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भारत में मानवाधिकारों का हनन

Lokesh Pal April 25, 2024 04:22 352 0

संदर्भ

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) ने मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी सात राष्ट्रीय आयोगों की बैठक आयोजित की।

  • बैठक में उपस्थित लोग: बैठक में निम्नलिखित ने भाग लिया:
    • सदस्य सचिव, राष्ट्रीय महिला आयोग
    • अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
    • नि: शक्त व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त
    • अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग
    • संयुक्त सचिव, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
  • बैठक का उद्देश्य: कमजोर और हाशिए पर रहने वाले सुरक्षा सुनिश्चित करने के मुद्दे पर चर्चा करना और सर्वोत्तम प्रथाओं तथा मानवाधिकारों की वार्षिक कार्य योजनाओं को साझा करना।
  • मानवाधिकार संरक्षण के लिए सहयोगात्मक रणनीतियाँ: बैठक के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला गया कि देश में समाज के विभिन्न वर्गों के मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न “मजबूत कानून” हैं।
  • अमेरिकी विदेश विभाग की 2023 मानवाधिकार रिपोर्ट (Human Rights Report-HRR): मानवाधिकार रिपोर्ट (HRR) 2023, मानवाधिकार प्रथाओं का एक देश-वार संकलन, भारत में एक दर्जन से अधिक विभिन्न प्रकार के मानवाधिकारों के दुरुपयोग की “विश्वसनीय रिपोर्ट” को चिह्नित करता है।

मानवाधिकार क्या हैं?

  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक प्रकृति: मानवाधिकार वे अधिकार हैं, जो हमारे पास सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि हम मनुष्य के रूप में मौजूद हैं – वे किसी भी राज्य द्वारा प्रदान नहीं किए जाते हैं और वे हममें से प्रत्येक के लिए समान रूप से संबंधित हैं। 
    • ये सार्वभौमिक अधिकार राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य स्थिति की परवाह किए बिना सभी के लिए अंतर्निहित हैं।
  • मानव और राज्य संबंधों को नियंत्रित करना: मानवाधिकार यह नियंत्रित करते हैं कि मनुष्य समाज में और एक-दूसरे के साथ कैसे रहते हैं, साथ ही राज्य के साथ उनके संबंध और उनके प्रति राज्य के दायित्व क्या हैं।

मानवाधिकार के लक्षण

  • अविभाज्य: मानवाधिकार अविभाज्य हैं। दुनिया में हर जगह सभी लोग उनके हकदार हैं। इन्हें कोई भी स्वेच्छा से त्याग नहीं सकता और न ही दूसरे उन्हें उससे छीन सकते हैं।
  • अविभाज्यता: मानवाधिकार अविभाज्य हैं। चाहे वे नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक प्रकृति के हों, वे सभी प्रत्येक मानव की गरिमा में अंतर्निहित हैं।
  • परस्पर निर्भरता और अंतर्संबंध: एक अधिकार की प्राप्ति अक्सर, पूर्णतः या आंशिक रूप से, दूसरों की प्राप्ति पर निर्भर करती है।
    • उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य के अधिकार की प्राप्ति शिक्षा के अधिकार या सूचना के अधिकार की प्राप्ति पर निर्भर हो सकती है।
  • समानता और गैर-भेदभाव: मनुष्य के रूप में और प्रत्येक मानव व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा के आधार पर सभी व्यक्ति समान हैं।

मानव अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय संधियाँ

  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights-UDHR): वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया, यह सार्वभौमिक रूप से संरक्षित किए जाने वाले मौलिक मानवाधिकारों को निर्धारित करने वाला पहला कानूनी दस्तावेज था।
    • भारत ने 01 जनवरी, 1942 को UDHR पर हस्ताक्षर किए।
  • अधिकारों का अंतरराष्ट्रीय विधेयक: यूडीएचआर, दो अनुबंधों – नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant for Civil and Political Rights-ICCPR) तथा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant for Economic, Social and Cultural Rights-ICESCR) के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय अधिकारों का विधेयक बनाता है।
    • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR): यह मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में सूचीबद्ध नागरिक और राजनीतिक अधिकारों तथा स्वतंत्रता को और अधिक विस्तृत करता है।
    • आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (ICESCR): सभी लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार है। उस अधिकार के आधार पर वे स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक स्थिति निर्धारित करते हैं और स्वतंत्र रूप से अपना आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास करते हैं।
  • अन्य
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC): यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो दुनिया भर में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण को मजबूत करने के लिए जिम्मेदार है।
    • अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL): इसे युद्ध के कानून या सशस्त्र संघर्ष के कानून के रूप में भी जाना जाता है।
      • यह नियमों का एक समूह है, जो मानवीय कारणों से सशस्त्र संघर्ष के प्रभावों को सीमित करने का प्रयास करता है। यह उन व्यक्तियों की रक्षा करता है, जो शत्रु नहीं हैं या युद्ध के साधनों और तरीकों को प्रतिबंधित करता है।

भारत में मानवाधिकारों से संबंधित कानूनी प्रावधान

  • मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993: भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना की गई थी।
    • NHRC ‘संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों में सन्निहित व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकारों’ की सुरक्षा तथा प्रचार के लिए जिम्मेदार है।
  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों के प्रावधान के साथ बुनियादी मानव अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करता है।
    • भारतीय संविधान के भाग III में अनुच्छेद 14 से 32 और भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 में  UDHR में प्रदान किए गए लगभग सभी अधिकार शामिल हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

  • स्थापना: यह वर्ष 1993 में भारत द्वारा मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम लागू करने के बाद अस्तित्व में आया।
  • सदस्यता: इसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य और सात मानक सदस्य होते हैं।
  • अधिदेश: यह “संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों में सन्निहित व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकारों” की सुरक्षा तथा प्रचार के लिए जिम्मेदार है।
  • मानवाधिकारों का प्रहरी: यह देश में मानव अधिकारों के प्रहरी के रूप में कार्य करता है, जिससे नागरिक हितों की रक्षा होती है।

भारत में मानवाधिकार की स्थिति: मानवाधिकार रिपोर्ट 2023 (HRR)

  • गैर-न्यायिक हत्याएँ: रिपोर्ट में बताया गया है कि “देश में वर्ष 2016-2022 के बीच गैर-न्यायिक हत्या के 813 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से सबसे अधिक मामले छत्तीसगढ़ में दर्ज किए गए तथा दूसरे नंबर पर  उत्तर प्रदेश शामिल है।”

मानवाधिकार रिपोर्ट (Human Rights Report-HRR): अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन द्वारा जारी रिपोर्ट में अमेरिकी सहायता प्राप्त करने वाले सभी देशों और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को शामिल किया गया है तथा मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा और अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों में निर्धारित मानदंडों के अनुसार मानव अधिकार प्रथाओं का आकलन करता है।

  • जातीय संघर्ष: कुकी समुदाय, मुख्य रूप से ईसाई और आदिवासी, को मैतेई समुदाय द्वारा की गई हिंसा का सामना करना पड़ा, जो बहुसंख्यक हैं।
    • इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 200 से अधिक लोग हताहत हुए, जिनमें लगभग दो-तिहाई कुकी थे।
  • कथित मानवाधिकार हनन की अंतरराष्ट्रीय और गैर-सरकारी निगरानी तथा जाँच के प्रति सरकारी रुख: रिपोर्ट में वर्ष 2017 और 2022 के बीच FCRA [विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम] प्रावधानों के तहत सरकार द्वारा “1,827 गैर-लाभकारी संघों के पंजीकरण प्रमाण-पत्र” को रद्द करने पर प्रकाश डाला गया है।
    • मानवाधिकार रक्षकों, विशेष रूप से महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वालों के विरुद्ध धमकियों और हिंसा की कई रिपोर्टें थीं।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन: तेरह राज्य सरकारों ने जबरन धर्म परिवर्तन और विवाह प्रयोजनों के लिए जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानून बनाया है।
    • हालाँकि, व्यवहार में, इन कानूनों को अक्सर गैर-हिंदू धर्मों में धर्मांतरण और धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों के बीच शांतिपूर्ण धार्मिक प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिए नियोजित किया जाता था।
  • गैर-राज्य कलाकार: जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों और माओवादी आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में आतंकवादियों ने सशस्त्र बलों के जवानों, पुलिस, सरकारी अधिकारियों और नागरिकों की हत्याओं तथा अपहरण सहित गंभीर दुर्व्यवहार किया।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार: स्कूलों में प्रवेश और परीक्षा में दिव्यांग विद्यार्थियों को सहायता से संबंधित समस्याएं हैं।
    • दृष्टिबाधितों को ऑनलाइन सेवाओं का उपयोग करते समय कैप्चा कोड की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

भारत में अन्य मानवाधिकार चुनौतियाँ

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: HRW वर्ल्ड रिपोर्ट, 2021 के अनुसार, सरकार “अधिकार रक्षकों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, विद्यार्थियों, शिक्षाविदों और सरकार या उसकी नीतियों की आलोचना करने वाले अन्य लोगों को तेजी से परेशान कर रही है, गिरफ्तार कर रही है और उन पर मुकदमा चला रही है।”

SC/ST अधिनियम, 1989: इसका उद्देश्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों को भेदभाव और अत्याचारों से बचाना है।

हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए समानता और सम्मान: SC/ST अधिनियम के तहत मुआवजे का प्रावधान होने के बावजूद इसके भुगतान में देरी होती है।

    • शिकायतों के पंजीकरण और मुआवजे के वितरण में बहुत समय बर्बाद होता है।
  • शिक्षा और प्रौद्योगिकी पहुँच: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने यह सुनिश्चित करने की चुनौती पर प्रकाश डाला कि नई शिक्षा नीतियों और उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ हाशिए पर रहने वाले समुदायों तक पहुँचना चाहिए।
    • कर्नाटक राज्य में स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध भारतीय समाज में महिलाओं और लड़कियों की भागीदारी में बाधा डालता है और शिक्षा तक उनकी पहुँच को प्रभावित करता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव और हिंसा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5)के आँकड़ों के अनुसार, 18 से 49 वर्ष की उम्र के बीच की 30% महिलाओं ने 15 वर्ष की उम्र से शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है, जबकि 6% ने अपने जीवनकाल में यौन हिंसा का शिकार हुई हैं। 
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध उत्पीड़न: यू.एस.ए. स्थित शोध संगठन हिंदुत्व वॉच के अनुसार, 2023 के पहले छह महीनों में मुसलमानों को निशाना बनाकर नफरत और हिंसा की 255 घटनाएँ दर्ज की गईं।
  • हाथ से मैला ढोना: सफाई कर्मचारी आंदोलन के अनुसार, दलित समुदायों के एक लाख लोग हाथ से मैला ढोने के काम में कार्यरत हैं।
  • बच्चों के अधिकार: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) के अनुसार, वर्ष 2011 और 2021 के बीच बच्चों के खिलाफ अपराधों में 351 प्रतिशत की तेजी से वृद्धि हुई है।

आगे की राह 

  • निजी स्कूलों में बाल अधिकार सुनिश्चित करने में राज्य की जिम्मेदारी: इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राज्य निजी स्कूलों में बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में केवल इस आधार पर हस्तक्षेप करने से इनकार नहीं कर सकते हैं कि ये निजी संस्थाओं के स्वामित्व में हैं।
    • सभी संस्थाएँ राज्य की उचित अनुमति के तहत संचालित होती हैं और इसलिए उनके वैध कामकाज को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी उनकी बनती है।
  • पीड़ित मुआवजा योजनाओं की समीक्षा: सभी राज्यों में पीड़ित मुआवजा योजनाओं का अध्ययन यह जानने के लिए किया जाना चाहिए कि क्या ये कानून के अनुरूप हैं। NALSA के तहत मुआवजे को बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • यह आश्वस्त करने की आवश्यकता है कि SC/ST समुदाय का पीड़ित बच्चा  SC/ST अधिनियम, पॉक्सो अधिनियम के साथ-साथ NALSA योजना के तहत मुआवजे के लिए पात्र है।
  • हाथ से मैला ढोने वालों को संवेदनशील बनाना: सफाई कर्मचारियों को उनके अधिकारों और उन कानूनों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, जो उन्हें उनके नियोक्ताओं द्वारा दुर्व्यवहार से बचाते हैं।
    • राज्यों और स्थानीय निकायों को सेप्टिक टैंकों की यांत्रिक सफाई के लिए मैकेनाइज्ड सेनिटेशन इकोसिस्टम के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan for Mechanised Sanitation Ecosystem-NAMASTE)  को लागू करना चाहिए।
  • HRCnet पोर्टल का उपयोग: मामलों को सुलझाने में तालमेल बढ़ाने और प्रयासों के दोहराव को रोकने के लिए सलाह तैयार करने तथा NHRC के HRCnet पोर्टल जैसे प्लेटफॉर्मों का उपयोग करने पर सहयोग।
    • लोगों तक आसान पहुँच के लिए सभी आयोगों को अपनी-अपनी वेबसाइटों पर एक-दूसरे की वेबसाइटों के लिंक साझा करने चाहिए।
    • लोगों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक सामान्य लक्ष्य के लिए राष्ट्रीय आयोगों के बीच विशेषज्ञता का आदान-प्रदान होना चाहिए।
  • मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Human Rights -NAPHR): जैसा कि UNHRC की सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (Universal Periodic Review-UPR) के तहत अनिवार्य है, भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और आवास आदि के अधिकारों जैसे मुद्दों को कवर करने वाला NAPHR  होना चाहिए।

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