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भारत और जापान संबंध

Lokesh Pal September 01, 2025 02:39 17 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री और जापानी प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने टोक्यो में 15वें भारत-जापान शिखर सम्मेलन में भाग लिया, इस दौरान विशेष रणनीतिक वैश्विक साझेदारी को मजबूत करने के लिए रणनीतिक, आर्थिक और रक्षा सहयोग को बढाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।

15वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन के मुख्य निष्कर्ष

  • दीर्घकालिक रणनीतिक रोडमैप: ‘अगले दशक के लिए भारत-जापान संयुक्त दृष्टिकोण’ (India–Japan Joint Vision for the Next Decade) को अपनाना, जिसमें आठ क्षेत्रों (आर्थिक साझेदारी, आर्थिक सुरक्षा, गतिशीलता, पारिस्थितिक स्थिरता, नवाचार और प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और राज्य-प्रांत सहयोग) को प्राथमिकता दी जाएगी।
    • यह शिखर सम्मेलन कार्यात्मक सहयोग के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है, जो संबंधों में दीर्घकालिक पूर्वानुमान का संकेत देता है।
  • निवेश प्रतिबद्धता: जापान ने अगले दशक में भारत में निजी क्षेत्र के निवेश में 10 ट्रिलियन जापानी येन (लगभग 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • फोकस क्षेत्र: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वच्छ ऊर्जा, महत्त्वपूर्ण खनिज, रक्षा, डिजिटल अवसंरचना और मानव संसाधन।
    • वार्षिक निवेश प्रवाह को बढ़ाकर 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर किया जाएगा, जो पिछले वर्षों की तुलना में 2.5 गुना वृद्धि दर्शाता है।
  • आर्थिक सुरक्षा एवं आपूर्ति शृंखला: अर्द्धचालक, महत्त्वपूर्ण खनिज, दूरसंचार, स्वच्छ ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल्स में लचीलापन लाने के लिए आर्थिक सुरक्षा पहल का शुभारंभ किया गया।
    • यह पहल एक संयुक्त आर्थिक सुरक्षा तथ्य पत्रक (Economic Security Fact Sheet) द्वारा समर्थित, वास्तविक सहयोग परियोजनाओं की एक विस्तृत सूची प्रस्तुत करती है।
    • यह वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों और चीन पर अत्यधिक निर्भरता को प्रत्यक्ष रूप से संबोधित करती है।
  • डिजिटल और AI सहयोग: भारत-जापान AI सहयोग पहल का शुभारंभ, जो लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM), प्रशिक्षण, डेटा सेंटर विकास और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र पर केंद्रित है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अर्द्धचालक, साइबर सुरक्षा और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में सहयोग को मजबूत करने के लिए डिजिटल साझेदारी 2.0 और 21 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए।
    • क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हुए उभरती प्रौद्योगिकियों में विश्वास का निर्माण करना एवं उनको बढावा देना।
  • मानव संसाधन विनिमय और गतिशीलता: मानव संसाधन विनिमय के लिए कार्य योजना (Action Plan for Human Resource Exchange) को अपनाना, पाँच वर्षों में 5,00,000 मानव संसाधनों के आदान-प्रदान का लक्ष्य, जिसमें जापान के IT, सेमीकंडक्टर और विनिर्माण क्षेत्रों में 50,000 कुशल भारतीय पेशेवर शामिल होंगे।
    • रेलवे, बंदरगाहों, विमानन, रसद और नौवहन में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए ‘नेक्स्ट-जेनेरेशन मोबिलिटी पार्टनरशिप’ (Next-Generation Mobility Partnership) का शुभारंभ, जो ‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ के अनुरूप है।
    • लघु एवं मध्यम उद्यम (SME) तथा स्टार्ट-अप सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए लघु और मध्यम उद्यम (SME) प्लेटफॉर्म की स्थापना की जाएगी।
  • हरित विकास और संधारणीयता: हरित ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के लिए स्वच्छ हाइड्रोजन और अमोनिया संबंधी संयुक्त आशय-पत्र (Joint Declaration of Intent on Clean Hydrogen and Ammonia) पर हस्ताक्षर किए गए।
    • जैव ईंधन, बायोगैस और ऊर्जा नवाचारों पर सतत् ईंधन पहल का शुभारंभ, जिसमें किसानों की आजीविका और ग्रामीण ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • विकेंद्रीकृत घरेलू अपशिष्ट जल प्रबंधन और पर्यावरण सहयोग पर समझौते, जलवायु अनुकूलन, जैव विविधता संरक्षण एवं सतत् शहरी विकास को बढ़ावा देंगे।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष सहयोग: संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (चंद्रयान-5 सहयोग) के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के बीच स्थापित प्रणाली को क्रियान्वित करना।
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (भारत सरकार) तथा जापान के  शिक्षा संस्कृति, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEXT) के बीच समझौता ज्ञापन, स्टार्टअप और उद्योग की भागीदारी के साथ संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, शोधकर्ता आदान-प्रदान और संस्थागत सहयोग को प्रोत्साहित करेगा।
  • सांस्कृतिक संबंध एवं लोगों के बीच आदान-प्रदान: सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर सहयोग ज्ञापन पर हस्ताक्षर, संग्रहालयों के मध्य संबंध, प्रदर्शनियाँ और विरासत संरक्षण को सक्षम बनाना।
    • ‘टोक्यो स्काई ट्री’ को भारतीय तिरंगे से जगमगाया गया और भारतीय प्रधानमंत्री को प्रतीकात्मक ‘दारुमा गुड़िया’ (Daruma Doll) भेंट की गई, जिससे सभ्यतागत संबंधों को बल मिला।
    • राज्य-प्रांत आदान-प्रदान (कंसाई, क्यूशू) का विस्तार हुआ और उप-राष्ट्रीय सहयोग के लिए व्यावसायिक मंचों का निर्माण किया जाएगा।
  • सुरक्षा और सामरिक सहयोग: सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा ने रक्षा संबंधों को उन्नत किया तथा क्वाड प्रतिबद्धताओं, समुद्री स्थिरता एवं साइबर सुरक्षा पर जोर दिया।
    • दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने समुद्री क्षेत्र में आक्रामकता के प्रतिरोध हेतु एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत (Free, Open, and Rules-Based Indo-Pacific- FOIP) के प्रति समर्थन की पुष्टि की।
    • दोनों देशों के मध्य रणनीतिक संकेत के रूप में दोनों देशों के प्रधानमंत्री की सेंदाई तक बुलेट ट्रेन की यात्रा शामिल थी, जिसके अंतर्गत बुनियादी ढाँचे की साझेदारी और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर प्रकाश डाला गया।

PWOnlyIAS विशेष

जापान के बारे में

  • अवस्थिति: पूर्वी एशिया में एक द्वीपीय राष्ट्र, उत्तरी प्रशांत महासागर में, चीन, कोरिया और रूस के पूर्व में अवस्थित है।

  • राजधानी: टोक्यो,  विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और तकनीकी रूप से उन्नत शहरों में से एक है।
  • जलक्षेत्र: पश्चिम में जापान सागर (पूर्वी सागर), पूर्व और दक्षिण में प्रशांत महासागर और दक्षिण-पश्चिम में पूर्वी चीन सागर से घिरा हुआ।

भौगोलिक विशेषता

  • द्वीप: चार प्रमुख द्वीपों [होंशू (सबसे बड़ा), होक्काइडो, क्यूशू और शिकोकू] के साथ-साथ रयूकू, इजू, बोनिन और ज्वालामुखी द्वीप जैसे छोटे समूहों से मिलकर बना है।
  • पर्वत: जापान का लगभग 80% भाग पर्वतीय है, जहाँ ज्वालामुखी गतिविधियाँ प्रायः होती रहती हैं। माउंट फ्यूजी (3,776 मीटर) सबसे ऊँची और सबसे प्रतिष्ठित चोटी है।
  • नदियाँ एवं मैदान: नदियाँ आमतौर पर अपेक्षाकृत कम लंबी और तीव्र प्रवाह वाली होती हैं, जो सँकरी घाटियों और कांटो, नोबी और ओसाका जैसे उपजाऊ डेल्टाई मैदानों का निर्माण करती हैं।
  • जलवायु और वनस्पति: प्रचुर वर्षा और समशीतोष्ण जलवायु से चिह्नित, सघन वन, चावल की खेती और बागबानी को बढ़ावा देता है, हालाँकि कृषि योग्य भूमि दुर्लभ है।
  • भू-विज्ञान: प्रशांत ‘रिंग ऑफ फायर’ पर स्थित होने के कारण, यह भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोटों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।

भारत-जापान संबंधों के बारे में

  • सांस्कृतिक संबंध: बौद्ध धर्म ने छठी शताब्दी से ही स्थायी सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए हैं।
  • युद्धोत्तर संबंध: वर्ष 1952 की ‘शांति संधि’ ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनयिक संबंधों को बहाल किया।
  • वार्षिक शिखर सम्मेलन: वर्ष 2000 से, भारत और जापान ने भारत के सबसे प्राचीन वार्षिक शिखर सम्मेलनों में से एक (रूस के साथ) आयोजित किया है, जो दीर्घकालिक राजनीतिक विश्वास को दर्शाता है।
    • वर्ष 2000- वैश्विक साझेदारी: दोनों देशों के आपसी हितों के अभिसरण को मान्यता देते हुए संबंधों को पहली बार वैश्विक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया गया।
    • वर्ष 2006: रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी फ्रेमवर्क को उन्नत किया गया, जिससे सुरक्षा और आर्थिक प्राथमिकताओं में सहयोग गहन हुआ।
    • वर्ष 2014 – विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी: संबंधों को और उन्नत किया गया, जिससे असाधारण विश्वास और साझा हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण पर बल मिला।

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भारत-जापान संबंधों से संबंधित प्रमुख हस्तियाँ

  • जापान से जुड़े प्रमुख भारतीयों में स्वामी विवेकानंद, नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर, उद्यमी JRD टाटा, स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रास बिहारी बोस और न्यायमूर्ति राधा बिनोद पाल शामिल थे।
    • रास बिहारी बोस: उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत-जापान संबंधों को मजबूत किया।
    • सुभाष चंद्र बोस: द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत पर ब्रिटिश का अधिकार था और जापान, ब्रिटेन का शत्रु था। ऐसे समय में सुभाष चंद्र बोस ने जापान की सहायता से आजाद हिंद फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना – INA) का पुनर्गठन किया।

सामरिक एवं सुरक्षा सहयोग

  • रूपरेखाएँ और समझौते
    • सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा (वर्ष 2008): भारत द्वारा अपने पारंपरिक साझेदारों के बाहर हस्ताक्षरित पहला ऐसा समझौता, जो भारत की सामरिक गणना में जापान के बढ़ते महत्त्व को दर्शाता है।
    • रक्षा सहयोग पर समझौता ज्ञापन (वर्ष 2014): द्विपक्षीय रक्षा आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण में वृद्धि को दर्शाता है।
    • सूचना संरक्षण समझौता (वर्ष 2015): रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग के लिए महत्त्वपूर्ण, संवेदनशील वर्गीकृत रूप से सूचनाओं के आदान-प्रदान की अनुमति देता है।
    • आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान पर समझौता (वर्ष 2020): सैन्य अभ्यासों और मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) अभियानों के दौरान रसद सहायता को सक्षम बनाया गया।
    • संयुक्त घोषणा (वर्ष 2025): साइबर रक्षा, आतंकवाद-निरोध, अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता और CBRN रक्षा में विस्तारित, एक आधुनिक, बहुआयामी सुरक्षा एजेंडा को दर्शाता है।
  • सैन्य अभ्यास
    • मालाबार (संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ): क्वाड सैन्य अंतर-संचालन को मजबूत किया गया।
    • जापान-भारत समुद्री अभ्यास (JIMEX): द्विपक्षीय नौसैनिक समन्वय पर केंद्रित है।
    • धर्म गार्जियन (सेना) और मिलान (बहुपक्षीय नौसेना): सैन्य सहयोग और क्षेत्रीय नौसैनिक संबंधों को बढ़ावा दिया गया।
    • तटरक्षक अभ्यास: समुद्री सुरक्षा और कानून प्रवर्तन को समर्थन दिया गया।
    • वर्ष 2024-2025 सेवा प्रमुखों की भागीदारी: अंतर-संचालन और विश्वास निर्माण में गुणात्मक वृद्धि दर्ज की गई।
  • समुद्री सहयोग 
    • सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (Fusion Centre–Indian Ocean Region- IFC–IOR) और समुद्री क्षेत्र जागरूकता हेतु हिंद-प्रशांत साझेदारी (Indo-Pacific Partnership for Maritime Domain Awareness- IPMDA): क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए वास्तविक समय आधारित समुद्री डेटा साझाकरण को सक्षम बनाया गया।
    • समुद्री डकैती विरोधी अभियानों और तीसरे देशों के समुद्री कानून प्रवर्तन के समर्थन में संयुक्त प्रयासों ने भारत-जापान को व्यापक सुरक्षा प्रदाता के रूप में प्रदर्शित किया।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और अधिग्रहण, प्रौद्योगिकी एवं रसद एजेंसी (ATLA) के बीच सहयोग ने रक्षा नवाचार संबंधों को और गहरा किया है।
    • यूनिकॉर्न नौसैनिक मस्तूल (2024) का सह-विकास: सैन्य हार्डवेयर के संयुक्त उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
    • रक्षा चिकित्सा और CBRN सुरक्षा में सहयोग बढ़ा, जिससे गैर-पारंपरिक सुरक्षा संबंधों पर प्रकाश डाला गया।

आर्थिक तथा व्यापार सहयोग

  • द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष 2023-24 में 22.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर; अप्रैल-जनवरी 2024-25 में 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर, भारत को व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
    • निर्यात में रसायन, वाहन, एल्युमीनियम और समुद्री खाद्य उत्पाद शामिल हैं।
    • आयात में मशीनरी, इस्पात, ताँबा और रिएक्टर शामिल हैं।
    • यह पैटर्न न केवल पूरकताओं को दर्शाता है, बल्कि जापानी उच्च-तकनीकी आयातों पर भारत की निर्भरता को भी दर्शाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): दिसंबर 2024 तक 43.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश के साथ, जापान, भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा FDI स्रोत है।
    • भारत में 1,400 से अधिक जापानी कंपनियाँ और जापान में 100 से अधिक भारतीय कंपनियाँ गहन औद्योगिक सहभागिता को दर्शाती हैं।
  • विकास सहायता: वर्ष 1958 से जापान, भारत का सबसे बड़ा आधिकारिक विकास सहायता (ODA) प्रदाता है।
    • वर्ष 2023-24 में 580 बिलियन जापानी येन (4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का लक्ष्य निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल परियोजना विश्वास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का एक प्रमुख प्रतीक है।
  • निवेश लक्ष्य: वर्ष 2026 तक 5 ट्रिलियन येन का लक्ष्य प्राप्त किया गया।
    • नया लक्ष्य: 7-10 ट्रिलियन येन, जिसमें SME, स्टार्ट-अप और डिजिटल क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जो भविष्योन्मुखी उद्योगों की ओर परिवर्तन का संकेत है।
  • आर्थिक सुरक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग 
    • सेमीकंडक्टर: रेनेसास-सीजी पॉवर प्लांट (गुजरात), टोक्यो इलेक्ट्रॉन-टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स साझेदारी और IIT हैदराबाद एवं सीडैक (CDAC) के साथ सहयोग भारत के चिप पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करते हैं।
    • डिजिटल साझेदारी 2.0: 
      • NEC-रिलायंस जियो ओ-आरएएन पायलट (O-RAN Pilots); NTT भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए डेटा केंद्रों का विस्तार कर रहा है।
    • विज्ञान और नवाचार
      • वर्ष 2025 को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार आदान-प्रदान का वर्ष घोषित किया गया।
      • भारत-जापान AI सहयोग पहल का शुभारंभ। 
      • NTT डेटा (NTT Data) और नेयसा नेटवर्क्स (Neysa Networks) द्वारा हैदराबाद AI डेटा हब की स्थापना।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज और स्वच्छ ऊर्जा: वर्ष 2025 में क्रिटिकल मिनरल्स पर समझौता ज्ञापन (MoC) में दुर्लभ मृदा तत्त्व, सतत् खनन और भंडारण पर सहयोग शामिल है।
    • हाइड्रोजन और अमोनिया (अडानी मुंद्रा) में संयुक्त परियोजनाएँ और 400 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो (JBCI, ओसाका गैस, क्लीन मैक्स)।
    • जैव ईंधन और इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति शृंखलाएँ: असम में बाँस-आधारित एथेनॉल पहल सतत् सहयोग का उदाहरण है।

विकास और बुनियादी ढाँचा सहयोग

  • हाई-स्पीड रेल (बुलेट ट्रेन): उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और द्विपक्षीय विश्वास का प्रतीक।
  • रेलवे, विमानन, जहाज निर्माण, बंदरगाहों और पुलों को शामिल करते हुए गतिशीलता संबंधी वार्ता।
  • सेंदाई तक बुलेट ट्रेन से दोनों देश के प्रमुख नेताओं की संभावित यात्रा बुनियादी ढाँचे और अर्द्धचालक क्षेत्र में भारत-जापान की संयुक्त विशेषज्ञता का प्रतीक है।

अन्य सहयोग

  • मानव संसाधन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: ‘पीपुल-टू-पीपुल’ कार्य योजना (2025)
    • पाँच वर्षों में 5,00,000 आदान-प्रदान का लक्ष्य, जिसमें IT, सेमीकंडक्टर और विनिर्माण क्षेत्र में 50,000 कुशल भारतीय शामिल होंगे।
    • मानव पूँजी को द्विपक्षीय संबंधों के एक स्तंभ के रूप में प्रदर्शित करता है।
  • कौशल विकास: भारत-जापान प्रतिभा सेतु और भारत-निप्पॉन अनुप्रयुक्त योग्यता प्रशिक्षण कार्यक्रम, जापानी उद्योगों में भारतीय युवाओं के लिए अवसरों का विस्तार करते हैं।
  • पर्यटन और शिक्षा: वर्ष 2023-24 पर्यटन आदान-प्रदान वर्ष का विषय ‘हिमालय को माउंट फ्यूजी से जोड़ना’ है।
    • जापान में योग और आयुर्वेद के लिए 665 से अधिक विश्वविद्यालयों के साथ समझौते, छात्रवृत्तियाँ और उत्कृष्टता केंद्र।
  • प्रवासी: जापान में लगभग 54,000 भारतीय, जिनमें से अधिकांश आईटी पेशेवर और इंजीनियर हैं, सांस्कृतिक और आर्थिक सहयोग के सेतु का कार्य करते हैं।
  • अंतरिक्ष और गतिशीलता सहयोग: लूपेक्स मिशन (चंद्रयान-5), इसरो (ISRO) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के साथ संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण पर आपसी सहयोग किया जाएगा।
    • हाई-स्पीड रेल, विमानन, जहाज निर्माण और बंदरगाहों में गतिशीलता विस्तार से बुनियादी ढाँचे की कनेक्टिविटी बढ़ती है।
  • बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग: क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग अर्थात् क्वाड (Quad), अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI), और आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल (SCRI) में दोनों देश सक्रिय भूमिका में हैं।
    • अमेरिकी टैरिफ नीतियों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अनिश्चितताओं के बीच साझा रणनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया।
    • स्थानीय सहयोग के लिए जापानी प्रांतों और भारतीय राज्यों के बीच साझेदारी जमीनी स्तर पर संबंधों को मजबूत करती है।

भारत और जापान के बीच महत्त्वपूर्ण समझौते

वर्ष समझौता उद्देश्य
वर्ष 1952 शांति संधि (Treaty of Peace) युद्धोत्तर राजनयिक संबंध स्थापित।
वर्ष 1957 सांस्कृतिक समझौता सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।
वर्ष 1985 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग उन्नत संयुक्त अनुसंधान और प्रौद्योगिकी सहयोग।
वर्ष 2011 व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) विस्तारित व्यापार, निवेश और सेवाएँ।
वर्ष 2015 रक्षा उपकरण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता रक्षा सह-उत्पादन और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास को सक्षम बनाया।
वर्ष 2017 परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौता जापान को शांतिपूर्ण उपयोग के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी की आपूर्ति की अनुमति दी गई।

भारत-जापान संबंधों का महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक स्थिरता: यह साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को सुदृढ़ करती है और क्षेत्रीय शक्तियों की एकतरफा तथा बलपूर्वक कार्रवाइयों का प्रतिकार करती है।
    • नियमित समुद्री अभ्यास, क्वाड सहयोग और FOIP प्रतिबद्धता सुरक्षा ढाँचे को मजबूत करती है।
  • आर्थिक लचीलापन और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा: दोनों देश सेमीकंडक्टर, महत्त्वपूर्ण खनिज और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करके चीन पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने के लिए सहयोग करते हैं।
    • आपूर्ति शृंखला लचीलापन पहल (SCRI) जैसी संयुक्त पहलों का उद्देश्य विविधीकरण है।
  • प्रौद्योगिकी नेतृत्व और नवाचार साझेदारी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, जैव प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष अन्वेषण में सहयोग का विस्तार किया गया।
    • यह सहयोग भारत की डिजिटल महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ाता है और जापान के उच्च-तकनीकी उद्योगों का समर्थन करता है।
  • मानव पूँजी संतुलन स्थापित करना: जापान का वृद्ध कार्यबल भारत के युवा जनसांख्यिकीय लाभांश के अनुरूप है, जिससे गतिशीलता संबंधी वार्ता और कौशल विकास पारस्परिक रूप से लाभकारी बनते हैं।
    • भारत-जापान मानव संसाधन विकास योजना जापान में श्रम की कमी को दूर करती है और साथ ही भारतीय युवाओं को अवसर प्रदान करती है।
  • हरित विकास और ऊर्जा परिवर्तन: हाइड्रोजन, अमोनिया, जैव ईंधन, सौर ऊर्जा और अपतटीय पवन ऊर्जा में सहयोग दोनों देशों के कार्बन तटस्थता लक्ष्यों का समर्थन करता है।
    • जापान की हरित प्रौद्योगिकियाँ भारत की क्षमता विस्तार और ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।
  • वैश्विक शासन और बहुपक्षीय समर्थन: दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सुधार, परमाणु निरस्त्रीकरण और ‘ग्लोबल साउथ’ के प्रतिनिधित्व पर जोर देते हैं।
    • G20, क्वाड, ब्रिक्स और संयुक्त राष्ट्र के मंचों में उनका समन्वय एक बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को मजबूत करता है।

भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों के लिए चुनौतियाँ

  • हिंद-प्रशांत स्थिरता में चीन की भूमिका: पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में चीन की समुद्री आक्रामकता क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।
    • भारत, चीन की आलोचना में अधिक मुखर है, जबकि जापान आर्थिक अंतरनिर्भरता के कारण सतर्क बना हुआ है।
    • सेमीकंडक्टर और क्रिटिकल मिनरल के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता कमजोरियों को उजागर करती है।
    • आपूर्ति शृंखला विविधीकरण के प्रयासों के लिए अधिक निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता है।
    • गलवान संघर्ष (2020) के बाद भारत ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, जिसने जापान के साथ संबंधों को गहरा किया और चीन से सतर्कतापूर्वक वार्ता जारी रखी, जो दर्शाता है कि पारस्परिक विश्वास की कमी अब भी बनी हुई है।
  • भू-राजनीतिक संतुलन और रणनीतिक स्वायत्तता: क्षेत्रीय शक्ति संतुलन अमेरिका, चीन, जापान और भारत के परस्पर संबंधों से आकार लेता है।
    • ट्रंप 2.0 की टैरिफ नीतियाँ और अनिश्चितता क्वाड की सुसंगतता को कमजोर करती हैं और दीर्घकालिक रणनीति को जटिल बनाती हैं।
    • भारत रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखता है, BRICS, SCO और AIIB की सदस्यता के साथ क्वाड सहयोग को संतुलित करता है, जबकि जापान अमेरिका-समर्थक दृष्टिकोण अपनाता है।
  • रूस: एक कारक के रूप में: जापान, अमेरिका और G7 द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का पालन कर रहा है, जबकि भारत, रूस से ऊर्जा आयात और रक्षा सहयोग जारी रखे हुए है। कुरील द्वीप समूह के निकट आयोजित ‘वोस्तोक’ सैन्य अभ्यास में भारत की भागीदारी ने दोनों देशों के बीच मतभेदों को उजागर किया।
  • आर्थिक और जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ: भारत-चीन व्यापार की तुलना में द्विपक्षीय व्यापार कम बना हुआ है।
    • भारतीय निर्यातकों को भाषा संबंधी बाधाओं, गुणवत्ता मानकों और ई-कॉमर्स नियमों (ओसाका ट्रैक) तथा RCEP सदस्यता पर नीतिगत मतभेदों का सामना करना पड़ रहा है।
    • जापान की वृद्ध होती जनसंख्या और भारत का युवा कार्यबल स्वाभाविक रूप से पूरक हैं, लेकिन प्रवासन ढाँचों, कौशल साझेदारी और सामाजिक सुरक्षा समन्वय का अभाव संभावित लाभों को सीमित करता है।
  • रणनीतिक और अवसंरचना सहयोग के मुद्दे: एशिया-अफ्रीका ग्रोथ काॅरिडोर (Asia–Africa Growth Corridor- AAGC) वित्तपोषण, व्यवहार्यता संबंधी मुद्दों पर संघर्ष कर रहा है, जिससे चीन के BRI के प्रतिकार के रूप में इसकी छवि कमजोर हो रही है।
    • रक्षा सहयोग नौकरशाही देरी, लागत चुनौतियों और बाधित वार्ताओं (जैसे- US-2 एम्फीबियस एयरक्राफ्ट सौदा) का सामना कर रहा है।
    • रक्षा निर्यात के लिए भारत का प्रयास कभी-कभी जापानी महत्त्वाकांक्षाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है, जिससे सहयोग में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

आगे की राह

  • क्षेत्रीय भूमिका में वृद्धि: भारत और जापान को अपनी आर्थिक और सैन्य शक्तियों का उपयोग करके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रति एक विश्वसनीय प्रतिकार प्रस्तुत करना चाहिए।
    • क्वाड-आधारित पहलों, संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों और साइबर-सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने से प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि हो सकती है।
  • हरित प्रौद्योगिकियाँ और पर्यावरण सहयोग: जापानी नवाचार भारत को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकते हैं।
    • उदाहरणों में मियावाकी वनरोपण तकनीक और संयुक्त ऋण तंत्र (Joint Crediting Mechanism-JCM) शामिल हैं, जो निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रोत्साहित करते हैं।
  • व्यापार बाधाओं का समाधान: ऑटोमोबाइल और IT से आगे बढ़कर फार्मास्यूटिकल्स, डिजिटल सेवाओं तथा हरित प्रौद्योगिकी तक व्यापार का विस्तार करना महत्त्वपूर्ण है।
    • यदि जापानी विनिर्माण की विशेषज्ञता को भारतीय कच्चे माल और श्रम के साथ मिलाकर संयुक्त उद्यम बनाए जाएँ, तो वे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत कर सकते हैं।
  • रक्षा और सामरिक सहयोग: US-2 विमान सौदे को अंतिम रूप देना और पनडुब्बियों, रोबोटिक्स, क्वांटम प्रौद्योगिकी और मानवरहित वाहनों में सहयोग को गहरा करना सामरिक विश्वास का विस्तार करेगा।
  • कार्यबल का आदान-प्रदान: भारतीय IT पेशेवरों और कुशल श्रमिकों के प्रवास को प्रोत्साहित करने से जापान के डिजिटलीकरण और वृद्ध होते समाज को सहायता मिल सकती है।
    • शैक्षणिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान दीर्घकालिक सामाजिक संबंधों को मजबूत करेगा।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी का विस्तार: 5G, पनडुब्बी केबल प्रणाली, क्वांटम संचार और अर्द्धचालक अनुसंधान एवं विकास में सहयोग से दोनों देशों को चीन पर तकनीकी निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
  • रणनीतिक संपर्क और बुनियादी ढाँचा: भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और जापान की गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिए साझेदारी के सामंजस्य के माध्यम से दक्षिण एशिया को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने से क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ावा मिलेगा।
    • अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में संयुक्त परियोजनाएँ विकास साझेदारी की विश्वसनीयता बढ़ा सकती हैं।

निष्कर्ष

भारत-जापान साझेदारी, सहायता-आधारित सहयोग से आगे बढ़कर अब वैश्विक निहितार्थों वाला एक व्यापक रणनीतिक गठबंधन बन चुकी है। 15वाँ वार्षिक शिखर सम्मेलन एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है, जो आर्थिक सुरक्षा, महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों, जलवायु और अंतरिक्ष अन्वेषण में सहयोग में वृद्धि करता है, साथ ही पारंपरिक रक्षा और बुनियादी ढाँचे के स्तंभों को भी सशक्त बनाता है।

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