भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 में नौकरियों में संलग्न लोगों की संख्या 5% बढ़कर लगभग 580 मिलियन हो गई।
संबंधित तथ्य
नौकरियों में हई यह वृद्धि उसी अवधि के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) डेटा विश्लेषण के आधार पर RBI के KLEMS डेटाबेस में शामिल की जाएगी।
KLEMS डेटाबेस के अनुसार, (पूर्व वर्ष जारी), प्रारंभिक निष्कर्षों में, वर्ष 2021-22 में नियोजित लोगों की संख्या 553 मिलियन से लगभग 30 मिलियन बढ़ गई।
इस वर्ष का KLEMS डेटाबेस RBI द्वारा कुछ माह के अंतर्गत जारी किए जाने की उम्मीद है।
KLEMS और PLFS डेटा के बारे में
KLEMS, उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त इनपुट और अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पन्न आउटपुट पर सूक्ष्म/विस्तृत डेटा प्रदान करता है, जबकि PLFS डेटा श्रम बल के आकार एवं संरचना, विभिन्न क्षेत्रों और जनसांख्यिकीय समूहों में रोजगार के रुझान एवं बेरोजगारी दर पर जानकारी प्रदान करता है।
PLFS डेटा में सभी क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिसमें संगठित, असंगठित, स्व-रोजगार और कृषि श्रमिकों जैसे रोजगार की व्यापक श्रेणियाँ शामिल हैं।
KLEMS डेटा उत्पादन में पाँच प्रमुख इनपुट- पूंजी (K), श्रम (L), ऊर्जा (E), सामग्री (M) और सेवाओं (S) में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
KLEMS डेटा, PLFS डेटा के जारी होने के बाद आता है, जो सामान्यत प्रत्येक वर्ष अक्टूबर में प्रकाशित होता है।
महत्त्व: डेटा के दोनों सेट अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को समझने और उचित नीतियाँ बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS)
शुरुआत: वर्ष 2017 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO)।
उद्देश्य: प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
केवल शहरी क्षेत्रों के लिए ‘वर्तमान साप्ताहिक स्थिति’ (Current Weekly Status- CWS) में तीन माह का लघु समय अंतराल। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सालाना ‘सामान्य स्थिति’ (PS+SS) और CWS दोनों।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में प्रमुख रोजगार और बेरोजगारी संकेतकों को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:
श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR): LFPR को जनसंख्या में श्रम बल में व्यक्तियों (अर्थात् काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या कार्य के लिए उपलब्ध) के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
श्रमिक जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio- WPR): WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
बेरोजगारी दर (UR): UR को श्रम बल में बेरोजगार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा निर्मित अनुमानों पर महत्वपूर्ण जानकारी
बेहतर वृद्धि: भारत में पिछले 5 वर्षों में नौकरियों में 110 मिलियन की वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-18 में 470 मिलियन थी।
वृद्धि के क्षेत्र: वर्ष 2021-22 के KLEMS डेटा के अनुसार, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक 237 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न हुईं, इसके बाद निर्माण में 68 मिलियन और व्यापार में 63 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न हुईं।
सबसे कम 324,000 नौकरियाँ परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों के निर्माण में शामिल उद्योगों में रही।
प्लास्टिक उद्योग ने 1.32 मिलियन नौकरियों का सृजन हुआ।
कोविड के बाद पुनः वृद्धि: दो वर्षों के बीच लगभग 27 मिलियन की अनुमानित वृद्धि एक महत्वपूर्ण संख्या है। यह वृद्धि महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड महामारी के दौरान संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्र अत्यधिक प्रभावित हुए थे।
यह वृद्धि इंगित करती है कि कई गतिविधियाँ सामान्य हो गई हैं, विशेषकर संपर्क-गहन क्षेत्रों में, जो वर्ष 2022-23 में पुनः उत्पन्न होने लगी हैं।
ये नौकरी के नए अवसर नहीं हैं, बल्कि महामारी के समय समाप्त हुई नौकरी के अवसरों को पुनः निर्मित करना है। अत: इसे गति नहीं माना जा सकता। इसके बजाय, यह इंगित करता है कि हमारी अर्थव्यवस्था कोविड काल से उबर रही है।
यह ध्यान में रखते हुए कि पिछला वर्ष कोविड वर्ष था, जिसके दौरान रोजगार गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था, जिससे बेरोजगारी दर बढ़कर 9% हो गई, जबकि सामान्य दर 3% थी।
PLFS के अनुसार, महिला श्रमिकों के बीच बेरोजगारी दर वर्ष 2017-18 में 5.6% थी जो वर्ष 2022-23 में घटकर 2.9% हो गई।
हालाँकि, महिलाओं सहित युवाओं में, बेरोजगारी दर वर्ष 2017-18 में 17.8% से घटकर वर्ष 2022-23 में 10% हो गई है।
Latest Comments