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केंद्र राज्य संबंधों पर आपातकालीन प्रावधानों का प्रभाव

Lokesh Pal September 18, 2024 03:17 39 0

संदर्भ 

हाल ही में मणिपुर में पुनः भड़की हिंसा ने एक बार फिर केंद्र-राज्य संबंधों तथा केंद्र द्वारा आपातकालीन प्रावधानों के उपयोग पर चर्चा शुरू कर दी है।

भारत की संघीय व्यवस्था

  • संघीय सरकार: संघीय सरकार प्रणाली वह है जिसमें शक्तियाँ तथा जिम्मेदारियाँ संवैधानिक रूप से केंद्रीय सरकार एवं क्षेत्रीय सरकारों, आमतौर पर राज्यों या प्रांतों के बीच विभाजित होती हैं।
    • भारत की संघीय प्रणाली में, यह विभाजन संविधान में, विशेष रूप से सातवीं अनुसूची में उल्लिखित है, जो शक्तियों को संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों में वर्गीकृत करता है।
  • भारत के संघीय ढाँचे की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
    • शक्तियों का विभाजन
    • दोहरी सरकार संरचना
    • संविधान की सर्वोच्चता
    • स्वतंत्र न्यायपालिका
    • सहकारी संघवाद

आपातकाल के लिए संवैधानिक प्रावधान

संविधान में तीन प्रकार की आपात स्थितियाँ निर्धारित की गई हैं-

  • राष्ट्रीय आपातकाल: राष्ट्रीय आपातकाल युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर घोषित किया जा सकता है।
    • इस प्रकार के आपातकाल को दर्शाने के लिए संविधान में अनुच्छेद 352 के अंतर्गत ‘आपातकाल की घोषणा’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • राज्य आपातकाल: राज्य आपातकाल को राष्ट्रपति शासन या संवैधानिक आपातकाल के रूप में भी जाना जाता है।
    • इसे अनुच्छेद 356 के तहत घोषित किया जाता है, जब राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं संचालित किया जा सकता है।
  • वित्तीय आपातकाल: यह अनुच्छेद 360 के तहत घोषित किया जाता है, जब देश की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं होती है।
    • आज तक देश में वित्तीय आपातकाल घोषित नहीं किया गया है।

राज्य आपातकाल 

  • राज्य में आपातकाल के लिए संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद 355: यह संघ का कर्तव्य होगा कि वह प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण तथा आंतरिक अशांति से बचाए और यह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक राज्य की सरकार इस संविधान के प्रावधानों के अनुसार चल रही है।
    • अनुच्छेद 356: किसी राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर या अन्यथा, यदि राष्ट्रपति संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती है।
      • अनुच्छेद 356 संघ को यह सुनिश्चित करने की शक्ति प्रदान करता है कि अनुच्छेद 355 प्रभावी हो।
    • अनुच्छेद 365: इसमें कहा गया है कि जब भी कोई राज्य केंद्र के किसी निर्देश का पालन करने या उसे प्रभावी करने में विफल रहता है, तो राष्ट्रपति के लिए यह मान लेना विधिसम्मत होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है।

आपातकाल की उद्घोषणा: राष्ट्रपति शासन की उदघोषणा राष्ट्रपति द्वारा की जाती है यदि वह संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें किसी राज्य की सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती है।

राष्ट्रपति शासन की घोषणा पर सुरक्षा उपाय

  • संसदीय अनुमोदन: इसे जारी होने की तिथि से दो महीने के भीतर दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
  • प्रक्रिया: साधारण बहुमत
  • यदि उद्घोषणा ऐसे समय जारी की जाती है जब लोकसभा भंग हो या लोकसभा का विघटन उद्घोषणा को अनुमोदित किए बिना दो माह की अवधि के दौरान हो जाता है।
    • फिर यह उद्घोषणा पुनर्गठन के बाद लोकसभा की पहली बैठक से 30 दिन तक प्रभावी रहती है, बशर्ते कि इस बीच राज्यसभा इसे अनुमोदित कर दे।
  • राष्ट्रपति शासन की अवधि: यदि दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित हो जाए तो राष्ट्रपति शासन छह महीने तक जारी रहता है।
    • इसे प्रत्येक छह माह में संसद की मंजूरी से अधिकतम तीन वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है।
  • 44वाँ संशोधन अधिनियम (1978): एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए राष्ट्रपति शासन को छह महीने के लिए तभी बढ़ाया जा सकता है, जब दो शर्तें पूरी हों:
    • राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा पूरे भारत या उसके किसी भाग में की जाती है;
    • चुनाव आयोग को यह प्रमाणित करना होगा कि कठिनाइयों के कारण संबंधित राज्य की विधानसभा के लिए आम चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं।
  • निरसन: राष्ट्रपति किसी भी समय किसी अन्य घोषणा द्वारा उद्घोषणा को निरस्त कर सकते हैं। ऐसी उद्घोषणा के लिए संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है।

केंद्र राज्य संबंधों पर आपातकालीन प्रावधानों का प्रभाव

  • राष्ट्रपति को असाधारण शक्तियाँ प्राप्त हो गई
    • केंद्र सरकार द्वारा राज्य की शक्तियों का ग्रहण: राष्ट्रपति राज्य सरकार के कार्यों तथा राज्यपाल या राज्य के किसी अन्य कार्यकारी प्राधिकारी में निहित शक्तियों को अपने नियंत्रण में ले सकता है।
    • राज्य विधानमंडल पर संसद का अधिकार: राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकते हैं कि राज्य विधानमंडल की शक्तियों का प्रयोग संसद द्वारा किया जाएगा।
    • संवैधानिक प्रावधानों का निलंबन: राष्ट्रपति राज्य के शासन से संबंधित कुछ संवैधानिक प्रावधानों को निलंबित कर सकते हैं, जिसमें किसी भी प्राधिकरण या निकाय से संबंधित प्रावधान शामिल हैं, जब उन्हें व्यवस्था बहाल करने या आपात स्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक समझा जाता है।
  • अन्य प्रभाव
    • राज्य मंत्रिपरिषद की बर्खास्तगी: राष्ट्रपति राज्य मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर सकता है, लेकिन इस कार्रवाई से उच्च न्यायालय की शक्तियों पर कोई असर नहीं पड़ता है, जिससे न्यायिक स्वतंत्रता बरकरार रहती है।
    • राज्यपाल द्वारा प्रशासन: कार्यात्मक राज्य सरकार की अनुपस्थिति में, राज्यपाल, राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व करते हुए, मुख्य सचिव या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त सलाहकारों की सहायता से राज्य का प्रशासन करता है।
    • राज्य विधानसभा का विघटन या निलंबन: स्थिति के आधार पर, राज्य विधानसभा को या तो भंग किया जा सकता है या निलंबित किया जा सकता है। ऐसे मामलों में, राज्य विधानमंडल की शक्तियाँ संसद या संसद द्वारा नामित किसी प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दी जाती हैं।
    • विधायी शक्तियों का प्रत्यायोजन: अनुच्छेद 357 के तहत, संसद विधायी शक्तियों को राष्ट्रपति को हस्तांतरित कर सकती है, जो आवश्यकतानुसार इन शक्तियों को किसी अन्य प्राधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकते हैं।
    • राज्य व्यय का प्राधिकरण: संसद राष्ट्रपति को राज्य आपातकाल या राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की समेकित निधि से व्यय को अधिकृत करने का अधिकार दे सकती है।

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