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भारत-ऑस्ट्रेलिया पारस्परिक मान्यता समझौता

Lokesh Pal September 27, 2025 03:54 55 0

संदर्भ

हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया ने जैविक उत्पादों के लिए एक पारस्परिक मान्यता समझौता (Mutual Recognition Arrangement [MRA]) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे के जैविक प्रमाण-पत्र को मान्यता देंगे।

संबंधित तथ्य

  • समझौते से नियमों का पालन करना आसान होने, नियामक बाधाओं में कमी आने और भारतीय निर्यातकों को ऑस्ट्रेलिया के उच्च-मूल्य आधारित बाजार तक आसान पहुँच प्राप्त होने की उम्मीद है।
  • यह समझौता भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (Economic Cooperation and Trade Agreement-ECTA) के अनुरूप है और इससे दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत होगी।

MRA की मुख्य विशेषताएँ

  • कवरेज: MRA दोनों देशों में उगाए और प्रसंस्कृत किए गए जैविक उत्पादों को शामिल करता है, जिनमें ये भी शामिल हैं:
    • अप्रसंस्कृत वृक्ष उत्पाद (समुद्री शैवाल, जलीय पौधे, ग्रीनहाउस फसलें शामिल नहीं)।
    • प्रमाणित जैविक सामग्री वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (भारत या ऑस्ट्रेलिया में प्रसंस्कृत की गई तीसरे देश की सामग्री सहित)।
    • वाइन।
  • क्रियान्वयन एजेंसियाँ
    • भारत: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority [APEDA]), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय।
    • ऑस्ट्रेलिया: कृषि, मत्स्य और वानिकी विभाग (Department of Agriculture, Fisheries and Forestry -DAFF)।

भारत के लिए समझौते का महत्त्व

  • व्यापार को बढ़ावा
    • भारत का ऑस्ट्रेलिया को जैविक निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में 8.96 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें 2,781.58 मिलियन टन उत्पाद शामिल थे। इसमें मुख्य रूप से ‘सिलियम हस्क’, नारियल का दूध और चावल शामिल थे।
    • MRA से अनाज, चाय, मसाले, पेय और शराब के निर्यात में बढोतरी होने की उम्मीद है।
    • ऑस्ट्रेलिया में 53 मिलियन हेक्टेयर जैविक खेती योग्य भूमि है, जो इसे विश्व में अग्रणी बनाती है और द्विपक्षीय व्यापार के लिए बड़े अवसर प्रदान करती है।
    • प्रमाणन समानता: इससे एक-दूसरे के मानकों और प्रमाणन प्रणाली पर विश्वास  में वृद्धि होती है, जिससे परीक्षण और प्रमाणन में दोहराव कम होता है।
    • अनुपालन को सरल बनाना: इससे निर्यातकों की लागत और नियामक बाधाएँ कम होती हैं।
  • कृषक लाभ
    • जैविक उत्पादों की कीमत 30-40% अधिक होती है, जिससे किसानों की आय बढ़ती है।
    • यह सरकार के उस लक्ष्य को भी समर्थन देता है, जिसके तहत भारत को ‘विश्व का जैविक खाद्य भंडार’ बनाया जाना है।
  • यह प्रीमियम अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक आसान पहुँच प्रदान करता है।

भारत का जैविक क्षेत्र

  • उत्पादन और क्षेत्र
    • जैविक कृषि के लिए उपलब्ध भूमि के मामले में भारत, विश्व में दूसरे स्थान पर है और उत्पादकों की संख्या में यह पहले स्थान पर है।
    • वित्त वर्ष 2024 में, भारत ने तेल-बीज, अनाज, दालें, मसाले, फल, सब्जियाँ, चाय, कॉफी, कपास और औषधीय पौधों जैसी श्रेणियों में 3.6 मिलियन टन प्रमाणित जैविक उत्पाद बनाए।
    • कुल जैविक क्षेत्र: 7.3 मिलियन हेक्टेयर (4.5 मिलियन हेक्टेयर कृषि क्षेत्र + 2.8 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र)।
  • प्रमुख उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा और सिक्किम।
  • निर्यात
    • भारत ने वित्त वर्ष 2024 में 2.61 लाख टन जैविक खाद्य पदार्थ निर्यात किए, जिससे 494.8 मिलियन डॉलर की कमाई हुई।
    • प्रमुख बाजार: अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, ब्रिटेन, श्रीलंका, स्विट्जरलैंड, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, जापान, दक्षिण कोरिया।

भारत में जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया

  • यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत ‘राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम’ (National Programme for Organic Production-NPOP) द्वारा नियंत्रित है। यह सुनिश्चित करता है कि जैविक उत्पाद, निर्धारित मानकों को पूरा करते हों, ताकि उनकी शुद्धता और वैश्विक स्तर पर बाजार में स्वीकार्यता बनी रहे।

प्रमाणन प्रक्रिया के मुख्य चरण

  • लागू होने का तरीका: जैविक उत्पादों से जुड़े किसान, प्रोसेसर, व्यापारी और एक्सपोर्टर को भारत में और निर्यात के लिए अपने उत्पादों को कानूनी रूप से जैविक के तौर पर बेचने हेतु NPOP के तहत सर्टिफिकेशन लेना होगा।
  • सर्टिफिकेशन संस्थाएँ: यह ‘एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी’ (APEDA) द्वारा अधिकृत मान्यता प्राप्त ‘सर्टिफिकेशन एजेंसियों’ द्वारा जारी किया जाता है, जो एक नियामक संस्था के रूप में काम करती है।
  • निरीक्षण और परीक्षण: सर्टिफिकेशन एजेंसियाँ ​​NPOP की आवश्यकताओं के अनुसार जैविक मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए कृषि के तरीकों, प्रोसेसिंग सुविधाओं और भंडारण का विस्तृत ऑन-साइट निरीक्षण और ऑडिट करती हैं।
  • मृदा और उत्पाद परीक्षण: खेत और उत्पाद के नमूनों का कीटनाशक अवशेष, प्रदूषक और जैविक मानदंडों के पालन के लिए परीक्षण किया जाता है।
  • जैविक खेती में रूपांतरण अवधि: जैविक सर्टिफिकेशन के लिए भूमि को एक रूपांतरण अवधि पूरी करनी होती है, जो आमतौर पर तीन वर्ष की होती है। इस अवधि के दौरान किसी भी प्रतिबंधित पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता और जैविक तरीकों का सख्ती से पालन किया जाता है।
  • सर्टिफिकेशन की वैधता: एक बार सर्टिफाइड होने के बाद, जैविक उत्पाद और प्रक्रियाएँ “इंडिया जैविक” लोगो का उपयोग कर सकती हैं। सर्टिफिकेशन आमतौर पर एक वर्ष के लिए वैध होते हैं और नवीनीकरण के लिए वार्षिक ऑडिट की आवश्यकता होती है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन: NPOP प्रमाणन अंतरराष्ट्रीय जैविक मानकों के अनुरूप है, जिससे भारत-ऑस्ट्रेलिया MRA जैसे समझौतों के तहत निर्यात में सुगमता होती है।

सरकार द्वारा जैविक खेती क्षेत्र में उठाए गए कदम

  • जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Organic Production- NPOP)
    • प्रमाणन और मानक: APEDA द्वारा लागू NPOP, जैविक उत्पादन के लिए मानक निर्धारित करता है, प्रमाणन निकायों को मान्यता देता है और निर्यात स्तर पर अनुपालन सुनिश्चित करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय मान्यता: अप्रसंस्कृत वृक्ष उत्पादों के लिए NPOP के मानकों को यूरोपीय कमीशन और स्विट्जरलैंड द्वारा मान्यता प्राप्त है, जिससे भारतीय जैविक उत्पाद आसानी से उन बाजारों में प्रवेश कर सकते हैं।
  • पारंपरिक कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana- PKVY)
    • क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण: किसानों के समूहों में जैविक खेती को बढ़ावा देता है, जिसमें लागत आपूर्ति, प्रशिक्षण, प्रमाणन, मार्केटिंग और प्रचार के लिए सहायता शामिल है।
    • वित्तीय सहायता: तीन वर्षों में प्रति हेक्टेयर ₹31,500 तक की सहायता, जिसमें से इनपुट लागत सहायता के लिए प्रति हेक्टेयर ₹15,000 सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर किए जाते हैं (DBT)।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (Mission Organic Value Chain Development for North Eastern Region-MOVCDNER)
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र पर ध्यान: उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए विशेष योजना, उत्पादन, प्रसंस्करण, प्रमाणन, विपणन जैसी सभी गतिविधियों के लिए ‘एंड-टू-एंड’ मूल्य शृंखला स्थापित करना।
    • सब्सिडी और बुनियादी ढाँचा: बुनियादी ढाँचे (भंडारण, कोल्ड चेन, प्रसंस्करण इकाइयाँ) के लिए 50-75% सब्सिडी के साथ सहायता प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (National Centre for Organic Farming-NCOF)
    • फोकस: राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन घटक के अंतर्गत जैविक खेती को बढ़ावा देना।
    • तकनीकी सहायता: जैव उर्वरकों, जैव कीटनाशकों, वर्मीकंपोस्ट आदि पर दिशा-निर्देश प्रदान करना और राज्यों को जैविक नीति ढाँचे में सहायता प्रदान करना।
    • नोडल निकाय: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अंतर्गत कार्य करता है।

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