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भारत भूटान संबंध

Lokesh Pal November 13, 2025 03:15 33 0

संदर्भ 

हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने भूटान की दो दिवसीय राजकीय यात्रा पूरी की। यह यात्रा भूटान के चौथे राजा (K4) जिग्मे सिंग्ये वांगचुक के 70वें जन्म दिवस के अवसर पर की गई है।

‘ग्लोबल पीस प्रेयर फेस्टिवल’ (GPPF), थिम्फू

यह एक 16-दिवसीय महोत्सव है जो विश्व शांति और मानवता के प्रसार हेतु प्रार्थनाओं को समर्पित एक वैश्विक पहल है, विशेष रूप से वर्तमान वैश्विक संघर्षों की पृष्ठभूमि में।

  • यह पहला GPPF था, जहाँ बौद्ध धर्म की तीन प्रमुख शाखाओं  महायान, थेरवाद और वज्रयान  के धार्मिक नेता और विद्वान एक साथ उपस्थित थे।
  • भूटान की दृष्टि से: विश्व का एकमात्र वज्रयान स्थल, जहाँ बौद्ध धर्म राष्ट्रीय पहचान और ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (GNH) के मूल में है।
  • संचालन एवं साझेदार: भारत के संस्कृति मंत्रालय और ‘इंटरनेशनल बौद्ध कन्फेडरेशन’ (IBC) का संयुक्त प्रयास है।
  • IBC की विशेष प्रदर्शनियाँ 
    • गुरु पद्मसंभव: भारत में ‘अनमोल गुरु’ के जीवन और पवित्र स्थलों का चित्रण किया गया।
    • शाक्य वंश की पवित्र विरासत: बुद्ध अवशेषों उत्खनन और उनके ऐतिहासिक महत्त्व का विवरण प्रदर्शित किया गया।
    • बुद्ध का जीवन एवं उपदेश: बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के मार्ग की गहन यात्रा का विवरण दिया गया।
  • जब्झी (Jabzhi): इस महोत्सव की प्रमुख विधाओं में से एक ‘जब्झी’ है, यह एक वज्रयान बौद्ध अनुष्ठान है जिसका उद्देश्य नकारात्मक कर्म का शुद्धिकरण और विनाशकारी शक्तियों का निवारण है।
  • आध्यात्मिक पहल: भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष, जो नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित हैं, भारत की ओर से सद्भावना उपहार के रूप में थिम्फू लाए गए।

भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष

  • उत्पत्ति: ये प्राचीन बौद्ध अवशेष उत्तर प्रदेश के पिपरहवा स्थल से प्राप्त हुए हैं, जो प्राचीन कपिलवस्तु (गौतम बुद्ध का गृहस्थान) से संबद्ध माना जाता है।
  • वर्ष 1898 की खोज: ब्रिटिश सिविल इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने पिपरहवा में एक प्राचीन स्तूप के उत्खनन के दौरान इन अवशेषों की खोज की थी।
  • प्राप्त कलाकृतियाँ: पत्थर के बक्से में छोटी-छोटी कलशियाँ प्राप्त हुईं, जिनमें अस्थि-अवशेष, राख, रत्न तथा ब्राह्मी लिपि में अंकित शिलालेख सहित एक बलुआ पत्थर का पात्र भी सम्मिलित था।
  • शिलालेख: यह शिलालेख शाक्य वंश से संबंध दर्शाता है, जिससे स्पष्ट होता है कि ये बुद्ध के पवित्र अवशेषों का एक भाग थे।
  • संरक्षक: भारत का राष्ट्रीय संग्रहालय, जो इन्हें सर्वाधिक पवित्र बौद्ध अवशेषों में मानता है।
  • महत्त्व: भूटान में इन अवशेषों का प्रदर्शन शांति का प्रतीक, साझी आध्यात्मिक विरासत का उत्सव और भारत-भूटान के विशेष संबंधों की पुनः पुष्टि है।

भारतीय प्रधानमंत्री की भूटान राजकीय यात्रा की प्रमुख विशेषताएँ

  • रणनीतिक और प्रतीकात्मक सहभागिता
    • भागीदारी: हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री थिम्फू में आयोजित राष्ट्रीय उत्सवों में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे और ‘ग्लोबल पीस प्रेयर फेस्टिवल’ में भाग लिया, जहाँ उन्होंने राजा और चौथे द्रुक ग्यालपो के साथ कालचक्र सशक्तिकरण समारोह का उद्घाटन किया।
    • इस यात्रा ने भारत और भूटान के बीच आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत किया, जिसका प्रतीक भारत से वापस लाए गए भगवान बुद्ध के पिपरहवा अवशेषों का सार्वजनिक दर्शन था।
  • जलविद्युत और ऊर्जा सहयोग 
    • उद्घाटन: भारत के प्रधानमंत्री और भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक ने 1,020 मेगावाट पुनात्संगछू-II जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन किया, जो भारत के सहयोग से निर्मित एक द्विपक्षीय ऊर्जा सहयोग की प्रमुख परियोजना है।
      •  इससे भूटान की जलविद्युत क्षमता लगभग 40% बढ़ेगी।
      • जिससे भारत को विद्युत निर्यात क्षमता में भी वृद्धि होगी।
    • अगली परियोजना: 1,200 मेगावाट पुनात्संगछू-I परियोजना पर कार्य पुनः आरंभ किया जाएगा।
    • वित्तीय सहयोग: भारत ने ऊर्जा परियोजनाओं के लिए ₹40 अरब की क्रेडिट लाइन प्रदान की है।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी: टाटा पावर, अडानी पावर, रिलायंस पावर जैसी भारतीय कंपनियों ने द्रुक ग्रीन पावर कॉरपोरेशन के साथ नए परियोजनाओं के विकास हेतु समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।
    • रणनीतिक संदर्भ: यह ऊर्जा साझेदारी भारत की क्षेत्रीय प्रभावशीलता को सुदृढ़ करती है, विशेषकर चीन के साथ भूटान की बढ़ती संलग्नता के परिप्रेक्ष्य में।
  • संपर्क एवं सीमा अवसंरचना
    • समझौते एवं परियोजनाएँ
      • दर्रांगा आव्रजन जाँच चौकी (वर्ष 2024) और जोगीगोफा अंतर्देशीय जलमार्ग टर्मिनल एवं लॉजिस्टिक्स पार्क (वर्ष 2025) का संचालन प्रारंभ किया गया है।
      • सीमा पार रेल संपर्क पर नया समझौता ज्ञापन: गेलेफू-कोकराझार और समत्से-बानरहाट, इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक संयुक्त संचालन समिति करेगी।
      • गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी पहल को समर्थन देने के लिए हतिसार (असम) में नई चेक पोस्ट की घोषणा की गई।

    • उद्देश्य: असम, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भूटान के बीच व्यापार, लॉजिस्टिक्स और जन-जन संपर्क को सुदृढ़ करना।

गेलफू माइंडफुलनेस सिटी 

  • सद्भाव, स्थिरता और भूटान की ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (GNH) को बढ़ावा देने वाला एक स्थायी,  जीरो कार्बन शहर बनाना।
    • ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (GNH): यह शब्द भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंग्ये वांगचुक द्वारा 1970 के दशक में गढ़ा गया था।
    • यह भूटान में सकल घरेलू उत्पाद माप के विकल्प के रूप में आर्थिक और नैतिक प्रगति का मापन करता है।
  • अवस्थिति: दक्षिणी भूटान के गेलफू नगर में 2500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में नियोजित विशेष प्रशासनिक क्षेत्र और आर्थिक केंद्र है।
  • लक्ष्य: एक ऐसा शहरी मॉडल विकसित करना, जो आर्थिक प्रगति, सततता और सजग जीवन शैली को एकीकृत करे।

  • विकास और आर्थिक सहयोग
    • 13वीं पंचवर्षीय योजना: भारत ने भूटान की विकास योजना और आर्थिक प्रोत्साहन कार्यक्रम के लिए समर्थन की पुनः पुष्टि की, जिसमें सड़क, कृषि, स्वास्थ्य और वित्त क्षेत्र शामिल हैं।
    • उर्वरक एवं आवश्यक वस्तुएँ: आवश्यक वस्तुओं एवं उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु संस्थागत तंत्र स्थापित किया गया, जिसके अंतर्गत पहली खेप नई प्रणाली के तहत भेजी गई।
  • प्रौद्योगिकी और वित्तीय एकीकरण
    • UPI विस्तार (द्वितीय चरण): अब भूटानी नागरिक भारत में स्थानीय ऐप्स के माध्यम से QR कोड द्वारा भुगतान कर सकेंगे, जो डिजिटल वित्तीय एकीकरण के नए चरण का संकेत है।
    • STEM, फिनटेक और अंतरिक्ष सहयोग: दोनों देशों ने संयुक्त अंतरिक्ष कार्ययोजना की समीक्षा की; भारत ने शिक्षा और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भूटान में भेजे ताकि STEM और स्वास्थ्य क्षमता का विकास हो सके।
  • सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सहयोग 
    • नई भूमि आवंटन: भारत ने वाराणसी में भूटानी मंदिर एवं अतिथि गृह हेतु भूमि प्रदान की।
    • राजगीर में शाही भूटान मंदिर का अभिषेक: जो भारत-भूटान के स्थायी बौद्ध संबंधों का प्रतीक है।
    • आध्यात्मिक कूटनीति: भूटान के प्रधानमंत्री ने मोदी को ‘आध्यात्मिक गुरु’ कहा, जो दोनों देशों की साझा सभ्यतागत आत्मा को दर्शाता है।
  • कूटनीतिक और मानवीय संकेत
    • भूटान ने दिल्ली में हुए विस्फोट (10 नवंबर) पर संवेदना व्यक्त की; भारत ने इस एकजुटता की सराहना की।
    • दोनों देशों ने नियमित उच्चस्तरीय संवाद और आदान-प्रदान को बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई।

भारत–भूटान संबंधों की पृष्ठभूमि

  • भारत और भूटान के संबंध आपसी विश्वास, सद्भावना और समझ पर आधारित हैं।
  • ऐतिहासिक आधार (वर्ष 1949): मैत्री संधि ने औपचारिक संबंध स्थापित किए।
    • भूटान ने बाहरी मामलों में ‘भारत द्वारा निर्देशित’ होने पर सहमति व्यक्त की, जबकि भारत ने भूटान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिया।
    • इससे भूटान के प्रारंभिक राष्ट्र-निर्माण चरण के दौरान उसकी सुरक्षा और विकास सहायता सुनिश्चित हुई।
  • क्रमिक संक्रमण: जैसे-जैसे भूटान ने आधुनिकीकरण किया और अपनी संप्रभुता को मजबूत किया, भारत ने बिना किसी टकराव के उसकी इस प्रगति में सहयोग किया तथा पंचवर्षीय योजनाओं और तकनीकी सहयोग के माध्यम से भूटान की संस्थागत, सैन्य और आर्थिक योजना संरचना के निर्माण में सहायता की।
  • जलविद्युत साझेदारी (1960 के दशक से): यह द्विपक्षीय संबंधों का आधारस्तंभ बन गई। भारत ने चुखा, ताला और पुनात्सांगछू जैसे परियोजनाओं को वित्तपोषित किया और निर्माण में सहायता दी, जिससे भूटान की नदियाँ एक स्थायी आर्थिक इंजन और पारस्परिक लाभ का प्रतीक बन गईं।
  • वर्ष 2007 की संधि संशोधन: पुरानी ‘भारत द्वारा मार्गदर्शन’ वाली धारा को हटाकर स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए पारस्परिक सम्मान की प्रतिबद्धता को शामिल किया गया। इससे भारत–भूटान संबंध एक ‘संरक्षक–राज्य मॉडल’ से ‘समान भागीदारी वाले सहयोग’ में परिवर्तित हुए।
  • आध्यात्मिक संबंध: भूटान, भारत को ‘ग्यागर’ मानता है, अर्थात वह पवित्र भूमि जहाँ बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई। बौद्ध धर्म ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत बनाए रखा है।
    • हाल ही में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (IBC) ने भारत और भूटान दोनों के बौद्ध भिक्षुओं को एक साथ लाकर उनके साझा आध्यात्मिक संबंध को और सशक्त किया।
    • अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (IBC): दिल्ली, भारत स्थित यह संगठन बौद्ध धर्म की समृद्ध विविधता का प्रतिनिधित्व करता है और वैश्विक बौद्ध समुदाय के लिए एक ऐसा मंच प्रदान करता है जहाँ वे अपने ज्ञान को साझा करते हुए अपनी साझा विरासत को संरक्षित और प्रोत्साहित कर सकें।
      • इसका मुख्यालय नई दिल्ली, भारत में स्थित है।
  • रणनीतिक समन्वय: भूटान, चीन के साथ अपनी सीमाओं पर सतर्क और संतुलित संवाद बनाए रखता है, जबकि भारत को अपने प्रमुख सुरक्षा और आर्थिक साझेदार के रूप में रखता है।

भारत–भूटान संबंधों का महत्त्व

  • व्यापार और आर्थिक संबंध: भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत–भूटान व्यापार, वाणिज्य और पारगमन समझौता दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित करता है तथा तीसरे देशों के लिए भूटानी निर्यातों के शुल्क-मुक्त पारगमन की भी व्यवस्था प्रदान करता है।
    • वर्ष 2014 के बाद से, भारत का भूटान के साथ व्यापार तीन गुना से अधिक बढ़ गया है, वर्ष 2014–15 में 484 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024–25 में 1,777.44 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो भूटान के कुल व्यापार का 80% से अधिक है।
    • निवेश: दिसंबर 2024 तक, भारत भूटान में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 55% हिस्सा रखता है, जिससे वह देश का सबसे बड़ा FDI स्रोत बन गया है।
    • चूँकि भूटान स्थलरुद्ध है, भारत उसके तीसरे देशों से सभी आयात और निर्यात के लिए प्रमुख मार्ग के रूप में कार्य करता है।
  • जलविद्युत सहयोग: भारत–भूटान के बीच पारस्परिक लाभदायक जलविद्युत सहयोग वर्ष 2006 के द्विपक्षीय सहयोग समझौते और वर्ष 2009 में हस्ताक्षरित इसके प्रोटोकॉल के तहत संचालित है।
    • भूटान में कुल 2136 मेगावाट की चार जल विद्युत परियोजनाएँ (HEP) पहले से ही कार्यरत हैं और भारत को विद्युत की आपूर्ति कर रही हैं।
    • अंतर-सरकारी माध्यम से दो जल विद्युत परियोजनाएँ अर्थात् 1200 मेगावाट पुनात्सांगछु-I, 1020 मेगावाट पुनात्सांगछु-II कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।
    • भारत को जलविद्युत बेचने से प्राप्त राजस्व प्रायः भूटान के राष्ट्रीय राजस्व का 20%-25% होता है, जिससे यह विदेशी मुद्रा का सबसे बड़ा स्रोत बन जाता है।
    • भूटान के कुल निर्यात राजस्व में जलविद्युत का योगदान 63 प्रतिशत है।
  • सुरक्षा और भू-रणनीतिक पहलू: भूटान का स्थान भारत और चीन के बीच एक बफर राज्य के रूप में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है , विशेषकर संवेदनशील चुंबी घाटी (Chumbi Valley) और डोकलाम क्षेत्र के कारण, जो भारत के सिलीगुड़ी गलियारे के निकट है।
    • भूटान ने भारत के साथ सहयोग करते हुए ‘यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम’ (ULFA) और ‘नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड’ (NDFB) जैसे उग्रवादी समूहों को अपने क्षेत्र से बाहर निकालने में सहायता की है।
  • बहुपक्षीय सहयोग: भारत और भूटान कई क्षेत्रीय संगठनों के सदस्य हैं, जैसे- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) और ‘बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन’ (BIMSTEC)
    • दोनों देश इन मंचों के माध्यम से आर्थिक और तकनीकी सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं तथा क्षेत्रीय विकास और स्थिरता की दिशा में कार्य करते हैं।
  • सहयोग के नए क्षेत्र: द्विपक्षीय सहयोग नए और उभरते क्षेत्रों में आगे बढ़ा है, जिसमें प्रमुख डिजिटल परियोजना RuPay की पूर्ण अंतर-संचालनीयता शामिल है, भूटान भीम ऐप लॉन्च करने वाला दूसरा देश बन गया है।
    • COVID-19 सहायता: भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भूटान को मेड-इन-इंडिया कोविशील्ड वैक्सीन की लगभग 5.5 लाख खुराकें उपहारस्वरूप दीं गई हैं।
  • द्विपक्षीय संबंधों का आदर्श मॉडल: भारत–भूटान संबंध प्रायः एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में उद्धृत किए जाते हैं कि किस प्रकार एक बड़ा देश और एक छोटा पड़ोसी देश आपसी सम्मान, विश्वास और पारस्परिक लाभ के माध्यम से असमानता का प्रबंधन करते हैं, न कि प्रभुत्व से।
  • आंतरिक खतरों का मुकाबला: सीमा प्रबंधन और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय उग्रवादी समूहों के आवागमन पर अंकुश लगाने में भूटान का सहयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय प्रवासी: वर्तमान में लगभग 50,000 भारतीय भूटान में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो दोनों देशों के बीच गहरे जन-संपर्कों को दर्शाते हैं।

भारत–भूटान द्विपक्षीय संबंधों में चुनौतियाँ

  • भूटान–चीन सीमा वार्ता: भूटान चीन के साथ सीमा वार्ताओं के संवेदनशील चरण से गुजर रहा है, विशेष रूप से विवादित उत्तरी क्षेत्रों और पश्चिमी भूटान में स्थित रणनीतिक रूप से संवेदनशील डोकलाम पठार  पर।
    • किसी भी संभावित समझौते का सीधा प्रभाव भारत की सुरक्षा गणना पर पड़ेगा, क्योंकि डोकलाम भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर (‘चिकन नेक’) के निकट है, जो भारत की मुख्य भूमि को उसके उत्तर-पूर्वी राज्यों से जोड़ता है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: चीन–भूटान सीमा वार्ता भारत के लिए सुरक्षा चिंताएँ बढ़ा रही हैं क्योंकि यह वार्ताएँ उस त्रिकोणीय बिंदु को भी शामिल करती हैं जो सिलीगुड़ी गलियारे के पास स्थित है, यह गलियारा भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र को देश के शेष हिस्सों से जोड़ता है।
    • हाल के वर्षों में चीन द्वारा चीन-भूटान सीमा क्षेत्र में गाँवों का निर्माण और डोकलाम के समीप ट्राई-जंक्शन (त्रि-बिंदु) के समाधान को लेकर भूटान की अभिव्यक्ति में आया परिवर्तन, क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य को पुनः परिभाषित करने वाले प्रमुख घटनाक्रम हैं।
  • जलविद्युत निर्भरता और तनाव: जलविद्युत भारत–भूटान आर्थिक सहयोग का आधार है, लेकिन इसके साथ कुछ असमानताएँ भी जुड़ी हुई हैं।
    • कुछ लोगों का मानना है कि परियोजना वित्तपोषण और टैरिफ संरचना भारत के पक्ष में झुकी हुई है, जिससे न्यायसंगत लाभ और दीर्घकालिक स्थिरता पर बहस छिड़ी है।
    • बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित बार-बार का विलंब, लागत में वृद्धि और पर्यावरणीय चिंताओं ने भूटान पर घरेलू दबाव बढ़ाया है कि वह भारत-प्रमुख मॉडलों पर निर्भरता के अतिरिक्त अपनी ऊर्जा रणनीति में विविधता लाए।
  • आर्थिक विविधीकरण और रोजगार दबाव: भूटान बढ़ती आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे- युवाओं में बेरोजगारी, सीमित निजी क्षेत्र का विकास, और जलविद्युत राजस्व पर अत्यधिक निर्भरता।
    • जैसे-जैसे शिक्षित भूटानी युवा विदेशों में पलायन कर रहे हैं, भूटान व्यापक आर्थिक विविधीकरण की दिशा में कार्य करना चाहता है, जिसके लिए भारत की व्यापार, श्रम और तकनीकी सहयोग में लचीलापन आवश्यक है ताकि भूटान के सुधार एजेंडा में सद्भावना और प्रासंगिकता बनी रहे।
    • हालाँकि भारत के साथ वरीयता प्राप्त व्यापार समझौते मौजूद हैं, फिर भी भूटान लगातार व्यापार घाटे का सामना कर रहा है वह भारत से जितना आयात करता है, उससे कहीं कम निर्यात करता है।
    • चीन एक कारक के रूप में: भूटान व्यापार, सहायता और तकनीकी सहयोग के लिए भारत पर अत्यधिक निर्भर है यह निर्भरता भूटान को चीन के साथ सीमा वार्ताओं को तीव्रता से निष्पादित करने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करती है।
      • चीन का भूटान को निर्यात वर्ष 2020 में ₹200 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2022 में ₹1,500 करोड़ हो गया है।
  • बांग्लादेश–भूटान–भारत–नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता: भूटान ने पर्यावरणीय चिंताओं का हवाला देते हुए BBIN समझौते की पुष्टि से दूरी बनाई।
    • BBIN एक उप-क्षेत्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य आर्थिक सहयोग और संपर्क को सुदृढ़ करना है, जबकि यह सार्क की जटिल राजनीतिक चुनौतियों को दरकिनार करता है।
  • पर्यावरणीय और सामाजिक संवेदनशीलताएँ: सीमापार परियोजनाएँ, जैसे-रेल लिंक, सड़कें और ऊर्जा अवसंरचना संपर्कता के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ये पारिस्थितिक प्रभाव, सांस्कृतिक संरक्षण, और स्थानीय परामर्श की कमी जैसी चिंताओं को भी उत्पन्न करती हैं।
    • भूटान की सख्त पर्यावरणीय नीति और ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (GNH) यह अपेक्षा करता है कि भारत की विकास पहलें भूटान के सततता मानकों के अनुरूप हों।

आगे की राह 

  • भारत की कूटनीतिक संतुलन नीति: भारत और भूटान के बीच संबंधों के सामान्यीकरण के संकेत बढ़ रहे हैं, भारत को सामरिक निष्क्रियता बनाए रखना चाहिए, यह दर्शाते हुए कि वह इन घटनाक्रमों को अपने हितों के लिए हानिकारक नहीं मानता।
    • डोकलाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के अनसुलझे रहने और साकटेंग क्षेत्र में नए दावों के उभरने के साथ, भारत को चीन की यथास्थिति बदलने की इच्छा के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
  • जलविद्युत साझेदारी का पुनर्संतुलन: दानदाता-प्राप्तकर्ता मॉडल से हटकर संयुक्त उपक्रमों की दिशा में जाना चाहिए, जिसमें लागत-साझाकरण अधिक संतुलित और टैरिफ तंत्र अधिक पारदर्शी हो।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी को विनियमित ढाँचे के तहत प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वित्तीय विविधता बढ़े और परियोजना विलंब कम हों।
    • जलविद्युत को क्षेत्रीय हरित ऊर्जा ग्रिड से जोड़ना चाहिए तथा भूटान के कार्बन-निगेटिव लक्ष्यों के अनुरूप सौर–पवन–जल हाइब्रिड परियोजनाओं की दिशा में कार्य करना चाहिए।
  • चीन से लगती सीमा पर सामरिक समन्वय गहन करना: चीन से जुड़े सभी सीमा विकासों पर भूटान के साथ पारदर्शी और उच्च-स्तरीय रणनीतिक परामर्श बनाए रखना आवश्यक है, विशेषकर डोकलाम और पश्चिमी क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर।
    • भूटान के संप्रभु निर्णयों का सम्मान करते हुए भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर में उसकी सुरक्षा हित सुरक्षित रहें  इसके लिए खुफिया साझाकरण और संयुक्त निगरानी को मजबूत करना होगा।
    • रक्षा सहयोग का विस्तार क्षमता निर्माण, साइबर सुरक्षा, और सीमा प्रबंधन के क्षेत्रों में किया जाना चाहिए, साथ ही भूटान की संवेदनशीलताओं का सम्मान भी किया जाना चाहिए।
  • सुरक्षा सहयोग में सुधार: वर्ष 2017 के डोकलाम गतिरोध ने भारत और भूटान के बीच सुरक्षा एवं सीमा प्रबंधन समन्वय के महत्त्व को उजागर किया।
    • उदाहरण के लिए, भूटान में भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (IMTRAT) की तैनाती ने भूटानी सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • सांस्कृतिक और जन-संपर्क संबंध: कई भूटानी तीर्थयात्री भारत के बौद्ध स्थलों (बोधगया, राजगीर, नालंदा, सिक्किम, उदयगिरि आदि) की यात्रा करते हैं।
    • दोनों देशों के बीच विनिमय कार्यक्रमों, सांस्कृतिक उत्सवों, और शैक्षिक पहलों को सशक्त बनाकर जन संपर्क को और गहराई दी जा सकती है।
  • जलविद्युत से परे आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देना: लक्षित ऋण और संस्थागत साझेदारी के माध्यम से प्रौद्योगिकी, स्टार्टअप, पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में भारत की भूमिका का विस्तार करना।
    • कृषि-प्रसंस्करण, डिजिटल सेवाओं, और सतत् उद्योगों में संयुक्त उपक्रमों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित हों और भूटान के व्यापार घाटे में कमी आए।
    • भारत के डिजिटल भुगतान नेटवर्क के माध्यम से लॉजिस्टिक्स सुधार, सीमा शुल्क डिजिटलीकरण और ई-कॉमर्स एकीकरण के माध्यम से भूटानी निर्यात को अधिक बाजार पहुँच प्रदान की जा सकती है।
  • डिजिटल, वित्तीय और जन एकीकरण को बढ़ावा देना: UPI–भूटान फेज-II को शीघ्रता से लागू किया जाना चाहिए तथा RuPay, BHIM और अन्य फिनटेक प्रणालियों की अंतःपरिचालनता का विस्तार किया जाना चाहिए।
    • STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, गणित) और जलवायु अध्ययन में छात्र विनिमय और संयुक्त शैक्षणिक अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • विकास सहयोग 2.0 का संस्थानीकरण: भारत की सहायता को भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना (2024–29) के अंतर्गत स्वास्थ्य, शिक्षा और जलवायु अनुकूलन जैसे मापनीय परिणामों से जोड़ा जाना चाहिए।
    • अवसंरचना परियोजनाओं के लिए संयुक्त निगरानी तंत्र अपनाया जाना चाहिए ताकि कार्यान्वयन और जवाबदेही में सुधार हो।
    • भूटानी नागरिक सेवकों, इंजीनियरों, और शिक्षकों के लिए भारतीय संस्थानों (IITs, IIMs, NIFT, NID) में क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिए।
  • सतत् विकास को प्रोत्साहन: भूटान के ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस सिद्धांत के अनुरूप हरित ऊर्जा, ईको-टूरिज्म, आपदा प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन पर संयुक्त प्रयास किए जाने चाहिए।
  • ग्रीन कॉरिडोर विस्तार: संयुक्त सौर और हाइड्रोजन परियोजनाओं का विकास किया जाना चाहिए, जिससे भूटान को भारत के कार्बन बाजार पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत किया जा सके।

निष्कर्ष 

भारत–भूटान संबंध दक्षिण एशिया में विश्वास और संतुलन का आदर्श मॉडल हैं, जो पारंपरिक सुरक्षा और सहायता ढाँचे से विकसित होकर अब एक आधुनिक साझेदारी बन गए हैं, जो साझा मूल्यों, सतत् विकास और रणनीतिक अभिसरण पर आधारित है।

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