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अवैध रेत खनन (Illegal sand mining)

Samsul Ansari December 29, 2023 06:26 287 0

संदर्भ 

हाल ही में, बिहार पुलिस ने राज्य में सोन नदी में अवैध रेत खनन को लेकर एक कार्रवाई के दौरान रेत से भरी 40 नावें जब्त कीं।

संबंधित तथ्य  

  • बिहार सरकार द्वारा अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने हेतु हालिया प्रयास: पिछले महीने, बिहार सरकार ने अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने के लिए खनन विभाग द्वारा चिह्नित कुछ संवेदनशील स्थानों पर स्थायी चेक पोस्ट स्थापित करने का निर्णय लिया था।
    • बिहार सरकार ने चेक पॉइंट के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किया है। इन्हें पटना, भोजपुर, औरंगाबाद, नवादा, कैमूर और जमुई जिलों में स्थापित किया जाना है।
  • बालू माफिया: मानसून के दौरान बिहार के पटना, भोजपुर, रोहतास, औरंगाबाद, सारण और वैशाली सहित कई जिलों में शक्तिशाली माफियाओं द्वारा अवैध रेत खनन किया जाता है।
    • ये माफिया बिहार के आधा दर्जन जिलों में केंद्रित हैं, ये जिले रेत की अत्यधिक माँग वाले पीला सोना अर्थात चमकदार पीली रेत के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • पुलिस कार्रवाई: पुलिस की यह कार्रवाई पड़ोसी भोजपुर जिले के कोइलवर की सीमा से सटे पटना जिले में सोन नदी के किनारे बिहटा के पास हुई।
  • आपराधिक सिंडिकेट्स: हाल के महीनों में आपराधिक सिंडिकेट्स ने उन पर कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों पर हमला करके और उनकी हत्या करके आतंक फैलाया है।

रेत और रेत खनन के बारे में

  • रेत: इसे एक आवश्यक सामग्री माना जाता है क्योंकि इसका उपयोग कंक्रीट बनाने, निर्माण स्थलों, सड़कों को भरने, ईंटें बनाने, काँच, सैंडपेपर आदि बनाने के लिए किया जाता है।
  • महत्त्व: रेत पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करने, जैव विविधता बनाए रखने, आर्थिक विकास का समर्थन करने और समुदायों के भीतर आजीविका प्रदान करने में एक रणनीतिक भूमिका निभाती है।
  • रेत खनन: UNEP के अनुसार, रेत खनन (निष्कर्षण) अनुवर्ती प्रसंस्करण के लिए मूल्यवान खनिजों को निकालने के लिए प्राकृतिक पर्यावरण से प्राथमिक प्राकृतिक रेत एवं रेत संसाधनों को हटाना है।
  • अवैध खनन: कॉमन कॉज बनाम भारत संघ मामले में दिए गए निर्णय में उच्चतम न्यायालय के अनुसार, अवैध खनन किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति द्वारा खनन पट्टे के बिना और खनन योजना की शर्तों के साथ-साथ पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का उल्लंघन करके किया गया कोई अन्य खनन कार्य है।
  • खनन का विनियमन: खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) संघ सरकार के नियंत्रण के तहत खानों और खनिजों के विकास और विनियमन का प्रावधान करता है।
    • रेत: यह MMDR अधिनियम की धारा 3(e) के तहत एक लघु खनिज है और अवैध खनन पर नियंत्रण राज्य सरकारों के विधायी एवं प्रशासनिक दायरे में आता है।
    • MMDR अधिनियम की धारा 15: यह राज्य सरकारों को लघु खनिजों के संबंध में खदान पट्टों, खनन पट्टों या अन्य खनिज रियायतों के अनुदान एवं उससे जुड़े उद्देश्यों के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है।
    • MMDR अधिनियम की धारा 23C: यह राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने तथा उससे जुड़े उद्देश्यों के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है।

रेत के अवैध खनन के कारण

  • उच्च माँग और सीमित आपूर्ति: तेजी से बढ़ते शहरीकरण के मद्देनजर रेत की माँग के कारण रेत खनन का प्रसार हुआ है। कानूनी तरीके से रेत की आपूर्ति अक्सर इस माँग को पूरा करने में असमर्थ है, जिससे अवैध खनन गतिविधियाँ बढ़ती हैं।
  • संगठित खतरनाक गठजोड़: नियामक निकायों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के भीतर भ्रष्टाचार अवैध रेत खनन को बढ़ावा दे सकता है। अवैध खननकर्ताओं और अधिकारियों के बीच साँठगाँठ से अवैध गतिविधियों की अनदेखी या उपेक्षा हो सकती है।
    • बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने कहा कि न तो पुलिस महानिदेशक (DGP) और न ही मुख्य सचिव राज्य में अवैध रेत खनन को रोकने में ‘गंभीर रुचि’ रखते हैं।
  • गरीबी और बेरोजगारी: कुछ क्षेत्रों में, गरीबी और वैकल्पिक आजीविका के अवसरों की कमी लोगों को आय के साधन के रूप में अवैध रेत खनन में संलग्न होने के लिए प्रेरित करती है।
    • उदाहरण के लिए, बिहार में श्रमिक अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए प्रतिदिन लगभग 400 रुपये में ‘पीला सोना’ प्राप्त करने के लिए सोन नदी के तटों पर खनन करते हैं।

अवैध रेत खनन से जुड़ी चुनौतियाँ

  • रेत माफियाओं से जुड़ी हिंसा: भारत में संगठित रेत माफिया हैं, जो नदियों और उनके तटों से बहुमूल्य संसाधनों का खनन करते हैं। खनन माफिया अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले लोक सेवकों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के साथ हिंसा करते हैं।
    • साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के अनुसार, अप्रैल 2022 और फरवरी 2023 के बीच भारत में नदी खनन से संबंधित हिंसा और दुर्घटनाओं के कारण कम-से-कम 261 लोगों की जान चली गई है और लगभग 351 लोगों को चोटों का सामना करना पड़ा है।
  • बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव: अत्यधिक रेत खनन पुलों एवं तटबंधों जैसे बुनियादी ढाँचे को कमजोर कर सकता है, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
    • उदाहरण के लिए, भारतीय खान ब्यूरो के अनुसार, रेत की अत्यधिक निकासी के कारण कर्नाटक में फाल्गुनी नदी पर बना मुल्लारापटना पुल (Mullarapatna Bridge) निर्माण के 30 साल बाद ही ढह गया।

  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ: अवैध रेत खनन से अक्सर गंभीर पर्यावरणीय क्षति होती है जिसके परिणामस्वरूप नदी तटों का क्षरण, पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान और जैव विविधता का नुकसान हो सकता है।
    • धीमी पुनःपूर्ति (Slow Replenishment): प्रत्येक वर्ष झीलों, नदी तलों, समुद्र तटों और डेल्टाओं से अरबों टन रेत निकाली जाती है। हालाँकि, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा रेत को प्राकृतिक रूप से पुनः प्राप्त किया जा सकता है, उसकी अवधि बढ़ती जा रही है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हो रहा है और जैव विविधता का नुकसान हो रहा है।
    • जल गुणवत्ता के मुद्दे: अत्यधिक खनन के कारण होने वाले अवसादन से जल में गंदगी बढ़ सकती है, जिससे जलीय जीवन प्रभावित हो सकता है और जल स्रोत उपभोग के लिए अनुपयुक्त हो सकते हैं।
  • जलीय जीवन पर खतरा: अवैध रेत खनन के कारण मध्य प्रदेश में नर्मदा, चंबल और बेतवा, केरल में भरतप्पुझा नदी में जलीय जीवन के समक्ष खतरा उत्पन्न हो गया है।
    • राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विस्तृत राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary) को अवैध रेत खनन की एक विस्तृत शृंखला का सामना करना पड़ा है। इस अभयारण्य को ‘महत्त्वपूर्ण पक्षी एवं जैव विविधता क्षेत्र‘ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियालों की आबादी के लिए जाना जाता है।
  • सरकार को राजस्व की हानि: जब अवैध रूप से रेत निकाली जाती है तो सरकारों को संभावित राजस्व की हानि होती है, क्योंकि ये गतिविधियाँ अक्सर अनियमित एवं टैक्स मुक्त होती हैं।
    • उदाहरण के लिए, बिहार में अवैध रेत खनन से सरकारी खजाने को सालाना 7,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।

रेत खनन से संबद्ध अंतरराष्ट्रीय विधिक ढाँचा

  • जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD): इस कन्वेंशन का अनुच्छेद-7, सदस्य राष्ट्रों को पर्यावरण पर रेत खनन एवं अन्य गतिविधियों के प्रभाव की पहचान करने, निगरानी करने और आकलन करने के लिए बाध्य करता है।
  • समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention on the Law of the Sea- UNCLOS): इस कन्वेंशन के अनुच्छेद-208 और अनुच्छेद-214 राष्ट्रों को ऐसे कानून एवं नियम बनाने तथा लागू करने को संदर्भित करते हैं, जो रेत खनन जैसी गतिविधियों के कारण समुद्री पर्यावरण में प्रदूषण को रोकने, कम करने और नियंत्रित करने में मदद करते हैं।

अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार की पहल

  • सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश (Sustainable Sand Mining Management Guidelines- SSMG), 2016: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ये दिशा-निर्देश जारी किए हैं जो रेत खनन के विनियमन से संबंधित मुद्दों को संबोधित करते हैं।
    • ये दिशा-निर्देश रेत खनन स्रोतों की पहचान, नदी तल सामग्री (रेत, बोल्डर, बजरी, कोबल आदि) की पुनःपूर्ति, जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने और रेत खनन परियोजनाओं के लिए उपयुक्त मानक पर्यावरणीय स्थितियों पर प्रकाश डालते हैं।
  • रेत खनन 2020 के लिए प्रवर्तन और निगरानी दिशा-निर्देश: यह दस्तावेज मौजूदा SSMMG 2016 का पूरक है, जिसे निम्नलिखित उद्देश्य से पेश किया गया है।
    • खनिज संसाधन की पहचान और मात्रा निर्धारण एवं उनका इष्टतम उपयोग।
    • देश में रेत और बजरी खनन की पहचान से लेकर उपभोक्ताओं एवं आम जनता द्वारा इसके अंतिम उपयोग तक को विनियमित करना।
    • प्रत्येक चरण आदि पर रेत खनन की निगरानी के लिए IT-सक्षम सेवाओं एवं नवीनतम प्रौद्योगिकियों का उपयोग।
  • पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment- EIA) अधिसूचना 2006: यह छोटे पैमाने की रेत खदानों के लिए अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव मंजूरी निर्धारित करती है।
  • रेत खनन ढाँचा: भारत सरकार के खान मंत्रालय ने रेत खनन में स्थिरता, उपलब्धता, सामर्थ्य और पारदर्शिता के उद्देश्यों के साथ राज्यों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करते हुए यह ढाँचा तैयार किया है।

आगे की राह

  • रेत के विकल्पों का उपयोग करना: UNEP के अनुसार, निकाली गई रेत की मात्रा को कम करने के महत्त्वपूर्ण तरीकों में निर्माण में अनावश्यक प्राकृतिक रेत की खपत से बचना और विकल्पों का उपयोग करना शामिल है।
    • निर्माण सामग्री में वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों के रूप में निर्मित रेत, कृत्रिम रेत, फ्लाई ऐश आदि को बढ़ावा देने से रेत की माँग में काफी कमी आ सकती है।
    • उदाहरण के लिए, सिंगापुर में, कंक्रीट के उत्पादन में रेत के स्थान पर ताँबे के स्लैग का उपयोग किया गया है।
    • चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कुछ देशों ने विकल्प के रूप में ‘भुरभुरी चट्टान’ (Crushed Rock) का उत्पादन शुरू कर दिया है।
  • विनियमों को सुदृढ़ बनाना: वर्तमान में कई राज्यों में मौजूद कानूनी व्यवस्था रेत को एक गौण खनिज के रूप में नियंत्रित करती है। रेत खनन कई राज्यों में नदी तलों एवं नदियों पर किया जाता है इसलिए रेत खनन को केवल राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिए।
    • रेत को प्रमुख खनिजों की श्रेणी में लाया जाना चाहिए और केंद्र को रेत खनन से संबंधित सभी कार्यों को विनियमित करना चाहिए। केंद्र को ऐसे दिशा-निर्देश बनाने चाहिए, जो सभी राज्यों में रेत खनन पर समान रूप से लागू हों।

  • डिजिटल प्रौद्योगिकी लागू करना: वास्तविक समय में खनन गतिविधियों की कड़ी निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी, ड्रोन, GPS ट्रैकिंग, बार कोडिंग, रिमोट सेंसिंग आदि जैसी उन्नत तकनीकों को लागू किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, इस्पात और खान विभाग के अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से खनन गतिविधियों को विनियमित करने में सक्षम बनाने के लिए ओडिशा सरकार द्वारा एक एकीकृत खान और खनिज प्रबंधन प्रणाली पोर्टल विकसित किया गया था।
  • कठोर प्रवर्तन: मौजूदा खनन नियमों को और अधिक कठोर एवं प्रभावी बनाने के लिए उनका प्रवर्तन सुनिश्चित करना। निवारक उपाय के रूप में अवैध रेत खनन गतिविधियों के लिए दंड संबंधी प्रावधानों को कठिन करना।
    • उदाहरण के लिए, बिहार सरकार ने अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने के लिए खनन विभाग द्वारा चिह्नित कुछ संवेदनशील और असुरक्षित स्थानों पर स्थायी चेक पोस्ट स्थापित करने का निर्णय लिया।
  • बुनियादी मानक स्थापित करना: वैज्ञानिकों ने रेत के अवैध खनन को नियंत्रित करने के लिए पहले कदम के रूप में खनन उद्योग की निगरानी एवं मानकीकरण के लिए एक वैश्विक कार्यक्रम का आह्वान किया है।
    • उद्योग को मानकीकृत करने का मतलब यह भी होगा कि खनिकों को काम करने के लिए अपराधी नहीं बनना पड़ेगा।

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