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भारत-चीन भू-आर्थिक रणनीति

Lokesh Pal August 08, 2025 02:00 9 0

संदर्भ

र्ष 2025 में, चीन द्वारा फॉक्सकॉन के भारत स्थित संयंत्रों से 300 से अधिक इंजीनियरों को वापस बुलाना और निर्यात प्रतिबंध लागू करना, भारत की उभरती उच्च तकनीक विनिर्माण आकांक्षाओं को बाधित करने की उसकी भू-आर्थिक रणनीति को उजागर करता है।

भू-आर्थिक रणनीति

भू-आर्थिक रणनीति से तात्पर्य भू-राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए राज्यों द्वारा आर्थिक साधनों के उपयोग से है, जिसमें प्रायः व्यापार, वित्त, प्रौद्योगिकी और प्रतिबंधों को विदेश नीति के उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।

भू-आर्थिक रणनीति के मुख्य उपकरण

  • प्रतिबंध और व्यापार प्रतिबंध: देश दबाव बनाने के लिए आर्थिक प्रतिबंधों का प्रयोग करते हैं।
    • यूक्रेन युद्ध के जवाब में रूस पर नाटो और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, जिनका उद्देश्य मास्को की आर्थिक और सैन्य क्षमताओं को कमजोर करना है।
  • ऊर्जा कूटनीति: देश दूसरों को प्रभावित करने के लिए ऊर्जा आपूर्ति में हस्तक्षेप करते हैं।
    • रूस अपने गैस निर्यात का प्रयोग यूरोप पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए करता है।
  • निवेश, सहायता और विकास वित्त: विकास सहायता और ऋणों का रणनीतिक उपयोग गठबंधनों को आकार देता है।
    • चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल बीजिंग के प्रभाव को बढ़ाने के लिए विकासशील देशों में महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे का वित्तपोषण करती है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान, चीन का मुकाबला करने के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया में परियोजनाओं को वित्तपोषित करते हैं।
  • प्रौद्योगिकी और बाजार पहुँच: महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और आपूर्ति शृंखला पहुँच पर नियंत्रण एक शक्तिशाली उपकरण है।
    • अमेरिका के नेतृत्व में चिप निर्यात प्रतिबंध चीन के तकनीकी क्षेत्र को लक्षित करते हैं।

भारत की भू-आर्थिक नीति

  • आर्थिक कूटनीति एक उपकरण के रूप में: भारत आर्थिक तनावों को झेलने और अवसरों का लाभ उठाने के लिए विदेश नीति का उपयोग करता है और राष्ट्रीय लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए व्यापार, तकनीक और वित्त पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • उदाहरण के लिए, भारत कूटनीतिक असहमति प्रदर्शित कर रहा है और ट्रंप के टैरिफ का मुकाबला करने के लिए वार्ता का सहारा ले रहा है।
  • संतुलित रणनीतिक स्वायत्तता: भारत किसी भी गुट में शामिल हुए बिना अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस और चीन जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंध बनाए रखता है, जिससे लचीलापन और आर्थिक विकल्प सुरक्षित रहते हैं।
  • विकास में वैश्विक भूमिका: G20, ब्रिक्स और क्वाड जैसे मंचों के माध्यम से, भारत न केवल ऋण राहत और डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं जैसी विकासशील देशों की प्राथमिकताओं को प्रोत्साहित करता है, बल्कि वैश्विक सहयोग के माध्यम से अपने समावेशी विकास को भी आगे बढ़ाता है।
  • विविध साझेदारियाँ: भारत अत्यधिक निर्भरता को कम करने और आर्थिक लचीलेपन को मजबूत करने के लिए अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ संबंधों का विस्तार कर रहा है।
  • डिजिटल कूटनीति: UPI और इंडिया स्टैक जैसे प्लेटफॉर्मों को बढ़ावा देकर, भारत का लक्ष्य वैश्विक डिजिटल मानकों को आकार देना और वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में अपनी उपस्थिति को बढ़ाना है।

विनिर्माण और प्रौद्योगिकी में भारत की आर्थिक महत्त्वाकांक्षा

  • वर्ष 2047 तक वैश्विक विनिर्माण केंद्र: भारत वर्ष 2047 तक एक शीर्ष वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने का लक्ष्य रखता है, जिसकी नींव मेक इन इंडिया और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) जैसी प्रमुख पहलों पर रखी जाएगी, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में उत्पादन को प्रोत्साहित करती हैं।
  • उद्योग 4.0 को अपनाना: विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए, भारत स्वचालन, रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित उन्नत उद्योग 4.0 तकनीकों को अपना रहा है, जिसका उद्देश्य अपने औद्योगिक आधार को डिजिटल रूप से बदलना और सभी क्षेत्रों में उत्पादकता में सुधार करना है।
  • उच्च-तकनीकी आत्मनिर्भरता का निर्माण: भारत सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे उच्च-तकनीकी क्षेत्रों के लिए एक मजबूत घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र विकसित कर रहा है।
    • उदाहरण के लिए, सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य वैश्विक चिप निर्माताओं को आकर्षित करना और महत्त्वपूर्ण तकनीकी हार्डवेयर में आयात निर्भरता को कम करना है।
  • नवाचार-संचालित आर्थिक विविधीकरण: विजन 2047 रोडमैप एक कुशल कार्यबल, कुशल लॉजिस्टिक्स और डिजिटल बुनियादी ढाँचे द्वारा संचालित नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है, जिसका उद्देश्य विनिर्माण को व्यापक तकनीकी और आर्थिक परिवर्तन लक्ष्यों के साथ संरेखित करना है।

भारत की विनिर्माण कमजोरियाँ

  • कमजोर बुनियादी ढाँचा: भारत का विनिर्माण क्षेत्र खराब परिवहन, अविश्वसनीय बिजली आपूर्ति और अपर्याप्त बंदरगाह संपर्क से ग्रस्त है, जिससे वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में लागत में 20-30% की वृद्धि होती है।
  • नियामक और नौकरशाही बाधाएँ: जटिल नियमन, नीतिगत परिवर्तन और बोझिल नौकरशाही व्यापार सुगमता को बाधित करते हैं; भारत अभी भी व्यावसायिक वातावरण और रसद के लिए वैश्विक रैंकिंग में क्षेत्रीय समकक्षों से पीछे है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत में रसद लागत सकल घरेलू उत्पाद के 14-18 प्रतिशत के दायरे में रही है, जबकि वैश्विक मानक 8 प्रतिशत है।
  • आयात पर निर्भरता: भारत आयातित सेमीकंडक्टर, चिप्स, इंजन और अन्य महत्त्वपूर्ण घटकों पर अत्यधिक सीमा तक निर्भर है, जिससे उच्च तकनीक क्षेत्र बाहरी तनावों और आपूर्ति व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
  • कौशल और श्रम की कमी: उद्योग की आवश्यकताओं और उपलब्ध श्रम के कौशल के मध्य एक बड़ा अंतर है, जो महत्त्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्रों में उत्पादकता और मापनीयता को सीमित करता है।
  • सीमित घरेलू नवाचार और आपूर्ति शृंखलाएँ: वर्तमान विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र में उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी के लिए गहन आंतरिक आपूर्ति शृंखलाओं का अभाव है, जिससे वास्तविक आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की प्रगति धीमी हो रही है और चीन जैसी स्थापित अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा कम हो रही है।

केस स्टडी: फॉक्सकॉन इंजीनियरों की वापसी

  • वर्ष 2025 में, तमिलनाडु और कर्नाटक स्थित फॉक्सकॉन के आईफोन 17 निर्माण संयंत्रों से 300 से ज्यादा चीनी इंजीनियरों को अचानक वापस बुला लिया गया।
  • हालाँकि इसे एक कॉरपोरेट निर्णय के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह कदम भारत के उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में वृद्धि को रोकने की चीन की भू-आर्थिक रणनीति का हिस्सा था।
  • इन इंजीनियरों के पास जटिल उत्पादन लाइनों की स्थापना और उन्नत प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में महत्वपूर्ण तकनीकी विशेषज्ञता थी।
  • इन्हें वापस बुलाने से भारत के आत्मनिर्भर विनिर्माण केंद्र निर्माण की प्रगति में अत्यधिक देरी हुई।

भारत के विरुद्ध चीन की भू-आर्थिक रणनीति

  • मानव पूँजी पर नियंत्रण: प्रशिक्षित चीनी इंजीनियरों की वापसी से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सीमित हो रहा है और भारत में उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण व्यवस्था बाधित हो रही है।
  • दुर्लभ मृदा और महत्त्वपूर्ण खनिजों पर एकाधिकार: चीन ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्रों के लिए आवश्यक गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट और दुर्लभ मृदा चुम्बकों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • अनौपचारिक उपकरण निर्यात प्रतिबंध: मौखिक निर्देश और प्रशासनिक देरी भारत को भारी मशीनरी तथा इलेक्ट्रॉनिक असेंबली उपकरणों के निर्यात को प्रतिबंधित करती है।
  • आपूर्ति शृंखला व्यवधान रणनीतियाँ: चीन, भारतीय निर्माताओं के लिए अनिश्चितता और लागत वृद्धि पैदा करने के लिए अनौपचारिक व्यापार बाधाओं का उपयोग करता है।
  • अति-क्षमता का हथियारीकरण: अति-क्षमता का हथियारीकरण चीन की वह रणनीति है, जिसके तहत वह प्रतिस्पर्द्धा को कमजोर करने और उभरते बाजारों में हिस्सेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से वैश्विक बाजारों में कम कीमत वाले उत्पादों की बाढ़ ला देता है।

भारत के लिए सिफारिशें

  • रणनीतिक स्वायत्तता का निर्माण: भारत को वैश्विक शक्ति-संतुलन और बदलते रणनीतिक गठबंधनों, जैसे हाल ही में भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकी टैरिफ में वृद्धि, के प्रति स्वतंत्र और संतुलित प्रतिक्रिया देने के लिए अपनी बाह्य निर्भरताओं में कमी लानी होगी तथा आत्मनिर्भरता और आंतरिक क्षमता निर्माण पर बल देना होगा।
  • आधारभूत विकास पर ध्यान: भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए अपने बुनियादी ढाँचे की कमियों, नौकरशाही की अक्षमताओं को दूर करने और व्यापार करने में आसानी को बेहतर बनाने पर तीव्र ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • प्रमुख क्षेत्रों में आयात निर्भरता कम करना: एक विनिर्माण महाशक्ति बनने के लिए, भारत को सेमीकंडक्टर, सेंसर और इंजन घटकों जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी आयात पर निर्भरता कम करनी होगी।
  • ‘स्क्रूड्राइवर तकनीक’ से आगे बढ़ना: भारत को उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण के लिए स्वदेशी क्षमता विकसित करनी होगी, बुनियादी असेंबली से आगे बढ़कर उन्नत तकनीकों और प्रक्रियाओं में महारत हासिल करनी होगी।
  • तार्किक नीति और कार्यान्वयन के साथ प्रतिक्रिया: भारत आत्मनिर्भर, उच्च-तकनीकी विनिर्माण विकसित करने के लिए केवल सुविचारित औद्योगिक नीति और अनुशासित कार्यान्वयन के माध्यम से ही चीन के आर्थिक दबाव का मुकाबला कर सकता है।
  • चीन की रणनीति से सबक को आत्मसात् करना: भारत को यह समझना होगा कि चीन की आक्रामकता प्रायः उसकी आंतरिक संरचनात्मक कमजोरियों और असंतुलनों से उत्पन्न होती है; अतः भारत को इससे प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक, सोच-विचार कर बनाई गई रणनीति और सुदृढ़ क्रियान्वयन के माध्यम से जवाब देना चाहिए।

भारत-चीन संबंध

  • दोहरा दृष्टिकोण: भारत ने चीन के प्रति दोहरी नीति अपनाई है, जिसमें सुरक्षा मुद्दों पर टकराव का रुख अपनाते हुए सहयोगात्मक आर्थिक जुड़ाव बनाए रखा गया है।
    • वर्ष 2020 के गलवान संघर्ष के बाद, भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और कहा कि सामान्य संबंधों के लिए सीमा पर शांति आवश्यक है, फिर भी द्विपक्षीय व्यापार बढ़ता रहा।
  • मुख्य चुनौती: अक्टूबर 2024 में सीमा समझौते के बावजूद, पूर्ववर्ती सैन्य झड़पों, विशेषकर वर्ष 2020 की LAC पर हुई हिंसक घटना, से उपजा अविश्वास और तनाव अब भी भारत-चीन राजनयिक संबंधों पर छाया हुआ है।
    • वर्ष 2020 के संघर्ष ने दशकों में LAC पर पहली मौतें दर्ज कीं और व्यापक रणनीतिक अविश्वास को जन्म दिया।
  • आर्थिक निर्भरता: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, सौर ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में चीनी आयात पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे उसे आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
    • उदाहरण: वित्त वर्ष 2024 में, भारत को कच्चा तेल या LNG निर्यात न करने के बावजूद, चीन भारत के कुल आयात में लगभग 15% की हिस्सेदारी के साथ एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार बना रहा।
  • व्यापार असंतुलन: द्विपक्षीय व्यापार असंतुलन चीन के पक्ष में है, जिससे भारत की आर्थिक दुर्बलता में वृद्धि करती है और संबंधों में उसकी स्थिति कमजोर होती है।
    • वर्ष 2024 में, चीन को भारत का निर्यात केवल 14.9 अरब डॉलर था, जबकि चीन से आयात 100 अरब डॉलर को पार कर गया, जो वर्ष 2005 से दस गुना अधिक है।
  • दो मोर्चों पर खतरा: मई 2025 के कश्मीर संकट के दौरान पाकिस्तान को चीन के सैन्य और कूटनीतिक समर्थन ने संभावित दो मोर्चों पर खतरे को लेकर भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया।
    • इस संकट के दौरान इस्लामाबाद को बीजिंग की प्रत्यक्ष सैन्य सहायता ने चीन को एक प्रत्यक्ष सुरक्षा चुनौती के रूप में भारत की धारणा को मजबूत किया।
  • भारत की जोखिम-मुक्ति रणनीति: रणनीतिक स्वायत्तता बनाने के लिए, भारत चीन पर आर्थिक निर्भरता कम करने के लिए कदम उठा रहा है, एक ऐसा लक्ष्य जहाँ निवेश, प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण के माध्यम से बहुपक्षीय समर्थन महत्त्वपूर्ण है।
    • अमेरिका और जापान जैसे भारत के साझेदार आपूर्ति शृंखला के विकल्प का निर्माण करने और संवेदनशील क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण चीनी निवेश को प्रतिबंधित करके भारत के जोखिम-मुक्ति में सहायता कर सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत को तकनीक, व्यापार और मानव पूंजी को शक्ति के उपकरण के रूप में प्रयोग करने की चीन की भू-आर्थिक रणनीति से सीख लेकर, आर्थिक दबावों से निपटने हेतु रणनीतिक स्वायत्तता का निर्माण करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि भारत मजबूत बुनियादी ढाँचे, आयात पर निर्भरता में कमी और स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देकर एक असेंबलिंग-आधारित अर्थव्यवस्था से उच्च-तकनीकी, वैश्विक रूप से लचीली विनिर्माण शक्ति में परिवर्तित हो।

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