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मानव वन्यजीव संघर्ष

Lokesh Pal December 26, 2025 03:05 9 0

संदर्भ

मानव–वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि के बीच, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने पश्चिम बंगाल के सुंदरबन टाइगर रिजर्व में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और प्रोजेक्ट एलीफेंट’ संबंधी उच्च-स्तरीय बैठकों की अध्यक्षता की, ताकि संरक्षण रणनीतियों और संघर्ष शमन उपायों की समीक्षा की जा सके।

बैठक की प्रमुख विशेषताएँ

  • विज्ञान-आधारित संरक्षण को सुदृढ़ करना: मंत्री ने वैज्ञानिक प्रबंधन, परिदृश्य आधारित योजना तथा साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों पर बल दिया, जिन्हें भारत के वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त बाघ संरक्षण मॉडल के स्तंभ बताया गया।
  • मानव–वन्यजीव संघर्ष पर ध्यान: NTCA ने मानव–बाघ संघर्ष से निपटने हेतु त्रि-स्तरीय रणनीति की समीक्षा की, जिसमें ‘टाइगर आउटसाइड टाइगर रिजर्व’ (TOTR) नामक समर्पित पहल शामिल है।
  • प्रमुख (फ्लैगशिप) परियोजनाओं का विस्तार:प्रोजेक्ट चीता’ के विस्तार को गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य और बन्नी घासभूमि तक बढ़ाने, साथ ही बाघ स्थानांतरण एवं शिकार-आधार (Prey) संवर्द्धन योजनाओं पर निर्णयों की पुष्टि की गई।
  • हाथी संरक्षण एवं अंतर-राज्यीय समन्वय: प्रोजेक्ट एलीफेंट के अंतर्गत मानव–हाथी संघर्ष, क्षतिपूर्ति तंत्र, हाथी गलियारों की सुरक्षा की समीक्षा की गई तथा दक्षिणी और पूर्वोत्तर भारत में समन्वित अंतर-राज्यीय कार्रवाई को प्राथमिकता दी गई।
  • निगरानी, क्षमता निर्माण एवं वैश्विक सहभागिता: ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन’ के छठे चक्र, CAMPA-समर्थित पहलों, कर्मचारी प्रशिक्षण, तथा अफ्रीकी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की प्रगति का आकलन किया गया, साथ ही ‘ग्लोबल बिग कैट समिट’ की तैयारियों की समीक्षा की गई।

टाइगर रिजर्व के बाहर बाघों का प्रबंधन’ (TOTR)

  • TOTR पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की राष्ट्रीय-स्तरीय पहल है।
  • क्रियान्वयन: परियोजना 2025–28 के दौरान लागू की जाएगी, कुल परिव्यय ₹88.7 करोड़।
    • NTCA द्वारा केंद्रीय समन्वय; राज्य वन विभागों के माध्यम से निष्पादन।
  • पायलट चरण: 10 राज्यों के 80 वन प्रभागों में, जिनकी पहचान बार-बार होने वाले मानव–बाघ संघर्ष के आँकड़ों के आधार पर की गई है।
  • संघर्ष शमन पर ध्यान: रिजर्व के आलावा अन्य परिदृश्यों में प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, त्वरित प्रतिक्रिया दलों और समुदाय-आधारित संघर्ष प्रबंधन के माध्यम से मानव–बाघ संघर्ष को व्यवस्थित रूप से कम करना।
  • परिदृश्य-स्तरीय सह-अस्तित्व दृष्टिकोण: परिदृश्य स्तरीय दृष्टिकोण अपनाकर पारिस्थितिकी स्थिरता को मानव सुरक्षा और आजीविका के साथ संतुलित करना तथा मानव-प्रधान क्षेत्रों में संरक्षण का एकीकरण।

मानव–वन्यजीव संघर्ष क्या है?

  • मानव–वन्यजीव संघर्ष उन संघर्षों को संदर्भित करता है, जो तब उत्पन्न होते हैं, जब वन्यजीवों की संसाधन आवश्यकताएँ मानव आबादी की आवश्यकताओं से अतिव्यापन करती हैं।
  • इसमें ऐसे अंतःक्रियाएँ शामिल होती हैं, जिनसे लोगों, उनके संसाधनों, या वन्यजीवों एवं उनके आवासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

मानव–वन्यजीव संघर्ष के कारण

  • आवास विखंडन: वनों की कटाई, खनन, सड़कें और रेलमार्ग वन्यजीव आवासों व गलियारों को बाधित करते हैं, जिससे जानवर मानव बस्तियों की ओर आते हैं।
  • कृषि विस्तार: वनों के समीप कृषि हाथी, जंगली सूअर और नीलगाय जैसी फसल-क्षति करने वाली प्रजातियों को आकर्षित करती है।
  • अवसंरचना विकास: रेखीय अवसंरचना (रेलवे, राजमार्ग, नहरें) पशु आवागमन मार्गों को अवरुद्ध करती है, जिससे दुर्घटनाएँ बढ़ती हैं।
    • भारत में 150 से अधिक हाथी गलियारे लगभग 700 रेलवे ट्रैक और राजमार्गों से प्रतिच्छेदित हैं, जिससे जानवर मानव बस्तियों की ओर चले जाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन: वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन और आहार की कमी जानवरों को वनों के बाहर संसाधन खोजने को बाध्य करती है।
  • जनसंख्या दबाव: संरक्षित क्षेत्रों के आस-पास बढ़ती मानव आबादी भूमि और जल संबंधी आवश्यकताओं के लिए प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि करती है।
  • शिकार-आधार में कमी: प्राकृतिक शिकार घटने से बाघ और तेंदुए, जैसे- शिकारी पशुधन या मनुष्यों पर हमला करते हैं।

मानव–वन्यजीव संघर्ष के प्रभाव

मानवों पर प्रभाव

  • जीवनहानि और चोट: भारत में हाथी, बाघ, तेंदुआ और साँप से मानव संघर्षों के कारण प्रत्येक वर्ष सैकड़ों मौतें होती हैं।
    • वर्ष 2019–2022 के बीच भारत में 1,500 से अधिक लोग हाथियों द्वारा मारे गए।

  • आर्थिक हानि: फसल क्षति, पशुधन शिकार और संपत्ति विनाश का प्रभाव सीमांत किसानों पर असमान रूप से पड़ता है।
  • आजीविका असुरक्षा: बार-बार होने वाली हानियाँ ग्रामीण गरीबी और ऋणग्रस्तता में वृद्धि करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में शाकाहारी जीवों से जुड़े मानव–वन्यजीव संघर्ष के कारण वार्षिक कृषि हानि ₹10,000 करोड़ से ₹40,000 करोड़ तक होती है।
  • मनोवैज्ञानिक आघात: वनों के निकट रहने वाले समुदायों में भय, तनाव और दीर्घकालिक चिंता उत्पन्न होती है
    • सुंदरबन के आस-पास मानव–बाघ संघर्ष से अत्यधिक प्रभावित लोगों में मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव देखा गया है।
  • जूनोटिक रोग जोखिम: मानव–वन्यजीव अंतःक्रिया बढ़ने से जूनोटिक रोगों का खतरा बढ़ता है।
    • केरल में फल चमगादड़ों से संबंधित निपाह वायरस प्रकोप ने पारिस्थितिकी व्यवधान के सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों को उजागर किया।
  • सामाजिक अशांति: बढ़ता आक्रोश प्रदर्शनों और शासन में विश्वास के क्षरण की ओर ले जाता है।
    • शिमला नागरिक सभा ने शहर में आवारा कुत्तों और बंदरों की बढ़ती समस्या के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई की माँग करते हुए प्रदर्शन किया।

पशुओं पर प्रभाव

  • प्रतिशोधात्मक हत्या: ग्रामीण प्रायः जहरीले चारे या अवुट्टुकाय’ (कच्चे चारे) का उपयोग कर तेंदुओं और जंगली सूअरों को पशुधन/फसल क्षति के बदले मार देते हैं।

  • दुर्घटनावश मृत्यु: विद्युत लाइनों या अवैध बाड़ों के कारण वर्ष 2018–2023 के बीच लगभग 500 हाथियों की मृत्यु हुई।
  • आनुवंशिक पृथक्करण: सड़कों या बाड़ों को पार करने से डरने वाले जानवर छोटे वन-खंडों में अलग-थलग पड़ जाते हैं, जिससे इनब्रीडिंग और दीर्घकालिक जनसंख्या गिरावट होती है।
    • इस पृथक्करण के कारण एशियाई शेरों की पूरी आबादी में आनुवंशिक विविधता अत्यंत कम है, जिससे वे रोगों और आनुवंशिक विकृतियों के प्रति अधिक संवेदनशील तथा पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूलन में कम सक्षम हैं।
  • व्यवहारिक परिवर्तन: निरंतर नकारात्मक अंतःक्रियाएँ जानवरों को अधिक आक्रामक और मानव उपस्थिति के प्रति आसक्त’ बना देती हैं, जिससे भविष्य में हमलों की संभावना बढ़ती है।
    • हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक तेंदुए को स्थानीय निवासी की मृत्यु के प्रतिशोध में ग्रामीणों ने मार दिया।

भारत में मानव–वन्यजीव संघर्ष को कम करने हेतु प्रावधान एवं पहल

  • कानूनी प्रावधान
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972: विशिष्ट क्षेत्रों में वर्मिन” घोषित करने का प्रावधान तथा मुख्य वन्यजीव वार्डन को संघर्ष-प्रवण जानवरों के प्रबंधन का अधिकार।
      • केंद्र सरकार अनुसूची-I/अनुसूची-II (भाग II) को छोड़कर किसी भी वन्यजीव को निर्धारित क्षेत्र और अवधि के लिए ‘वर्मिन’ घोषित कर सकती है, जिससे वह असंरक्षित हो जाता है।
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005: राज्यों (जैसे केरल) को संघर्ष को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित करने की अनुमति, जिससे तीव्र राहत, क्षतिपूर्ति और निर्णायक कार्रवाई संभव होती है।
      • वन्यजीव संरक्षण (केरल संशोधन) अधिनियम, 2025: मुख्य वन्यजीव वार्डन को आवासीय क्षेत्रों में मनुष्यों पर हमला करने वाले हाथी, जंगली सूअर और मकाक जैसे जानवरों के तत्काल शिकार/पकड़ने का आदेश देने की अनुमति।
      • यह केंद्रीय कानून संबंधी लंबितता की उपेक्षा करता है और जंगली सूअर जैसी कुछ आबादियों को ‘वर्मिन’ घोषित करने की संभावना प्रदान करता है।
  • संस्थागत उपाय
    • NTCA: बार-बार होने वाले मानव–बाघ संघर्ष वाले क्षेत्रों में टाइगर रिजर्व के बाहर बाघ” जैसी रणनीतियों का कार्यान्वयन।
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992): गलियारा संरक्षण, मानव–हाथी संघर्ष शमन और क्षतिपूर्ति तंत्र पर ध्यान।
    • रिहैब (RE-HAB) परियोजना: मधुमक्खियों के उपयोग द्वारा मानव-हाथी संघर्ष को कम करना’ (Reducing Elephant-Human Attacks using Bees- RE-HAB), KVIC की पहल, जिसमें बी-फेंस” (Bee Fence) द्वारा हाथियों को मधुमक्खियों से डराकर संघर्ष रोका जाता है।
      • यह लागत-प्रभावी, हानिरहित विधि है और शहद उत्पादन से किसानों की आय भी बढ़ाती है।
  • क्षतिपूर्ति एवं बीमा: मानव मृत्यु, चोट, फसल और पशुधन हानि के लिए एक्स-ग्रेशिया’ (अनुग्रह राशि) भुगतान।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के हालिया विस्तार से राज्यों को बीमा दावों हेतु वन्यजीव क्षति” को स्थानीय जोखिम के रूप में शामिल करने की अनुमति।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने MoEF&CC की इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ वाइल्डलाइफ हैबिटैट्स योजना’ के तहत वन्यजीवों के कारण प्रत्येक मानव मृत्यु के लिए ₹10 लाख  एक्स-ग्रेशिया’ (अनुग्रह राशि) भुगतान अनिवार्य किया।
  • प्रौद्योगिकी एवं योजना: AI-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ, रेडियो-कॉलरिंग, कैमरा ट्रैप, और GIS-आधारित हॉटस्पॉट मैपिंग।
    • AI-आधारित चेतावनी प्रणालियाँ: नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे ट्रैक के पास हाथियों की उपस्थिति पहचानने हेतु गजराज” प्रणाली का उपयोग करता है।
    • रेडियो-कॉलर निगरानी: हाथियों या बाघों की वास्तविक-समय ट्रैकिंग से गाँवों को प्रारंभिक चेतावनी।

मानव–वन्यजीव सह-अस्तित्व की वैश्विक प्रथाएँ

  • भारत (बिश्नोई समुदाय): सदियों से राजस्थान का बिश्नोई समुदाय काला हिरण और चिंकारा की पवित्र मानकर रक्षा करता है, यहाँ तक कि अनाथ शावकों का पालन-पोषण भी करते हैं।
  • अमेजन (आदिवासी क्षेत्र): कायापो, जैसी जनजाति पारंपरिक जोनिंग से बफर’ वन क्षेत्र की अवधारणा बनाए रखती हैं, जो शिकार क्षेत्रों को गाँवों से अलग करते हैं।
  • अफ्रीका (मसाई ‘लायन गार्जियंस’): केन्या में पूर्व शेर-शिकारी अब गार्जियन” के रूप में कार्यरत हैं, पारंपरिक निगरानी संबंधी कौशल से चरवाहों को चेतावनी देकर प्रतिशोधात्मक हत्याओं में कमी लाते हैं।
  • भूटान (ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस): राज्य-प्रायोजित मानव–वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन रणनीति” में आध्यात्मिक क्षतिपूर्ति भी शामिल; इनके सह-अस्तित्व को बनाए रखना धार्मिक कर्तव्य माना जाता है।
  • श्रीलंका (ग्राम फेंसिंग): पूरे गाँवों के चारों ओर समुदाय-प्रबंधित विद्युत बाड़ व्यक्तिगत खेतों की तुलना में अधिक प्रभावी सिद्ध हुई हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के तरीके

  • स्मार्ट अवसंरचना: समर्पित अंडरपास और ओवरपास का निर्माण करना।
    • उदाहरण: पेंच टाइगर रिजर्व से होकर गुजरने वाले NH-44 खंड में ‘इको-डक्ट्स’ निर्मित किए गए हैं, जो बाघों को सुरक्षित पारगमन देते हैं।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ (EWS): AI-सक्षम कैमरे और SMS अलर्ट का उपयोग करना।
    • नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (NCF) द्वारा विकसित रेड-लाइट अलर्ट और बल्क SMS सेवा ने तमिलनाडु के वालपारई पठार में हाथियों से होने वाली मानव मौतों को लगभग शून्य कर दिया है।
  • अघातक निवारक: बायो-फेंसिंग (मिर्च–तंबाकू द्वार निर्मित बाड़) या ध्वनिक उपकरण, जो मधुमक्खियों या बाघों की आवाज की नकल कर शाकाहारियों को फसलों से दूर रखते हैं।
    • डिजिटल बीहाइव्स’-क्रोधित मधुमक्खियों की ध्वनि पुनरुत्पादित करने वाले ध्वनिक उपकरण मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (MTR), नीलगिरि, तमिलनाडु में हाथी निवारक के रूप में उपयोग हो रहे हैं।
  • समुदाय-नेतृत्व आधारित संरक्षण: स्थानीय गाँवों से प्राइमरी रिस्पॉन्स टीम्स’ (PRTs) की भर्ती, जिन्हें भीड़ प्रबंधन और पशु ट्रैकिंग का प्रशिक्षण/उपकरण प्रदान किया जाता है, जब तक वन अधिकारी वहाँ न पहुँचें।
  • प्राकृतिक चारे का पुनः उत्पादन:लैंटाना’ जैसी आक्रामक खरपतवारों की सक्रिय समाप्ति और देशी बाँस व घासों का रोपण, ताकि जानवर वन के किनारों से दूर रहें।

निष्कर्ष

मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिए विज्ञान-आधारित, सामुदायिक-नेतृत्व वाले और भू-भाग-स्तरीय समाधानों की आवश्यकता है, जो समन्वित शासन, प्रौद्योगिकी और सह-अस्तित्व-उन्मुख नीतियों के माध्यम से मानव सुरक्षा, आजीविका और जैव विविधता संरक्षण को संतुलित करते हैं।

अभ्यास प्रश्न 

हाल ही में असम में रेलवे ट्रैक पार करने के प्रयास में 7 हाथियों की मृत्यु हो गई। ट्रेन दुर्घटनाओं के कारण बार-बार होने वाली हाथियों की मृत्यु के कारणों का विश्लेषण कीजिए और रेलवे ट्रैक के किनारे वन्यजीवों की मृत्यु को रोकने के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) 

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