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नई आपराधिक संहिताओं का कार्यान्वयन

Lokesh Pal July 01, 2024 05:08 77 0

संदर्भ

1 जुलाई, 2024 से आपराधिक न्याय प्रणाली के तीन कानून, भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम, प्रतिस्थापित हो गए हैं और उनके स्थान पर नए अधिनियम लागू हो गए हैं। जो निम्नलिखित हैं:- 

  • नए अधिनियमों को क्रमशः भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyay Sanhita- BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagrik Suraksha Sanhita- BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam- BSA) कहा जाएगा।

IPC की जगह भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita- BNS) 

  • महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों को अधिक प्रासंगिकता दी गई है।
    • धारा 69 के तहत नए प्रावधान: धोखे से या शादी का झूठा वादा करके यौन संबंध बनाने के खिलाफ अपराध के लिए धारा 69 के तहत नए प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

  • आतंकवाद और आतंकवादी अधिनियम (Terrorism and Terrorist Acts): पहली बार नए अधिनियम के तहत आतंकवाद और आतंकवादी कृत्यों पर भी विचार किया गया है। इन्हें एक विशिष्ट अपराध माना जाता है।
  • राजद्रोह कानून: सबसे महत्त्वपूर्ण अतिरिक्त धारा 150 के तहत नए अधिनियम में राजद्रोह कानून को मौजूदा स्वरूप में फिर से शामिल करना भी है।
    • यह धारा वास्तव में राष्ट्र की संप्रभुता और एकता एवं अखंडता के विरुद्ध गतिविधियों के रूप में मानी जाने वाली गतिविधियों का बहुत व्यापक एवं खुला विवरण प्रदान करती है।
  • लापरवाही से मौत: संभवतः दुर्घटनाओं और हिट एंड रन मामलों की बढ़ती घटनाओं के कारण नए कानून के तहत इसे अधिक महत्त्व दिया गया है।
    • नए अधिनियम (धारा 106) के तहत सजा दो वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष कर दी गई है।
  • सामुदायिक सेवा के माध्यम से दंड की शुरुआत करके निवारण और सुधार के रूप में दंड का नया संतुलन स्थापित किया गया है।
  • ‘मॉब लिंचिंग’ (Mob Lynching): नए अधिनियम में ‘मॉब लिंचिंग’ के अधिनियम को भी अपराध के रूप में शामिल किया गया है और अब इसे हत्या के अपराध के बराबर माना गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagrik Suraksha Sanhita- BNSS) 

  • इससे पुलिस व्यवस्था को अधिक शक्ति मिल गई है।
  • FIR दर्ज करना: पुराने कानून के तहत संज्ञेय अपराधों में FIR का पंजीकरण पहला कदम था तथा FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जाँच के लिए केवल कुछ अपवाद थे, जैसे- वाणिज्यिक विवाद, वैवाहिक विवाद आदि। 
    • हालाँकि, नया कानून पुलिस के लिए वैधानिक आवश्यकता निर्धारित करता है कि वह FIR दर्ज करने से पहले यह निर्धारित करने के लिए प्रारंभिक जाँच करे कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।
      • इसलिए आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, जाली दस्तावेज जैसे अपराध भी इस श्रेणी में आ सकते हैं और अब ये स्वतः ही FIR में दर्ज होने के योग्य नहीं होंगे।
  • अतिरिक्त शक्ति 
    • जाँच एजेंसी को प्रवर्तन निदेशालय के पास मौजूद शक्तियों के अनुरूप संपत्तियाँ कुर्क करने का अधिकार दिया गया है।
  • इलेक्ट्रॉनिक मोड और इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से सुनवाई पर अधिक जोर: इसमें गवाहों एवं पीड़ितों के बयानों को भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दर्ज करने का प्रावधान है।
  • भगोड़े के खिलाफ मुकदमा (Trial against Absconder): इसमें एक बदलाव यह भी है कि यह किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देता है, जिसे उसकी अनुपस्थिति में भी भगोड़ा घोषित किया गया हो।

‘इंडियन एवीडेंस एक्ट’ से भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam- BSA)

  • उद्देश्य: न्यायालय की प्रक्रिया को आधुनिक बनाना और उसे सरल बनाना, साक्ष्य प्रस्तुत करने का तरीका, साक्ष्य के अधिक डिजिटल और मौखिक रूपों को लाना, जिन्हें न्यायालय की कार्यवाही के दौरान स्वीकार्य साक्ष्य के रूप में शामिल किया जा सके।
  • कुछ परिभाषाओं में परिवर्तन
    • नए अधिनियम में पुराने अधिनियम को भारत के संपूर्ण क्षेत्र पर लागू करने को संशोधित किया गया है तथा ‘इंडिया’ शब्द को हटा दिया गया है।
      • इसका प्रभाव यह हुआ है कि देश के बाहर से प्राप्त डिजिटल तथा अन्य प्रकार के साक्ष्यों को प्रमुखता दी गई है।
    • ‘डॉक्यूमेंट’ शब्द की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें कंप्यूटर प्रणाली, स्मार्टफोन और अन्य डिजिटल उपकरणों के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड किए गए साक्ष्य को भी शामिल किया गया है।
      • साक्ष्य की रिकॉर्डिंग में अब ऑडियो रिकॉर्डिंग, वीडियो रिकॉर्डिंग और अन्य प्रकार की रिकॉर्डिंग शामिल होंगी।
  • एक से अधिक व्यक्तियों का मुकदमा: यदि अभियुक्तों में से कोई एक फरार हो जाता है या धारा 82 के तहत जारी उद्घोषणा का अनुपालन करने में विफल रहता है, तो मुकदमा उसकी अनुपस्थिति में भी चल सकता है।
    • नए अधिनियम के प्रयोजनार्थ इसे संयुक्त परीक्षण माना जाएगा।
  • वित्तीय दस्तावेजों आदि जैसे ‘विशेषज्ञ कुशल विशेषज्ञों’ (Experts Skilled Experts) से मौखिक स्वीकारोक्ति एवं साक्ष्य को मान्यता देता है।
  • अधिनियम से ‘पागल (lunatic)’ शब्द को भी हटा दिया है और इसमें एक अधिक व्यापक शब्द ‘विक्षिप्त मन का व्यक्ति’ (Person of Unsound Mind) का अंगीकार किया गया है।

चुनौतियाँ: चिंताजनक परिवर्तन 

पुलिस की शक्तियाँ (Police Powers)

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 187 पुलिस हिरासत की अधिकतम सीमा को 15 दिनों से बढ़ाकर 60 दिन या 90 दिन करके पुलिस की शक्तियों में काफी वृद्धि करती है। 
  • CrPC की धारा 167(2)(a) मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार व्यक्ति की हिरासत को 15 दिनों से अधिक बढ़ाने की अनुमति देती है, जब तक कि वह पुलिस हिरासत में न हो।
    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 187(3) ने CrPC में मौजूद ‘पुलिस हिरासत के अलावा अन्यत्र’ शब्दों को हटा दिया है।
  • संज्ञेय अपराधों में FIR दर्ज करने की अनिवार्यता को हटाना भी एक प्रतिगामी कदम के रूप में देखा जा रहा है।
    • जाँच एजेंसी को अधिक शक्ति और विवेक देने का दुरुपयोग किया जा सकता है।
    • हालाँकि, नए कानूनों के कुछ लाभ भी हैं क्योंकि वे डिजिटलीकरण पर अधिक जोर देते हैं।

नागरिक स्वतंत्रता के विरुद्ध अस्पष्ट अपराधों को जोड़ना (Addition of Vague Offences Against Civil Liberties)

  • ‘झूठी और भ्रामक सूचना’ (धारा 197) तथा ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य’ (राजद्रोह के स्थान पर धारा 152) के प्रावधान अत्यंत अस्पष्ट हैं और इस बात का कोई वास्तविक संकेत नहीं है कि पुलिस इन प्रावधानों के तहत कब कार्रवाई शुरू कर सकती है।

अनुपस्थिति में सुनवाई की अनुमति (Permits Trials in-Absentia)

  • फरार घोषित अपराधियों के विरुद्ध उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाना और संपूर्ण सुनवाई का निर्णय लेना।
  • हालाँकि CrPC केवल अभियुक्त की अनुपस्थिति में साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति देता है, BNSS अभियुक्त के खुद का बचाव करने के अधिकार को पूरी तरह से समाप्त कर देता है।

संपूर्ण व्यवस्था पुराने कानूनों और नए कानूनों के बीच दोलन करती रहेगी (Entire System will keep Oscillating between the old laws and the new laws)

  • हालाँकि BNSS की धारा 358 में कहा गया है कि IPC के तहत अपराधों के मामले में लागू होती रहेगी, यह स्पष्ट नहीं है कि IPC केवल उन मामलों पर लागू होगी, जिनमें अपराध की तारीख 1 जुलाई से पहले है या उन मामलों में भी जहाँ IPC के तहत किसी अपराध से संबंधित कुछ कार्यवाही, जाँच या उपाय लंबित हैं। 
  •  BNSS की धारा 531 तथा  BSA की धारा 170 में कहा गया है कि यदि नए कानून के लागू होने से पहले कोई अपील, आवेदन, मुकदमा, पूछताछ या जाँच लंबित है तो ऐसी कार्यवाही CrPC  या IEA के प्रावधानों द्वारा शासित होगी।

डिजिटल कानूनी अवसंरचना (Digital Legal Infrastructure)

  • देश में संपूर्ण न्यायालय प्रणाली के 80% से अधिक डिजिटल कानूनी ढाँचे में बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। 
  • इसलिए, नए कानूनों को लागू करने और अनुपस्थिति में सुनवाई जैसे प्रक्रियात्मक परीक्षणों के लिए यह एक बड़ी चुनौती होने जा रही है।

आगे की राह

  • प्रशिक्षण: 1 जुलाई से FIR दर्ज करने के पहले चरण के लिए भी हर एक पुलिस स्टेशन में पुलिस कर्मियों को इन कानूनों की जानकारी के साथ तैयार रहना होगा।
  • तैयारी: न्यायिक अधिकारियों, अदालत के कर्मचारियों और जेल अधिकारियों के कई स्तरों को तैयार करने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न न्यायालयों के न्यायाधीशों और पुलिस बलों को अनिवार्य और संगठित प्रशिक्षण सत्र प्रदान किए गए हैं। 
      • हालाँकि, वकीलों के लिए ऐसा कोई अनिवार्य सत्र नहीं किया गया है।
  • नए कानून मनमाने ढंग से और जल्दबाजी में पारित किए गए: इन कानूनों का क्रियान्वयन तब तक स्थगित किया जाना चाहिए, जब तक कि राज्यों में हमारी आपराधिक न्याय संस्थाओं की तैयारियों का गहन और स्वतंत्र ऑडिट न हो जाए।

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