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भारत-चीन संबंध: पंचशील से SCO, 2025 तक

Lokesh Pal September 02, 2025 02:23 45 0

संदर्भ

चीन के तियानजिन में आयोजित 25वें शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) शिखर सम्मेलन में भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक संकेत देखे गए। 75 वर्ष के संबंधों के बाद, इसने पंचशील सिद्धांत, सीमा मुद्दों और आर्थिक संबंधों पर फिर से ध्यान केंद्रित किया।

25वें SCO शिखर सम्मेलन, तियानजिन (वर्ष 2025) में भारत-चीन द्विपक्षीय बैठक के बारे में

  • संबंधों की पुनर्स्थापना: सात वर्षों में पहली बार आयोजित भारत-चीन द्विपक्षीय वार्ता ने गलवान (2020) के बाद एक सतर्क गतिरोध को चिह्नित किया। दोनों नेताओं ने यह पुष्टि करते हुए संबंधों को नया स्वरूप दिया कि भारत और चीन विकास साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं और इस प्रकार इसने टकराव से सह-अस्तित्व की ओर परिवर्तन का संकेत दिया।
    • इस बैठक ने लंबे समय से बाधित संवाद मार्गों को पुनः खोल दिया और संबंधों को नए सिरे से संतुलित करने की इच्छा का संकेत दिया।
  • सीमा प्रश्न और सुरक्षा: दोनों पक्षों ने सैन्य और राजनयिक माध्यमों से ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ (LAC) पर गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि स्थिर संबंधों के लिए सीमा पर शांति एक पूर्वापेक्षा है, जबकि चीन ने विवादों का सीधा उल्लेख किए बिना क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दी।
    • जहाँ भारत का दृष्टिकोण सुरक्षा-प्रथम पर आधारित है, वहीं चीन का दृष्टिकोण अर्थव्यवस्था-प्रथम पर आधारित है।

लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (Line of Actual Control – LAC) के बारे में

  • ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ (LAC) भारत और चीन को अलग करने वाली वह वास्तविक सीमा है, जिसका विस्तार लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लगभग 3,488 किलोमीटर तक है।
  • इसका निर्धारण किसी औपचारिक सहमति से नहीं हुआ है, बल्कि अलग-अलग क्षेत्रीय धारणाओं का परिणाम है।
  • LAC के खंड
    • पश्चिमी क्षेत्र (लद्दाख, लगभग 1,597 किमी.): अक्साई चिन से संबंधित विवादित क्षेत्र, गलवान झड़प स्थल (वर्ष 2020)।
    • मध्य क्षेत्र (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लगभग 545 किमी.): न्यूनतम विवादित क्षेत्र, गश्त संबंधी  सीमित घटनाएँ।
    • पूर्वी क्षेत्र (सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, लगभग 1,346 किमी.): चीन अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिण तिब्बत’ मानता है; डोकलाम गतिरोध (वर्ष 2017) सहित कई विवाद के बिंदु हैं।

  • पंचशील पुनरुद्धार: भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘पंचशील सिद्धांतों’ (वर्ष 1954) को संप्रभुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के मार्गदर्शक ढाँचे के रूप में पुनः स्मरण कराया। वहीं, चीन के राष्ट्रपति ने साझा ऐतिहासिक आधारों पर संबंधों को सुदृढ़ करते हुए एक चार-सूत्री योजना—विश्वास, संचार, सहयोग और हितों की रक्षा की रूपरेखा प्रस्तुत की।
    • पंचशील का उल्लेख वर्तमान मतभेदों को कम करने हेतु सहयोगी परंपराओं की ओर एक सुविचारित वापसी का प्रतीक था।
  • आर्थिक आयाम: इस वार्ता में 100 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को स्वीकार किया गया, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, फार्मास्यूटिकल्स और कनेक्टिविटी में सहयोग पर चर्चा की गई। चीन ने SCO के 1.4 अरब डॉलर के ऋण पैकेज और प्रस्तावित विकास बैंक के माध्यम से सहयोग की पेशकश की, जबकि भारत ने संतुलित व्यापार और आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन पर बल दिया।
    • निरंतर असमानता के बावजूद आर्थिक जुड़ाव को संबंधों को स्थिर करने के एक मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया।
  • भू-राजनीतिक संतुलन: भारत का SCO प्रस्ताव—S–C–O = सुरक्षा, संपर्क और अवसर—उसके सभ्यतागत लोकाचार तथा सॉफ्ट-पॉवर कूटनीति का द्योतक रहा। इसके विपरीत, चीन ने वैश्विक दक्षिण में अपने नेतृत्व को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से SCO को साधन बनाते हुए ब्लॉक-एकीकरण और वित्तीय तंत्रों पर विशेष जोर दिया।
    • इस बैठक में भारत के सभ्यतागत संदेश बनाम चीन की वित्तीय शासन नीति का प्रभाव परिलक्षित हुआ।
  • सीमा शांति तंत्र: दोनों पक्ष ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ (LAC) पर स्थिरता बनाए रखने के लिए विश्वास-निर्माण उपायों (CBM)—हॉटलाइन, स्थानीय स्तर पर संवाद और कार्य समूहों—को मजबूत करने पर सहमत हुए। हालाँकि क्षेत्रीय समाधान अभी दूर है, ये तंत्र तनाव को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं।
    • तत्काल समाधान की तुलना में संकट प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई।
  • व्यापक महत्व: भारत ने इस शिखर सम्मेलन का उपयोग अमेरिका-चीन द्विध्रुवीयता से दूरी बनाए रखते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को रेखांकित करने हेतु किया, जबकि चीन ने एससीओ (SCO) का उपयोग वैश्विक दक्षिण में अपने नेतृत्व को प्रदर्शित करने हेतु एक मंच के रूप में किया। दोनों पक्ष विवादास्पद मुद्दों को अलग रखते हुए SCO, BRICS और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों में सहयोग विस्तार पर सहमत हुए।
    • द्विपक्षीय कूटनीति का बहुपक्षीय दृष्टिकोण के साथ समन्वय हुआ, जिससे SCO एक नए विषय को परिभाषित करने का प्रभावी मंच बन गया।

पंचशील: पाँच सिद्धांत

  • पंचशील समझौते के बारे में: पंचशील समझौता, जिसे औपचारिक रूप से तिब्बत क्षेत्र के साथ व्यापार और अंतर्संबंध समझौते के रूप में जाना जाता है, पर 29 अप्रैल, 1954 को चीन में भारतीय राजदूत एन. राघवन और चीन के विदेश मंत्री झांग हान-फू द्वारा  हस्ताक्षर किए गए थे।
  • पाँच मार्गदर्शक सिद्धांत: पंचशील संधि की प्रस्तावना में पाँच मार्गदर्शक सिद्धांत शामिल हैं
    • एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए पारस्परिक सम्मान
    • परस्पर आक्रमण।
    • परस्पर हस्तक्षेप न करना।
    • समानता और पारस्परिक लाभ।
    • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
  • समझौते का उद्देश्य
    • दोनों देशों के मध्य व्यापार और सहयोग को बढ़ाना।
    • दूसरे देश के प्रमुख शहरों में प्रत्येक देश के व्यापार केंद्र स्थापित करना।
    • व्यापार के लिए एक रूपरेखा निर्मित करना।
    • इस समझौते में महत्त्वपूर्ण धार्मिक तीर्थयात्राओं, तीर्थयात्रियों के लिए प्रावधानों और उनके लिए उपलब्ध स्वीकार्य मार्गों और दर्रों को भी सूचीबद्ध किया गया।
  • समझौते का महत्त्व: भारत ने पहली बार तिब्बत को चीन के तिब्बत क्षेत्र के रूप में मान्यता दी।

शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) के बारे में

  • अर्थ और उत्पत्ति: शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation (SCO) एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा समूह है।
    • इस संगठन का निर्माण वर्ष 1996 में ’शंघाई फाइव’ के रूप में हुआ था, जिसमें चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल थे। इन देशों के बीच एक पारस्परिक सुरक्षा समझौता संपन्न हुआ था।
    • 15 जून, 2001 को, ‘शंघाई फाइव’ में उज्बेकिस्तान के शामिल होने से  एक व्यापक संगठन के रूप में एससीओ (SCO)  का गठन किया।
    • मुख्यालय: बीजिंग, चीन।
    • आधिकारिक भाषाएँ: रूसी और चीनी।
  • सदस्यता विकास
    • संस्थापक सदस्य (वर्ष 2001): चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान।
    • विस्तार
      • वर्ष 2017 – भारत और पाकिस्तान इसमें शामिल हुए।
      • वर्ष 2023 – ईरान पूर्ण सदस्य बना।
      • वर्ष 2024 – बेलारूस 10वाँ पूर्ण सदस्य बना।
    • पर्यवेक्षक: अफगानिस्तान, बेलारूस (पूर्ण सदस्यता से पूर्व), मंगोलिया।
    • वार्ता साझेदार: 14 देश, जिनमें सऊदी अरब, मिस्र, म्याँमार, कतर, नेपाल, श्रीलंका, कंबोडिया और तुर्की शामिल हैं।
  • प्रतिनिधित्त्व
    • SCO के सदस्य देशों में विश्व की 43% जनसंख्या शामिल है।
    • ये वैश्विक अर्थव्यवस्था के लगभग एक-चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • SCO के उद्देश्य
    • क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद का मुकाबला (RATS- क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना, ताशकंद के माध्यम से) करना।
    • आर्थिक, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना।
    • यूरेशिया में संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सुधार करना।
    • वैश्विक शासन में बहुध्रुवीयता को प्रोत्साहित करना, पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं पर निर्भरता को कम करना।
  • भारत के लिए महत्त्व
    • रणनीतिक पहुँच: मध्य एशिया और यूरेशिया के साथ भारत के जुड़ाव को मजबूत करता है।
    • ऊर्जा सुरक्षा: तेल, गैस और यूरेनियम संसाधनों तक पहुँच।
    • आतंकवाद-निरोध: सीमा पार आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग हेतु एक महत्त्वपूर्ण मंच प्रदान करता है।
    • चीन को संतुलित करना: यह संगठन चीन के प्रभाव को संतुलित करने के साथ-साथ रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने का अवसर प्रदान करता है।
    • सॉफ्ट पॉवर डिप्लोमेसी: सांस्कृतिक संबंधों और सभ्यतागत संवाद को बढ़ावा देता है।

भारत-चीन संबंधों के बारे में

  • ऐतिहासिक विकास: पंचशील से वर्तमान तक
    • पंचशील समझौता (1954): तिब्बत के साथ व्यापार पर नेहरू और ‘झोउ एनलाई’ द्वारा हस्ताक्षरित; संप्रभुता, समानता, अनाक्रमण, अहस्तक्षेप और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और संयुक्त राष्ट्र कूटनीति की आधारशिला बन गए।
    • बांडुंग (1955) और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (1961): पंचशील समझौता नव स्वतंत्र राष्ट्रों के लिए एक नैतिक ढाँचे के रूप में वैश्विक विमर्श में एकीकृत हो गया।
    • वर्ष 1962 का युद्ध और उसके बाद के भारत-चीन संबंध: वर्ष 1962 के युद्ध के पश्चात् भारत-चीन संबंध समाप्ति की कगार पर आ गए। 
      • द्विपक्षीय संबंध एक ओर वर्ष 1962 के युद्ध, वर्ष 2017 का डोकलाम विवाद तथा वर्ष 2020 की गलवान झड़प जैसे संघर्षों से प्रभावित रहे हैं, तो दूसरी ओर ब्रिक्स एवं शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर सहयोग भी परिलक्षित हुआ है।
    • 75 वर्षों के संबंध: रणनीतिक अविश्वास लेकिन व्यावहारिक जुड़ाव से परिभाषित, भारत रणनीतिक स्वायत्तता चाहता है, जबकि चीन बहुध्रुवीय नेतृत्व का प्रस्ताव रखता है।

भारत-चीन सीमा विवाद की पृष्ठभूमि

  • मैकमोहन रेखा का प्रस्ताव (1913-14): शिमला सम्मेलन का उद्देश्य ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच एक सीमा रेखा स्थापित करना था।
    • मैकमोहन रेखा प्रस्तावित की गई थी, जो भूटान से बर्मा तक विस्तृत 890 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा थी, लेकिन चीन ने इसे स्वीकार नहीं किया।
  • तिब्बत पर अधिकार (1950): चीन द्वारा तिब्बत पर नियंत्रण स्थापित किए जाने के परिणामस्वरूप भारत-चीन के मध्य विश्व की सबसे लंबी अनिर्धारित सीमाओं में से एक अस्तित्व में आई।
  • लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) की शुरुआत (1959): चीन ने दोनों देशों के मध्य सीमा रेखा के रूप में LAC का प्रस्ताव रखा। भारत ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
  • LAC तीन क्षेत्रों में विभाजित है: पूर्वी क्षेत्र जो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम तक विस्तृत है, मध्य क्षेत्र जो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में विस्तृत है और पश्चिमी क्षेत्र जो लद्दाख में विस्तृत है।
  • चीन-भारत युद्ध (1962): 21 नवंबर, 1962 को चीन ने भारत के साथ अपने युद्ध में युद्धविराम की घोषणा की, जिसके तहत चीन ने अक्साई चिन के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
  • युद्धविराम और उसके बाद: चीन ने युद्धविराम की घोषणा करते हुए अधिकांश आक्रमणग्रस्त क्षेत्रों से अपनी सेनाएँ वापस बुला लीं, किंतु अक्साई चिन पर अपना नियंत्रण बनाए रखा।
  • लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (Line of Actual Control- LAC): LAC एक अनौपचारिक युद्धविराम रेखा बन गई, लेकिन दोनों देशों द्वारा इसकी अलग-अलग व्याख्या किए जाने के कारण विवाद जारी रहे।
  • वर्तमान विवाद: भारत मैकमोहन रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) की आधाररेखा मानता है, जबकि चीन, अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश, जिसे वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है, को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है।

भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध

  • राजनीतिक: 1 अप्रैल, 1950 को भारत, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गुटनिरपेक्ष देश बना।
  • आर्थिक संबंध (2025): द्विपक्षीय व्यापार 127.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे चीन, अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
    • चीन से आयात: 113.5 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11-15% की वृद्धि दर्शाता है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों, सौर सेल और औद्योगिक इनपुट का योगदान सर्वाधिक रहा।
    • चीन को निर्यात: निर्यात घटकर 14.3 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14-15% की गिरावट है।
    • व्यापार घाटा: व्यापार घाटा रिकॉर्ड 99.2 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया, जो संरचनात्मक असंतुलन और चीनी आयात पर भारत की अत्यधिक निर्भरता को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक: भारत और चीन के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान का इतिहास रहा है और उन्होंने चीन में योग महाविद्यालय जैसे संस्थान स्थापित किए हैं।
  • शिक्षा: भारत और चीन ने वर्ष 2006 में शिक्षा विनिमय कार्यक्रम (EEP) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत दोनों पक्ष एक-दूसरे के देश के मान्यता प्राप्त उच्च शिक्षा संस्थानों में 25-25 छात्रों को सरकारी छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।
  • बहुपक्षीय सहयोग: भारत और चीन शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और ब्रिक्स समूहों जैसे क्षेत्रीय मंचों पर उच्च-स्तरीय सहभागिता जारी रखते हैं, जो विकास और प्रगति के साझा एजेंडे को दर्शाता है।
  • अनौपचारिक शिखर सम्मेलन: दोनों देशों ने संयुक्त रूप से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांतों का समर्थन किया है।
    • दोनों देशों ने ‘होमटाउन डिप्लोमेसी’ (Hometown Diplomacy) पहल प्रारंभ की है तथा क्रमशः वुहान और चेन्नई में दो अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किए हैं।

भारत-चीन संबंधों से जुड़ी चुनौतियाँ

  • पाँच उँगलियों की नीति: दोनों देश लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) साझा करते हैं जो हिमालयी क्षेत्र से होकर गुजरती है, जिसका अधिकांश भाग अस्पष्ट रूप से सीमांकित है।
    • चीन तिब्बत को अपने सामरिक दृष्टिकोण से “दाहिना हाथ” मानता है तथा लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) को उसकी “पाँच उँगलियाँ” के रूप में देखता है।
    • पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा के दोनों ओर अनुमानित 50,000-60,000 सैनिक तैनात हैं।
  • सलामी स्लाइसिंग रणनीति (Salami Slicing Strategy): चीन-भारत सीमा झड़पें चीन की व्यापक ‘सलामी स्लाइसिंग रणनीति’ का एक हिस्सा हैं, जिसके तहत चीन भू-राजनीतिक रूप से अवैध कदम उठाकर एक बड़ा लाभ हासिल कर रहा है, जिसे अन्यथा एक साथ हासिल करना असंभव होता।
    • चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और आदर्श गाँवों आदि सहित लगातार बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रहा है।
      • उदाहरण के लिए, चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से संलग्न भारत की सीमाओं पर लगभग 628 समृद्ध गाँवों का निर्माण किया है, जिन्हें नागरिक तथा सैन्य, दोनों उद्देश्यों हेतु दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढाँचे (Dual-use infrastructure) के रूप में देखा जाता है।

  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): भारत, चीन की BRI परियोजना का विरोध करता है, क्योंकि यह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती है, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के कुछ हिस्सों से होकर गुजरता है।
  • आक्रामक नीतियाँ:स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ के तहत बंदरगाहों और नौसैनिक सुविधाओं के निर्माण से भारत की रणनीतिक घेराबंदी हो सकती है, जिससे चीन को हिंद महासागर में प्रमुख समुद्री मार्गों को प्रभावित और नियंत्रित करने का अवसर प्राप्त हो जाएगा।
    • ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ एक भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक पहल है, जिसमें चीनी सैन्य और वाणिज्यिक सुविधाओं का एक नेटवर्क शामिल है, जो चीनी मुख्य भूमि से लेकर ‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’ में पोर्ट सूडान तक विस्तृत है। उदाहरण के लिए हंबनटोटा बंदरगाह।
  • ऋण जाल कूटनीति: चीन की ‘ऋण जाल कूटनीति’ मालदीव, श्रीलंका, म्याँमार और नेपाल जैसे अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित करती है, जिससे भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’  नीति में बाधा आती है।
    • मालदीव के भारत के प्रति रुख में हालिया परिवर्तन, जिसमें मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी की समय सीमा तय की गई है, चीन के साथ उसकी बढ़ती निकटता का परिणाम है।
  • भारत की आयात निर्भरता: भारत अपने आयात का 14% से अधिक चीन से प्राप्त करता है, मुख्यतः इलेक्ट्रॉनिक्स, API, सौर मॉड्यूल और रसायन, जिससे विविधीकरण प्रयासों के बावजूद रिकॉर्ड 99.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा और आपूर्ति शृंखला जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं।

  • जल विवाद: ब्रह्मपुत्र नदी के जल बँटवारे के लिए कोई औपचारिक संधि स्थापित नहीं हुई है, जो तनाव का एक प्रमुख स्रोत रहा है क्योंकि चीन नदी के ऊपरी भाग में कई बाँध बना रहा है, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई है।
  • दक्षिण चीन सागर (SCS) और भारत: चीन 9 डैश लाइन और SCS में कृत्रिम द्वीपों के अवैध निर्माण/सैन्यीकरण के माध्यम से SCS के एक हिस्से पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है।
    • चीन की ‘नाइन-डैश लाइन’ दक्षिण चीन सागर में अपने क्षेत्रीय दावों को स्थापित करने के लिए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना द्वारा उपयोग की जाने वाली एक सीमांकन रेखा है।
    • चीन ने हाल ही में विवादित SCS में तेल और प्राकृतिक गैस क्षेत्र में निवेश के लिए भारत को वियतनाम के निमंत्रण पर आपत्ति जताई है।

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स्थिर भारत-चीन संबंधों का महत्त्व

  • सीमा शांति एवं सुरक्षा: संबंधों में स्थिरता ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ (LAC) पर कम संघर्ष सुनिश्चित करती है, जिससे दोनों देश सैन्यीकरण के बजाय विकास को प्राथमिकता दे पाते हैं।
  • आर्थिक विकास: मधुर संबंध द्विपक्षीय व्यापार (100 अरब डॉलर से अधिक) को बढ़ावा देते हैं और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को मजबूत करते हैं, जिससे भारत को अपनी आयात निर्भरताओं को प्रबंधित करने में मदद मिलती है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता: दोनों देशों के बीच सहयोग छोटे दक्षिण एशियाई देशों को प्रतिद्वंद्विता का आधार बनने से रोकता है, जिससे बाह्य शक्तियों का हस्तक्षेप कम होता है।
  • बहुपक्षीय सहयोग: SCO, BRICS और G20 में संयुक्त भागीदारी वैश्विक शासन में वैश्विक दक्षिण की अभिव्यक्ति को मजबूत करती है।
  • आतंकवाद-निरोध: समन्वित प्रयास सुरक्षा ढाँचों को मजबूत करते हैं और सीमापार आतंकवाद के खतरों को कम करते हैं।
  • ऊर्जा एवं संपर्क: स्थिर संबंध क्षेत्रीय गलियारों और ऊर्जा परियोजनाओं पर सहयोग को संभव बनाते हैं, जिससे दूरस्थ आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम होती है।
  • जलवायु एवं वैश्विक मुद्दे: शीर्ष कार्बन उत्सर्जक के रूप में, संयुक्त जलवायु पहल स्थिरता और वैश्विक वार्ताओं को बेहतर बनाती हैं।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: स्थिरता शिक्षा, पर्यटन और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देती है, जिससे सदियों पुराने सभ्यतागत संबंध पुनर्जीवित होते हैं।
  • रणनीतिक संतुलन: भारत-चीन के बीच शांतिपूर्ण संबंध, एशिया में शस्त्र प्रतिस्पर्द्धा को सीमित करने में सहायक हो सकते हैं तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुध्रुवीयता को सुदृढ़ करते हैं।
  • एशिया का भविष्य: भारत और चीन दोनों ही तेजी से उभरती हुई बड़ी शक्तियाँ हैं। इनके आपसी रिश्तों का प्रभाव केवल द्विपक्षीय स्तर पर ही नहीं बल्कि पूरे एशिया के भविष्य पर पड़ेगा।

चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत के प्रयास

  • रणनीतिक और सुरक्षा उपाय
    • सीमा सुरक्षा: गलवान संघर्ष (2020) के बाद लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर सैन्य उपस्थिति को मजबूत किया गया; सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और सुरंगों के निर्माण में तेजी लाई गई।
    • क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वाड) और हिंद-प्रशांत रणनीति: चीन की आक्रामकता को संतुलित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग को गहरा किया गया।
    • रक्षा साझेदारी: फ्राँस, रूस और दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के साथ रक्षा सहयोग का विस्तार; मालाबार नौसैनिक अभ्यास जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यासों को मजबूत किया गया।
  • आर्थिक और व्यापारिक प्रतिक्रियाएँ
    • आत्मनिर्भर भारत और उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजनाएँ: चीनी आयात पर निर्भरता कम करना भारत के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता है, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार और औषधि उद्योग में, जहाँ आवश्यक कच्ची सामग्रियों की निर्भरता 50% से अधिक है।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रतिबंध: वर्ष 2020 में पड़ोसी देशों से निवेश के लिए नियमों को कठोर किया गया, जिससे संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी हिस्सेदारी पर अंकुश लगा।
    • आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण: वियतनाम, ताइवान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार संबंधों का विस्तार।
  • तकनीकी और डिजिटल प्रभाव
    • चीनी कंपनियों का बहिष्करण: भारत के दूरसंचार नेटवर्क से हुआवेई और ZTE जैसी चीनी कंपनियों को प्रतिबंधित किया गया।
    • डिजिटल सुरक्षा उपाय: डेटा गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए 200 से अधिक चीनी मोबाइल एप्लिकेशन पर प्रतिबंध लगाया गया।
    • स्वदेशी नवाचार अभियान: सेमीकंडक्टर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल भुगतान अवसंरचना में घरेलू क्षमता को बढ़ावा देना।
  • भू-राजनीतिक और बहुपक्षीय मंच
    • शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और ब्रिक्स (BRICS): चीन के प्रभुत्व को रोकते हुए अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए ब्रिक्स मंच का उपयोग करना।
    • वैश्विक दक्षिण भागीदारी: ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) शिखर सम्मेलन 2023 और वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन में भारत के नेतृत्व ने चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के लिए एक वैकल्पिक मॉडल पेश किया।
    • पड़ोसी पहले नीति: चीनी BRI प्रभाव का मुकाबला करने के लिए नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्याँमार में कनेक्टिविटी तथा विकास परियोजनाओं में तेजी लाना।
  • समुद्री रणनीति
    • हिंद महासागर में उपस्थिति: अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, मॉरीशस और सेशेल्स में स्थित अपने अड्डों के माध्यम से भारतीय नौसेना की उपस्थिति को मजबूत करना।
    • ‘ब्लू इकनॉमी’ संबंधी साझेदारी: चीन के समुद्री रेशम मार्ग को संतुलित करने के लिए अफ्रीका और आसियान के साथ सहयोग का विस्तार करना।

भारत-चीन संबंधों के लिए विदेश मंत्रालय (MEA) का त्रि-आयामी दृष्टिकोण (जनवरी 2025)

  • सीमाओं पर शांति और सौहार्द: विदेश मंत्रालय इस बात पर जोर देता है कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर शांति के बिना द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य स्थिति असंभव है। विश्वास-निर्माण के उपाय और संघर्ष वाले बिंदुओं से सैनिकों की वापसी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • संप्रभुता और संवेदनशीलता का सम्मान: भारत की माँग है कि चीन, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और सीमावर्ती दावों के मामले में उसकी संप्रभुता का सम्मान करे। क्षेत्रीय अखंडता के लिए पारस्परिक सम्मान, भारत-चीन संबंधों की नींव है।
  • संवाद और सहयोग: विदेश मंत्रालय व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए, WMCC (परामर्श और समन्वय के लिए कार्यकारी तंत्र) और विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता जैसे तंत्रों के माध्यम से निरंतर राजनयिक जुड़ाव का समर्थन करता है।

आगे की राह

  • सीमा विवाद समाधान: सुविख्यात विवादित क्षेत्रों में अतिरिक्त बफर जोन स्थापित किए जाने चाहिए और मौजूदा सीमा प्रोटोकॉल, विशेष रूप से आग्नेयास्त्रों पर प्रतिबंध, के आधार पर इन्हें विकसित किया जाना चाहिए।
    • दोनों देश उच्चतम स्तर पर नियमित रूप से संवाद करते रहें। दोनों देशों को ‘पारस्परिक और समान सुरक्षा’ के सिद्धांत, अर्थात् सीमा के निकट परस्पर स्वीकार्य स्तर की सैन्य तैनाती का प्रयास करना चाहिए।
  • आर्थिक सहयोग: भारत को चीन के साथ व्यापार असंतुलन को दूर करने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि भू-राजनीतिक तनावों के बावजूद, भारत की चीन पर आयात निर्भरता बहुत अधिक है।
    • भारत को वैकल्पिक वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के विकास को सुगम बनाने और अन्य देशों से आयात में विविधता लाने का प्रयास करना चाहिए।
    • भारत, चीन को अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर करने पर भी विचार कर सकता है।
  • विदेश मंत्रालय का तीन पारस्परिक दृष्टिकोण: भारत को चीन के साथ संबंधों को पारस्परिक सम्मान (संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान), पारस्परिक संवेदनशीलता (एक-दूसरे की रणनीतिक चिंताओं की स्वीकृति), तथा पारस्परिक हितों (व्यापार, बहुपक्षीय सहयोग एवं बहुध्रुवीयता को सुदृढ़ करना) के आधार पर आगे बढ़ाना चाहिए।
    • यह ढाँचा यथार्थवाद और रचनात्मक जुड़ाव को संतुलित करता है और संबंधों के प्रबंधन के लिए एक दीर्घकालिक रणनीतिक रोडमैप प्रदान करता है।
  • संघर्ष समाधान और संकट प्रबंधन तंत्र: भारत को पर्वतीय क्षेत्रों और हिंद महासागर में एक विश्वसनीय सैन्य निवारक क्षमता का निर्माण और रखरखाव करने की आवश्यकता है।
    • चीनी ‘ग्रे जोन’ के खतरों का मुकाबला करने के लिए संरचनाओं और क्षमताओं का निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • इसमें भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) की तैनाती, सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए राफेल जेट विमानों की तैनाती, संयुक्त सैन्य अभ्यास आदि शामिल होने चाहिए।
  • सांस्कृतिक कूटनीति: भारत को द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए लोगों के मध्य आदान-प्रदान को बढ़ावा देने, संस्कृति, पर्यटन और लोगों के बीच संबंधों की सॉफ्ट पॉवर का उपयोग करने की आवश्यकता है।
    • छात्र विनिमय कार्यक्रम, सांस्कृतिक उत्सव और संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ जैसी पहल।
    • भाषा विनिमय कार्यक्रम दोनों देशों के लोगों के मध्य विश्वास निर्माण में भी मदद कर सकते हैं।
  • ट्रैक डिप्लोमेसी: ‘ट्रैक डिप्लोमेसी’ जैसी गैर-सरकारी पहलों को प्रोत्साहित करने से संवाद के वैकल्पिक माध्यम उपलब्ध हो सकते हैं और समाज के सभी स्तरों तथा सभी क्षेत्रों में कार्मिक आदान-प्रदान को सुगम बनाकर ‘उच्च विश्वास’ के साथ ‘विश्वसनीय समाज’ का विस्तार करने में मदद मिल सकेगी।
    • ट्रैक वन डिप्लोमेसी, राष्ट्रों के बीच औपचारिक वार्ता की प्रक्रिया है, जिसे पेशेवर राजनयिकों, सरकारी प्रतिनिधियों या आधिकारिक दूतों द्वारा संचालित किया जाता है।
    • ट्रैक टू डिप्लोमेसी, अनौपचारिक प्रक्रिया है, जिसमें शैक्षणिक जगत, थिंक टैंक्स, पूर्व राजनयिकों अथवा गैर-सरकारी संघर्ष-समाधान विशेषज्ञों द्वारा संवाद और विश्वास-निर्माण के प्रयास किए जाते हैं।
  • वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम का उचित कार्यान्वयन: यह सीमावर्ती जिलों के साथ निर्बाध संपर्क सुनिश्चित करेगा।
    • वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम, चीन की सीमा से संलग्न राज्यों, अर्थात् लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के गाँवों के विकास के लिए बजट वर्ष 2023-24 में प्रस्तावित किया गया था।
  • अन्य क्षेत्रों में अंडमान और निकोबार कमान (ANC) का अनुकरण: एक व्यापक भू-रणनीतिक दृष्टिकोण से, अंडमान और निकोबार कमान (ANC) इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए हिंद-प्रशांत सुरक्षा में योगदान दे सकती है।
    • अंडमान और निकोबार कमान (ANC) भारतीय सशस्त्र बलों की एक एकीकृत त्रि-सेवा कमान है, जिसका मुख्यालय अंडमान और निकोबार द्वी समूह के पोर्ट ब्लेयर में है।

निष्कर्ष

प्रतिद्वंद्विता और सहयोग दोनों से युक्त भारत-चीन संबंध संवाद, पारस्परिक सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की माँग करते हैं। दोनों शक्तियों के बीच स्थिरता एशियाई सुरक्षा, आर्थिक विकास और वैश्विक संतुलन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

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