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कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों का फसल उत्पादन पर प्रभाव

Lokesh Pal February 28, 2025 03:29 18 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भारत में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से चावल एवं गेहूँ की उपज पर होने वाले उत्सर्जन के प्रभाव का अध्ययन किया और पाया कि कोयला विद्युत संयंत्रों से होने वाले उत्सर्जन से कुछ राज्यों में फसल की उपज में 10% तक की कमी आती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से प्रमुख उत्सर्जन

  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ), सल्फर ऑक्साइड (SOₓ), पार्टिकुलेट मैटर, कालिख एवं ट्रेस गैसों जैसे प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं।
  • ये प्रदूषक धुंध, अम्लीय वर्षा और वायु गुणवत्ता में कमी लाते हैं, जिससे फसलों और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।

फसलों पर नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) का प्रभाव

  • फाइटोटॉक्सिक गुण: NOₓ पौधों पर दबाव डालता है, सेलुलर कार्यप्रणाली में बाधा डालता है, और महत्त्वपूर्ण एंजाइमेटिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करता है।
  • ओजोन निर्माण: NOₓ ओजोन उत्पादन में योगदान देता है, जो फसल की क्षति को बढ़ाता है।
  • पार्टिकुलेट मैटर का संचयन: सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण दक्षता कम हो जाती है।

NO₂ के संपर्क में आने से फसल की पैदावार में नुकसान

  • चावल की उपज में कमी: NO₂ में प्रत्येक 1 ppb (प्रति बिलियन भाग) की वृद्धि के लिए प्रति हेक्टेयर 0.0006 मीट्रिक टन।
  • गेहूँ की उपज में कमी: सर्दियों में कोहरे और सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता में कमी के कारण चावल की तुलना में अधिक प्रभावित।

कोयला प्रदूषण प्रभाव में क्षेत्रीय अंतर

  • छत्तीसगढ़: कोयला संयंत्रों से NO₂ प्रदूषण का सबसे अधिक हिस्सा (मानसून में 19%, सर्दियों में 12.5%)।
  • उत्तर प्रदेश: कुल मिलाकर NO₂ का स्तर उच्च है, लेकिन इसका केवल एक छोटा हिस्सा कोयला विद्युत संयत्र से आता है।
  • तमिलनाडु: अपेक्षाकृत कम NO₂ प्रदूषण है, लेकिन अधिकांश कोयला संयंत्रों से उत्पन्न होता है।

फसल हानि का आर्थिक प्रभाव

  • कोयला विद्युत उत्सर्जन से चावल और गेहूँ की उपज में होने वाले नुकसान से भारत को वार्षिक रूप से 820 मिलियन डॉलर (₹7,000 करोड़) का नुकसान होता है। 
  • अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले विद्युतघरों को लक्षित करने से नुकसान में उल्लेखनीय कमी आ सकती है और कृषि उत्पादकता में सुधार हो सकता है।

नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) उत्सर्जन के स्रोत

स्रोतों की श्रेणी

विवरण

प्राकृतिक स्रोत
  • बिजली गिरना: वायुमंडल में उच्च तापमान की प्रतिक्रियाएँ NOₓ उत्पन्न करती हैं।
  • मृदा सूक्ष्मजीवी गतिविधि: सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रीकरण और विनाइट्रीकरण से NOₓ निकलता है।
  • ज्वालामुखी विस्फोट: नाइट्रोजन युक्त यौगिकों के दहन से NOₓ निकलता है।
  • वनाग्नि तथा बायोमास जलाना: जंगलों एवं घास के मैदानों को जलाने से NOₓ निकलता है।
जीवाश्म ईंधन दहन
  • विद्युत संयंत्र: कोयला, तेल और गैस से संचालित स्टेशन NOₓ उत्सर्जित करते हैं।
  • औद्योगिक बॉयलर एवं कारखाने: सीमेंट, स्टील और रासायनिक उद्योग महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • वाहन: कार, ट्रक, ट्रेन और हवाई जहाज ईंधन दहन करते हैं, जिससे NOₓ उत्पन्न होता है।
  • आवासीय हीटिंग एवं खाना पकाना: कोयला, लकड़ी और बायोमास स्टोव का उपयोग उत्सर्जन को बढ़ाता है।
कृषि स्रोत
  • सिंथेटिक उर्वरक एवं खाद: उर्वरक के विघटन और सूक्ष्मजीवी गतिविधि से NOₓ उत्सर्जित होता है।
  • फसल अवशेष जलाना (परली जलना): फसल अपशिष्ट को मौसमी रूप से जलाने से NOₓ उत्सर्जित होता है।
  • पशुपालन: पशु अपशिष्ट के अपघटन से NOₓ उत्पन्न होता है।
अपशिष्ट प्रसंस्करण और दहन
  • लैंडफिल और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट: जैविक अपशिष्ट के अपघटन से NOₓ उत्सर्जित होता है।
  • अपशिष्ट एवं बायोमास का भस्मीकरण: नगर निगम और औद्योगिक अपशिष्ट को जलाने से NOₓ उत्सर्जित होता है।
  • पेट्रोलियम रिफाइनिंग और रासायनिक उद्योग: औद्योगिक रिफाइनिंग प्रक्रियाएँ NOₓ उत्सर्जन में योगदान करती हैं।

फसल पैदावार बढ़ाने के सतत् तरीके

कोयला विद्युत संयंत्रों से प्रदूषण कम करना

  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना: कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए सौर, पवन और जल विद्युत का उपयोग बढ़ाना।
  • उन्नत उत्सर्जन नियंत्रण स्थापित करना: NOₓ उत्सर्जन में कटौती करने के लिए कोयला संयंत्रों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (Flue Gas Desulfurization-FGD) और सेलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन (Selective Catalytic Reduction-SCR) तकनीक से युक्त करना
  • अत्यधिक प्रदूषणकारी संयंत्रों को बंद करना: पुराने, अकुशल कोयला आधारित विद्युतघरों को बंद करने को प्राथमिकता देना।
  • औद्योगिक अनुपालन को प्रोत्साहित करना: विद्युत और विनिर्माण क्षेत्रों में NOₓ उत्सर्जन मानकों का सख्त प्रवर्तन।

सतत कृषि पद्धतियाँ

  • पराली जलाने में कमी लाना: फसल अवशेषों के वैकल्पिक उपयोगों को बढ़ावा देना, जैसे– जैव ईंधन, जैविक खाद बनाना।
  • उर्वरक के उपयोग को अनुकूल बनाना: अतिरिक्त नाइट्रोजन के उपयोग को कम करने के लिए सटीक कृषि तकनीक अपनाना। उदाहरण के लिए नैनो यूरिया के उपयोग से उर्वरक के उपयोग की दक्षता में सुधार होता है।
  • मृदा स्वास्थ्य में सुधार: मृदा उर्वरता बनाए रखने और NOₓ उत्सर्जन को कम करने के लिए जैविक उर्वरकों और फसल चक्र का उपयोग करना।
  • सिंचाई विधियों में सुधार: जल दक्षता में सुधार लाने और पादप तनाव को कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन को लागू करना।

जलवायु-स्मार्ट नीतियों को एकीकृत करना

  • वायु गुणवत्ता विनियमन को मजबूत करना: कोयला विद्युत संयंत्र उत्सर्जन पर सख्त सीमाएँ लागू करना।
  • सतत ऊर्जा सब्सिडी को बढ़ावा देना: किसानों और उद्योगों को स्वच्छ विकल्पों पर कार्य करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना: प्रदूषण से संबंधित कृषि नुकसान को कम करने के लिए उपग्रह निगरानी और पूर्वानुमान विश्लेषण का उपयोग करना।

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