विश्व इस वर्ष इमैनुएल कांट (1724-1804) की 300वीं जयंती मना रहा है।
इमैनुएल कांट(Immanuel Kant)
जन्म: उनका जन्म 22 अप्रैल, 1724 को पूर्वी प्रशिया के शहर कोनिग्सबर्ग या वर्तमान कालिनिनग्राद (रूस) में बाल्टिक सागर के दक्षिण-पूर्वी तट के पास हुआ था।
वह पश्चिमी आधुनिक दर्शन के प्रमुख प्रणेताओं में से एक थे, जिन्होंने 19वीं और 20वीं सदी के अधिकांश दर्शन के लिए कुछ शर्तें तय कीं और प्रारंभिक आधुनिक बुद्धिवाद (Modern Rationalism) और अनुभववाद (Empiricism) जैसे सिद्धांतों की व्याख्या की।
कार्यक्षेत्र: उन्होंने तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), ज्ञानमीमांसा (Epistemology), नीतिशास्त्र (Ethics), राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy), सौंदर्यशास्त्र (Aesthetics) आदि के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी।
उल्लेखनीय कार्य
तीन आलोचनाएँ: द क्रिटिक ऑफ प्योर रीजन (1781, 1787), द क्रिटिक ऑफ प्रैक्टिकल रीजन (1788), और द क्रिटिक ऑफ द पॉवर ऑफ जजमेंट (1790) कांट के ‘महत्त्वपूर्ण दर्शन’ यानी मानव स्वायत्तता के मूल विचार को प्रस्तुत करती है।
नैतिकता पर कांट का कार्य: इसे उनकी पुस्तक, द फाउंडेशन ऑफ द मेटाफिजिक्स ऑफ मोरल्स (1785) में ‘नैतिकता के सर्वोच्च सिद्धांत की खोज और स्थापना’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
कांट के प्रमुख विचार
‘वर्ल्ड सिटीजन’ का विचार: कांट ने वैश्विक नागरिकता के विचार का समर्थन किया, जिसके तहत यात्रा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, खुला एवं स्वतंत्र व्यापार, अप्रतिबंधित आव्रजन और शरण का अधिकार होना चाहिए है तथा उन्होंने साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और दासता के विचार को खारिज कर दिया।
वह राजनीतिक दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करने वाले तर्क, तर्कसंगतता और नैतिकता में विश्वास करते थे।
शाश्वत शांति का विचार (Idea of perpetual peace): कांट स्पष्ट रूप से कहते हैं कि शाश्वत शांति तभी संभव है, जब सरकारों के पास एक विशिष्ट राजनीतिक संगठन हो और मानव समाज की सबसे बुरी बुराई युद्ध में शामिल होने की प्रवृत्ति को समाप्त करने और शाश्वत शांति प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र देशों या अंतरराष्ट्रीय सरकारों के एक संघ के गठन की आवश्यकता है।
कांट की धर्मशास्त्रीय/कर्तव्य आधारित नैतिकता: कांट का मानना है कि किसी कार्य का नैतिक मूल्य उसके परिणाम से नहीं, बल्कि उसके उद्देश्य से आँका जा सकता है। वह साध्य से अधिक सही साधन के पक्षधर थे।
किसी कार्य के पीछे के उद्देश्य का नैतिक मूल्य तभी होता है, जब वह तर्क द्वारा खोजे गए सार्वभौमिक सिद्धांतों से उत्पन्न होता है।
आधुनिक विश्व में कांट के विचार की प्रासंगिकता
बहुपक्षवाद में संकट (Crisis in Multilateralism): तर्कसंगतता के बजाय समीचीन तर्क के आधार पर शक्ति और अधिकार के संकीर्ण विचार से प्रेरित प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता बहुपक्षवाद के अंत की ओर ले जा रही है।
उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र चार्टर से अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए एक सामान्य नैतिक आधार प्रदान करने की उम्मीद की गई थी, लेकिन इसके बजाय यह UNSC के स्थायी सदस्यों के स्व-सेवारत तर्क को सही सिद्ध करने के लिए एक निकाय बन गया है।
तर्कसंगतता बनाम विवेकशीलता: तर्कसंगतता को किसी भी घटना के पीछे के कारण और तर्क द्वारा निर्देशित किया जाता है, लेकिन वे इतिहास, सामूहिक सभ्यतागत और सांस्कृतिक अनुभवों, राष्ट्रवाद, धार्मिक विश्वासों, कबीले तथा वर्ग के विश्वास आदि से भी आकार लेते हैं, जो मूल्यों या नैतिकता से रहित तर्क का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
उदाहरण: आतंकवाद और राष्ट्रों द्वारा आक्रामकता (इजरायल-हमास युद्ध) जैसी समसामयिक चुनौतियों को विनाशकारी कार्यों के पीछे तर्कसंगत स्पष्टीकरण द्वारा सत्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।
समसामयिक चुनौतियाँ: आज दुनिया ऐसे विवादों का सामना कर रही है, जो वास्तविकता एवं कल्पना के बीच के अंतर को धुँधला कर देते है, जिससे वास्तविक रूप में अक्सर भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों का निर्माण होता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल क्रांति वस्तुनिष्ठ वास्तविकता को बदल रही है और घातक स्वायत्त हथियार, युद्धक्षेत्रों को पुनः परिभाषित कर रहे हैं। फर्जी खबरों, पहचान के आधार पर नफरत, वैश्विक आतंकवादी संगठन, जलवायु संकट आदि चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
उपनिवेशवाद के अवशेष: कांट ने साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और दासता को खारिज कर दिया, हालाँकि उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को इतिहास में एक बंद अध्याय माना जाता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट अभी भी 17 गैर-स्वशासित क्षेत्रों को उपनिवेशवाद से मुक्ति पर विशेष समिति के अधूरे एजेंडे के रूप में सूचीबद्ध करती है।
ऋण कूटनीति के रूप में आधुनिक आर्थिक उपनिवेशवाद, राष्ट्रों की स्वतंत्रता के लिए एक महत्त्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत कर रहा है।
भारत की भूमिका
भारत को एक बेहतर दुनिया के लिए एक नया नैतिक दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए कांट के पश्चिमी दार्शनिक विचारों को हमारे अपने प्राचीन दर्शन के साथ मिलाना चाहिए।
भारत नैतिकता की दृष्टि से शासन कला, युद्ध एवं कूटनीति के संदर्भ में महान भारतीय महाकाव्यों (रामायण एवं महाभारत) पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करके अपनी स्वदेशी रणनीतिक संस्कृति की प्रासंगिकता को फिर से खोज रहा है।
भारतीय दार्शनिक: कौटिल्य का अर्थशास्त्र और तिरुवल्लुवर का तिरुक्कुरल (Thirukkural) जीवन के हर पहलू में नैतिकता एवं सदाचार पर केंद्रित है।
समकालीन समामेलन: भारत का लक्ष्य मानवता की सेवा के अपने प्राचीन सांस्कृतिक लोकाचार को आधुनिक वास्तविकताओं के साथ मिलाना है।
उदाहरण: अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान, भारत ने वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श से प्रेरित होकर, एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के आदर्श वाक्य के आधार पर आम सहमति बनाई।
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