्रक्रिया” का नेतृत्व करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहा है तथा आर्थिक विकास के साथ-साथ हरित स्थिरता (नेट-जीरो लक्ष्य) को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल अवसंरचना का लाभ उठा रहा है।

समावेशी विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिन चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है:

  • जनसांख्यिकीय परिवर्तन और मानव विकास का प्रबंधन: भारत काजनसांख्यिकीय लाभांश” एक सीमित समय का अवसर है। चुनौती जनसंख्या की परिवर्तित संरचना और जीवन की गुणवत्ता में निहित है।
    • वृद्धावस्था परिवर्तन: वर्ष 2025 में, भारत की 33% जनसंख्या 20-29 वर्ष की आयु वर्ग की थी।
      • हालाँकि, वर्ष 2047 तक, युवा (20-29) और वृद्ध कामकाजी आयु वर्ग की जनसंख्या का अनुपात लगभग 28% पर बराबर हो जाएगा।
    • मानव विकास सूचकांक (HDI) में ठहराव: संयुक्त राष्ट्र HDI (2025 रिपोर्ट) में भारत वर्तमान में 193 देशों में से 130वें स्थान पर है।
      • 0.685 के HDI मूल्य के साथ, भारत मध्यम मानव विकास श्रेणी में बना हुआ है, जो वैश्विक समकक्षों की तुलना में स्वास्थ्य और जीवन प्रत्याशा (वर्तमान में लगभग 72 वर्ष) में लगातार अंतर को दर्शाता है।
    • शहरी-ग्रामीण और क्षेत्रीय विभाजन को पाटना: क्षेत्रीय असमानताएँ अभी भी बनी हुई हैं; केरल जैसे राज्य स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि अन्य राज्य पिछड़े हुए हैं।
      • विकासशील भारत को भौगोलिक रूप से समावेशी बनाने और विकास संबंधी अंतरों को कम करने के लिए एक अनुकूलित, राज्य-विशिष्ट दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • लैंगिक समानता और कार्यबल का विरोधाभास: जब तक व्यापक लैंगिक असमानता देश की उत्पादक क्षमता को सीमित करती रहेगी, तब तक समावेशी विकास असंभव है।
    • वैश्विक रैंकिंग: ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2025 में भारत 148 देशों में से 131वें स्थान पर है तथा राजनीतिक सशक्तीकरण एवं आर्थिक अवसरों में गिरावट के कारण दो पायदान नीचे खिसक गया है।
    • श्रम बल भागीदारी (LFPR): वर्ष 2025 के अंत के नवीनतम मासिक आँकड़ों के अनुसार, महिलाओं की कुल LFPR लगभग 35.1% है, जबकि पुरुषों की LFPR 77.2% है।
  • युवा रोजगार एवं शिक्षा में कौशल अंतराल: रोजगार की मात्रा में वृद्धि हो रही है, लेकिन नौकरियों की गुणवत्ता और रोजगार क्षमता एक बड़ी बाधा बनी हुई है। स्नातक रोजगार क्षमता मात्र 54.8% (भारत कौशल रिपोर्ट 2025) है और कौशल में लगातार 30-40% का अंतर बना हुआ है (ILO)।
    • शिक्षित बेरोजगारी: स्नातक बेरोजगारी दर (29.1%) निरक्षरों (3.4%) की तुलना में लगभग नौ गुना अधिक है, जो डिग्री और नौकरी के बीच असंगति को दर्शाती है; शिक्षित युवा महिलाओं के लिए यह संकट और भी गंभीर है, जहाँ बेरोजगारी दर 21.4% तक पहुँच गई है।
    • केंद्रित बेरोजगारी: भारत के बेरोजगारों में युवाओं (15-29 वर्ष) की हिस्सेदारी 82.9% है, जबकि बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 65.7% पर उच्च बनी हुई है, जो व्हाइट-कॉलर’ नौकरियों की पूर्णता को इंगित करती है।
    • कौशल असंगति: कार्यबल का आकलन प्रायः तेजी से विकसित हो रही वैश्विक आवश्यकताओं (विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और हरित प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में) से पीछे रह जाता है।
    • मूल्य सृजन अंतर: विश्व की 17.5% जनसंख्या होने के बावजूद, भारत वैश्विक अनुसंधान उत्पादन का केवल 3% ही उत्पन्न करता है, जो दर्शाता है कि शिक्षा-कौशल पारिस्थितिकी तंत्र मुख्य रूप से स्नातकों को सेवा और प्रबंधन भूमिकाओं के लिए तैयार करता है, न कि नवाचार और अग्रणी अनुसंधान के लिए।
  • रणनीतिक शासन और नीतिगत रोडमैप
    • कार्यान्वयन में कमी: जिला स्तर पर क्रियान्वयन में कमजोरी और राज्य की प्रशासनिक क्षमता में असमानता (केंद्र-राज्य विषमता) के कारण दस वर्षीय कार्य योजनाएँ केवल आकांक्षा बनकर रह जाने का जोखिम रखती हैं।
    • डेटा और डिजिटल तत्परता: प्रस्तावित डेटा रणनीति इकाइयों को कुशल कर्मियों और परस्पर संचालन योग्य डेटासेट की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण बाधित हो रहा है।
    • नौकरशाही शिथिलता: संग्रहकर्ताओं के लिए वीडियो कॉल सीमित करने जैसे प्रशासनिक सुधारों को स्थापित प्रक्रियाओं और अनुपालन-प्रधान शासन संस्कृति से प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है।
  • विनिर्माण, नवाचार और आर्थिक आत्मनिर्भरता
    • अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: औद्योगिक भूमि की अपर्याप्त उपलब्धता, कमजोर बहुआयामी लॉजिस्टिक्स और राज्य की असमान क्षमता राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM) की प्रभावशीलता को कम करती हैं।
    • अनुपालन की लागत: ‘जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट’ (ZDZE) ढाँचे को अपनाने से लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए अल्पकालिक अनुपालन लागत बढ़ जाती है, जिससे लक्षित वित्तीय और ऋण सहायता के बिना उनके वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) से बाहर होने का जोखिम बढ़ जाता है।
    • नवाचार अंतराल: उद्योग-अकादमिक सहयोग की कमी और डिजिटल विभाजन (जो एग्रीस्टैक जैसी पहलों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है) कम डिजिटल साक्षरता और डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताओं के कारण छोटे किसानों को हाशिए पर धकेल सकता है।
  • घरेलू बौद्धिक संपदा सृजन: हालाँकि भारत कुल पेटेंट दाखिल करने के मामले में वैश्विक स्तर पर छठे स्थान पर है, लेकिन प्रति दस लाख जनसंख्या पर निवासी पेटेंट आवेदनों के मामले में यह केवल 47वें स्थान पर है, जो विदेशी स्वामित्व वाले नवाचारों पर निर्भरता को दर्शाता है।
    • अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को सूक्ष्म रूप से समझना: कुल पेटेंट दाखिलों और भारत में दाखिल किए गए पेटेंटों के बीच का अंतर विनिर्माण लक्ष्यों के साथ नवाचार नीति को संरेखित करने की आवश्यकता को उजागर करता है। राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन के साथ एकीकृत होना चाहिए और मेक इन इंडिया” (असेंबली) से “डिजाइन इन इंडिया” (स्वामित्व) की ओर बढ़ना चाहिए।
    • निजी क्षेत्र की चुनौती: भारत के अनुसंधान एवं विकास व्यय में निजी क्षेत्र का योगदान केवल 36.4% है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह 70% से अधिक है, जो उद्योग-संचालित नवाचार को सीमित करता है।
  • मानव संसाधन, स्वास्थ्य और सुरक्षा
    • प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा (ECC) और स्वास्थ्य संबंधी कमियाँ: प्राथमिक स्वास्थ्य में आयुष के एकीकरण और प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा को सुदृढ़ बनाने में शिक्षकों की गुणवत्ता, मानकीकरण और प्रशिक्षित मानव संसाधन जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं।
    • वामपंथी उग्रवाद के पतन के बाद का परिवर्तन: प्रभावित जिलों में सुरक्षा-केंद्रित शासन से विकास-केंद्रित शासन की ओर परिवर्तन में विश्वास की कमी और निजी निवेश का अभाव जैसी समस्याएँ हैं।
    • खेल पारिस्थितिकी तंत्र: जिला स्तर पर खेल अवसंरचना की कमी और सीमित खेल वैज्ञानिक सहायता के कारण वर्ष 2036 ओलंपिक का रोडमैप बाधित होता है।

आगे की राह

  • सहकारी संघवाद और शासन को सुदृढ़ बनाना: एक विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिए केंद्रीय दृष्टिकोण और स्थानीय कार्यान्वयन के बीच एक निर्बाध सेतु आवश्यक है।
    • संस्थागत समन्वय: नियमित मुख्य सचिव सम्मेलनों और परिणाम-आधारित निगरानी के माध्यम से केंद्र-राज्य समन्वय को औपचारिक रूप देना। इससे विकसित और पिछड़े राज्यों के बीच संस्थागत असमानता को दूर करने में मदद मिलेगी।
    • KPI आधारित प्रशासन: जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर स्पष्ट, मापने योग्य लक्ष्यों के साथ दस वर्षीय कार्य योजनाओं को क्रियान्वित करना।
    • वास्तविक समय निगरानी: परियोजना निगरानी के लिए राज्य-स्तरीय प्रगति प्लेटफॉर्म का विस्तार करना और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को सक्षम बनाने के लिए कुशल डेटा वैज्ञानिकों के साथ डेटा रणनीति इकाइयों को सशक्त बनाना।
    • प्रशासनिक सुधार: जमीनी स्तर के प्रशासन को सशक्त करने के लिए, जिला कलेक्टरों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस को सीमित करने जैसे उपायों द्वारा क्षेत्रीय अधिकारियों को अधिक अधिकार प्रदान कर नौकरशाही की सुस्ती को कम करना।
  • समावेशी विनिर्माण और आर्थिक आत्मनिर्भरता: 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन, एक असेंबली हब से डिजाइन और विनिर्माण के पॉवरहाउस में बदलने पर निर्भर करता है।
    • अवसंरचना उत्कृष्टता: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM) के अंतर्गत प्लग-एंड-प्ले’ औद्योगिक हब, मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स और विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति विकसित करना।
    • MSME अनुकूलन: वित्तीय प्रोत्साहन और प्रौद्योगिकी समूहों के माध्यम से लघु उद्यमों को ‘जीरो डिफेक्ट, जीरो इफेक्ट’ (ZDZE) मानकों को अपनाने में सहायता प्रदान करना, यह सुनिश्चित करते हुए कि अनुपालन लागत के कारण वे पीछे न रह जाएँ।
    • रणनीतिक आत्मनिर्भरता: संरक्षणवाद के बजाय प्रतिस्पर्द्धात्मकता सुनिश्चित करने के लिए आत्मनिर्भरता लक्ष्यों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) के साथ संरेखित करना।
    • स्थानिक समानता: महानगरों में संतृप्ति को रोकने के लिए टियर-2 और टियर-3 शहरों में वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) और विनिर्माण इकाइयों को प्रोत्साहन देकर विकास का विकेंद्रीकरण करना।
  • मानव पूँजी केंद्रित विकास: विकास तभी समावेशी होता है, जब वह जनसंख्या को उत्पादक मानव पूँजी में परिवर्तित करता है।
    • बुनियादी उत्कृष्टता: आंगनवाड़ी अवसंरचना को उन्नत करके और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को आधुनिक शिक्षण विधियों में प्रशिक्षित करके गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECC) को सार्वभौमिक बनाना।
    • गतिशील कौशल विकास: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, हरित प्रौद्योगिकियों और अर्द्धचालकों के साथ विकसित होने वाली कार्यबल मानचित्रण प्रणाली लागू करना।
      • इसका उद्देश्य शिक्षित बेरोजगारी के संकट को दूर करना है, जहाँ 29.1% स्नातक बेरोजगार हैं।
    • देखभाल और डिजिटल अर्थव्यवस्थाएं: प्रतिवर्ष श्रम बल में प्रवेश करने वाले 7-8 मिलियन युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए उभरते देखभाल क्षेत्र और डिजिटल सेवाओं में निवेश करना।
    • नारी शक्ति: सुरक्षित शहरी अवसंरचना, किफायती बाल देखभाल और अवैतनिक देखभाल कार्य को औपचारिक रूप देकर महिला-नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देना, जिसका वर्तमान मूल्य GDP का लगभग 7.5% है।
  • नवाचार और कृषि का लाभ उठाना: जनसंख्या का 45% हिस्सा अभी भी कृषि पर निर्भर है, इसलिए विकसित भारत को पहले विकसित कृषि आधारित देश बनना होगा।
    • सतत् उत्पादकता: डिजिटल ऋण और आपूर्ति शृंखलाओं के लिए एग्रीस्टैक पर ध्यान केंद्रित करना, साथ ही मृदा स्वास्थ्य, भूजल पुनर्भरण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी को प्राथमिकता देना।
    • डिजिटल विभाजन को पाटना: व्यापक डिजिटल साक्षरता और अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना, ताकि ग्रामीण आबादी ज्ञान भारतम् मिशन और ई-गवर्नेंस का लाभ उठा सके।
    • आयुष एकीकरण: एक समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बनाने के लिए सख्त मानकीकरण और वैज्ञानिक सत्यापन के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ एकीकृत करना।
  • नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र-अनुसंधान एवं विकास सुधार: विश्व स्तरीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र यह सुनिश्चित करता है कि भारत ज्ञान का सृजन करे और उसे रणनीतिक प्रौद्योगिकियों तथा उच्च मूल्य वाले आर्थिक विकास में परिवर्तित करे।
    • 2% का लक्ष्य: अग्रणी नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिए सकल अनुसंधान एवं विकास व्यय (GERD) को वर्तमान 0.64% GDP से बढ़ाकर 5-7 वर्षों के भीतर 2% करना।
    • उद्योग-अकादमिक संबंधों को औपचारिक बनाना: विश्वविद्यालयों को शिक्षण-केंद्रित संस्थानों से अनुसंधान केंद्रों में विकसित होना चाहिए, जिनमें उद्योग-प्रायोजित अनिवार्य अनुसंधान पद और नवाचार के व्यावसायीकरण के लिए संरचित इनक्यूबेशन केंद्र हों।
    • कुशल पूँजी उपयोग: इस परिवर्तन के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (RDI) कोष (2025) को प्राथमिक साधन के रूप में उपयोग करना, यह सुनिश्चित करना कि यह नौकरशाही विलंबों से बचता है और उच्च-मूल्यवान, रणनीतिक अनुसंधान पहलों को वित्तपोषित करता है।
  • सुरक्षा और संघर्षोत्तर विकास: सतत् विकास के लिए यह आवश्यक है कि संघर्षोत्तर क्षेत्रों को अवसंरचना, आजीविका और विश्वास निर्माण के माध्यम से राष्ट्रीय मुख्यधारा में पूर्णतः एकीकृत किया जाए।
    • विकास-प्रथम रणनीति: पूर्व वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित क्षेत्रों में, सुरक्षा-केंद्रित मॉडल से विकास-केंद्रित मॉडल की ओर परिवर्तन।
    • विश्वास निर्माण: विकास संबंधी कमियों को दूर करने और उन्हें राष्ट्रीय मुख्यधारा में पूर्णतः एकीकृत करने के लिए इन क्षेत्रों में आजीविका और सामाजिक अवसंरचना को प्राथमिकता देना।
  • सतत् विकास को सक्षम बनाना: राष्ट्रीय दृष्टिकोणों को जमीनी स्तर पर साकार करने के लिए, प्रभावी क्रियान्वयन, सक्रिय नागरिक भागीदारी और डिजिटल प्रणालियों में संस्थागत विश्वास को शासन के सुदृढ़ स्तंभों के रूप में कार्य करना आवश्यक है।
    • समयबद्ध क्रियान्वयन: सतत् विकास के लिए राज्यों और स्थानीय सरकारों में स्पष्ट रूप से परिभाषित 1, 2 और 5 वर्षीय लक्ष्यों के साथ 10-वर्षीय कार्य योजनाओं के माध्यम से अल्पकालिक और मध्यम अवधि की जवाबदेही के साथ संरेखित दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • सहभागी शासन: परिवर्तन को राज्य-संचालित प्रक्रिया से “जन आंदोलन” में विकसित होना चाहिए, जहाँ नागरिक, नागरिक समाज और संस्थाएँ सामूहिक रूप से गुणवत्ता, उत्कृष्टता तथा जवाबदेही के मानकों को बनाए रखना।
    • डिजिटल विश्वास और साइबर सुरक्षा: एक अनुकूलित अर्थव्यवस्था और शासन प्रणाली सुरक्षित डिजिटल नागरिकता पर निर्भर करती है। आर्थिक स्थिरता, सेवा वितरण और नागरिक विश्वास को बनाए रखने के लिए साइबर सुरक्षा, डेटा संरक्षण तथा विश्वसनीय डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
  • रणनीतिक ढाँचा: अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन द्वारा प्रस्तावित नीतिगत हस्तक्षेपों को प्रत्येक नागरिक के लिए वास्तविक स्वतंत्रता और क्षमता सुनिश्चित करने हेतु 3R दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए:
    • पहुँच (Reach): विकास संबंधी लाभों (शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल पहुँच) को सबसे दूरस्थ और हाशिए पर स्थित समुदायों तक भौतिक रूप से पहुँचाना सुनिश्चित करना।
    • विस्तार (Range): विविधतापूर्ण तरीकों और साधनों का विस्तार करना, पारंपरिक औद्योगिक नीति को डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना के साथ जोड़ना ताकि अनेक अभावों का एक साथ समाधान किया जा सके।
    • तर्क (Reason): प्रति व्यक्ति GDP बढ़ाने के स्थान पर मानव क्षमताओं को बढ़ाने की क्षमता के आधार पर क्षेत्रों को प्राथमिकता देना।

अंतरराष्ट्रीय आयाम – वैश्विक प्रतिभा राजधानी के रूप में भारत

  • श्रम निर्यातक से वैश्विक कौशल केंद्र तक: भारत सामान्य श्रम आपूर्तिकर्ता से उच्च-मूल्यवान मानव पूँजी’ प्रदाता बनने की ओर अग्रसर है। 
    • 1,700 से अधिक वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के साथ, जो पहले से ही 75 अरब डॉलर का राजस्व (2025 के अंत तक) उत्पन्न कर रहे हैं, भारत विश्व के लिए ‘बैक-ऑफिस’ और अनुसंधान एवं विकास केंद्र है।
  • चक्रीय प्रवासन और G2G समझौते: “प्रतिभा पलायन” को रोकने के लिए भारत, जर्मनी, जापान और इजरायल जैसी पारपरिक अर्थव्यवस्थाओं के साथ सरकार-से-सरकार (G2G) समझौतों के माध्यम से चक्रीय प्रवासन को संस्थागत रूप दे रहा है।
    • ये समझौते सुरक्षित, कानूनी गतिशीलता और भारतीय घरेलू उद्योगों को ज्ञान हस्तांतरण सुनिश्चित करते हैं।
  • वैश्विक मानक बेंचमार्किंग: वर्ष 2036 की ओलंपिक निविदा के लिए राष्ट्रीय खेल कैलेंडर को संरेखित करके और कौशल को अंतरराष्ट्रीय मानकों (जैसे- जापानी और जर्मन भाषा प्रमाण-पत्र) के अनुरूप बनाकर, भारत यह सुनिश्चित कर रहा है कि उसके युवा वैश्विक स्तर पर रोजगार योग्य” हों।
  • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) एक वैश्विक हित के रूप में: G20 की विरासत का लाभ उठाते हुए, भारत अपनेइंडिया स्टैक” (UPI, आधार, स्किल इंडिया डिजिटल) को वैश्विक दक्षिण के साथ साझा कर रहा है, और मानव पूँजी विकास को अपनी सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थापित कर रहा है।

निष्कर्ष

वर्ष 2047 तक समावेशी विकसित भारत को प्राप्त करने के लिए उद्देश्य आधारित नीतियों से हटकर परिणाम-आधारित शासन की ओर परिवर्तन की आवश्यकता है, जो मानव पूँजी विकास, सहकारी संघवाद और तकनीकी सशक्तीकरण पर आधारित हो तथा यह सुनिश्चित करे कि विकास व्यापक, लचीला और स्थायी हो।

अभ्यास प्रश्न  विकसित भारत के लिए मानव पूँजी विकास ढाँचे को क्रियान्वित करने में सहकारी संघवाद और संरचित केंद्र-राज्य समन्वय की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

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