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भारत-अफगानिस्तान संबंध

Lokesh Pal October 14, 2025 03:23 19 0

संदर्भ

हाल ही में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी छह दिनों की भारत यात्रा पर हैं। तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद यह उनकी पहली आधिकारिक यात्रा है।

संयुक्त वक्तव्य के मुख्य बिंदु

  • आतंकवाद के विरुद्ध संयुक्त दृष्टिकोण: भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले की अफगानिस्तान द्वारा की गई निंदा की सराहना की और दोनों पक्षों ने आतंकवाद के सभी रूपों की स्पष्ट रूप से निंदा की।
    • अफगानिस्तान ने आश्वासन दिया कि वह अपनी भूमि का प्रयोग भारत के विरुद्ध नहीं होने देगा और क्षेत्रीय शांति, स्थिरता तथा आपसी विश्वास पर बल दिया।
  • मानवीय और आपदा राहत सहयोग: भारत ने नंगरहार और कुनार भूकंपों में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की और राहत सामग्री पहुँचाने वाले पहले देश के रूप में मान्यता प्राप्त की।
    • अफगानिस्तान ने संकट के दौरान भारत के त्वरित मानवीय समर्थन और एकजुटता की सराहना की।
  • स्वास्थ्य सेवा और विकास परियोजनाएँ: भारत स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक अवसंरचना और क्षमता निर्माण परियोजनाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाएगा, जिनमें शामिल हैं:
    • थैलेसीमिया केंद्र, आधुनिक निदान केंद्र की स्थापना और काबुल स्थित इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान (IGICH) में हीटिंग सिस्टम का प्रतिस्थापन।
    • पक्तिका, खोस्त और पक्तिया प्रांतों में 30 बिस्तरों वाले अस्पताल, ऑन्कोलॉजी सेंटर, ट्रॉमा सेंटर और पाँच प्रसूति स्वास्थ्य क्लीनिकों का निर्माण।
    • भारत ने अफगानिस्तान को 20 एंबुलेंस और 75 नागरिकों के लिए कृत्रिम अंग उपहार में दिए।
  • शैक्षिक और क्षमता निर्माण सहयोग: भारत, अफगान छात्रों के लिए e-ICCR छात्रवृत्ति प्रदान करना जारी रखे हुए है और भारतीय विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के अवसरों का विस्तार करने की योजना बना रहा है।
    • इसने भूकंप से क्षतिग्रस्त आवासों के पुनर्निर्माण में सहायता करने की इच्छा भी व्यक्त की।
  • व्यापार, संपर्क और आर्थिक सुधार: दोनों पक्षों ने भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर के शुभारंभ का स्वागत किया, जिसे प्रत्यक्ष व्यापार को बढ़ावा देने और रसद को सुव्यवस्थित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • अफगानिस्तान ने खनन क्षेत्र में भारतीय निवेश को आमंत्रित किया और सलमा (भारत-अफगानिस्तान मैत्री) बाँध के निर्माण और रखरखाव में भारत की भूमिका की सराहना की।
    • उन्होंने ऊर्जा और कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जलविद्युत और जल प्रबंधन परियोजनाओं पर सहयोग करने पर भी सहमति व्यक्त की।
  • सांस्कृतिक और खेल कूटनीति: दोनों पक्ष खेलों, विशेष रूप से क्रिकेट में सहयोग को मजबूत करने और लोगों के बीच संबंधों को गहरा करने के लिए सांस्कृतिक संपर्क बढ़ाने पर सहमत हुए।

संयुक्त वक्तव्य का महत्त्व

  • रणनीतिक पुनः संलग्नता: वर्तमान अफगान सरकार को औपचारिक मान्यता दिए बिना संबंध बनाए रखने में भारत की व्यावहारिक कूटनीति को दर्शाता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता: दक्षिण और मध्य एशिया में एक स्थिरकारी कारक के रूप में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करता है।
  • मानवीय नेतृत्व: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और क्षमता निर्माण पहलों के माध्यम से भारत की सौम्य शक्ति को प्रदर्शित करता है।
  • आर्थिक कूटनीति: व्यापार, निवेश और संपर्क को मजबूत करता है, अफगानिस्तान को क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करता है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों के बारे में

  • ऐतिहासिक संदर्भ
    • प्राचीन एवं मध्यकालीन संबंध: गांधार सभ्यता के माध्यम से साझा बौद्ध विरासत, रेशम मार्ग के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मौर्य एवं कुषाण साम्राज्यों के दौरान राजनीतिक संपर्क।
      • दिल्ली सल्तनत और मुगल काल के दौरान, प्रवास, व्यापार तथा शासन संबंधों के माध्यम से संबंध और प्रगाढ़ हुए।
    • स्वतंत्रता के बाद (1947-1990 के दशक): भारत, अफगानिस्तान गणराज्य (1947) को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
      • राजा जहीर शाह के शासनकाल में, अफगानिस्तान की पाकिस्तान से निकटता के बावजूद भारत ने सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे।
      • सोवियत आक्रमण (1979) के दौरान, भारत ने तटस्थता बनाए रखते हुए अफगान संप्रभुता को बनाए रखा।
    • वर्ष 2001 के बाद का पुनर्निर्माण युग: तालिबान के पतन के बाद, भारत अफगानिस्तान के सबसे बड़े विकास भागीदारों में से एक के रूप में उभरा, जिसने बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया।
      • प्रमुख परियोजनाओं में शामिल हैं:
        • सलमा बाँध (भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध)
        • जरंज-डेलाराम राजमार्ग, जो अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है।
        • लोकतंत्र के प्रतीक के रूप में अफगान संसद भवन
          • ICCR और ITEC कार्यक्रमों के तहत भारत में 65,000 से अधिक अफगान छात्रों को प्रशिक्षित किया गया है।
    • वर्ष 2021 के बाद की गतिविधियाँ: तालिबान के सत्ता में आने (2021) के बाद, भारत ने जन-प्रथम कूटनीति’ के माध्यम से अपनी नीति में बदलाव किया।
      • मानवीय सहायता में 40,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 5,00,000 कोविड-19 वैक्सीन खुराकें और शीतकालीन राहत पैकेज शामिल हैं।
      • भारत ने मानवीय सहायता के समन्वय के लिए काबुल (2022) में अपना तकनीकी मिशन फिर से खोल दिया है।
  • राजनीतिक और कूटनीतिक जुड़ाव
    • सामरिक साझेदारी समझौता (2011): सुरक्षा, व्यापार, विकास और शिक्षा में सहयोग की रूपरेखा।
      • भारतीय मिशन का पुनः उद्घाटन (2022): भारत ने मानवीय कार्यों के समन्वय के लिए काबुल में अपनी उपस्थिति पुनः स्थापित की।
      • वर्ष 2025 उच्च-स्तरीय बैठक: जयशंकर-मुत्ताकी वार्ता में संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति पारस्परिक सम्मान की पुष्टि की गई।
      • अफ़गानिस्तान का आश्वासन: काबुल ने दोहराया कि वह भारत विरोधी गतिविधियों की अनुमति नहीं देगा, जिससे बढ़ते राजनयिक विश्वास को बल मिला।
  • आर्थिक और व्यापार सहयोग
    • द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष 2019- 2020 में 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया; भारत दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • निवेश की संभावनाएँ: अफगानिस्तान ने भारतीय कंपनियों को खनन और जलविद्युत परियोजनाओं में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है, जिसमें सलमा बाँध के रखरखाव और जल प्रबंधन पर सहयोग भी शामिल है।
  • सांस्कृतिक और लोगों से लोगों के बीच संबंध
    • सभ्यतागत विरासत: बौद्ध धर्म से लेकर सूफीवाद तक की साझा परंपराएँ; गांधार कला और बामियान बुद्ध भारत-अफगान सांस्कृतिक सम्मिश्रण को दर्शाते हैं।
    • भारत-अफगानिस्तान फाउंडेशन (India–Afghanistan Foundation- IAF): शिक्षा, कला और विज्ञान के क्षेत्र में आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2007 में स्थापित।
    • खेल कूटनीति: अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम भारत (लखनऊ, देहरादून, नोएडा) में घरेलू मैच खेलती है; भारत अफगान प्रांतों में खेल सुविधाओं के निर्माण में सहायता करता है।
    • शिक्षा और प्रवासी: प्रतिवर्ष 15,000 से अधिक अफगान छात्र भारत में अध्ययन करते हैं; लगभग 1,700 भारतीय पेशेवर अफगानिस्तान के विकास और स्वास्थ्य क्षेत्रों में काम करते हैं।
  • बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग
    • संयुक्त राष्ट्र और शंघाई सहयोग संगठन मंच: भारत, अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UN Assistance Mission in Afghanistan- UNAMA) का समर्थन करता है और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए शंघाई सहयोग संगठन और ‘हार्ट ऑफ एशिया’ संवादों में भाग लेता है।
    • क्षेत्रीय साझेदारी: भारत क्षेत्रीय संपर्क और आतंकवाद-रोधी समन्वय को बढ़ाने के लिए चाबहार बंदरगाह और INSTC के माध्यम से ईरान, रूस और मध्य एशिया के साथ सहयोग करता है।

भारत के लिए अफगानिस्तान का महत्त्व

  • रणनीतिक गहराई
    • मध्य एशिया का प्रवेश द्वार: अफगानिस्तान की अवस्थिति भारत को पाँच मध्य एशियाई गणराज्यों तक पहुँच प्रदान करती है, जो अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) और तापी गैस पाइपलाइन (तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
    • संपर्क उदाहरण: भारत ने जरंज-डेलाराम राजमार्ग (218 किमी.) का निर्माण किया, जो पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है, जिससे अफगानिस्तान को 110,000 टन से अधिक भारतीय गेहूँ और दालों की आपूर्ति सुगम हुई।
    • ऊर्जा प्रासंगिकता: तापी पाइपलाइन का उद्देश्य प्रतिवर्ष 33 BCM (बिलियन क्यूबिक मीटर) गैस का परिवहन करना है, जिससे भारत के ऊर्जा आपूर्ति मार्गों में विविधता आएगी।
  • आतंकवाद निरोध अनिवार्यता
    • सुरक्षा प्रासंगिकता: अफगानिस्तान में अस्थिरता से आतंकवादी नेटवर्क मजबूत हो रहे हैं और भारतीय सुरक्षा के लिए खतरे बन रहे हैं। भारत को काबुल स्थित अपने दूतावास पर हमलों (2008, 2009) का सामना करना पड़ा है और लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और आईएस से लगातार खतरे झेलने पड़े हैं।
    • सहयोगी सुरक्षा: भारत मॉस्को फॉर्मेट और एससीओ संपर्क समूह में शामिल है, जिसमें आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता और रूस व ईरान के साथ खुफिया सहयोग पर बल दिया गया है।
      • उदाहरण: हाल ही में जारी संयुक्त वक्तव्य में अफगानिस्तान की इस प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई है कि उसकी भूमि का प्रयोग भारत के विरुद्ध नहीं किया जाएगा, जो एक प्रमुख आतंकवाद-रोधी आश्वासन है।
  • क्षेत्रीय संतुलन
    • पाकिस्तान-चीन धुरी का मुकाबला: भारत चाबहार बंदरगाह और विकासात्मक कूटनीति के माध्यम से पाकिस्तान की रणनीतिक गहन नीति और चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative- BRI) के बीच संतुलन बनाता है।
    • आर्थिक लाभ: भारत की 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता (वर्ष 2001- वर्ष 2021) अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सबसे बड़ा क्षेत्रीय योगदान बनी हुई है।
    • रणनीतिक सहयोग: भारतमध्य एशिया शिखर सम्मेलन (2022) और INSTC के तहत ईरान, रूस और मध्य एशिया के साथ समन्वय, भारत की SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास)  पहल का समर्थन करता है।

भारत-अफगानिस्तान संबंधों में रणनीतिक और परिचालनात्मक चुनौतियाँ

  • कूटनीतिक दुविधा: भारत तालिबान को औपचारिक मान्यता दिए बिना कार्यात्मक जुड़ाव बनाए रखता है।
    • उदाहरण: काबुल में भारतीय तकनीकी मिशन (2022) मानवीय सहायता का समन्वय करता है, लेकिन आधिकारिक राजनयिक समर्थन से बचता है, जो सैद्धांतिक व्यावहारिकता संबंधी दृष्टिकोण है।
  • पारगमन नाकाबंदी: भारत-अफगानिस्तान व्यापार के लिए भूमि आधारित मार्ग प्रदान करने से पाकिस्तान द्वारा इनकार किए जाने के कारण एयर फ्रेट कॉरिडोर (2017) की आवश्यकता पड़ी।
    • सामरिक सीमाएँ: तालिबान गुटों, विशेष रूप से हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान का समर्थन, भारत की सुरक्षा पहुँच को सीमित करता है।
      • उदाहरण: पाकिस्तान द्वारा वर्ष 2023 में अफगान शरणार्थियों को निर्वासित करने से न केवल तालिबान के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हुए, बल्कि भारत की राहत भी जटिल हो गई।
  • चीन की बढ़ती उपस्थिति: BRI के तहत खनन और बुनियादी ढाँचे पर तालिबान अधिकारियों के साथ चीन के समझौता ज्ञापन (2023-2024) से उसकी उपस्थिति बढ़ी है।
    • सुरक्षा निहितार्थ: मेस अयनाक ताँबे की खदानों में चीन की रुचि क्षेत्र में उसके आर्थिक लाभ और रणनीतिक प्रभाव को बढ़ाती है।
    • उदाहरण: चीन-अफगानिस्तान-पाकिस्तान त्रिपक्षीय वार्ता (2024) में संयुक्त BRI परियोजनाओं की माँग की गई, जिससे भारत को प्रभावी रूप से दरकिनार कर दिया गया।
  • आतंकवाद और सुरक्षा जोखिम: हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) अफगानिस्तान की धरती से अपनी गतिविधियाँ जारी रखे हुए हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट (2024) में अफगानिस्तान में 2,000 से अधिक विदेशी लड़ाकों के होने का संकेत दिया गया है; भारत संयुक्त राष्ट्र 1267 समिति के माध्यम से प्रतिबंधों के लिए दबाव बना रहा है।
    • नशीले पदार्थों से संबंध: वर्ष 2021 के बाद अफीम उत्पादन में 30% की वृद्धि हुई, जिससे चरमपंथी नेटवर्कों को वित्तपोषण मिला और क्षेत्रीय सुरक्षा अस्थिर हुई।
  • मानवाधिकार मुद्दे: लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं के रोजगार पर तालिबान के प्रतिबंध (वर्ष 2022 से) भारत की मूल्य-आधारित कूटनीति के विपरीत हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (2024) में, भारत ने अफगान महिलाओं और बच्चों के लिए सहायता प्रतिबद्धताओं को बनाए रखते हुए समावेशी शासन का आग्रह किया।
  • सहायता समन्वय: किसी मान्यता प्राप्त सरकार का अभाव परियोजनाओं के प्रत्यक्ष कार्यान्वयन में बाधा डालता है।
    • उदाहरण: रसद और संयुक्त राष्ट्र समन्वय संबंधी समस्याओं के कारण भारत को 40,000 मीट्रिक टन गेहूँ सहायता (2023) की आपूर्ति में देरी हुई।
    • न्यूनीकरण: पारदर्शिता और वितरण दक्षता सुनिश्चित करने के लिए भारत अब यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से सहायता प्रदान करता है।

आगे की राह

  • मानवीय निरंतरता और जन-केंद्रित कूटनीति: भारत को संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से आवश्यक मानवीय सहायता, जैसे- भोजन, दवाइयाँ, टीके और आपदा राहत प्रदान करना जारी रखना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि सहायता सीधे अफगान नागरिकों तक पहुँचे।
    • स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और महिला-केंद्रित परियोजनाओं में निरंतर भागीदारी भारत की सॉफ्ट पॉवर विश्वसनीयता तथा नैतिक नेतृत्व को बनाए रखेगी।
  • संतुलित कूटनीतिक जुड़ाव: सैद्धांतिक व्यावहारिकता की रणनीति अपनाना तथा बिना किसी औपचारिक मान्यता के, सुरक्षा, विकास और मानवीय सहायता के मुद्दों पर तालिबान अधिकारियों के साथ कार्यात्मक संवाद बनाए रखना।
    • इस तरह की संतुलित भागीदारी भारत के निवेश की सुरक्षा में मदद करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अफगानिस्तान की भूमि का प्रयोग भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए न हो।
  • क्षेत्रीय और बहुपक्षीय समन्वय: अफगानिस्तान को स्थिर करने के लिए SCO, INSTC और भारत-मध्य एशिया वार्ता जैसे मंचों के माध्यम से ईरान, रूस और मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ समन्वय को गहरा करना।
    • अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के मानवीय ढाँचे का समर्थन करना और देश के अलगाव और उग्रवाद के उदय को रोकने के लिए क्षेत्रीय भागीदारों के साथ काम करना।
      • अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) की स्थापना वर्ष 2002 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (संकल्प 1401) द्वारा अफगानिस्तान में शांति, शासन और विकास को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
      • वर्ष 2021 से, UNAMA ने तालिबान के अधिकार के दौरान मानवीय समन्वय पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, और तटस्थ, निष्पक्ष तथा आवश्यकता-आधारित सहायता पर जोर दिया है।
  • आतंकवाद-रोधी और सुरक्षा सहयोग: लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और आईएस-के जैसे चरमपंथी समूहों पर निगरानी रखने के लिए वैश्विक साझेदारों के साथ खुफिया जानकारी साझा करने और निगरानी तंत्र को मजबूत करना।
    • आतंकवाद के वित्तपोषकों को नामित करने और दंडित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र 1267 प्रतिबंध समिति में पैरवी करना। अफगान एजेंसियों को सुरक्षा प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता अंतरराष्ट्रीय निगरानी में धीरे-धीरे फिर से शुरू की जा सकती है।
  • संपर्क और आर्थिक एकीकरण: चाबहार बंदरगाह के संचालन में तेजी लाना और उन्हें INSTC से जोड़कर अफगानिस्तान को यूरेशियन व्यापार मार्गों से जोड़ना।
    • पाकिस्तान की पारगमन संबधी नाकाबंदी का विरोध करने और स्थायी व्यापार एवं रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए भारत-अफगानिस्तान हवाई माल ढुलाई गलियारे का विस्तार अन्य शहरों तक करना।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक कूटनीति: भारत के लोकतांत्रिक और विकासात्मक मूल्यों से जुड़ी एक नई पीढ़ी का निर्माण करने के लिए अफगान युवाओं के लिए ICCR छात्रवृत्ति, ITEC प्रशिक्षण और छात्र विनिमय कार्यक्रमों को पुनर्जीवित करना।
    • लोगों के बीच विश्वास को मजबूत करने के लिए भारत-अफगानिस्तान फाउंडेशन के तहत क्रिकेट कूटनीति, मीडिया सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
  • समावेशी शासन और महिला सशक्तीकरण: अफगानिस्तान में समावेशी शासन, बालिका शिक्षा और अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षण का समर्थन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और ‘हार्ट ऑफ एशिया’ सम्मेलन जैसे राजनयिक मंचों का उपयोग करना।
    • महिलाओं के नेतृत्व वाले गैर-सरकारी संगठनों और शिक्षा पहलों को भारत की सहायता, राजनीतिक टकराव से बचते हुए, उसकी मूल्य-आधारित विदेश नीति को बनाए रख सकती है।

निष्कर्ष

भारत की अफगानिस्तान नीति यथार्थवाद और जिम्मेदारी का मिश्रण है, जो सभ्यतागत संबंधों, मानवीय प्रतिबद्धता और रणनीतिक हितों पर आधारित है। सैद्धांतिक व्यावहारिकता से प्रेरित होकर, भारत को एक स्वतंत्र, समावेशी और संप्रभु अफगानिस्तान के अपने दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए, जो दक्षिण एशिया की शांति और स्थिरता के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

  • जैसा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, आप भूगोल बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोस नहीं।’ भारत की सक्रिय भागीदारी इस तथ्य का सशक्त प्रमाण है कि वह एशिया के केंद्र में शांति और सहयोग की स्थापना के प्रति समर्पित है।

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