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ICAR का ‘खरपतवारनाशक सहिष्णु चावल’ कृषि के प्रतिकूल

Lokesh Pal June 06, 2024 03:29 152 0

संदर्भ

हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)  का खरपतवारनाशक-सहिष्णु (Ht) चावल किसानों के अनुकूल नहीं है और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा है।

संबंधित तथ्य

  • ICAR का दावा 
    • ICAR ने दावा किया था कि ये चावल की फसलों में खरपतवारों को नियंत्रित कर सकते हैं और साथ ही जल की बचत करने वाली सीधी बुवाई प्रणाली (DSR) को भी बढ़ावा दे सकते हैं। 
      • हालाँकि, इन दावों से संबंधित वैज्ञानिक तथ्यों को “अतिशयोक्तिपूर्ण” माना गया है।
    • ICAR के दावे के अनुसार, ये नई गैर-आनुवंशिक रूप से संशोधित (non-GM) किस्में DSR प्रणाली में खरपतवारों को समाप्त करने के लिए ‘इमेजेथापायर’ नामक शाकनाशी के सीधे प्रयोग की अनुमति देती हैं, क्योंकि इनमें उत्परिवर्तित ALS जीन मौजूद है।

  • वैज्ञानिकों का तर्क 
    •  बुवाई की तारीखों में परिवर्तन: सीधी बुवाई प्रणाली (DSR) पर कार्य करने वाले वैज्ञानिकों का तर्क है कि “DSR की सहायता के लिए ऐसी तकनीक की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बुवाई की तारीख को 15 मई से 10 जून तक बढ़ाकर जलवायु कारकों का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से खरपतवारों का आसानी से प्रबंधन किया जा सकता है।
    • हाथ से निराई  को प्राथमिकता: वर्ष 2022 में फार्मा इनोवेशन जर्नल में प्रकाशित ICAR के शोध ने निष्कर्ष निकाला कि “DSR बुवाई के 20 और 40 दिनों के बाद पर्यावरण के अनुकूल हाथ से निराई करना, खरपतवार नियंत्रण और अधिक बीज उपज के लिए खरपतवारनाशक-सहिष्णु चावल में इमेजेथापायर के बार-बार उपयोग से अधिक प्रभावी है।
    • सीमित क्षमता: इसके अलावा, इमेजेथापायर केवल कुछ प्रकार के चौड़े पत्तों वाली खरपतवारों (BLW) को नष्ट करता है। 
      • वैश्विक स्तर पर, सोयाबीन और दलहनी फसलों के लिए शाकनाशी की सिफारिश की जाती है, लेकिन अलग-अलग खरपतवार वनस्पतियों के कारण चावल की फसलों के लिए यह उपयोगी नहीं है।
      • अन्य प्रकार के खरपतवारों के लिए, किसानों को शाकनाशी स्प्रे के एक और उपकरण की आवश्यकता होगी, जिससे खेती की लागत बढ़ जाएगी। इसके अलावा, Ht चावल भारतीय चावल की आनुवंशिक विविधता का पक्ष नहीं लेगा क्योंकि यह ALS जीन वाली विशिष्ट किस्मों के पक्ष में बीज बाजारों पर एकाधिकार कर लेगा।
    •  शक्तिशाली खरपतवारों का विकास: वैज्ञानिक रूप से, समय के साथ एक ही शाकनाशी के निरंतर उपयोग के परिणामस्वरूप जीन उत्परिवर्तन और  भौतिक परिवर्तनों के माध्यम से शाकनाशी-प्रतिरोधी, अधिक शक्तिशाली खरपतवारों का विकास होगा, जो शाकनाशियों के लिए प्रतिरोध प्रदान करते हैं। 
      • यह भारत में चावल उत्पादन और खाद्य सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। खरपतवार चावल उत्पादन में एक प्रमुख जैविक बाधा है, जिससे 30-100 प्रतिशत तक का नुकसान होता है।
    • अन्य उदाहरण 
      • पंजाब और हरियाणा में ‘बीटी कॉटन’ इसी का साक्ष्य प्रदान करती हैं, जहाँ ‘पिंक बॉलवर्म’ कीट के नए उपभेदों ने बीटी कॉटन के प्रति प्रतिरोध विकसित किया, जिससे इन कृषि-प्रधान राज्यों में कपास का उत्पादन गंभीर रूप से कम हो गया।
    • यह ध्यान देने योग्य है कि उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों, जिसमें पंजाब और हरियाणा शामिल हैं, ने सुगंधित बासमती चावल उगाने के लिए लंबे समय से DSR प्रणाली का उपयोग किया है। 
    • प्रत्यारोपित चावल प्रणाली की शुरुआत: चावल की फसलों में खरपतवारों को नियंत्रित करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, हरित क्रांति के दौरान नीति निर्माताओं ने भूजल आधारित सिंचाई का अत्यधिक उपयोग करके जल की अधिक खपत करने वाली प्रत्यारोपित चावल प्रणाली की शुरुआत की।
      • इन्हें मनीला में अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान से आयातित बौनी उच्च उपज वाली किस्मों का उपयोग करके पंजाब-हरियाणा के अर्द्ध-शुष्क जलवायु वाले राज्यों में ट्यूबवेल को सब्सिडी वाली बिजली के माध्यम से बढ़ावा दिया गया।
  • भारत पर प्रभाव 
    • इन नीतिगत पहलों ने पिछले पाँच दशकों में भारत की खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित किया, लेकिन ये पहल इन राज्यों में ‘ग्रे जोन’ में भूजल को कम करते हुए प्रमुख पारिस्थितिक आपदाओं का कारण बनीं। 
    • अव्यावहारिक फसल विविधीकरण को बढ़ावा: जल-खपत वाली धान की रोपाई प्रणाली के प्रतिकूल प्रभाव को दूर करने के लिए, नीति निर्माताओं ने इस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों पर विचार किए बिना धान किसानों के लिए आर्थिक रूप से अव्यावहारिक फसल विविधीकरण को बढ़ावा दिया।
      • तकनीकी रूप से गलत तरीके से तैयार की गई इन फसल विविधीकरणों को किसानों ने तकनीकी, पर्यावरणीय और आर्थिक आधार पर उनकी गैर-व्यवहार्यता के कारण नहीं अपनाया।
  • आवधिक परिवर्तन
    • वर्ष 2014 से 2017 तक, IARI करनाल में एक शोध टीम ने गर्म और शुष्क जलवायु में 15 मई से 10 जून तक की बुवाई की तारीखों और लागत प्रभावी शाकनाशियों (उदाहरण के लिए पेंडिमेथालिन) जैसे जलवायु कारकों का उपयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए TAR-VATTAR DSR तकनीक में सुधार किया।
      • DSR तकनीक में सुधार किसानों के बीच लोकप्रिय हो गया क्योंकि इसने भूजल सिंचाई और खेती की लागत में लगभग 40 प्रतिशत की बचत की, साथ ही जल की अधिक खपत वाले चावल की तुलना में बीज की उपज में किसी भी तरह की हानि के बिना ऊर्जा खपत (बिजली, डीजल, जनशक्ति, आदि) में बचत की।
    • जल की बचत: हरियाणा सरकार के 1 अप्रैल, 2023 के प्रेस नोट में भी स्वीकार किया गया कि 72,000 एकड़ में DSR को अपनाने से किसानों ने वर्ष 2022 के खरीफ फसल सीजन के दौरान 31,500 करोड़ लीटर पानी की बचत की।
    • किसानों ने पहले ही बड़े क्षेत्रों में उन्नत TAR-VATTAR DSR तकनीक को अपना लिया है, क्योंकि यह पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी तरीके से खरपतवारों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करती है।
  • ICAR की खरपतवारनाशक-सहिष्णु (Ht) चावल की प्रतिकूलता के पीछे तर्क
    • बाजार एकाधिकार: हाल ही में शुरू की गई शाकनाशी-सहिष्णु चावल (Ht-चावल) तकनीक, बीज-कृषि रसायन बाजार पर एकाधिकार करके खेती की लागत बढ़ाएगी और भविष्य में उत्परिवर्तन के माध्यम से अधिक मजबूत और शक्तिशाली खरपतवारों के विकास के साथ चावल के उत्पादन को भी खतरे में डाल सकती है।
    • शाकनाशी-सहिष्णु चावल तकनीक किसान- या पर्यावरण के अनुकूल कृषि तकनीक नहीं है और यह भारत की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।
  • चावल की प्रमुख स्थानीय किस्में: बाओ धान-असम, जीरकासला-केरल, नवारा-केरल, गोबिंदोभोग-पश्चिम बंगाल, पटना चावल-बिहार, कुल्लकर-तमिलनाडु, चकहाओ-मणिपुर, अंबेमोहर-महाराष्ट्र, कालानमक-उत्तर प्रदेश।

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