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भारत-चीन संबंध

Lokesh Pal March 14, 2024 05:52 108 0

संदर्भ

हाल ही में नवनिर्मित सेला सुरंग के उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के संदर्भ में चीन ने भारत के समक्ष राजनयिक विरोध दर्ज कराया है।

संबंधित तथ्य

  • सेला सुरंग का उद्घाटन: प्रधानमंत्री ने अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फीट की ऊँचाई पर निर्मित सेला सुरंग का उद्घाटन किया।
    • यह सुरंग असम के तेजपुर को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले से जोड़ती है।
    • इससे सीमांत क्षेत्र में सैनिकों की बेहतर आवाजाही भी सुनिश्चित होगी।
  • चीनी आपत्तियाँ: चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के रूप में संबोधित करते हुए इस पर अपने क्षेत्राधिकार का दावा करता है, अपने दावों को मजबूत करने के लिए भारतीय नेताओं की अरुणाचल यात्राओं पर नियमित रूप से आपत्ति जताता है। चीन ने इस क्षेत्र को जांगनान (Zangnan) नाम भी दिया है।
  • चीनी क्षेत्रीय दावों की अस्वीकृति: भारत ने अरुणाचल प्रदेश को देश का अभिन्न अंग बताते हुए चीन के क्षेत्रीय दावों को बार-बार खारिज किया है।

भारत-चीन संबंधों का विकास

  • प्रारंभिक वर्ष (1950-1960)
    • वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, भारत के नेता जवाहरलाल नेहरू और चीन के माओ जेडोंग ने आपसी ऐतिहासिक संबंधों और उपनिवेशवाद विरोधी भावनाओं पर आधारित एक मजबूत दोस्ती की कल्पना की थी।
    • वर्ष 1950 में, भारत ने ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (PRC) को मान्यता दी और राजनयिक संबंध स्थापित किए।
    • दोनों देशों ने वर्ष 1954 में पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप की नीति पर जोर दिया गया।
    • हालाँकि, तिब्बत क्षेत्र पर सीमा विवाद ने तनाव बढ़ा दिया, इसके कारण वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ, जिसे चीन ने निर्णायक रूप से जीत लिया।
  • रणनीतिक दूरी (1970-1980)
    • संघर्ष के बाद, भारत और चीन के बीच राजनयिक और व्यापार संबंध बहुत ही सीमित रहे, जो परस्पर अविश्वास को चिह्नित करता है।
    • सोवियत संघ के साथ भारत की बढ़ती निकटता और सोवियत संघ के प्रति चीन के प्रतिकूल रुख ने तनाव को बढ़ा दिया।
    • डेंग शियाओपिंग द्वारा वर्ष 1978 चीन में किए गए आर्थिक सुधारों ने आर्थिक विकास और खुलेपन के दौर की शुरुआत की, जिससे संबंधों में सुधार का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • सामान्यीकरण के प्रयास (1980)
    • 1980 के दशक में, दोनों देशों ने राजनयिक जुड़ाव और विश्वास-निर्माण उपायों के माध्यम से संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयास किए।
    • वर्ष 1988 में, भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया, जो संबंधों में सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति थी।
    • दोनों पक्षों ने विवादित सीमा पर शांति और अमन बनाए रखने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिसके कारण वर्ष 2012 में भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्यकारी तंत्र (Working Mechanism for Consultation & Coordination-WMCC) की स्थापना हुई।
  • शीतयुद्ध के बाद का युग (वर्ष 1990 के पश्चात्)
    • शीतयुद्ध की समाप्ति के साथ, भारत और चीन दोनों अधिक सहयोगात्मक संबंध विकसित करने की आकांक्षा रखते थे।
    • आर्थिक सहयोग एक प्रमुख केंद्र बिंदु के रूप में उभरा, जिससे व्यापार और निवेश में पर्याप्त वृद्धि देखी गई।
    • वर्ष 2003 में, सीमा विवाद को संबोधित करने के उद्देश्य से दोनों देशों के मध्य विशेष प्रतिनिधि तंत्र की स्थापना के लिए एक समझौता किया गया था।
    • हालाँकि, सीमा विवाद, विशेष रूप से अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों को लेकर, कभी-कभी सैन्य गतिरोध का कारण भी बन जाता है।
  • हालिया घटनाक्रम
    • डोकलाम गतिरोध, 2017: यह भारत और चीनी सैनिकों के बीच विवादित डोकलाम पठार पर हुए टकराव से संबंधित था, जिससे संबंधों में काफी तनाव पैदा हो गया।
    • गलवान घाटी संघर्ष: जून 2020 में गलवान घाटी में एक हिंसक संघर्ष हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के कई सैनिक हताहत हुए।

भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि

  • मैकमोहन रेखा का प्रस्ताव: शिमला सम्मेलन (1913-14) के दौरान, ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधि, ब्रिटिश-भारत और तिब्बत के बीच एक स्पष्ट सीमा निर्धारित करने के लिए एकत्र हुए।
    • इस सम्मेलन के दौरान मैकमोहन रेखा प्रस्तावित की गई थी, जो भूटान से बर्मा तक विस्तारित 890 किलोमीटर लंबी सीमा है, लेकिन इसे चीन ने स्वीकार नहीं किया था।
  • तिब्बत पर नियंत्रण (1950): चीन द्वारा तिब्बत पर नियंत्रण करने से दुनिया की सबसे लंबी अनिर्धारित सीमाओं में से एक का निर्माण हुआ।
  • वास्तविक नियंत्रण रेखा का परिचय (1959): चीन ने दोनों देशों के बीच एक प्रस्तावित सीमा के रूप में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control-LAC) की अवधारणा प्रस्तुत की। भारत ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
    • LAC को तीन क्षेत्रों में बाँटा गया है: पूर्वी क्षेत्र जो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम तक फैला है, मध्य क्षेत्र उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश में एवं पश्चिमी क्षेत्र लद्दाख में है।
  • भारत-चीन युद्ध (1962): 21 नवंबर, 1962 को, चीन ने भारत के साथ युद्ध में युद्धविराम की घोषणा की, इस युद्ध के दौरान चीन ने अक्साई चिन में क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
  • युद्धविराम और उसके परिणाम: चीन ने युद्धविराम की घोषणा की, वह अधिकांश आक्रमण वाले क्षेत्रों से पीछे हट गया, लेकिन अक्साई चिन पर नियंत्रण बरकरार रखा।
  • LAC की स्थापना: LAC एक अनौपचारिक युद्धविराम रेखा बन गई, हालाँकि दोनों देशों के दावों में मतभेद के कारण इससे जुड़ा विवाद अभी भी बना हुआ है।
  • वर्तमान विवाद: भारत मैकमोहन रेखा को दोनों देशों के बीच सीमांकन हेतु आधार के रूप में प्रस्तुत करता है जबकि चीन अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है, जिसे वह “दक्षिण तिब्बत” कहता है।

भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध

  • राजनीतिक: 1 अप्रैल, 1950 को, भारत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी राष्ट्र बन गया।
  • आर्थिक संबंध: द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2022 तक $100 बिलियन तक पहुँच गया है, भारत चीन से आने वाले निर्यात के लिए एक बड़ा बाजार बन गया है।
  • सांस्कृतिक: भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का लंबा इतिहास रहा है और भारत ने चीन में योग कॉलेज जैसे संस्थान स्थापित किए हैं।
  • शिक्षा: भारत और चीन ने वर्ष 2006 में शिक्षा विनिमय कार्यक्रम (Education Exchange Programme-EEP) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत दोनों राष्ट्रों द्वारा एक-दूसरे के मान्यता प्राप्त उच्च शिक्षा संस्थानों में 25 छात्रों को सरकारी छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।
  • बहुपक्षीय सहयोग: भारत और चीन शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) और ब्रिक्स समूहों जैसे क्षेत्रीय मंचों पर उच्च स्तरीय जुड़ाव बनाए हुए हैं, जो वृद्धि और विकास के लिए साझा एजेंडे को दर्शाता है।
  • अनौपचारिक शिखर सम्मेलन: दोनों देशों ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पॉँच सिद्धांतों की वकालत की है।
    • दोनों देशों नेहोमटाउन डिप्लोमेसी” (Hometown Diplomacy) की शुरुआत की है, जिसके तहत क्रमशः वुहान और चेन्नई में दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किए गए थे।

भारत-चीन संबंधों से जुड़ी चुनौतियाँ

  • सीमा विवाद: दोनों देश लगभग 3,488 किमी. लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा साझा करते हैं, जो हिमालय क्षेत्र से होकर गुजरती है, इसके अधिकांश भाग पर दोनों देशों के दावों में मतभेद है।

    • चीन तिब्बत को अपने दाहिने हाथ की हथेली और लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और नेफा (अरुणाचल प्रदेश) को अपनी पाँच उँगलियाँ मानता है।
    • पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा के दोनों ओर अनुमानित 50,000-60,000 सैनिक तैनात किए गए हैं।
  • सीमाओं पर बुनियादी ढाँचे का निर्माण: चीन लगातार सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और मॉडल गाँवों आदि सहित बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रहा है।
    • उदाहरण के लिए, चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ भारत की सीमाओं पर लगभग 628 समृद्ध गाँवों का निर्माण किया है, जिसे नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढाँचे के रूप में समझा जाता है।
  • जल विवाद: ब्रह्मपुत्र नदी के बँटवारे के लिए कोई औपचारिक संधि स्थापित नहीं की गई है, चीन द्वारा नदी के ऊपरी इलाकों में कई बाँधों का निर्माण तनाव का एक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): भारत, चीन के BRI का विरोध करता है, क्योंकि यह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है। ध्यातव्य है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।

चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारतीय प्रयास

  • क्वाड: चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, जिसे आमतौर पर क्वाड के नाम से जाना जाता है, की स्थापना वर्ष 2007 में संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच एक सैन्य गठबंधन के रूप में की गई थी।
  • I2U2: I2U2 भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका की एक साझा पहल है, जिसे ‘पश्चिम एशियाई क्वाड’ भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य “पारस्परिक हित के साझा क्षेत्रों पर चर्चा करना, संबंधित क्षेत्रों और उससे आगे व्यापार एवं निवेश में आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना” है।
  • INSTC: अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण व्यापार गलियारा (International North-South Trade Corridor-INSTC) वर्ष 2000 में रूस, भारत और ईरान द्वारा शुरू किया गया था। यह एक बहु-मॉडल परिवहन मार्ग है, जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर तथा आगे रूस के सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक जाता है।
  • IMEC: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (India-Middle East-Europe Economic Corridor-IMEC) कॉरिडोर भारत से यूरोप तक मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्रदान करता है, जिससे संभावित रूप से पारगमन समय और लागत कम हो जाती है।
  • नेकलेस ऑफ डायमंड रणनीति: इसके माध्यम से, भारत अपने नौसैनिक अड्डों का विस्तार कर रहा है और चीन की रणनीतियों का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक रूप से मजबूत राष्ट्रों के साथ संबंधों में सुधार कर रहा है।
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन: यह व्यापार और निवेश के विस्तार सहित आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए हिंद महासागर रिम देशों की एक क्षेत्रीय सहयोग पहल है।

  • स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स : यह चीनी सैन्य और वाणिज्यिक सुविधाओं का एक नेटवर्क है, जो चीनी मुख्य भूमि से हॉर्न ऑफ अफ्रीका में पोर्ट सूडान तक फैला हुआ है।
    • स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स के तहत बंदरगाह और नौसैनिक सुविधाओं की एक श्रृंखला, भारत को घेर लेंगी, जिससे चीन को हिंद महासागर में प्रमुख समुद्री मार्गों को प्रभावित करने और नियंत्रित करने की अनुमति मिल जाएगी।
  • भारत का नकारात्मक व्यापार संतुलन: वित्त वर्ष 2022-23 में चीन के साथ भारत व्यापार घाटा  $83.2 बिलियन का रहा।
    • इसके अलावा, फार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए चीन से मुख्य शुरुआती सामग्रियों (Key Starting Materials-KSM) पर भारत की निर्भरता 50% से अधिक है।

आगे की राह

  • सैन्य क्षमता का सुदृढ़ीकरण : भारत को अपनी पूर्वोत्तर सीमा पर पर्वतीय क्षेत्रों और हिंद महासागर में एक विश्वसनीय सैन्य निवारक क्षमता का निर्माण करने एवं इसकी लक्षित तैनाती करने की आवश्यकता है।
    • चीनी ग्रे जोन खतरों का मुकाबला करने के लिए संरचनाओं और क्षमताओं के निर्माण की तत्काल आवश्यकता है।
  • सीमा विवाद का समाधान: विवादित क्षेत्रों के आसपास अतिरिक्त बफर जोन स्थापित किए जाने चाहिए और मौजूदा सीमा प्रोटोकॉल, विशेष रूप से हथियारों पर प्रतिबंध को लागू करना चाहिए।
    • दोनों राष्ट्रों को उच्चतम स्तर पर अधिक नियमित संवाद स्थापित करना चाहिए। दोनों को पारस्परिक और समान सुरक्षाके सिद्धांत को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
  • सीमा बलों का सुदृढ़ीकरण: सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) की तैनाती और राफेल जेट विमानों को शामिल करना आवश्यक है।
  • ANC को अन्य क्षेत्रों में दोहराना: व्यापक भू-रणनीतिक दृष्टिकोण से, क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए, अंडमान और निकोबार कमांड (ANC) हिंद-प्रशांत सुरक्षा में योगदान दे सकती है।
    • ANC ने सिद्ध कर दिया है कि भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं की इकाइयाँ एकल  कमान के अधीन “संयुक्त रूप से” और निर्बाध रूप से संचालित की जा  सकती हैं।
    • हालाँकि, ANC मॉडल और रूपरेखा को कहीं और दोहराया नहीं गया है तथा विचाराधीन नवीनतम थिएटर कमांड मॉडल ने ANC को समाप्त करने और पूर्वी नौसेना कमान द्वारा इसके अधिग्रहण की सिफारिश की है।
    • अंडमान और निकोबार कमांड भारतीय सशस्त्र बलों की एक एकीकृत त्रि-सेवा कमान है, जो अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के पोर्ट ब्लेयर में स्थित है।
  • पड़ोसी राष्ट्रों के साथ संबंधों को बढ़ावा: चीन के खतरे का मुकाबला करने के लिए पड़ोसी राष्ट्रों , विशेषकर नेपाल, भूटान, म्याँमार और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध महत्त्वपूर्ण हैं।
    • इन राष्ट्रों के साथ उच्च स्तर की आर्थिक परस्पर निर्भरता का निर्माण भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और चीन का मुकाबला करने में अत्यधिक योगदान देगा।
  • व्यापार असंतुलन को कम करने हेतु आर्थिक सहयोग: भारत को व्यापार असंतुलन को ठीक करने और वैकल्पिक वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के विकास को सुविधाजनक बनाने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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