100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

मानव-वन्यजीव संघर्ष

Lokesh Pal October 17, 2025 02:59 35 0

संदर्भ

केरल द्वारा हाल ही में वर्ष 1972 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WLPA) में किए गए संशोधन ने बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्षों (HWC) को सुलझाने के प्रयासों को लेकर बहस को पुनः जीवंत कर दिया है। यह बहस इस बात पर केंद्रित है कि भारत में संरक्षण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।

केरल के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन: मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटना

  • केरल देश का पहला राज्य बन गया है, जिसने केंद्र के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन करने वाला विधेयक पारित किया है।

प्रमुख प्रावधान

  • सशक्त मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक: ऐसे जानवरों को मारने या बेहोश करने (ट्रैंक्विलाइज करने) का आदेश दे सकते हैं, जो मानव जीवन या संपत्ति के लिए प्रत्यक्ष खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • जंगली सूअर को हानिकारक पशु घोषित करना: फसलों के नुकसान और मानव दुर्घटनाओं को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर उनके नियंत्रण (मारने) की अनुमति देता है।
  • बोनेट मकाॅक (बंदर) का पुनर्वर्गीकरण: इन्हें अनुसूची-I से हटाया गया है ताकि शहरी और कृषि क्षेत्रों में प्रबंधन हेतु इनको पकड़ने और स्थानांतरण की अनुमति दी जा सके।

तर्क

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) में वृद्धि: सैकड़ों मानव मौतें और दुर्घटनाएँ, कई जिलों में फसलों और संपत्ति की व्यापक हानि देखी गई है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (WLPA) की सीमाएँ: केंद्रीकृत नियंत्रण और हस्तक्षेप में देरी समय पर संघर्ष प्रबंधन में बाधा डालती हैं।

कानूनी और राजनीतिक निहितार्थ

  • राज्य बनाम केंद्र अधिकार क्षेत्र: वन्यजीव संरक्षण संघ सूची के अंतर्गत आता है; संशोधन केंद्रीय अधिकार को चुनौती देता है।
  • केंद्र की प्रतिक्रिया: शिकार या कीट (वर्मिन) घोषित करने की अनुमति अस्वीकार की गई, और स्थान-विशिष्ट जनसंख्या प्रबंधन की सिफारिश की गई।

नैतिक और पारिस्थितिकी संबंधी विचार

  • संरक्षण बनाम मानव सुरक्षा: अंधाधुंध शिकार (कुलिंग) से जैव विविधता पर प्रभाव पड़ने का जोखिम बना रहता है।
  • वैकल्पिक रणनीतियाँ: आवास पुनर्स्थापन, समुदाय की भागीदारी और सामान्य निरोधक उपायों पर जोर देना।

मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) के बारे में

  • परिभाषा: मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) तब होता है, जब वन्यजीवों की आवश्यकताएँ मानवीय आवश्यकताओं के साथ अतिव्याप्त (ओवरलैप) हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप नकारात्मक अंतःक्रियाएँ होती हैं, जैसे कि हमले, फसल पर हमला, पशुधन की लूट और संपत्ति की क्षति।
  • भारत में इस समस्या का स्वरूप: केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, वन्यजीवों, विशेषकर हाथियों, बाघों, तेंदुओं और जंगली सूअरों के साथ होने वाली मुठभेड़ों के कारण प्रत्येक वर्ष 500 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।
    • भारत के लगभग 80% संरक्षित क्षेत्र मानव बस्तियों से घिरे हैं, जिससे संघर्षों की आवृत्ति बढ़ रही है।
    • केरल का केस स्टडी: एक दशक में 900 मौतों और 9,000 घायलों के बाद HWC को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया गया।
      • 273 स्थानीय निकायों को गंभीर संघर्ष क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया, जिनमें से 30 हॉटस्पॉट पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
    • व्यापक रूप से प्रभावित राज्य
      • असम और पश्चिम बंगाल: हाथियों से संबंधित फसल नुकसान और मानव मृत्यु।
      • महाराष्ट्र और कर्नाटक: शहरी सीमांत क्षेत्रों में तेंदुओं का आक्रमण।
      • छत्तीसगढ़ और ओडिशा: जनजातीय विस्थापन और जंगली सूअरों द्वारा फसल विनाश।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: भारत में जैव विविधता संरक्षण हेतु रूपरेखा

  • विधायी महत्त्व: वर्ष 1972 में अधिनियमित, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA) भारत के वन्यजीवों और आवासों की सुरक्षा, शिकार, व्यापार के नियमन तथा पारिस्थितिकी संतुलन सुनिश्चित करने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
    • यह जैव विविधता संरक्षण के लिए समर्पित भारत का पहला व्यापक कानून है और घरेलू प्रयासों को वैश्विक पर्यावरणीय मानदंडों के अनुरूप बनाता है।
  • संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क: यह अधिनियम यथास्थान संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए संरक्षित क्षेत्रों (PAs) की एक श्रेणीबद्ध प्रणाली स्थापित करता है।
  • PAs की पाँच श्रेणियाँ
    • राष्ट्रीय उद्यान: पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के लिए कठोर संरक्षित क्षेत्र।
    • वन्यजीव अभयारण्य: नियमन के तहत सीमित मानवीय गतिविधियों की अनुमति देते हैं।
    • संरक्षण रिजर्व और सामुदायिक रिजर्व: स्थानीय समुदायों के साथ सहभागी संरक्षण को बढ़ावा देते हैं।
    • टाइगर रिजर्व: बाघों और उनके आवासों के केंद्रित संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर (1973) के तहत स्थापित किए गए।
      • उदाहरण: शहरी विस्तार के बीच वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली-हरियाणा सीमा पर असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य के पास भारत का पहला शहरी वन्यजीव गलियारा विकसित किया जा रहा है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत प्रमुख पहल
    • प्रोजेक्ट टाइगर (1973): इसका उद्देश्य बाघों की आबादी का संरक्षण और बाघों के आवासों की पारिस्थितिकी अखंडता को बहाल करना है।
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992): हाथियों के संरक्षण और हाथी गलियारों को सुरक्षित करने पर केंद्रित है।
    • वन्यजीव गलियारे: आनुवंशिक संपर्क बनाए रखने के लिए WII/MoEFCC द्वारा लगभग 88 हाथी गलियारों की पहचान की गई है; राज्यों को भूमि-उपयोग नियोजन और सामुदायिक प्रबंधन के माध्यम से इन्हें सुरक्षित तथा बहाल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • शिकार और वध का विनियमन
    • यह अधिनियम परिभाषित प्रावधानों के अंतर्गत सीमित अपवादों के साथ शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है:
      • धारा 11(1)(a): मुख्य वन्यजीव संरक्षक अनुसूची I की प्रजातियों के शिकार की अनुमति दे सकते हैं, यदि वे मानव जीवन के लिए खतरनाक हो जाती हैं या असाध्य रोगग्रस्त हो जाती हैं।
      • धारा 11(1)(b): अनुसूची II-IV की प्रजातियों के शिकार की अनुमति देती है, यदि वे जीवन या संपत्ति के लिए खतरनाक हो जाती हैं या रोगग्रस्त हो जाती हैं, जिनका उपचार संभव नहीं है।
      • धारा 62: केंद्र सरकार, किसी राज्य की सिफारिश पर, गंभीर संघर्ष/फसल हानि को कम करने के लिए निर्दिष्ट जंगली जानवरों (अनुसूची I और अनुसूची II के अधिसूचित भागों को छोड़कर) को एक निश्चित क्षेत्र और अवधि के लिए कृमिनाशक के रूप में अधिसूचित कर सकती है।
      • उदाहरण: फसल क्षति को नियंत्रित करने के लिए कुछ राज्यों में नीलगाय और जंगली सूअर जैसी प्रजातियों को कृमिनाशक घोषित किया गया है।
  • संस्थागत ढाँचा
    • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) और राज्य वन्यजीव बोर्ड (SBWL): नीतियाँ तैयार करना और कार्यान्वयन की समीक्षा करना।
    • मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक: राज्य स्तर पर प्रवर्तन प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
    • संस्थागत समन्वय: बाघ अभयारण्यों से संबंधित मामलों (जैसे- कोर/बफर में परिवर्तन) के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) से परामर्श अनिवार्य है, जबकि मानव वन्यजीव संघर्ष (HWC) निर्णय मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक/राज्य द्वारा WLPA ढाँचे और NBWL/NBWL के प्रोटोकॉल के अंतर्गत लिए जाते हैं।
  • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2022: ढांचे का आधुनिकीकरण
    • उद्देश्य: वन्यजीव संरक्षण को सुदृढ़ बनाना, दंड में वृद्धि करना और लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • प्रमुख सुधार
    • अनुसूचियों में कमी: बेहतर स्पष्टता और अंतरराष्ट्रीय संरेखण के लिए छह से चार की सीमा तक अनुसूचियों को निर्धारित करना।
    • अनुसूची I: जंगली जानवरों (जैसे- बाघ, एशियाई हाथी, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) के लिए सर्वोच्च सुरक्षा।
    • अनुसूची II: अन्य संरक्षित जंगली जानवर (अनुसूची I से नीचे के दंड)।
    • अनुसूची III: संरक्षित पौधे।
    • अनुसूची IV: व्यापार नियंत्रणों को क्रियान्वित करने के लिए CITES ‘अनुक्रमित जीव/वनस्पति’ (Scheduled Species/Specimens) की अवधारणा लागू करता है; यह अनुसूची I-III के तहत भारतीय प्रजातियों के लिए घरेलू संरक्षण का स्थान नहीं लेता है।
  • हाथियों का उपयोग: धार्मिक या पारंपरिक उद्देश्यों के लिए अनुमत।
  • CITES एकीकरण: अंतरराष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने के लिए ‘अनुक्रमित जीव/वनस्पति’ (Scheduled Species / Specimens) की अवधारणा शुरू की गई।
  • दंड में वृद्धि: अवैध शिकार, अवैध व्यापार और संरक्षण मानदंडों के उल्लंघन के लिए कठोर जुर्माना और कारावास।
  • समकालीन प्रासंगिकता
    • वर्ष 2022 के संशोधन द्वारा सुदृढ़ किया गया WPA, 1972, भारत के जैव विविधता शासन का आधार है। यह संरक्षण के लिए कानूनी, पारिस्थितिकी और समुदाय-आधारित दृष्टिकोणों को एकीकृत करता है और राष्ट्रीय नीति को CITES और जैव विविधता अभिसमय (CBD) जैसी वैश्विक पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखित करता है।
  • संवैधानिक और संघीय आयाम: वन्यजीव विषय समवर्ती सूची की प्रविष्टि 17-B के अंतर्गत आता है।
    • केरल द्वारा किया गया WLPA में संशोधन अनुच्छेद-254(1) के परिप्रेक्ष्य में प्रतिकूलता (Repugnancy) का प्रश्न उत्पन्न करता है; यदि किसी राज्य का कानून केंद्रीय कानून के साथ टकराता है, तो केंद्रीय कानून प्रबल होगा, जब तक कि राज्य अनुच्छेद-254(2) के अंतर्गत राष्ट्रपति की पूर्व सहमति प्राप्त न कर ले।
    • यह मामला पर्यावरण शासन में संघीय संतुलन की सीमा संबंधी विवाद उत्पन्न करता है।

भारत में मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि के कारण

  • आवास विखंडन और अतिक्रमण: तेजी से बढ़ते बुनियादी ढाँचे के विस्तार, वनों की कटाई और खनन ने प्राकृतिक आवासों को विखंडित कर दिया है और वन्यजीव गलियारों तक पहुँच को कम कर दिया है।
    • सड़क, रेलवे और ट्रांसमिशन लाइनों जैसी रैखिक परियोजनाएँ प्रवास मार्गों को बाधित कर देती हैं, जिससे जानवर मानव बस्तियों में आ जाते हैं।
    • बफर जोन में अतिक्रमण और शहरी विस्तार प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को और भी अधिक प्रभावित करते हैं।
  • फसलों को आकर्षित करने वाले कारक और बदलते फसल पैटर्न: वनों के किनारों के पास केला, गन्ना और मक्का जैसी उच्च कैलोरी और जल से भरपूर फसलों की खेती हाथियों, जंगली सूअरों और हिरणों को आकर्षित करती है।
    • वन्यजीव क्षेत्रों के पास इस तरह के लाभ-प्रेरित फसल विकल्पों से फसलों पर हमले और संघर्ष की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ जाती है।
  • जलवायु तनाव और संसाधनों की कमी: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा, सूखा और बढ़ता तापमान प्राकृतिक भोजन और जल की उपलब्धता को बाधित करते हैं। 
    • जैसे-जैसे वन उत्पादकता घटती है, जानवर जीविका की तलाश में खेतों और बस्तियों की ओर पलायन करते हैं।
  • संरक्षण सफलता विरोधाभास: भारत में बाघों और हाथियों जैसी प्रजातियों की सफल पुनर्प्राप्ति के कारण अतिव्यापी क्षेत्रों में भी संघर्ष में वृद्धि हुई है, क्योंकि आवास विस्तार जनसंख्या वृद्धि के साथ सामंजस्य नहीं रख पाया है।
  • शहरी विस्तार और मानवजनित व्यवधान: शहरी बुनियादी ढाँचे का विस्तार, ध्वनि और प्रकाश प्रदूषण के साथ मिलकर, पशुओं की आवाजाही के पैटर्न और प्रजनन व्यवहार को बदल देता है।
    • शहरी सीमांत क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियाँ प्रायः वन्यजीव आवासों के साथ अतिव्यापी होती हैं, जिससे समुदायों और जानवरों दोनों के लिए जोखिम बढ़ जाता है।.

मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणाम 

  • मानव एवं आजीविका हानि
    • जीवन की हानि और चोट: हाथियों, बाघों और तेंदुओं के कारण प्रतिवर्ष 500 से अधिक मानव मृत्यु और 9,000 से अधिक घायल होते हैं (पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, 2024)।
    • फसल क्षति और आर्थिक नुकसान: वन्यजीवों के आक्रमण से प्रत्येक वर्ष अनुमानित ₹500-700 करोड़ मूल्य की फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसान कर्ज में डूब जाते हैं।
    • पशुधन का विनाश: तेंदुओं, भेड़ियों और बाघों के हमले ग्रामीण आय सुरक्षा को कम करते हैं।
  • पारिस्थितिकी और जैव विविधता पर प्रभाव
    • प्रमुख प्रजातियों में गिरावट: प्रतिशोधात्मक हत्याएँ और वध (जैसे- जंगली सूअरों या तेंदुओं का) शिकारी-शिकार संतुलन को विकृत कर देते हैं और आनुवंशिक विविधता को कम करते हैं।
    • आवास विखंडन: बढ़ता संघर्ष जानवरों को वनों से दूर मानव परिदृश्यों की ओर ले जाता है, जिससे प्राकृतिक प्रवास गलियारे बाधित होते हैं।
    • ट्रॉफिक कैस्केड प्रभाव: शीर्ष शिकारियों (जैसे बाघ या तेंदुए) के निष्कासन से शाकाहारी जीवों की जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है, जिससे वनस्पतियों का नुकसान होता है।
  • नैतिक परिणाम
    • मानव-केंद्रितता बनाम पारिस्थितिकी-केंद्रितता: मानव जीवन को प्राथमिकता देने और वन्यजीवों एवं पारिस्थितिकी तंत्रों के आंतरिक मूल्य को मान्यता देने के बीच एक नैतिक दुविधा उत्पन्न होती है।
    • उपयोगितावादी दृष्टिकोण बनाम दीर्घकालिक नैतिकता: ‘समस्याग्रस्त जानवरों’ को हटाना भले ही कारगर प्रतीत हो, लेकिन यह पारिस्थितिकी संतुलन को कमजोर करता है, शिकारी-शिकार संबंधों और प्राकृतिक नियमन को बाधित करता है।
    • कर्तव्य नैतिकता और संवैधानिक नैतिकता: अनुच्छेद-48A और 51A(g) के तहत, राज्य और नागरिकों दोनों का संवैधानिक दायित्व है कि वे सभी जीवित प्राणियों की रक्षा करें और उनके प्रति करुणा प्रदर्शित करें।
    • करुणा का क्षरण: जानवरों को बार-बार मारना या उन्हें कृमि घोषित करना प्रकृति के विरुद्ध हिंसा को सामान्य बनाता है, जिससे संरक्षण शासन का नैतिक ताना-बाना कमजोर होता है।
    • पर्यावरणीय न्याय: आदिवासी और वन-आधारित समुदाय प्रायः संघर्ष का सबसे अधिक बोझ उठाते हैं, जिससे समानता, निष्पक्षता और वितरणात्मक न्याय पर नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • नैतिक असंगति: नीति निर्माताओं को सहानुभूति और पारिस्थितिक संरक्षण बनाए रखते हुए मानव सुरक्षा और पशु अधिकारों के मध्य संतुलन बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
    • संरक्षण प्रयासों पर प्रभाव: पारिस्थितिकी पर्यटन कमजोर होता है क्योंकि बढ़ते हमलों से वन्यजीव क्षेत्रों में जाने में पर्यटकों का विश्वास कम होता है।
  • पारिस्थितिकी लचीलेपन का ह्रास: प्रजातियों के आवागमन में दीर्घकालिक व्यवधान पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और जलवायु अनुकूलन क्षमता को प्रभावित करता है।

भारत में संवैधानिक और नीतिगत ढाँचा

प्रावधान / नीति अधिदेश / उद्देश्य
अनुच्छेद-48A
  • वनों और वन्य जीवन की सुरक्षा और संवर्द्धन करना राज्य का कर्तव्य है।
अनुच्छेद 51A(g)
  • जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखना नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है।
राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2017-31)
  • संघर्ष शमन और सामुदायिक भागीदारी पर जोर देना।
  • इसमें HWC के प्रबंधन पर केंद्रित एक समर्पित अध्याय है। यह निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करता है:
    • वन्यजीव जनसंख्या का वैज्ञानिक प्रबंधन
    • स्थायी भूमि उपयोग प्रथाएँ
    • शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम
    • सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना
      • क्योंकि वे पशु संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे- कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में बैगा, राजस्थान में बिश्नोई समुदाय, आदि।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
  • सामुदायिक वन प्रशासन को मान्यता दी गई है, जो सह-अस्तित्व के लिए महत्त्वपूर्ण है।
प्रतिपूरक वनरोपण निधि अधिनियम, 2016
  • पुनर्स्थापन और आवास सुधार परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराना।
भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (WPA), 1972
  • WPA, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।

वैश्विक पहल और उदाहरण

पहल / देश प्रमुख विशेषताएँ भारत के लिए प्रासंगिकता
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और WWF “मानव-वन्यजीव संघर्ष और सह-अस्तित्व रिपोर्ट (2021)” HWC को वैश्विक संरक्षण प्राथमिकता के रूप में मान्यता दी गई। एकीकृत, अंतर-क्षेत्रीय शमन रणनीतियों को प्रोत्साहित करता है।
जैव विविधता पर अभिसमय (CBD) इसका लक्ष्य वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। भारत का WLPA, CBD के सतत् सह-अस्तित्व लक्ष्यों के अनुरूप है।
वन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार को विनियमित करता है; भारत वर्ष 1976 से इसका हस्ताक्षरकर्ता है। कानूनी और नैतिक वन्यजीव प्रबंधन सुनिश्चित करता है।
मानव-हाथी संघर्ष के लिए केन्या की मुआवजा योजना समुदाय-आधारित त्वरित मुआवजा और जागरूकता कार्यक्रम। भारत के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का मॉडल।
भूटान का संरक्षण मॉडल धार्मिक मूल्यों को कठोर वन्यजीव संरक्षण के साथ जोड़ता है। संरक्षण में सांस्कृतिक नैतिकता की भूमिका को सुदृढ़ करता है।

भारत के सर्वोत्तम अभ्यास और उदाहरण

  • असम की पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: सौर ऊर्जा चालित बाड़ और SMS-आधारित अलर्ट से हाथियों की गतिविधियों की सूचना।
  • उत्तराखंड की त्वरित प्रतिक्रिया टीमें: तत्काल बचाव और रोकथाम के लिए प्रशिक्षित कार्मिक।
  • कर्नाटक की पर्यावरण-क्षतिपूर्ति योजना: डिजिटल हस्तांतरण के माध्यम से फसल क्षति की भरपाई।
  • महाराष्ट्र की तेंदुआ प्रबंधन योजना: पकड़ने के बजाय सामुदायिक सह-अस्तित्व पर केंद्रित।

आगे की राह

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-संचालित संघर्ष प्रबंधन: मानव-वन्यजीव संघर्ष की भविष्यवाणी और रोकथाम के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का एकीकरण आवश्यक है।
    • GIS-आधारित संघर्ष मानचित्र, वास्तविक समय HWC डेटाबेस विकसित करना, और रैखिक अवसंरचना में वन्यजीव अंडरपास, इको-ब्रिज और AI-लिंक्ड पूर्व-चेतावनी सेंसर अनिवार्य करना।
    • सक्रिय हस्तक्षेप के लिए पूर्वानुमान-रोकथाम-सुरक्षा (P3) ढाँचे को अपनाना।
    • वास्तविक समय गश्त, ट्रैकिंग और पारिस्थितिकी निगरानी के लिए NTCA द्वारा विकसित ‘एम-स्ट्रिप्स’ (बाघों के लिए निगरानी प्रणाली) का उपयोग करना।
    • त्वरित, सामान्य प्रतिक्रिया और डेटा-संचालित प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन, कैमरा ट्रैप और AI-सक्षम अलर्ट (विशेषकर हाथी-प्रशिक्षण और बाघ-मानव संपर्क क्षेत्रों में) का उपयोग करना।
  • शमन: हॉटस्पॉट गाँवों में मधुमक्खी के छत्ते की बाड़, सौर बाड़ का निर्माण करना।
    • वनों के किनारों पर अरुचिकर बफर फसलें (लेमनग्रास, हल्दी) लगाना।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण और स्थानीय संरक्षण: स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना स्थायी संघर्ष प्रबंधन का मूल आधार है।
    • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006, सामुदायिक वन संसाधन (CFR) अधिकारों के माध्यम से, ग्राम सभाओं को वन्यजीव आवासों से सटे बफर जोन सहित वन संसाधनों का प्रबंधन और संरक्षण करने में सक्षम बनाता है।
    • जनजातीय ज्ञान, जैसे मधुमक्खी के छत्ते की बाड़ लगाना, मौसमी प्रवास की जानकारी और पारंपरिक निगरानी को एकीकृत करने से सह-अस्तित्व की रणनीतियों में सुधार होता है।
    • पर्यावरण-पर्यटन, वन-आधारित आजीविका और समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण प्रोत्साहनों को बढ़ावा देने से विरोध कम होता है और यह सुनिश्चित होता है कि लोग वन्यजीव संरक्षण में पीड़ित के बजाय भागीदार बनें।
  • सहकारी संघवाद: त्वरित, कानूनी रूप से सुसंगत प्रतिक्रियाओं के लिए राज्य-केंद्र समन्वय तंत्र स्थापित करना।
    • WLPA के तहत आपातकालीन प्रबंधन के लिए त्वरित केंद्रीय मंजूरी की अनुमति देना।
  • नैतिक और मानवीय ढाँचा: ‘न्यूनतम-हानिकारक सिद्धांत’ लागू करना अर्थात् वध से पहले गैर-घातक निवारक उपायों का उपयोग करना।
    • वन अधिकारियों को पर्यावरणीय नैतिकता और करुणा-आधारित नीति का प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • मानव सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए अनुच्छेद-48A और 51A(g) के क्रियान्वयन को बनाए रखना।
  • पर्यावरण पुनर्स्थापन: वनीकरण और भूमि-उपयोग नियोजन के माध्यम से हाथी और बाघ गलियारों का विस्तार करना।
    • फसलों के नुकसान को कम करने के लिए वन में खाद्य और जल स्रोतों को समृद्ध बनाना।

निष्कर्ष

भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष, पारिस्थितिकी दृष्टि से जितनी बड़ी चुनौती है, उतनी ही प्रशासनिक और नैतिक चुनौती भी है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 को अब अनुकूली, समावेशी और मानवीय दृष्टिकोण से लागू किया जाना चाहिए। केरल दर्शाता है कि विज्ञान और करुणा द्वारा निर्देशित सह-अस्तित्व ही महत्त्वपूर्ण है। केवल सहकारी संघवाद और नैतिक नेतृत्व ही जैव विविधता और मानव जीवन दोनों की रक्षा कर सकता है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.