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पाॅल्ट्री उद्योग में तत्काल सुधार

Lokesh Pal May 01, 2024 06:44 160 0

संदर्भ

H5N1 के वर्तमान प्रकोप से उत्पन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट एवं जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों के मद्देनजर पाॅल्ट्री उद्योग में चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक सुधार की तत्काल आवश्यकता है।

भारत में पाॅल्ट्री उद्योग 

  • पाॅल्ट्री से तात्पर्य मांस एवं अंडों के लिए पक्षी पालन से है।
    • पाॅल्ट्री के कुछ सामान्य प्रकारों में मुर्गियाँ, टर्की, बत्तख, हंस एवं बटेर शामिल हैं। यह सबसे तेजी से बढ़ते कृषि उप-क्षेत्रों में से एक है।
  • भारत वर्तमान में पाॅल्ट्री संबंधी मांस एवं अंडे के संदर्भ में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिसका वार्षिक उत्पादन 4.78 मिलियन टन से अधिक चिकन तथा 129.6 बिलियन अंडे है।
    • वर्ष 2022 में देश में कुल पाॅल्ट्री फीड उत्पादन 27M मीट्रिक टन/वर्ष था।
  • विकास दर: भारत में पाॅल्ट्री माँस क्षेत्र 8% की वार्षिक औसत वृद्धि दर से बढ़ रहा है, वर्ष 2014-15 से वर्ष 2021-22 के बीच अंडे का उत्पादन 7.45% बढ़ गया है।
    • भारत का पाॅल्ट्री बाजार आकार वर्ष 2023 में 2,099.2 बिलियन रुपये तक पहुँच गया, जो वर्ष 2024-2032 के दौरान 8.9% की वृद्धि दर (CAGR) दर्शाता है।
  • शीर्ष 5 अंडा उत्पादक राज्य: आंध्र प्रदेश (20.13%), तमिलनाडु (15.58%), तेलंगाना (12.77%), पश्चिम बंगाल (9.93%) एवं कर्नाटक (6.51%)।

पाॅल्ट्री उद्योग के संबंध में चुनौतियाँ

  • दूषित वातावरण: पिंजरों में सीमित क्षमता से अधिक पाॅल्ट्री पक्षियों को रखना जिससे अस्वच्छ परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप गंध, पार्टिकुलेट मैटर एवं अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण वायु की गुणवत्ता तथा अपशिष्ट की समस्या होती है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 5,000 से अधिक पक्षियों वाली पाॅल्ट्री इकाइयों को प्रदूषणकारी उद्योग के रूप में वर्गीकृत किया है, जिन्हें स्थापित करने एवं संचालित करने के लिए अनुपालन तथा नियामक सहमति की आवश्यकता होती है।
  • क्रूर व्यवहार: इन औद्योगिक सुविधाओं में परिचालन गतिविधियों के मद्देनजर कई प्रकार के दुर्व्यवहारों के कारण पक्षियों को अनावश्यक दर्द तथा पीड़ा होती है।
    • जानवरों के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के तहत जानवरों/पक्षियों को गहन कारावास में रखना एक अपराध है।
  • औद्योगिक बाधाएँ: पाॅल्ट्री उद्योग बड़े ऋणों, अनौपचारिक सुविधाओं, अनुबंध खेती के अधीन है, इसके लिए एक बहुत ही विशिष्ट कौशल की आवश्यकता होती है जिसके परिणामस्वरूप किसानों को भारी नुकसान होता है। 
    • बाजार की अस्थिरता तथा उद्योग के दिग्गजों द्वारा प्रचलित प्रथाओं के कारण किसानों को नुकसान होता है।
    • एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग: उत्पादन एवं लाभ को अधिकतम करने के लिए रोगनिरोधी तथा विकास प्रवर्तक के रूप में इन्हें नियमित रूप से पक्षियों को दिया जाता है।
  • निवारक उपयोग के लिए एंटीबायोटिक्स: WHO द्वारा अत्यंत महत्वपूर्ण के रूप में वर्गीकृत एंटीबायोटिक्स भी किसानों को व्यापक रूप से बेचे जाते हैं एवं बीमारी तथा मृत्यु दर की संभावना को कम करने के लिए एक दिन के चूजों को दिए जाते हैं।
  • अस्वच्छ स्थितियाँ: जिन असुरक्षित एवं अस्वच्छ परिस्थितियों में फार्म संचालित होते हैं उनका जानवरों के स्वास्थ्य तथा उपभोक्ताओं के कल्याण पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
    • इन कार्यों से संबंधित कर्मचारी एवं आसपास रहने वाले लोग भी अनुचित रूप से प्रभावित होते हैं।
  • उत्पन्न अपशिष्ट: पाॅल्ट्री उद्योग वायुमंडल में उत्सर्जन (मीथेन एवं CO2), जल प्रणालियों में अपशिष्ट पदार्थों तथा मृदा में ठोस अपशिष्ट के रूप में अपशिष्ट उत्पन्न करता है।
  • अकुशल अपशिष्ट निपटान तंत्र: ढेर में जमा खाद (उर्वरक के रूप में उपयोग के लिए स्थानीय किसानों द्वारा समय-समय पर एकत्र किया गया अपशिष्ट पदार्थ) की मात्रा भूमि की वहन क्षमता से अधिक हो जाती है एवं प्रदूषक बन जाती है।
  • बीमारियों के लिए प्रजनन स्थल: कचरे के ढेर, मक्खियों एवं मच्छरों जैसे रोग वाहकों के लिए प्रजनन स्थल बन जाते हैं जो आस-पास के क्षेत्रों में फैलकर बीमारियाँ फैलाते हैं। 

सरकारी पहल

  • मेगा फूड पार्क योजना: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा बुनियादी ढाँचे के साथ लगभग 1,200 विकसित भूखंडों (लगभग 1 एकड़ प्रत्येक) के साथ 42 मेगा फूड पार्क (35 अनुमोदित) स्थापित किए जा रहे हैं, जिन्हें उद्यमी खाद्य प्रसंस्करण एवं सहायक इकाइयों की स्थापना के लिए पट्टे पर ले सकते हैं। 
  • बुनियादी ढाँचा विकास: कोल्ड चेन, मूल्य संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए योजना बुनियादी ढाँचा तथा बूचड़खानों की स्थापना/आधुनिकीकरण (सरकारी बूचड़खानों के लिए)।
  • उद्यमिता विकास एवं रोजगार सृजन (EDEG): प्रौद्योगिकी उन्नयन के माध्यम से पाॅल्ट्री के उत्पादन तथा प्रसंस्करण इकाइयों की उत्पादकता में सुधार के लिए राष्ट्रीय पशुधन मिशन के तहत पाॅल्ट्री वेंचर कैपिटल फंड।
  • पशु रोगों के नियंत्रण के लिए राज्यों को सहायता (ASCAD): इसमें पशुधन एवं पाॅल्ट्री की आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण की गतिविधियाँ होंगी, जिन्हें रोग की व्यापकता तथा किसानों को होने वाले नुकसान के अनुसार राज्य/केंद्रशासित प्रदेश द्वारा प्राथमिकता दी जाएगी।
  • राजकोषीय पहल
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से 100% FDI की अनुमति।
    • नई खाद्य प्रसंस्करण, संरक्षण एवं पैकेजिंग इकाइयों को संचालन के पहले 5 वर्षों के लिए 100% तथा उसके बाद 25-30% की दर से आयकर छूट उपलब्ध है।

पाॅल्ट्री क्षेत्र में अवसर

  • प्रौद्योगिकी उन्नयन: स्वच्छ, सुरक्षित एवं स्वच्छ माँस के लिए भारतीय उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकता को देखते हुए फार्म ऑटोमेशन, बूचड़खानों का आधुनिकीकरण, बेहतर लॉजिस्टिक्स चैनल, प्रसंस्करण तथा बिक्री संबंधी कोल्ड स्टोरेज, बुनियादी ढाँचे आगामी अवसर हैं।
  • नए उत्पाद: मूल्य वर्द्धित उत्पाद जैसे जमे हुए/ठंडे उत्पाद, RTC/RTE, भारतीय स्थानीय उत्पाद/स्नैक्स, अंडा पाउडर संयंत्र आदि।
    • नए फीड फॉर्मूलेशन एवं विनिर्माण
    • हैचरी
    • नई पशु चिकित्सा तकनीक/सेवाएँ
    • खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएँ

आवश्यक सुधार 

  • भारत के 269वें विधि आयोग की रिपोर्ट, 2017 दिशा-निर्देशों को पूर्ण करना: इसने मौजूदा कानूनों एवं जानवरों की देखभाल, अपशिष्ट प्रबंधन तथा एंटीबायोटिक उपयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुसार कुछ दिशा-निर्देश निर्धारित किए हैं।
    • इसमें इस बात के सबूत थे कि पाॅल्ट्री को दी जाने वाली गैर-चिकित्सीय एंटीबायोटिक्स, एंटीबायोटिक प्रतिरोध का कारण बनती हैं क्योंकि रहने की स्थिति अस्वास्थ्यकर होती है।
    • इसमें आगे कहा गया है कि अधिक खुले, स्वच्छ एवं हवादार रहने के स्थानों के साथ, जानवरों को लगातार एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता कम होती है, जिससे उनके अंडे तथा माँस उपभोग के लिए सुरक्षित हो जाते हैं।
  • पर्यावरणीय विनियम: CPCB द्वारा पाॅल्ट्री उद्योग को अत्यधिक प्रदूषणकारी ‘ऑरेंज श्रेणी’ उद्योग के रूप में पुनर्वर्गीकरण को देखते हुए पर्यावरणय नियमों के अनुपालन एवं प्रवर्तन के लिए सख्त निगरानी आवश्यक है।
  • एक स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान देना: जिम्मेदारी से प्राप्त, उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन को सुरक्षित करने के लिए पाॅल्ट्री उत्पादों के पोषण संबंधी लाभों एवं इसकी एंटीबायोटिक-मुक्त स्थिति के बारे में उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • जैव सुरक्षा और चारा स्वच्छता पर जोर: जैव सुरक्षा उपाय एवं चारा स्वच्छता बीमारियों को रोकने, इष्टतम विकास सुनिश्चित करने तथा अंततः पाॅल्ट्री उद्योग की स्थिरता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • फीड मिलिंग एवं फीड की गुणवत्ता: पाॅल्ट्री उद्योग फीड की गुणवत्ता में सुधार के लिए पेलेट ड्यूरेबिलिटी, थ्रूपुट को अनुकूलित करने, ऊर्जा की खपत को कम करने, गुड स्टीम क्वालिटी, उचित जल गतिविधि तथा नमी अनुकूलन प्रक्रियाओं की आवश्यकता है।

H5N1 वायरस (बर्ड फ्लू):

  • H5N1 वायरस के बारे में: H5N1 टाइप A के अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लुएंजा वायरस (HPAIV) का एक उप-प्रकार है, यह पक्षियों में गंभीर बीमारी का कारण बनता है जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है।
  • H5N1 वायरस मनुष्यों, जंगली पक्षियों, घरेलू मुर्गीपालन, सूअर, घोड़ों, कुत्तों एवं चमगादड़ों में फैल सकता है और हाल ही में आर्कटिक में ध्रुवीय भालू और अंटार्कटिका में सील एवं सीगल में पाया गया है।
  • पहला मामला: H5N1 संक्रमण पहली बार वर्ष 1997 में हांगकांग से सामने आया था, जहाँ से यह मुर्गियों के माध्यम से मनुष्यों में फैल गया था। भारत में H5N1 का पहला मामला वर्ष 2006 में महाराष्ट्र में सामने आया था।
    • दिसंबर 2020 में विश्वव्यापी प्रकोप की सूचना मिली एवं वर्ष 2021 की शुरुआत में, भारत ने 15 राज्यों में संक्रमण फैलने की सूचना दी।
  • संचरण: यह प्रवासी जंगली पक्षियों के माध्यम से प्रसारित हो सकता है। पक्षियों से मनुष्यों में संचरण का मुख्य जोखिम कारक संक्रमित जानवरों या मल से दूषित वातावरण तथा सतहों के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क है।
  • मृत्यु दर: WHO ने वर्ष 2003 से इस वायरस से पीड़ित 888 लोगों में से दर्ज की गई 463 मौतों के आधार पर, मनुष्यों में H5N1 के लिए मृत्यु दर 52% होने का अनुमान लगाया है।

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