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LAC पर तनाव कम करने को लेकर भारत, चीन के बीच समझौता

Lokesh Pal October 23, 2024 04:59 92 0

संदर्भ

हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की कि भारत और चीन ‘गश्त व्यवस्था’ (Patrolling Arrangements) तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य गतिरोध के समाधान पर एक समझौते पर पहुँच गए है।

समझौते के परिणाम

  • वर्ष 2020 के मुद्दों का समाधान: समझौते का उद्देश्य वर्ष 2020 में उत्पन्न मुद्दों को हल करना तथा सैन्य उपस्थिति को कम करना है। 
  • शांति और सौहार्द का पुनर्स्थापन: इस समझौते का उद्देश्य वर्ष 2020 से पहले मौजूद शांति और सौहार्द को पुनर्स्थापित करना है।
  • पहले से अवरुद्ध क्षेत्रों में गश्त: दोनों पक्ष वर्ष 2020 के गतिरोध से पहले की तरह गश्त पुनः शुरू करने पर सहमत हुए है।
    • देपसांग मैदान (Depsang Plains): भारतीय सैनिकों को गश्त बिंदु (PP) 10 से 13 तक गश्त करने का अधिकार पुनः प्राप्त होगा, जिसे चीनी सेना द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया था।
    • डेमचोक (चार्डिंग नाला): इस विवादित क्षेत्र में भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर पुराने गश्त मानदंडों के अनुसार गश्त को बहाल किया जाएगा।

    • गश्त की आवृत्ति एवं समन्वय 
      • महीने में दो बार गश्त की जाएगी, जिसमें टकराव से बचने के लिए प्रति गश्त कम-से-कम 14-15 सैनिक होंगे।
      • दोनों पक्ष ओवरलैपिंग से बचने के लिए गश्ती कार्यक्रमों का आदान-प्रदान करेंगे और टकराव को रोकने के लिए गश्ती का समन्वय किया जाएगा।
  • यथास्थिति में बदलाव: यह समझौता यथास्थिति में बदलाव को दर्शाता है, विशेष रूप से देपसांग मैदानों में ‘वाई जंक्शन’ (Y Junction) के संबंध में।
  • सैनिकों की वापसी पर कोई स्पष्टता नहीं: हालाँकि गश्त पुनः शुरू हो जाएगी, लेकिन पूर्वी लद्दाख में तैनात हजारों सैनिकों की वापसी के संबंध में कोई वार्ता नहीं हुई है।

डेपसांग तथा डेमचोक का रणनीतिक महत्त्व

  • स्थान: देपसांग मैदान काराकोरम दर्रे के पास एक प्रमुख सैन्य चौकी दौलत बेग ओल्डी से 30 किमी. दक्षिण पूर्व में अवस्थित है।
    • समतल भू-भाग: मैदानी क्षेत्र समतल है, जो संभावित सैन्य आक्रमणों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, तथा इस क्षेत्र पर नियंत्रण भारत और चीन दोनों के लिए अत्यंत रणनीतिक है।
  • चार्डिंग नुल्लाह (Charding Nullah): डेमचोक में विवादित क्षेत्र, जहाँ वर्ष 2020 में चीनी घुसपैठ हुई थी, भारत की सीमा सुरक्षा के लिए महत्त्व रखता है, और गश्त पुनः शुरू करने का समझौता इस क्षेत्र में भारत की पहुँच को बहाल करता है।

वाई जंक्शन (Y junction) 

  • वाई-जंक्शन देपसांग मैदानों में एक बिंदु है, जहाँ एक शाखा घाटी दक्षिण-पूर्व में विभाजित हो जाती है, जिससे भारतीय गश्ती दल को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अन्य बिंदुओं तक पहुँचने में सुविधा होती है।
  • इसे बॉटलनेक के नाम से भी जाना जाता है, यह एक चट्टानी चट्टान है, जहाँ भारतीय सेना का बेस है।
  • वाई-जंक्शन एक रणनीतिक क्षेत्र है जो दौलत बेग ओल्डी (DBO) हवाई पट्टी के करीब है।

पैंगोंग झील (Pangong Lake)

  • यह झील तिब्बत (50% चीनी नियंत्रण में), लद्दाख (40% भारतीय नियंत्रण में) और 10% विवादित क्षेत्र के बीच विभाजित है।
  • LAC धारणाओं में विसंगतियों के कारण अक्सर सैन्य गतिरोध होता है।

हॉट स्प्रिंग्स (Hot Springs) (गोगरा पोस्ट के पास)

  • LAC पर अपनी सुविधाजनक स्थिति तथा अक्साई चिन की निगरानी के कारण यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत को मजबूत रक्षा स्थिति बनाए रखने में मदद करता है।

गलवान घाटी (Galwan valley)

  • कराकोरम पर्वतों में संकरी घाटी जो चीन और भारत के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है।
  • अक्साई चिन के नजदीक, एक विवादित क्षेत्र जिस पर चीन का नियंत्रण है लेकिन भारत उस पर अपना दावा करता है।

समझौते का महत्त्व

  • तनाव को कम करना: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैन्य उपस्थिति को कम करने की दिशा में कदम बढ़ाना। वर्ष 2020 से पहले के गश्ती मानदंडों को बहाल करता है, जिससे झड़पों तथा तनाव बढ़ने का जोखिम कम होता है।
  • स्थिरीकरण: इससे देपसांग मैदान तथा डेमचोक जैसे टकराव वाले स्थानों पर स्थिति को स्थिर करने में मदद मिलती है।
    • टकरावों को कम करना तथा सीमा मुद्दों पर व्यापक वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना।
  • विश्वास-निर्माण उपाय: वर्ष 2020 से पहले के स्तर पर गश्त बहाल करना पहले से स्वीकृत यथास्थिति पर लौटने की आपसी इच्छा को दर्शाता है। इससे आगे की वार्ता और विश्वास-निर्माण के रास्ते खुलते है।
  • राजनीतिक निहितार्थ: इससे उच्च स्तरीय कूटनीतिक संपर्कों को बढ़ावा मिलेगा तथा सैन्य क्षेत्र से बाहर द्विपक्षीय संबंधों में सुधार होगा।
    • भारत के लिए, यह संघर्ष के तत्काल खतरे के बिना सीमा अवसंरचना के बेहतर प्रबंधन की पेशकश करता है।
    • चीन के लिए, सीमा को स्थिर करना अन्य वैश्विक तनावों के बीच एक रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है।
  • राजनयिक संकेत: रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले इस समझौते की घोषणा की गई, जो आपसी संबंधों में नरमी तथा प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बैठक की संभावना का संकेत है।

विवाद और गतिरोध की पृष्ठभूमि

  • सीमा विवाद: चीन के साथ भारत का सीमा विवाद सबसे जटिल तथा दीर्घकालिक है, जिसमें 3,488 किलोमीटर लंबी अस्पष्ट सीमा शामिल है।
    • यह विवाद ब्रिटिश उपनिवेशवाद की विरासत तथा वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से उत्पन्न हुआ है।
  • गतिरोध: दोनों देशों के बीच LAC पर कई बार झड़पें तथा गतिरोध हुए हैं, जिनमें सबसे उल्लेखनीय वर्ष 1967, वर्ष 1987, वर्ष 2013, वर्ष 2017 तथा वर्ष 2020-2021 में हुए है।
    • डोकलाम: वर्ष 2017 में सिक्किम के डोकलाम इलाके में चीनी घुसपैठ ने फिर से दोनों देशों के बीच सीमा गतिरोध को बढ़ाया है। जून 2020 में गलवान घाटी में नवीनतम संघर्ष वर्ष 1975 के बाद दोनों पक्षों के बीच पहला खतरनाक टकराव था, जिसमें कम-से-कम 20 भारतीय सैनिक मारे गए।
    • वर्ष 2020 का गतिरोध: पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सैन्य गतिरोध अप्रैल 2020 में शुरू हुआ।
      • टकराव बिंदुओं में डेमचोक, देपसांग, गलवान, पैंगोंग त्सो, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स शामिल थे।
  • प्रमुख विवादित क्षेत्र: भारत चीन सीमा तीन सेक्टरों में विभाजित है:-
    • पश्चिमी क्षेत्र: यह लद्दाख तथा चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन तक फैला हुआ है तथा 1,597 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है।
      • यह गश्त काराकोरम से चुमुर तक फैले 65 चिन्हित गश्ती केंद्रों (Patrol Points- PP) तक की जाती है।
    • मध्य क्षेत्र (Central Sector): यह हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में 545 किलोमीटर की लंबाई में फैला है और दोनों देशों के बीच सबसे कम विवाद वाला क्षेत्र है, लेकिन इसमें हिमाचल में ताशीगांग-शिपकी ला, उत्तराखंड में सांग-नेलांग-पुलम सुमदा और बाराहोती जैसे कुछ विवाद बिंदु शामिल है।
    • पूर्वी क्षेत्र: इसमें नाम्खा चू, सुमदोरोंग चू, फिश टेल 1 और सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश में दिबांग घाटी जैसी साइटें शामिल हैं जिनकी लंबाई 1346 किलोमीटर है।
      •  यद्यपि चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र को अपना अभिन्न अंग मानता है।

डोकलाम (सिक्किम) 

  • यह चीन तथा भूटान के बीच विवादित क्षेत्र है, तथा तीन देशों (भारत, चीन और भूटान) के बीच त्रिकोणीय जंक्शन पर स्थित है।
  • डोकलाम रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है क्योंकि यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है, जो मुख्य भूमि भारत को उसके पूर्वोत्तर क्षेत्र से जोड़ता है।

भारत-चीन सीमा विवाद के कारण

  • LAC की परिभाषा में अस्पष्टता: भारत तथा चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बारे में अलग-अलग धारणाएँ हैं, जिसके कारण अक्सर टकराव होता है।
    • वर्ष 2020 के गतिरोध में, चीन पूर्वी लद्दाख के उन क्षेत्रों में चला गया, जिसमें गलवान घाटी तथा पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) भी शामिल हैं, जहाँ LAC विवादित है।
  • वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध की ऐतिहासिक विरासत: वर्ष 1962 के युद्ध के बाद अक्साई चीन तथा अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों पर अनसुलझे सीमा विवाद तनाव का कारण बने हुए है।
    • चीन अक्साई चिन (जिसे भारत लद्दाख का हिस्सा बताता है) पर नियंत्रण रखता है, जबकि भारत अरुणाचल प्रदेश पर नियंत्रण रखता है, जिसे चीन ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है।
  • भारत द्वारा बुनियादी ढाँचे का विकास: भारत द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, हवाई पट्टियों और पुलों सहित बुनियादी ढाँचे के तेजी से विकास ने चीन को चिंतित कर दिया है।
    • दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (Darbuk-Shyok-Daulat Beg Oldie- DSDBO) सड़क के पूरा होने से संवेदनशील LAC क्षेत्र तक भारत की पहुँच बढ़ गई, जिससे डेपसांग मैदानों में चीनी आक्रामकता बढ़ गई।
  • सीमावर्ती क्षेत्रों का रणनीतिक महत्त्व: दोनों देश LAC के पास के प्रमुख क्षेत्रों को रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण मानते हैं, जिससे क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न होती है।
    • दौलत बेग ओल्डी (Daulat Beg Oldie) के निकट स्थित देपसांग मैदान, संभावित सैन्य प्रक्षेपण स्थल, काराकोरम दर्रे के निकट होने के कारण सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
  • चीन की ‘सलामी-स्लाइसिंग’ (Salami-Slicing) रणनीति: विवादित क्षेत्रों में चीन द्वारा क्रमिक क्षेत्रीय अतिक्रमण, प्रत्यक्ष संघर्ष को भड़काए बिना यथास्थिति को बदलने का प्रयास है।
    • वर्ष 2020 में, चीनी सैनिकों ने पैंगोंग त्सो झील में आगे बढ़ते हुए, पहले से निर्विरोध फिंगर क्षेत्रों (फिंगर 4 से फिंगर 8) पर कब्जा करके वास्तविक स्थिति को बदल दिया।
  • भिन्न सीमा दावे तथा मानचित्र: दोनों पक्ष अलग-अलग ऐतिहासिक मानचित्रों और समझौतों पर विश्वास करते हैं, जिससे परस्पर विरोधी क्षेत्रीय दावे उत्पन्न होते हैं।
    • चीन अरुणाचल प्रदेश तथा अक्साई चिन (Aksai Chin) पर अपने दावे को सही ठहराने के लिए ऐतिहासिक मानचित्रों की व्याख्या का उपयोग करता है।
  • सामरिक प्रतिद्वंद्विता और भू-राजनीतिक तनाव: चीन तथा भारत के बीच व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, विशेष रूप से अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते संबंधों और क्वाड जैसे गठबंधनों में भागीदारी के कारण सीमा पर तनाव बढ़ रहा है।
    • लद्दाख में चीन की वर्ष 2020 की आक्रामकता क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी के साथ मेल खाती है, जिसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व के लिए चुनौती के रूप में देखा जाता है।
  • चीन की आंतरिक सुरक्षा चिंताएँ: चीन अशांति या बाहरी प्रभाव को रोकने के लिए तिब्बत तथा  शिनजियांग में अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना चाहता है।
  • अनसुलझे समझौते: शांति बनाए रखने के उद्देश्य से किए गए वर्ष 1993 तथा वर्ष 1996 के सीमा समझौते मौलिक विवादों को हल करने में सक्षम नहीं रहे हैं, जिसके कारण समय-समय पर टकराव की स्थिति बनी रहती है।

  • बफर जोन और सैन्य उपस्थिति: विस्थापित क्षेत्रों में बफर जोन की स्थापना से गश्त तथा पहुँच अधिकारों पर असहमति उत्पन्न हुई है।

भारत-चीन विवाद को सुलझाने के पहले के प्रयास

  • शिमला समझौता (वर्ष 1914): तिब्बत तथा पूर्वोत्तर भारत के बीच सीमा निर्धारण के लिए आयोजित एक समझौता है। इस पर ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने हस्ताक्षर किए, लेकिन चीन ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
    • भारत इस समझौते तथा मैकमोहन रेखा को मान्यता देता है, लेकिन चीन दोनों को अस्वीकार करता है।
  • पंचशील समझौता (वर्ष 1954): संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने सहित शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों की स्थापना की गई।
    • प्रारंभ में चीन ने इसे स्वीकार कर लिया था, लेकिन वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान समझौते की भावना का उल्लंघन किया गया।
  • शांति एवं सौहार्द बनाए रखने पर समझौता (वर्ष 1993): इसका उद्देश्य वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को मान्यता देना तथा बल प्रयोग का परित्याग करना था।
    • सीमा मुद्दों को हल करने के लिए बातचीत के लिए एक रूपरेखा प्रदान की। इसके बावजूद, LAC पर तनाव जारी रहा।
  • विश्वास निर्माण उपायों पर समझौता (वर्ष 1996): गैर-आक्रामकता, संचार और सीमा के पास सैन्य गतिविधियों की अधिसूचना पर केंद्रित है।
    • दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मतभेदों को सुलझाने और आकस्मिक सैन्य वृद्धि को रोकने के लिए मानचित्रों का आदान-प्रदान करने पर सहमत हुए हैं।
  • सीमा रक्षा सहयोग समझौता (BDCA, वर्ष 2013): देपसांग घाटी की घटना के बाद हस्ताक्षरित, इसका उद्देश्य भविष्य में इस तरह की झड़पों को रोकना था। आपसी समझ बढ़ाने और सीमा से संबंधित मुद्दों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • इसके बावजूद सीमा पर घटनाएँ तथा तनाव जारी है, लेकिन संवाद बनाए रखने के लिए BDCA महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।

भारत-चीन संबंधों से जुड़ी चुनौतियाँ

  • ‘फाइव फिंगर’ नीति (Five Finger Policy): चीन तिब्बत को अपनी ‘हथेली’ के रूप में देखता है, लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश को अपनी ‘उंगलियों (fingers)’ के रूप में देखता है और इन क्षेत्रों पर प्रभाव का दावा करता है।
    • दोनों देश 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर, विशेषकर पूर्वी लद्दाख में, बड़ी संख्या में सैन्य तैनाती बनाए हुए है।
  • ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति (Salami Slicing Strategy): चीन सीमा पर धीरे-धीरे यथास्थिति बदलने के लिए सीमा पर सड़कों तथा गाँवों जैसे बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके क्रमिक क्षेत्रीय प्रगति का उपयोग करता है। 
    • उदाहरण: भारत-तिब्बत सीमा पर दोहरे उपयोग वाले 628 गाँवों का निर्माण।

  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): भारत चीन के BRI, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरीडोर (CPEC) का विरोध करता है, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है तथा भारत की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है।
  • आक्रामक पड़ोस नीतियाँ: चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति में भारत के समुद्री मार्गों को घेरने तथा उस पर प्रभाव डालने के लिए बंदरगाहों तथा नौसैनिक सुविधाओं का निर्माण करना शामिल है। 
    • उदाहरण: श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह।

  • ऋण जाल कूटनीति: चीन विभिन्न देशों पर रणनीतिक नियंत्रण हासिल करने के लिए ऋण का उपयोग करता है, जिससे मालदीव तथा श्रीलंका जैसे दक्षिण एशिया में भारत के रिश्ते प्रभावित होते हैं, जिससे चीन का प्रभाव बढ़ता है और भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति कमजोर होती है।
  • भारत की आयात निर्भरता: भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा अधिक है, वर्ष 2022-23 में कुल आयात 83.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो फार्मास्युटिकल कच्चे माल जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • जल विवाद: ब्रह्मपुत्र नदी के जल बंटवारे को लेकर कोई संधि नहीं है, जिससे तनाव उत्पन्न हो रहा है क्योंकि चीन इस नदी के ऊपरी हिस्से में बांध बना रहा है, जिसका असर भारत के जल संसाधनों पर पड़ रहा है।
  • दक्षिण चीन सागर संघर्ष: ‘नाइन-डैश लाइन’ (Nine-Dash Line) तथा कृत्रिम द्वीपों के सैन्यीकरण के माध्यम से दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक दावे भारत के समुद्री हितों के साथ तनाव उत्पन्न करते है, विशेष रूप से वियतनाम द्वारा भारत को तेल तथा गैस अन्वेषण के लिए आमंत्रित करने के मामले में।

चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारतीय प्रयास

  • सामरिक वैश्विक गठबंधन: भारत हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करता है।
    • क्वाड (QUAD) तथा I2U2 जैसी पहल समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने और भारत के भू-राजनीतिक रुख को मजबूत करने पर केंद्रित हैं।
  • क्वाड (QUAD)
    • इसे वर्ष 2007 में गठित किया गया था तथा वर्ष 2017 में इसे पुनः स्थापित किया गया।
    • सदस्य: संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत।
    • उद्देश्य: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक समुद्री मार्गों को किसी भी सैन्य या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना। इसे मूल रूप से चीनी वर्चस्व को कम करने के लिए एक रणनीतिक समूह के रूप में देखा जाता है।
  • भारत, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात तथा अमेरिका (India, Israel, the UAE, and the US-I2U2)
    • I2U2 को ‘पश्चिम एशियाई क्वाड’ (West Asian Quad) भी कहा जाता है।
    • उद्देश्य: ‘पारस्परिक हित के सामान्य क्षेत्रों पर चर्चा करना, संबंधित क्षेत्रों तथा उससे आगे व्यापार और निवेश में आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना’।
  • अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापार कॉरिडोर (International North South Trade Corridor-INSTC)
    • INSTC की शुरुआत वर्ष 2000 में रूस, भारत और ईरान द्वारा की गई थी।
    • यह एक बहु-मोडल परिवहन मार्ग है जो हिंद महासागर तथा फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर से जोड़ता है और रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक जाता है।
  • भारत मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (India Middle East Europe Economic Corridor-IMEC)
    • IMEC कॉरिडोर भारत से यूरोप तक मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्रदान करता है, जिससे संभवतः पारगमन समय और लागत कम हो जाती है।

  • ‘नेकलस ऑफ डायमंड’ रणनीति (Necklace of Diamonds Strategy): चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) के प्रति भारत की प्रतिक्रिया में नौसैनिक अड्डों को मजबूत करना, सैन्य गठबंधन बनाना और हिंद-प्रशांत तथा हिंद महासागर क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिए अपनी समुद्री उपस्थिति को बढ़ाना शामिल है।
  • सीमा पर उन्नत अवसंरचना: भारत ने भारत-चीन सीमा पर अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए सीमा पर अवसंरचना विकास में तेजी लाई है।
    • सीमा सड़क संगठन (BRO) ने विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख और जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में 90 प्रमुख परियोजनाएँ पूरी कीं, जिससे सामरिक संपर्क में सुधार हुआ।
  • पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना: भारत दक्षिण एशिया में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए मजबूत क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • भूटान (गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी) तथा नेपाल (ऊर्जा समझौते और सीमा पार ऊर्जा परियोजनाएँ) के साथ हालिया सहयोग क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के भारत के प्रयासों को उजागर करते हैं।
    • भारत तथा नेपाल ने अगले दशक में 10,000 मेगावाट विद्युत निर्यात करने पर सहमति व्यक्त की है, साथ ही क्षेत्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए नई सीमा पार पारेषण लाइनों का उद्घाटन भी किया है।

आगे की राह 

  • सीमा विवाद समाधान: विवादित क्षेत्रों में अतिरिक्त बफर जोन स्थापित करना, मौजूदा सीमा प्रोटोकॉल, विशेष रूप से आग्नेयास्त्रों पर प्रतिबंध को आधार बनाना।
    • सीमा के निकट सैन्य तैनाती पर नियमित उच्च स्तरीय वार्ता तथा आपसी सहमति, ‘पारस्परिक तथा समान सुरक्षा’ पर ध्यान केंद्रित करना।
  • आर्थिक सहयोग: आयात में विविधता लाकर तथा वैकल्पिक वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुगम बनाकर व्यापार असंतुलन को दूर करना। चीन को भारत के निर्यात को बढ़ाने के लिए एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का अन्वेषण करना।
  • संघर्ष की रोकथाम और संकट प्रबंधन: चीनी ग्रे जोन खतरों का मुकाबला करते हुए पहाड़ों और हिंद महासागर में सैन्य प्रतिरोध को मजबूत करना।
    • ITBP की तैनाती करना, राफेल जेट विमानों के साथ सीमा सुरक्षा को मजबूत करना तथा संयुक्त सैन्य अभ्यास करना।
  • सांस्कृतिक कूटनीति: छात्र कार्यक्रमों, सांस्कृतिक उत्सवों और संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के माध्यम से लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देना। दोनों देशों के नागरिकों के बीच विश्वास बनाने के लिए भाषा विनिमय कार्यक्रम शुरू करना।
  • ट्रैक कूटनीति (Track Diplomacy): संवाद को बढ़ावा देने तथा ‘आपसी विश्वास’ का निर्माण करने के लिए गैर-सरकारी पहल के माध्यम से ट्रैक टू कूटनीति को प्रोत्साहित करना।
  • वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम: कनेक्टिविटी और सुरक्षा में सुधार के लिए सीमावर्ती राज्यों (लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश) में गाँवों के विकास को लागू करना।
  • ANC मॉडल का अनुकरण: अंडमान और निकोबार कमांड (ANC) के एकीकृत दृष्टिकोण का अन्य क्षेत्रों में विस्तार करना, तथा चीन के बढ़ते प्रभाव के जवाब में हिंद-प्रशांत सुरक्षा में योगदान करना।

  • ट्रैक वन कूटनीति से तात्पर्य पेशेवर राजनयिकों द्वारा राष्ट्रों के बीच औपचारिक वार्ता से है।
  • ट्रैक टू कूटनीति, पेशेवर गैर-सरकारी संघर्ष समाधान चिकित्सकों द्वारा संघर्ष समाधान प्रयासों को संदर्भित करती है।

निष्कर्ष

भारत और चीन के बीच हालिया समझौता LAC पर सैन्य गतिरोध को हल करने में एक महत्त्वपूर्ण सफलता है, विशेषकर डेमचोक तथा देपसांग जैसे टकराव वाले क्षेत्रों में। वर्ष 2020 से पहले की तरह गश्त फिर से शुरू की जाएगी, हालाँकि तनाव कम करने और भविष्य में तनाव न हो, जिसके लिए अभी भी वार्ता चल रही है।

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