हाल ही में भारत ने यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के साथ एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता किया।
भारत-EFTA व्यापार समझौते के बारे में
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत और EFTA राष्ट्रों के बीच व्यापक आधार वाले व्यापार और निवेश समझौते पर बातचीत आधिकारिक तौर पर जनवरी 2008 में शुरू की गई थी।
EFTA का महत्त्व
पर्यावरण और श्रम एकीकरण: इस समझौते में पर्यावरण एवं श्रम जैसे मुद्दों को भी शामिल करने पर सहमति बनी है।
निवेश सुविधा पर जोर: इस EFTA- FTA समझौते में एक विस्तृत निवेश अध्याय भी शामिल किया गया है, जो अन्य हालिया भारतीय संदर्भ वाले FTAमें मौजूद नहीं था।
यह निवेश सुविधा के मुद्दों पर केंद्रित है, न कि निवेश सुरक्षा पर।
EFTA राष्ट्रों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रतिबद्धता: भारत EFTA देशों से यह वादा हासिल करने में कामयाब रहा है कि FTA लागू होने के 10 वर्षों के अंतर्गत भारत में FDI को 50 अरब डॉलर तक बढ़ाने का ‘लक्ष्य’ रखेंगे।
इसके बाद अगले पाँच वर्षों में 50 बिलियन डॉलर और प्राप्त होंगे।
भारत में रोजगार सृजन के प्रति प्रतिबद्धता: निवेश अध्याय के अनुच्छेद-7.1(3)(B) में प्रावधान है कि EFTA राष्ट्रों का लक्ष्य भारत में दस लाख नौकरियों के सृजन को सुविधाजनक बनाना होगा।
EFTA राष्ट्र भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने और दस लाख नौकरियाँ उत्पन्न करने के लिए ईमानदार प्रयास करने हेतु कानूनी रूप से बाध्य हैं।
संबंधित चुनौतियाँ
बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): यह वर्ष 2008 से एक निरंतर मुद्दा रहा है।
यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) का कहना है कि विशेष रूप से स्विट्जरलैंड एवं नॉर्वे फार्मास्युटिकल उत्पादों में विशेषज्ञता रखते हैं।
EFTA राष्ट्रों को आशंका है कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते उनके प्रतिस्पर्द्धी लाभ और EFTA राष्ट्रों में स्थित दवा कंपनियों की लाभ-प्रदता को प्रभावित कर सकते हैं।
डेटा विशिष्टता: यह सस्ती दवाओं के प्रमुख निर्यातक, भारत के दवा उद्योग को प्रभावित कर सकते हैं क्योंकि यह किसी दवा के बारे में नैदानिक परीक्षण डेटा को कम-से-कम छह वर्षों के लिए विशिष्ट बनाता है।
हाल ही में लीक हुए मसौदे में इसकी उपस्थिति का संकेत मिलने के बावजूद जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत ने मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ता में डेटा विशिष्टता को शामिल करने का विरोध किया है।
मुक्त व्यापार समझौता (FTA)
FTA दो या दो से अधिक देशों अथवा व्यापारिक गुटों के बीच की व्यवस्था है, जो मुख्य रूप से उनके बीच पर्याप्त व्यापार पर सीमा शुल्क और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने या समाप्त करने के लिए सहमत होते हैं।
वर्गीकरण: FTA को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:
प्रिफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट (PTA)
व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA)
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)
भारत के मुक्त व्यापार समझौते के बारे में
बाध्यकारी व्यापार और निवेश नियम: FTA में नियमित रूप से व्यापार एवं निवेश दोनों पर बाध्यकारी नियम होते हैं।
इस सदी के पहले दशक में जापान, कोरिया, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों के साथ हस्ताक्षरित भारत के FTA इसी आर्थिक तर्क पर आधारित हैं।
निवेश सुरक्षा: बाध्यकारी व्यापार नियमों के अलावा, इन सभी में निवेश के सुरक्षा प्रावधानों के साथ एक निवेश अध्याय शामिल है।
FTA 2.0: भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून को अंतरराष्ट्रीय निवेश कानून से अलग कर दिया।
ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात के साथ FTA, जिसमें बाध्यकारी व्यापार तो है लेकिन निवेश नियम नहीं है।
व्यापार एवं निवेश के लिए अलग-अलग समझौते: भारत का दृष्टिकोण एक ही देश के साथ व्यापार और निवेश पर अलग-अलग समझौते करने का प्रतीत होता है।
यह संयुक्त अरब अमीरात के मामले में सबसे स्पष्ट रूप से देखा गया है। वर्ष 2022 में UAE के साथ FTA पर हस्ताक्षर करने के बाद, भारत और UAE ने इस वर्ष की शुरुआत में द्विपक्षीय निवेश संधि पर भी वार्ता शुरू की है।
आगे की राह
एक स्पष्ट FTA नीति की आवश्यकता (FTA 3.0): भारत को एक स्पष्ट FTA नीति की आवश्यकता है, जिसका उपयोग विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं विदेशी निवेश कानूनों से निपटने के लिए किया जाएगा।
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के स्तर में गिरावट को देखते हुए, देश को उच्च आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित एवं समावेशी FTA नीति महत्त्वपूर्ण है।
व्यापार और निवेश का एकीकरण: भारत न केवल व्यापार बल्कि किसी विशेष देश से उच्च निवेश प्रवाह की भी अपेक्षा करता है, कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को इसकी FTA नीति में शामिल किया जाना चाहिए:
भारत को एक व्यापक आर्थिक संधि के हिस्से के रूप में व्यापार एवं निवेश पर वार्ता करनी चाहिए, व्यापार को निवेश से अलग करना सही नहीं है। दोनों को मिलाने से भारत को एक लाभकारी समझौता करने के लिए स्पष्ट वार्ता का लाभ मिलेगा।
निवेश संरक्षण को मजबूत करना: भारत को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक प्रभावशाली विवाद निपटान तंत्र के साथ, निवेश के मुद्दों के दायरे को केवल सुविधा से प्रभावी सुरक्षा तक विस्तारित करने पर विचार करना चाहिए।
निवेशकों का विश्वास बढ़ाना: अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विदेशी निवेशकों को लागू करने योग्य कानूनी सुरक्षा प्रदान करने से आत्मविश्वास बढ़ेगा।
यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के बारे में
स्थापना: 3 मई, 1960 को
उद्देश्य: अपने सदस्य देशों के लाभ और दुनिया भर में उनके व्यापारिक भागीदारों के लाभ के लिए मुक्त व्यापार और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना।
सदस्य: इसमें चार यूरोपीय देश (आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड) शामिल हैं।
मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
विशेषताएँ: FTA देश शेंगेन क्षेत्र का हिस्सा हैं और इसके सभी सदस्य देश WTO के सदस्य हैं।
अधिदेश: एसोसिएशन के मुख्य कार्य तीन प्रकार के हैं:
आर्थिक संबंधों का विनियमन: EFTA कन्वेंशन को बनाए रखना और विकसित करना, जो चार EFTA राष्ट्रों के बीच आर्थिक संबंधों को नियंत्रित करता है।
यूरोपीय आर्थिक क्षेत्र (EEA) पर समझौते का प्रबंधन: यह EEA समझौता यूरोपीय संघ और EFTA के 3 राष्ट्रों (आइसलैंड, लिकटेंस्टीन और नॉर्वे) को एक साथ लाता है, जिसे एक आंतरिक बाजार भी कहा जाता है।
मुक्त व्यापार समझौतों के लिए: EFTA के मुक्त व्यापार समझौतों के विश्वव्यापी नेटवर्क का विकास करना।
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