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केरल में मानव-वन्यजीव संघर्ष

Lokesh Pal June 11, 2025 03:28 30 0

संदर्भ

केरल ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन की माँग की है ताकि उसे मानव जीवन और संपत्तियों के लिए खतरा उत्पन्न करने वाले जंगली जानवरों (अनुसूची 1) को मारने की अनुमति मिल सके।

केरल में वन्यजीव समस्याओं के बारे में

  • केरल सरकार ने 941 गाँवों में से 273 स्थानीय निकायों को वन्यजीव हमलों के लिए संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया है।
    • जनहानि: सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016-17 से वर्ष 2024-25 तक केरल में वन्यजीवों के हमलों में 919 से अधिक लोग मारे गए और 8,967 अन्य घायल हुए।
  • वे जानवर जिनकी वजह से समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं: 
    • केरल सरकार वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 62 के तहत जंगली सूअरों को एक निश्चित अवधि के लिए हानिकारक जानवर घोषित करना चाहती है।
    • बोनट मकाॅक (Bonnet Macaque) को अनुसूची I की श्रेणी से हटाए जाने की सिफारिश की गई है।
  • केरल में मानव-वन्यजीव संघर्ष का कारण
    • जंगली सूअरों और बंदरों की विभिन्न प्रजातियों (बोनेट मकाॅक) की संख्या में वृद्धि मानव बस्तियों में हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर रही है।
    • वन्यजीव आबादी में क्षेत्रीय उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है।
    • आवास में कमी: अतिक्रमण एवं विकास गतिविधियों के कारण जानवरों के आवास में कमी आ रही है, जिससे उन्हें संरक्षित स्थानों से बाहर जाना पड़ रहा है।
    • वन क्षेत्रों में घरेलू मवेशियों का चरना।
    • कृषि विस्तार और फसल पद्धति में परिवर्तन।
    • बोनेट मकाॅक और मयूर पक्षी के बार-बार आक्रमण ने किसानों को कृषि भूमि के विशाल भू-भाग को छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) 1972

  • WPA भारतीय कानून का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन तथा जंगली जानवरों, पौधों और उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिए एक कानूनी ढाँचा प्रदान करके वन्यजीवों और उनके आवासों की रक्षा करना है।
  • अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्र: इस अधिनियम के तहत पाँच प्रकार के संरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं:-
    • वन्यजीव अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, संरक्षण रिजर्व, सामुदायिक रिजर्व और बाघ रिजर्व।
  • अधिनियम के अंतर्गत वन्यजीवन हेतु प्रमुख पहल
    • प्रोजेक्ट टाइगर: इसे बाघों की आबादी को संरक्षित करने के लिए वर्ष 1973 में लॉन्च किया गया था।
    • प्रोजेक्ट एलीफेंट: इसे हाथियों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 1992 में लॉन्च किया था।
    • वन्यजीव गलियारे: इस अधिनियम के तहत कुल 88 गलियारों की पहचान की गई थी।
      • उदाहरण: भारत का पहला शहरी वन्यजीव गलियारा नई दिल्ली और हरियाणा के बीच असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य (Asola Bhatti wildlife sanctuary) के पास बनने जा रहा है।
  • वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में वन्य जीवों को मारने का प्रावधान
    • अधिनियम की धारा 11(1)(a): यह मुख्य वन्यजीव वार्डन को अनुसूची I में सूचीबद्ध जानवरों के शिकार के लिए परमिट देने का अधिकार देता है, यदि वे मानव जीवन के लिए खतरनाक हो जाते हैं या असाध्य रूप से बीमार हो जाते हैं।
    • धारा 11(1)(b): यह मुख्य वन्यजीव वार्डन या किसी प्राधिकृत अधिकारी को अनुसूची II, III या IV में सूचीबद्ध जंगली जानवरों के शिकार के लिए परमिट देने की अनुमति देता है, यदि वे मानव जीवन या संपत्ति के लिए खतरनाक हो जाते हैं या विकलांग या बीमार हो जाते हैं, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता।
    • धारा 62: यह केंद्र सरकार को अनुसूची I और अनुसूची II में निर्दिष्ट जानवरों के अलावा किसी भी जंगली जानवर को किसी भी क्षेत्र और निर्दिष्ट अवधि के लिए ‘पीड़क’ (Vermin) घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • एक बार ‘पीड़क’ घोषित होने के बाद, यह प्रजाति सभी कानूनी संरक्षण खो देती है, और इसका अप्रतिबंधित शिकार किया जा सकता है।
    • अन्य प्रावधान: सरकार को मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के दौरान बाघ संरक्षण प्राधिकरण और ‘प्रोजेक्ट एलीफेंट स्कीम’ की सलाह का भी पालन करना होगा।
  • वन्यजीव संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2022
    • संरक्षण: इस अधिनियम का उद्देश्य कानून के तहत संरक्षित प्रजातियों की संख्या बढ़ाना और CITES को लागू करना है।
    • श्रेणियाँ: अनुसूचियों की संख्या पहले की 6 से घटाकर चार कर दी गई है:-
      • अनुसूची I: इसमें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त पशु प्रजातियाँ शामिल हैं।
        • उदाहरण: चिंकारा/इंडियन गजल, अंडमान हॉर्सशू बैट, एशियाई जंगली कुत्ता/ढोल।
      • अनुसूची II: कम संरक्षण के अधीन पशु प्रजातियों के लिए।
        • उदाहरण: नीलगाय, चित्तीदार हिरण/चित्तल, भारतीय हाथी।
      • अनुसूची III: संरक्षित पौधों की प्रजातियों के लिए।
        • उदाहरण: वृक्ष हल्दी, नीलकुरिंजी, नीला वांडा।
      • अनुसूची IV: CITES के अंतर्गत अनुसूचित नमूनों के लिए।
        • उदाहरण: रेड पांडा, ऊदबिलाव आदि।
      • यह अधिनियम हाथियों को ‘धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य’ के लिए उपयोग करने की अनुमति देता है।

जानवरों को मारने के नकारात्मक प्रभाव

  • संपार्श्विक क्षति: मानव-वन्यजीव संघर्ष के घातक नियंत्रण के तरीके लक्षित प्रजातियों को खतरे में डालते हैं, लेकिन जाल एवं फंदे प्रायः गैर-लक्षित जानवरों के लिए घातक सिद्ध होते हैं।
    • उदाहरण: कर्नाटक के नागरहोल नेशनल पार्क में जंगली सूअरों को मारने के लिए लगाए गए जाल में बाघ, तेंदुए और भालू जैसे संरक्षित जानवर फँस रहे थे।
  • संघर्ष में वृद्धि: बड़े पैमाने पर अवैज्ञानिक शिकार प्रजातियों के बीच शक्ति पदानुक्रम को बाधित करता है क्योंकि जब समूह का नेतृत्त्वकर्त्ता सदस्य मर जाता है, तो बच्चे या उप-वयस्क तबाही मचा सकते हैं और अधिक संघर्ष उत्पन्न कर सकते हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2020 की गणना के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में ‘रीसस मकाॅक’ की आबादी में 33.5 प्रतिशत की कमी आई है, फिर भी संघर्ष बढ़ रहे हैं।
  • पारिस्थितिकी असंतुलन: किसी विशेष प्रजाति को सामूहिक रूप से निशाना बनाने से गंभीर पारिस्थितिकी असंतुलन उत्पन्न होता है क्योंकि इससे खाद्य श्रृंखला में रिक्तता उत्पन्न होगी, जिससे पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • आनुवंशिकी: विशिष्ट लक्षणों के आधार पर शिकार करने से मजबूत चयन दबाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे संभावित रूप से आबादी से लाभकारी लक्षण समाप्त हो सकते हैं और आनुवंशिक विविधता कम हो सकती है।
  • प्रतिशोधी हत्याओं में वृद्धि: शिकार का समर्थन करने वाली एक सरकारी नीति अन्य वन्यजीव प्रजातियों की अवैध प्रतिशोधी हत्याओं को भी बढ़ा सकती है, जब जानकारी और जागरूकता की कमी होती है, जिससे कमजोर प्रजातियों को खतरा होता है।
    • उदाहरण: फसल पर हमला करने की घटनाओं के कारण पलक्कड़ में हाथियों को अवैध रूप से विशेष दिया जाना, संघर्ष-प्रेरित हत्याओं में वृद्धि को दर्शाता है।
  • जूनोटिक रोग जोखिम: यदि मारे गए जानवर को ठीक से प्रबंधित और निपटाया नहीं जाता है, तो जूनोटिक रोगों का जोखिम बढ़ सकता है।
  • कोई वास्तविक संख्या लाभ नहीं: कई अध्ययनों से पता चला है कि लक्षित जानवरों की आबादी में एक संक्षिप्त गिरावट अवधि के बाद काफी वृद्धि हुई है क्योंकि कुछ व्यक्तियों को हटाने से अधिक भोजन के लिए स्थान बनती है और बचे हुए लोगों में प्रजनन दर में वृद्धि होती है।

आगे की राह

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन के गैर-घातक साधन: मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन में पशुधन की रक्षा करने वाले पशु, निवारक उपाय, विकर्षक (Repellents), विपथनकारी भोजन, और नसबंदी जैसे गैर-घातक साधन, घातक उपायों की तुलना में अधिक प्रभावी सिद्ध हुए हैं।
  • वैज्ञानिक डेटाबेस बनाए रखना: फसल क्षति की सीमा पर डेटाबेस बनाए रखना और समस्या उत्पन्न करने वाले जानवरों और संघर्ष पैटर्न पर वैज्ञानिक सर्वेक्षण या गणना करना।
    • उदाहरण: स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए स्थान विशिष्ट वैज्ञानिक जानकारी एकत्र करना और लक्षित शमन योजनाएँ बनाना, ताकि वे कमजोर क्षेत्रों के आसपास बायो-फेंसिंग और पावर फेंसिंग स्थापित और बनाए रख सकें।
  • सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को संघर्षों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए ज्ञान और संसाधनों से सशक्त बनाने की आवश्यकता है और प्राकृतिक संसाधनों पर उनकी निर्भरता को कम करने और संघर्ष को कम करने के लिए एक स्थायी आजीविका विकल्प प्रदान किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: वायनाड में समुदाय द्वारा संचालित फसल सुरक्षा उपायों से हाथियों के हमलों में 30% की कमी आई।
  • पर्यावास प्रबंधन: संरक्षित क्षेत्रों, बफर जोन और वन्यजीव गलियारों के माध्यम से वन्यजीव आवासों की सुरक्षा और पुनर्स्थापना जानवरों को स्वतंत्र रूप से घूमने और आवास विखंडन को कम करने की अनुमति देकर मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम कर सकती है।
  • तकनीकी विधि: SMS आधारित अलर्ट के माध्यम से स्वचालित वन्यजीव पहचान और चेतावनी प्रणाली, ड्रोन के माध्यम से वन्यजीव निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया जैसे आधुनिक तकनीकी तरीकों का उपयोग करना ताकि संघर्षों की निगरानी और उन्हें कम किया जा सके, फसलों, संपत्ति और मानव जीवन को बचाया जा सके।
  • निवारक उपाय अपनाना: ध्वनि, चमकदार रोशनी या अप्रिय गंध जैसे अप्रिय निवारक उपाय अपनाना वन्यजीवों को मानव क्षेत्रों में आने से हतोत्साहित करता है।
    • उदाहरण: फसल पर हमला करने वालों को रोकने के लिए बाघ की दहाड़ या हाथी की आवाज जैसी ध्वनि का उपयोग करना।
  • मुआवजा नीति: वन्यजीवों द्वारा होने वाले नुकसान को राष्ट्रीय फसल/कृषि बीमा कार्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि किसानों को फसल हानि की भरपाई सुनिश्चित की जा सके। इससे न केवल किसानों को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी, बल्कि वन्यजीवों को भी साझा ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र का स्वाभाविक हिस्सा मानने की दिशा में सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ेगी।

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