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भारत और सामरिक स्वायत्तता

Lokesh Pal July 20, 2024 02:45 122 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिका ने भारतीय प्रधानमंत्री की रूस यात्रा पर भारत सरकार के समक्ष निजी तौर पर प्रत्यक्ष रूप स चिंता व्यक्त की है।

  • वाशिंगटन में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर भारत में अमेरिकी राजदूत ने कहा कि संघर्ष के समय में सामरिक स्वायत्तता जैसी कोई चीज नहीं होती, संकट के क्षणों में हमें एक-दूसरे को जानने की आवश्यकता होती है। 

सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) के बारे में 

  • परिभाषा: यह किसी राष्ट्र/राज्य की अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने तथा अन्य राष्ट्रों/राज्यों द्वारा किसी भी तरह से बाधित हुए बिना अपनी पसंदीदा विदेश नीति अपनाने की क्षमता को दर्शाता है। 
  • एकध्रुवीय विश्व (Unipolar World): सैद्धांतिक रूप से, एकध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में केवल एक अकेली महाशक्ति के पास ही वास्तविक रूप से सामरिक स्वायत्तता होती है, क्योंकि वह एकमात्र ऐसा देश होता है जिसके पास प्रभावी आर्थिक, औद्योगिक, सैन्य और तकनीकी क्षमताएँ होती हैं और इस प्रकार वह अन्य सभी राष्ट्रों/राज्यों के दबाव का विरोध करने की शक्ति रखता है।
  • द्विध्रुवीय विश्व (Bipolar World): यहाँ तक ​​कि महाशक्तियाँ भी द्विध्रुवीय या बहुध्रुवीय व्यवस्था में अपने समकक्ष महाशक्तियों द्वारा डाले गए दबाव के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं, जिसका अर्थ है कि सामरिक रूप से स्वायत्त होने की उनकी क्षमता निरपेक्ष नहीं बल्कि केवल सापेक्ष है।

सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए भारत के दृष्टिकोण का विकास हुआ है

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद से सभी भारतीय सरकारों ने किसी-न-किसी रूप में सामरिक स्वायत्तता का पालन किया है, चाहे इसे गुटनिरपेक्षता (Non-alignment), बहु-संरेखण (Multi-alignment), बहु-दिशात्मक विदेश नीति (Multi-directional Foreign Policy) या सामरिक स्वायत्तता: डी-हाइफनेशन की नीति (Strategic autonomy: Policy of De-hyphenation) कहा जाए। 

  • द्विध्रुवीय विश्वव्यवस्था (Bipolar World Order): वर्ष 1947 से 1991 तक
    • इस अवधि के दौरान, वैश्विक शक्ति मुख्य रूप से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विभाजित थी।
    • भारत का दृष्टिकोण: भारत ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया
      • संप्रभुता के कमजोर पड़ने का विरोध करना (Resist Dilution of Sovereignty): शीतयुद्ध की महाशक्तियों के वैचारिक और सैन्य संघर्षों में शामिल होने से बचना।
      • अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करना: बाहरी हस्तक्षेप के बिना आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
      • राष्ट्र की अखंडता को मजबूत करना: राजनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय एकता बनाए रखना।
    • भारत की विदेश नीति के बारे में पारंपरिक समझ (Conventional understanding about India’s foreign policy): इससे पता चलता है कि भारत की विदेश नीति शुरुआती वर्षों में सत्ता की राजनीति की धाराओं को समझने के लिए बहुत आदर्शवादी थी।
    • गुटनिरपेक्षता का प्रभाव (Non-Alignment Impact): लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अन्य लोगों द्वारा परिकल्पित गुटनिरपेक्षता और एशियाई एकजुटता ने भारत को एक नव-उपनिवेशित गणराज्य के रूप में मदद की, जो एक द्विध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में उत्पन्न हुआ था।
      • यह तीसरी दुनिया (Third World) में आवाजों को संगठित करता है तथा दोनों गुटों से बाहर रहता है एवं अपने और नव-उपनिवेशित देशों के हितों को आगे बढ़ाता है।
      • इससे भारत की विदेश नीति को नैतिक आधार और व्यावहारिक बल मिला।

गुटनिरपेक्षता आंदोलन (Non-Alignment Movement) 

  • इसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी। 
  • इसका निर्माण यूगोस्लाविया, भारत, मिस्र, घाना और इंडोनेशिया के राष्ट्र प्रमुखों द्वारा किया गया था। 
  • पृष्ठभूमि: गुटनिरपेक्ष आंदोलन का गठन शीतयुद्ध के दौरान ऐसे राष्ट्रों/राज्यों के संगठन के रूप में हुआ था, जो औपचारिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते थे, बल्कि स्वतंत्र या तटस्थ रहना चाहते थे।
    • यह आंदोलन विकासशील देशों के हितों और प्राथमिकताओं का प्रतिनिधित्व करता था।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का उद्देश्य: NAM ने ‘वैश्विक राजनीति में एक स्वतंत्र रास्ता बनाने का प्रयास किया है, जिसके परिणामस्वरूप सदस्य देश प्रमुख शक्तियों के बीच संघर्ष में किसी का भी मोहरे नहीं बनेंगे।’
  • तीन बुनियादी तत्त्व जिन्होंने इसके दृष्टिकोण को प्रभावित किया है: यह स्वतंत्र निर्णय के अधिकार, साम्राज्यवाद और नव-उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष तथा सभी बड़ी शक्तियों के साथ संबंधों में संयम बरतने की बात करता है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) सिद्धांत

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित सिद्धांतों का सम्मान।
  • सभी राज्यों की संप्रभुता, संप्रभु समानता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान।
  • संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार, सभी अंतरराष्ट्रीय संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान।
  • देशों और लोगों की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान।
  • राज्यों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों में विद्यमान मतभेदों की परवाह किए बिना, पारस्परिक सम्मान एवं अधिकारों की समानता के आधार पर साझा हितों, न्याय तथा सहयोग की रक्षा एवं संवर्द्धन करना।
  • संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार व्यक्तिगत या सामूहिक आत्मरक्षा के अंतर्निहित अधिकार का सम्मान।
  • राष्ट्रों/राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना। किसी भी राष्ट्र/राज्य या राष्ट्रों/राज्यों के समूह को किसी अन्य राज्य के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, चाहे उसका उद्देश्य कुछ भी हो।
  • मानव जाति को प्रभावित करने वाली समस्याओं को वार्ता और सहयोग के माध्यम से हल करने के लिए उपयुक्त ढाँचे के रूप में बहुपक्षवाद एवं बहुपक्षीय संगठनों को बढ़ावा देना व उनकी रक्षा करना।


  • एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Unipolar World Order): वर्ष 1991 से 2008 तक
    • सोवियत संघ के पतन के परिणामस्वरूप अमेरिका के प्रभुत्व वाली एकध्रुवीय दुनिया बनी, जिसमें चीन एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा।
    • भारत का दृष्टिकोण
      • नए साझेदारों के साथ जुड़ना: भारत ने अपनी रणनीतिक साझेदारी में विविधता लाने के लिए अमेरिका, इजरायल और आसियान देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ किया।
      • परमाणु विकल्प सुरक्षित करना (Securing Nuclear Options): स्वयं को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करने तथा अपनी सामरिक स्वायत्तता बढ़ाने के लिए वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षण (पोखरण II) किया।

बदलाव का विकास

  • शुरुआत में: भारत शुरू में पूँजीवादी और साम्यवादी दोनों गुटों से समान दूरी पर रहा है।
  • संधियों से तनाव बढ़ा: किंतु अमेरिका द्वारा एशिया में नए संधि गठबंधन [पाकिस्तान दक्षिण-पूर्व एशिया संधि संगठन (Southeast Asia Treaty Organization- SEATO) और केंद्रीय संधि संगठन (Central Treaty Organization- CENTO) दोनों का सदस्य बन गया] बनाने के बाद चीन द्वारा सोवियत संघ से दूरी बनाकर अमेरिका के करीब आना।
  • भारत ने प्रतिकारात्मक कार्रवाई: अमेरिका के साथ चीन, पकिस्तान के बढ़ते संबंधों को देखते हुए भारत ने अपनी सामरिक स्वायत्तता को खोए बिना रूस के साथ मजबूत संबंध विकसित करने शुरू किए।
  • विघटन: और जब वर्ष 1991 में सोवियत संघ तथा साम्यवादी गुट का पतन हो गया, तो भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अधिक एकीकरण एवं पश्चिम के साथ घनिष्ठ रणनीतिक साझेदारी को विकल्प के रूप में अपनाया।


  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (वर्तमान)
    • वर्तमान में, वैश्विक सत्ता कई देशों के बीच बँटी हुई है, जिनका सैन्य, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत का दृष्टिकोण: स्वतंत्र विदेश नीति रुख बनाए रखते हुए रणनीतिक साझेदारियों का निर्माण करके जटिल वैश्विक गतिशीलता को नियंत्रित करना।

डी-हाइफनेशन की नीति (Policy of De-hyphenation) 

  • भारत ने ‘डि-हाइफनेटेड’ संबंध के बारे में कहा, इसका मतलब है कि भारत प्रत्येक देश के साथ अलग-अलग व्यवहार करेगा।
  • वास्तव में, यह विभाजन एक सावधानीपूर्वक किया गया संतुलनकारी कार्य है, जिसमें भारत परिस्थिति की माँग के अनुसार एक पक्ष से दूसरे पक्ष में स्थानांतरित होता रहता है।
  • वर्ष 2017 में एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने केवल इजरायल का दौरा किया, फिलिस्तीन का नहीं।
    • फिर, प्रधानमंत्री की हाल की फिलिस्तीन, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा भी इसी नीति की अगली कड़ी है।

संयुक्त राज्य अमेरिका की गलत धारणा

  • अमेरिका को इसे एक गैर-मित्र विदेश नीति के रूप में नहीं देखना चाहिए:
  • भारत का दृष्टिकोण: भारत एक विघटनकारी, संशोधनवादी शक्ति नहीं है। यह एक बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था का समर्थन करता है और ऐसा इसलिए है क्योंकि यह चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली वर्तमान की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अनुरूप अधिक प्रतिनिधि हो।
    • भारत ऐसी प्रणाली में सुधार करना चाहता है, जहाँ उसकी और ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज को अधिक रुचि के साथ सुना जा सके।
  • भारत के लिए रणनीतिक स्वायत्तता: भारत के लिए सामरिक स्वायत्तता, अलगाववाद की माँग नहीं करती।
    • इसमें सूचित राष्ट्रीय हित में निहित विभिन्न शक्ति केंद्रों के साथ अधिक-से-अधिक सहभागिता की बात कही गई है।
  • ‘जीरो सम गेम’ नहीं बल्कि सकारात्मक ‘सम गेम’ (Not a Zero Sum Game But Positive-Sum Game): सामरिक स्वायत्तता के सिद्धांतकार विदेश नीति को जीरो-सम गेम के रूप में नहीं देखते हैं, जहाँ एक पक्ष दूसरे की कीमत पर कुछ हासिल करता है।
    • उनके लिए यह एक सकारात्मक ‘सम गेम’ (Sum Game) है, जहाँ सभी को लाभ होता है।
    • उदाहरण के लिए: रूस के साथ भारत के ऊर्जा व्यापार ने यह सुनिश्चित किया कि रूसी कच्चा तेल बाजार में आता रहे, जिससे वैश्विक तेल की कीमतों को स्थिर रखने में मदद मिली।
      • रूस के साथ इसका घनिष्ठ सहयोग, रूस के चीन के साथ अर्द्ध-गठबंधन (Quasi-alliance) में भी गति अवरोधक के रूप में कार्य कर सकता है, जिसे पश्चिम एकमात्र ‘संशोधनवादी’ (Revisionist) शक्ति के रूप में देखता है, जो मौजूदा वैश्विक व्यवस्था को फिर से व्यवस्थित करने की क्षमता रखता है।
  • एकध्रुवीय मानसिकता से बाहर आना: यह एकध्रुवीय मानसिकता (या तो आप हमारे साथ हैं या हमारे विरुद्ध) है। यह दृष्टिकोण एकध्रुवीय युग के दौरान भी बहुत सफल नहीं रहा, जैसा कि आतंकवाद के खिलाफ दो दशक लंबे युद्ध से पता चलता है।

वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तन

भारत के दृष्टिकोण से, वैश्विक व्यवस्था फिर से बदल रही है।

  • अब एकध्रुवीय व्यवस्था नहीं है: अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बना हुआ है, लेकिन विश्व व्यवस्था अब एकध्रुवीय नहीं रही है।
  • चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा: चीन, जो पहले से ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, अमेरिका की वैश्विक प्रधानता के लिए एक मजबूत प्रतियोगी के रूप में उभर रहा है।
  • रूस के साथ प्रतिस्पर्द्धा: रूस सैन्य रूप से यूरोप में पश्चिमी सुरक्षा ढाँचे को चुनौती दे रहा है।
  • पश्चिम एशिया संकट: पश्चिम एशिया में, अमेरिका के सहयोगी इजरायल तथा रूस के करीबी सामरिक साझेदार ईरान के बीच शैडो वार (Shadow War) चल रहा है।
  • भारत का दृष्टिकोण: भारत किसी भी गठबंधन प्रणाली में शामिल हुए बिना महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाना चाहता है। और इसके लिए अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना आवश्यक है।

रूस का महत्त्व

  • आर्थिक रूप से लाभकारी: हालाँकि रूस के साथ ऊर्जा संबंध काफी हद तक अवसरवादी हैं और सस्ती कीमतों से प्रेरित हैं (रूस से भारत का कच्चा तेल आयात वर्ष 2021-22 में 2.4 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 46.5 बिलियन डॉलर हो गया), रक्षा साझेदारी संरचनात्मक है।
  • रक्षा साझेदार: रूस, भारत के 40% से अधिक रक्षा आयात का स्रोत है, और भारतीय सेना के 86% उपकरण रूसी मूल के हैं।
  • एशिया में महत्त्वपूर्ण साझेदार: रूस, एशिया महाद्वीपीय में भी एक महत्त्वपूर्ण साझेदार है, जहाँ भारत आर्थिक प्रगति, कनेक्टिविटी और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए यूरेशियन शक्तियों के साथ कार्य करता है।
  • चीन-एक कारक के रूप में: चीन के साथ रूस के गहरे होते संबंध रूस के साथ भारत की ऐतिहासिक साझेदारी के सार को बदल देते हैं।
  • अवसर: लेकिन यह भारत-रूस साझेदारी को और अधिक समान द्विपक्षीय साझेदारी के रूप में (शीतयुद्ध के दौरान यह बहुत ही असंतुलित था) पुनः स्थापित करने का अवसर भी है, जहाँ दोनों पक्ष एक-दूसरे की संवेदनशीलताओं के प्रति सचेत होंगे। भारत नहीं चाहेगा कि रूस, पश्चिमी प्रभाव से दूर होकर पूरी तरह से चीन के प्रभाव क्षेत्र में चला जाए।
  • भारत की स्वायत्तता का महत्त्व
    • यदि भारत किसी गठबंधन प्रणाली का हिस्सा होता, जैसे कि जर्मनी, जिसे नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन (Nord Stream Pipeline) के विनाश को चुपचाप स्वीकार करना पड़ा, जिसका वह भी हिस्सा है, तो भारत के पास रूस के साथ अपनी साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए रणनीतिक स्थान नहीं होगा, जबकि वह पश्चिम का करीबी साझेदार बना रहेगा।

क्या सामरिक स्वायत्तता भारत के लिए बोझ है?

  • वर्तमान विश्व व्यवस्था: वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में, जहाँ देश ध्रुवीकृत हैं और किसी एक ध्रुव की ओर झुके हुए हैं, रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना एक कठिन कार्य है।
    • उदाहरण के लिए, अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता: संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों से निपटना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए दोनों शक्तियों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करने की आवश्यकता है।
    • रूस-यूक्रेन संघर्ष: रूस के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखते हुए, जिसमें विभिन्न मोर्चों पर व्यापार और सहयोग बढ़ाने के समझौते शामिल हैं, भारत ने यूक्रेन युद्ध और शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता के बारे में चिंताओं को भी संबोधित किया।
    • भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने के साथ-साथ यह संतुलन बनाना कठिन होता जाता है, जिससे भारत को कठिन विकल्प चुनने पर मजबूर होना पड़ता है, जो एक या दूसरे भागीदार को निराश कर सकता है।
  • बहुपक्षीय प्रतिबद्धताएँ: स्वतंत्र नीतिगत रुख बनाए रखते हुए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों (संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स, G20, आदि) में प्रतिबद्धताओं को संतुलित करना जटिल है।
    • उदाहरण के लिए: रूस-चीन के नेतृत्व वाले SCO को नाटो विरोधी संगठन के रूप में देखा जाता है, जबकि क्वाड (Quad) में अमेरिका और उसके सहयोगी शामिल हैं, जिसे चीन और विस्तार से रूस का मुकाबला करने के लिए एक गठबंधन के रूप में देखा जाता है।
  • महत्त्वपूर्ण वैश्विक फ्लैशपॉइंट्स में भारत की सीमांत भूमिका: वैश्विक स्तर पर, जबकि भारत कई महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक फ्लैशपॉइंट्स में एक प्रमुख पक्षकार होने की अच्छी स्थिति में है, वास्तव में इसकी भूमिका अक्सर सीमांत रही है।
    • उदाहरण के लिए: भारत ने P5+1 प्रक्रिया में एक गैर-पक्ष के रूप में परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता में एक सीमांत भूमिका निभाई है। फिर से, भारत के पास ईरान-अमेरिका संबंधों में सामंजस्य देखने में निहित हित हैं, क्योंकि भारत को कम और स्थिर ऊर्जा कीमतों को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है और मध्य पूर्व से तेल आयात पर इसकी अत्यधिक निर्भरता है।
  • विकासशील देश के रूप में भारत की स्थिति: वैश्विक अर्थव्यवस्था की उभरती संरचना के कारण घरेलू सुधारों की आवश्यकता है। हालाँकि, भारत की भू-आर्थिक स्थिति इसके भू-राजनीतिक प्रभाव को बाधित करती है, जिससे चीन को अपनी वित्तीय क्षमता के कारण भारत के पड़ोसी देशों में अधिक प्रभाव डालने का अवसर मिलता है।

सामरिक स्वायत्तता से विश्वमित्र (Vishwamitra) की ओर भारत का बदलाव

पिछले दशक में भारत की विदेश नीति के संचालन में एक सूक्ष्म लेकिन महत्त्वपूर्ण परिवर्तन इसकी कूटनीतिक शब्दावली का विकास रहा है:

  • विचार की असंगति (Incongruence of Idea) 
    • ‘सामरिक स्वायत्तता’ का विचार विरोधाभासी लगता है, जब हम यह मानते हैं कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी सशस्त्र सेनाएँ तीसरी स्थान पर हैं और चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट है।
    • यह अवधारणा उत्तर-औपनिवेशिक असुरक्षा की अवधि और प्रमुख वैश्विक शक्तियों द्वारा अवांछित निर्णय लेने के लिए मजबूर किए जाने की निरंतर चिंता से उत्पन्न हुई है।
  • प्रमुख शक्तियों के लिए सामरिक स्वायत्तता की सीमाएँ
    • स्वयं में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति होने के नाते, स्वायत्तता का दायरा स्वाभाविक रूप से व्यापक हो जाता है।
    • फिर भी, ‘पूर्ण सामरिक स्वायत्तता’ (Absolute Strategic Autonomy) जैसी कोई चीज नहीं है क्योंकि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश, अमेरिका को भी कार्रवाई की पूरी आजादी नहीं है।
  • भारत के लिए विकासात्मक चुनौतियाँ
    • यद्यपि इसकी अर्थव्यवस्था का समग्र आकार भारत को एक प्रमुख शक्ति की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ प्रदान करता है, फिर भी इसकी कम प्रति व्यक्ति आय घरेलू स्तर पर विशाल विकासात्मक चुनौतियों को रेखांकित करती है।
  • सामरिक स्वायत्तता में गिरावट संदर्भ (Decline in Strategic Autonomy Reference)
    • इसके स्थान पर भारत को ‘अग्रणी शक्ति’ (Leading Power), ‘विश्वमित्र’ (Vishwamitra), ‘शुद्ध सुरक्षा प्रदाता’ (Net Security Provider), ‘क्षेत्रीय संकटों के लिए प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता’ (First Responder), ‘समान विचारधारा वाले गठबंधन’ (Like-minded Coalitions), ‘मिनीलैटरलिज्म’ (Minilateralism), ‘अंतर-संचालन’ (Interoperability) और ‘वैश्विक सार्वजनिक वस्तु’ (Global Public Goods) जैसे संदर्भों से प्रतिस्थापित किया गया है।

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