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अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से बढ़ता पूर्वकालिक मौत का खतरा

Lokesh Pal May 15, 2024 07:45 158 0

संदर्भ

द हेल्थ प्रोफेशनल्स फॉलो-अप स्टडी (1986-2018) के तीस वर्ष के अध्ययन में पाया गया है कि अति-प्रसंस्कृत भोजन के सेवन से पूर्वकालिक मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

संबंधित तथ्य 

  • अधिकांश अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (जैसे रेडी-टू-ईट मीट, पोल्ट्री, समुद्री भोजन आधारित उत्पाद, शर्करा युक्त पेय-पदार्थ, डेयरी आधारित डेसर्ट और अत्यधिक प्रसंस्कृत भोजन) की अधिक खपत पूर्वकालिक मृत्यु की संभावना से जुड़ी हुई है।
  • इस संबंध में रिपोर्ट BJM पत्रिका में प्रकाशित हुई।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • नमूना: नर्सों के स्वास्थ्य अध्ययन (1984-2018) में 11 प्रांतों की पंजीकृत 74,563 महिला नर्सों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य तथा सभी अमेरिकी प्रांतों के 39,501 पुरुषों के स्वास्थ्य की निगरानी की गई, जो कभी कैंसर, हृदय रोग या मधुमेह से पीड़ित न रहे हों।
  • मूल्यांकन प्रक्रिया: प्रतिभागियों ने प्रत्येक 2 वर्ष में अपने स्वास्थ्य और जीवनशैली की आदतों के बारे में जानकारी प्रदान की तथा प्रत्येक चार वर्ष में खाद्य-आदत से संबंधित विस्तृत प्रश्नावली का जवाब दिया। वैकल्पिक स्वस्थ भोजन सूचकांक-2010 (Alternative Healthy Eating Index- AHEI) के आँकड़ों का उपयोग करके समग्र आहार गुणवत्ता का भी मूल्यांकन किया गया था।
  • जाँच का परिणाम
    • मौतों की संख्या: कुल 48,193 मौतें हुईं, जिनमें कैंसर के कारण 13,557 मौतें, हृदय रोगों के कारण 11,416 मौतें, श्वसन रोगों के कारण 3,926 मौतें और न्यूरोडीजेनेरेटिव (Neurodegenerative) बीमारियों के कारण 6,343 मौतें शामिल हैं।
    • उच्चतम तिमाही (प्रति दिन औसतन अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सात बार सेवन) में प्रतिभागियों में कुल मौतों की संभावना 4% तथा अन्य मौतों की संभावना 9% बढ़ गई थी, साथ ही न्यूरोडीजेनेरेटिव मौतों की संभावना में भी 8% की वृद्धि हुई।      
    • हृदय रोगों, कैंसर या श्वसन रोगों के कारण होने वाली मौतों का कोई संबंध नहीं पाया गया।
    • खाद्य पदार्थों का विशिष्ट समूह: मांस, पोल्ट्री और समुद्री भोजन आधारित रेडी-टू-ईट (Ready-to-eat) खाद्य उत्पाद प्रारंभिक मृत्यु दर के साथ सबसे मजबूत संबंध दर्शाते हैं।
      • इसके बाद चीनी और कृत्रिम रूप से मीठा किए गए पेय पदार्थ, डेयरी आधारित मिठाइयाँ और अति-प्रसंस्कृत भोजन आता है।
    • समग्र आहार गुणवत्ता (Overall Dietary quality): अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की तुलना में गुणवत्तापूर्ण आहार का दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (Ultra-processed Foods)

  • अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में कई सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जिनका उपयोग आमतौर पर घरेलू स्तर पर खाना पकाने में नहीं किया जाता है। उदाहरण के रूप में, प्रिजरवेटिव (Preservatives), इमल्सीफायर (Emulsifiers), मिठास और कृत्रिम रंग। आमतौर पर इन खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक संरक्षित किया जा सकता है।
  • अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन से खतरे
    • पोषक तत्त्वों की कमी और कैलोरी की अत्यधिक मात्रा: इन खाद्य पदार्थों के स्वयं से आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है लेकिन ये खाद्य पदार्थों में कैलोरी की मात्रा भरपूर होती है। मानव शरीर कुपोषण, वजन बढ़ाना और पुरानी बीमारियों का शिकार हो जाता है।
    • अस्वास्थ्यकर योजक (Unhealthy Additives):  इन खाद्य पदार्थों में अतिरिक्त शर्करा, वसा और बड़ी मात्रा में सोडियम पाया जाता है, जो हृदय रोग, मधुमेह एवं पाचन संबंधी समस्याओं की संभावना को बढ़ाता है।
    • आदत और पर्यावरणीय प्रभाव: अत्यधिक उपभोग के कारण पर्यावरणीय क्षति तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • भारत में स्थिति
    • इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के सहयोग से प्रकाशित विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन में भारी वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2011 और 2021 के बीच अति-प्रसंस्कृत खाद्य क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 13.37% तक पहुँच गई है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक है।
    • उम्मीद: महामारी के बाद से अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी बाजार में कम हो रही है, जिसका श्रेय महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता तथा स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने वाली सरकारी योजनाओं को दिया जा सकता है।

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