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भारत रोजगार रिपोर्ट 2024- महिलाओं के रोजगार पर दृष्टिकोण

Lokesh Pal April 08, 2024 05:11 187 0

संदर्भ  

हाल ही में मानव विकास संस्थान (Institute for Human Development) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) ने भारत रोजगार रिपोर्ट, 2024 ( India Employment Report, 2024) जारी की। 

संबंधित तथ्य

  • यह शोध ज्यादातर वर्ष 2000 और वर्ष 2022 के बीच आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के डेटा विश्लेषण पर आधारित है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • गैर-कृषि क्षेत्रों में कार्यबल का स्थानांतरण: वर्ष 2000- 2019 की अवधि में कार्यबल का कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों में क्रमिक और निरंतर स्थानांतरण देखा गया, यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है।
  • भारत में रोजगार के रुझान: भारत में रोजगार मुख्य रूप से स्व-रोजगार और आकस्मिक रोजगार है, जिसमें लगभग 82 प्रतिशत कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है, जिसमें लगभग 90 प्रतिशत अनौपचारिक रूप से कार्यरत हैं।
  • स्थिर वेतन: हालाँकि वर्ष 2012 और वर्ष 2022 के बीच आकस्मिक मजदूरों के वेतन में मामूली वृद्धि हुई, नियमित श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी स्थिर रही या घट गई।
  • रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण से बाहर युवाओं की दर: वर्ष 2010 और 2019 के बीच दक्षिण एशिया में औसतन 29.2% के साथ रोजगार, प्रशिक्षण और शिक्षा से बाहर युवाओं की दर सबसे अधिक है।

श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR)

  • परिभाषा:  यह अर्थव्यवस्था में 16-64 आयु वर्ग की कामकाजी आबादी का वह वर्ग है, जो वर्तमान में कार्यरत है या रोजगार की तलाश में है। 
  • अपवाद: अभी भी पढ़ाई कर रहे युवाओं, गृहिणियों और 64 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों को श्रम शक्ति के हिस्से के रूप में नहीं देखा जाता है।

महिला रोजगार का परिदृश्य

  • महिला श्रम बल भागीदारी दर: पुरुषों के लिए 78.5 की तुलना में महिला LFPR वर्ष 2023 में 37 थी। विश्व बैंक के अनुसार विश्व महिला LFPR दर 49 है।
    • महिला LFPR में वर्ष 2000 के बाद से लगातार गिरावट आ रही थी और वर्ष 2019 में 24.5 तक पहुँच गई, विशेषकर ग्रामीण इलाकों में बढ़ने से पहले।
  • भागीदारी में वृद्धि: स्व-रोजगार और अवैतनिक पारिवारिक कार्यों में वृद्धि में महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है।
    • वर्ष 2019 के बाद वृद्धिशील रोजगार में लगभग दो-तिहाई में स्व-रोजगार श्रमिक शामिल थे, जिनमें अवैतनिक (महिला) पारिवारिक श्रमिक प्रमुख थे।
    • नियमित काम का हिस्सा, जो वर्ष 2000 के बाद लगातार बढ़ा, वर्ष 2018 के बाद घटने लगा।
  • युवाओं की दर रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं है: भारत में ऐसे युवाओं की भी बड़ी हिस्सेदारी है जो रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं हैं लेकिन युवा महिलाओं में यह दर पुरुषों की तुलना में अधिक है।

महिलाओं की कम भागीदारी के कारण

  • उच्च शिक्षा में सकल नामांकन: वर्ष 2021-22 की अवधि में महिलाओं के बीच सकल नामांकन अनुपात (GER) 47.3 प्रतिशत था, इसलिए श्रमबल में प्रवेश में देरी हुई।
  • वैतनिक कार्य की कुल कमी: भारत का विकास पैटर्न नौकरी प्रधान नहीं रहा है, जहाँ सीमित कुशल नौकरियों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है।
    • ऐसी नीतियों की आवश्यकता है, जो श्रम गहन क्षेत्रों (विनिर्माण और अपेक्षाकृत उच्च उत्पादकता सेवाओं दोनों में) को बढ़ावा दें।
  • भारतीय सामाजिक मानदंड: महिलाओं को घर पर प्राथमिक देखभालकर्ता के रूप में देखा जाता है, जो उनकी गतिशीलता को सीमित करता है, जिससे उपलब्ध अवसरों का लाभ लेने की उनकी स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
    • महिलाओं की पसंद अक्सर शादी और घर एवं परिवार की जिम्मेदारी तक सीमित होती है।
  • सीमित विकल्प: सार्वजनिक सुरक्षा पर चिंता और परिवहन की कमी भी महिलाओं को घर के नजदीक काम की तलाश तक सीमित कर देती है, जिससे उनके विकल्प और भी सीमित हो जाते हैं।
    • सुरक्षा और परिवहन में सार्वजनिक निवेश भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि बच्चों और बुजुर्गों की किफायती देखभाल में सार्वजनिक निवेश आवश्यक है।
  • महिला श्रम के लिए आपूर्ति और माँग: इनमें महिलाओं के लिए भुगतान किए गए काम और एक परिवार के संयोजन के अवसर, शिक्षा और बच्चों के पालन-पोषण से संबंधित निर्णय, तकनीकी नवाचार, कानून और मानदंड तथा अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक परिवर्तन शामिल हैं।

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