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भारत में ‘मिडिल इनकम ट्रैप’

Lokesh Pal August 10, 2024 06:15 36 0

संदर्भ

हाल ही में विश्व बैंक ने विश्व विकास रिपोर्ट 2024 जारी की, जो विकासशील देशों को ‘मिडिल-इनकम ट्रैप’ (Middle-Income Trap) से बाहर निकलने में सक्षम बनाने के लिए एक व्यापक रोडमैप प्रदान करती है।

विश्व विकास रिपोर्ट 2024 

  • यह ‘मिडिल इनकम ट्रैप’ के मुद्दे पर केंद्रित है।
  • विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित: वर्ष 1978 से प्रतिवर्ष।
  • रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष आर्थिक विकास के एक विशिष्ट पहलू पर आधारित होती है। इस बार रिपोर्ट में भारत और चीन के साथ-साथ 106 अन्य देशों के सामने उच्च आय वाले विकसित देश बनने की दिशा में आने वाली संभावित चुनौतियों के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की गई है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • आर्थिक विकास की समय सीमा: चीन को संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के एक-चौथाई तक पहुँचने में 10 वर्ष लग सकते हैं, इंडोनेशिया को 70 वर्ष लग सकते हैं, तथा भारत को 75 वर्ष तक का समय लग सकता है।
  • वर्गीकरण और असमानता: वर्ष 2023 के अंत में, 108 देशों को मध्यम आय के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिनमें से प्रत्येक की प्रति व्यक्ति वार्षिक GDP 1,136 डॉलर से 13,845 डॉलर के बीच थी।
    • असमानता: इन देशों में छह अरब लोग रहते हैं, जो वैश्विक आबादी का 75% है और प्रत्येक तीन में से दो लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
    • वे वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 40% से अधिक और कार्बन उत्सर्जन का 60% से अधिक उत्पन्न करते हैं।
    • उन्हें मिडिल इनकम ट्रैप से बचने में अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में कहीं अधिक बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:-
      • तेजी से वृद्ध होती आबादी।
      • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ता संरक्षणवाद।
      • ऊर्जा परिवर्तन में तेजी लाने की जरूरत।
    • मध्यम आय वाले देशों में विकास दर अन्य आय स्तर वाले देशों की तुलना में धीमी है: निम्न या उच्च आय वाले देशों की तुलना में मध्यम आय वाले देशों में विकास में मंदी अधिक बार आती है।
      • विकास रणनीतियाँ (जो कम आय वाले देशों के लिए प्रभावी रही) पूँजी निवेश, कम रिटर्न देता है।
      • कमजोर संस्थाओं वाले देश, विशेषकर वे देश जिनमें आर्थिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता का स्तर कम है, वे आय के दीर्घकालिक स्तर पर भी मंदी के प्रति संवेदनशील हैं।

भारत का विकास

  • वर्ष 2047 तक 8% की नाममात्र दर: यदि भारत तथाकथित मिडिल इनकम ट्रैप से मुक्त होना चाहता है तो उसे वर्ष 2047 तक 8% की नाममात्र दर पर डॉलर के संदर्भ में वृद्धि जारी रखने की आवश्यकता है।
    • चुनौतियाँ: जहाँ वैश्वीकरण को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और जलवायु परिवर्तन विकास के मौजूदा मॉडल के लिए नए खतरे उत्पन्न करता  रहता है वहाँ बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच इसे जारी रखना होगा। 
  • भारत की वृद्धि: भारत ने पिछले 25 वर्षों के दौरान डॉलर के संदर्भ में अपनी अर्थव्यवस्था को लगभग 9% नाममात्र दर से बढ़ाया है।
  • अगले 25 वर्षों के लिए उच्च आधार के साथ विकास की लगभग समान दर को बनाए रखने के लिए कुछ विशेष करने की आवश्यकता है।


  • मध्यम आय वाले देशों के लिए चुनौतियाँ
    • भू-राजनीतिक तनाव: भू-राजनीतिक तनावों के कारण विदेशी व्यापार और निवेश पर अंकुश लगने का खतरा है।
    • लोकलुभावन वादे: यह सरकारों के लिए कार्रवाई करने की गुंजाइश कम कर रहा है।
    • बढ़ता कर्ज और प्रतिकूल जनसांख्यिकी: वे निजी निवेशकों को बाहर कर रहे हैं और सार्वजनिक निवेश को कम कर रहे हैं।
    • जलवायु कार्रवाई में तेजी: इसके लिए बुनियादी ढाँचे एवं विनियामक सुधारों में बड़े निवेश की आवश्यकता होगी, जो उत्पादकता को रोक सकते हैं।

  • मौजूदा कंपनियाँ: वे स्थापित कंपनियाँ हैं, जो लंबे समय से बाजार में कार्य कर रही हैं। उनके पास आम तौर पर महत्त्वपूर्ण बाज़ार हिस्सेदारी, स्थापित ग्राहक आधार और अच्छी तरह से विकसित वितरण चैनल होते हैं।
  • प्रवेशकर्ता: वे कंपनियाँ या व्यक्ति हैं जो बाजार में नए प्रवेश कर रहे हैं। ये प्रवेशकर्ता ऐसे अभिनव उत्पाद, सेवाएँ या व्यवसाय मॉडल ला सकते हैं, जो यथास्थिति को चुनौती देते हैं।

  • मूल्य सृजन: वर्तमान तथा नवप्रवर्तक दोनों ही मूल्य सृजन कर सकते हैं।
  • मौजूदा कंपनियाँ नए पैमाने लेकर आती हैं। वे बाजार में प्रवेश करने वाली कंपनियों के साथ मिलकर देश की तकनीकी क्षमताओं का विस्तार करने के लिए प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं
    • नए प्रवेशकर्ता बदलाव लाते हैं: नए उत्पादों या उत्पादन प्रक्रियाओं वाले उद्यम, नए कौशल और विचार लेकर आते हैं। ऐसा करके, वे देश की प्रौद्योगिकी सीमा का विस्तार करते हैं।
    • मूल्य निर्माता के रूप में मौजूदा तथा नए दोनों ही प्रकार के निवेशकों के होने का निहितार्थ: नीति निर्माताओं को संरचनात्मक दक्षता के सतही उपायों, जैसे कि फर्म का आकार, आय असमानता और ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर रहना बंद करना होगा।
      • आज की मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिए पूँजी, श्रम और ऊर्जा के उपयोग में ‘दक्षता’ अनिवार्य है।

प्रवेशकों तथा पदधारियों के बीच अंतःक्रियाएँ रचनात्मक विनाश की गति निर्धारित करती हैं

मिडिल इनकम ट्रैप के बारे में

  • मिडिल इनकम ट्रैप एक ऐसा परिदृश्य है, जहाँ देश की अर्थव्यवस्था उच्च प्रति व्यक्ति आय स्तर तक संक्रमण करने में असमर्थ होती है।
    • कम आय वाले देश अक्सर कम वेतन, सस्ते श्रम और बुनियादी तकनीक के विकास के कारण मध्यम आय स्तर पर तेजी से संक्रमण करते हैं। हालाँकि, केवल कुछ ही देश उच्च आय का दर्जा हासिल कर पाते हैं।
  • उदाहरण के लिए: लैटिन अमेरिकी तथा मध्य पूर्वी देश, ऐतिहासिक रूप से कम-से-कम चार या पाँच दशकों तक मध्यम आय के जाल में फँसे रहे हैं।
    • विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1960 में 101 मध्यम आय वाले देशों में से केवल 13 देश ही संयुक्त राज्य अमेरिका के सापेक्ष प्रति व्यक्ति आय स्तर के आधार पर वर्ष 2008 तक उच्च आय का दर्जा प्राप्त कर पाए।
  • सुधार का तरीका: एक परिपक्व मध्य-बाजार अर्थव्यवस्था में उभरने के बाद, नीति निर्माताओं को ऐसे जाल से बचने के लिए पारंपरिक विकास इंजनों पर निर्भर रहने के बजाय नवोन्वेषी होने, संस्थागत क्षमताओं को मजबूत करने और विकास के नए स्रोतों की तलाश करने की आवश्यकता है।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • संरचनात्मक आर्थिक बाधाएँ
    • सीमित औद्योगिकीकरण: प्रयासों के बावजूद, भारत में पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं जैसा औद्योगिक परिवर्तन नहीं हुआ है। सेवाओं की तुलना में विनिर्माण अर्थव्यवस्था का अपेक्षाकृत छोटा हिस्सा बना हुआ है।
    • कृषि उत्पादकता: कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा अभी भी कृषि में कार्यरत है, जो छोटी भूमि जोत, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे तथा अपर्याप्त मशीनीकरण के कारण कम उत्पादकता से चिह्नित है।
  • मानव पूँजी की कमियाँ
    • शिक्षा और कौशल अंतर: भारतीय शिक्षा प्रणाली ने आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए तैयार कुशल कार्यबल बनाने के लिए आवश्यक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए संघर्ष किया है।
    • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: COVID-19 महामारी द्वारा उजागर की गई सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ एक मजबूत स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता पर बल देती हैं।
  • नवाचार तथा अनुसंधान
    • अनुसंधान एवं विकास व्यय: अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का अनुसंधान एवं विकास पर व्यय कम है, जो नवाचार को बाधित करता है।
    • पेटेंट पंजीकरण: पेटेंट पंजीकरण की दर भी कम है, जो अनुसंधान तथा नवाचार पर अपर्याप्त जोर को दर्शाती है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: खराब लॉजिस्टिक्स, ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढाँचा उत्पादकता में बाधा डाल सकता है और निवेश को हतोत्साहित कर सकता है।
  • वित्तीय क्षेत्र के मुद्दे
    • ऋण तक पहुँच: छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों (SME) को अक्सर वित्त तक पहुँचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जो उनकी विकास क्षमता को सीमित करता है।
    • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ: बैंकिंग क्षेत्र गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के उच्च स्तर से जूझ रहा है, जिससे इसकी ऋण देने की क्षमता कम हो रही है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश अथवा बोझ
    • युवा बेरोजगारी: युवाओं में उच्च बेरोजगारी दर संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसांख्यिकीय बोझ में बदल सकती है।
  • नियामक एवं शासन संबंधी चिंताएँ
    • लालफीताशाही: नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और लालफीताशाही भारत में व्यापार करने में एक महत्त्वपूर्ण बाधा हो सकती है।
    • भ्रष्टाचार: पारदर्शिता संबंधी मुद्दे और भ्रष्टाचार भी निवेशकों के विश्वास तथा आर्थिक दक्षता को प्रभावित करते हैं।

‘3i’ रणनीति

विकास के अपने चरण के आधार पर, देशों को नीतियों का एक क्रमबद्ध तथा उत्तरोत्तर अधिक परिष्कृत करने की आवश्यकता है:

  • निम्न आय वाले देश: इन देशों को केवल निवेश बढ़ाने के लिए बनाई गई नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। ( 1i दृष्टिकोण)
  • निम्न-मध्यम आय वाले देश: इन देशों को अपनी नीतियों की बदलाव लाना चाहिए और निवेश तक विस्तारित करना चाहिए। (2i इन्वेस्टमेंट +इन्फ्यूजन)
  • उच्च-मध्यम आय वाले देश: इन देशों को पुनः नीतियों की बदलाव की जरूरत है। (3i: इन्वेस्टमेंट + इन्फ्यूजन + इनोवेशन)।

मिडिल इनकम ट्रैप से बचने के लिए भारत के लिए आगे की राह

  • मध्यम आय वाले देशों में वृद्धि अन्य आय स्तर वाले देशों से भिन्न
    • सफल मध्यम आय वाले देशों को आर्थिक संरचनाओं को विकसित करने के लिए दो क्रमिक परिवर्तनों की योजना बनानी होगी, जो अंततः उच्च आय स्तर को बनाए रख सकें।
      • पहला परिवर्तन: यह निवेश में तेजी लाने के लिए 1i रणनीति से 2i रणनीति की ओर है, जिसमें इन्वेस्टमेंट +इन्फ्यूजन दोनों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिसमें कोई देश विदेश से तकनीक लाता है और उसका घरेलू स्तर पर विस्तार करता है, यह प्रक्रिया मोटे तौर पर निम्न-मध्यम आय वाले देशों पर लागू होती है।
      • दूसरा परिवर्तन: यह 3i रणनीति पर स्विच करना है, जिसमें नवाचार पर अधिक ध्यान देना शामिल है, यह प्रक्रिया उच्च-मध्यम आय वाले देशों पर अधिक लागू होती है।

भारत के लिए ‘2i’ पर्याप्त नहीं

  • भारत, जो वर्ष 2022 में 2,390 डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाली निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था था, के बारे में बात करते हुए, निवेश और प्रौद्योगिकी के समावेशन के ‘2i’ पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव पर्याप्त नहीं है।
    • अनुसंधान एवं विकास: इसमें नवाचारों, अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए; इसमें अच्छे संस्थान और सक्षम मानव पूँजी होनी चाहिए।
    • उन्नयन: यह स्वीकार करना होगा कि संस्थानों को विश्व मानकों के अनुरूप उन्नत किया जाना चाहिए, तथा भारत में मजबूत मानव संसाधन विकास अपरिहार्य है।
    • युवा तथा PPA: भारतीय युवा आकांक्षी हैं और सार्वजनिक-निजी-शैक्षणिक (PPA) त्रिपक्षीय अभिसरण, जैसा कि इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में निर्धारित किया गया था, भारत की इस क्षमता का बेहतर उपयोग कर सकता है।


  • योग्यता को पुरस्कृत किया जाना चाहिए तथा निहित स्वार्थों को अनुशासित किया जाना चाहिए।
    • जिन देशों ने मध्यम आय से उच्च आय की स्थिति में तेजी से बदलाव किया है, उन्होंने निहित स्वार्थों को अनुशासित करके, अपने प्रतिभा पूल का निर्माण करके तथा नीतियों और संस्थानों का आधुनिकीकरण करके ऐसा किया है।
      • वर्ष 1990 के बाद से, केवल 34 मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ ही उच्च आय वाली स्थिति में स्थानांतरित होने में सफल रहीं हैं और उनमें से एक-तिहाई से अधिक या तो यूरोपीय संघ (EU) में एकीकरण के लाभार्थी थे, या पहले अज्ञात तेल के लाभार्थी थे।
    • आज के मध्यम आय वाले देश भी ऐसा ही कर सकते हैं:
      • निहित स्वार्थों पर नियंत्रण रखना: शक्तिशाली संस्थाएँ (बड़ी कंपनियाँ, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम तथा शक्तिशाली नागरिक) अपार मूल्य जोड़ सकती हैं, लेकिन वे इसे आसानी से कम भी कर सकती हैं।
        • सरकारों को प्रतिस्पर्द्धा व्यवस्थाओं के माध्यम से सत्ताधारियों को अनुशासित करने के लिए ऐसे तंत्र तैयार करने चाहिए।
      • योग्यता को पुरस्कृत करना: मध्यम आय वाले देशों में उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कुशल प्रतिभाओं का भंडार कम है और वे उनका उपयोग करने में भी कम कुशल हैं। 
      • संकटों का लाभ उठाना: सस्ती, विश्वसनीय ऊर्जा लंबे समय से तेज आर्थिक विकास की आधारशिला रही है। लेकिन अब ऊर्जा दक्षता और उत्सर्जन तीव्रता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
        • जलवायु परिवर्तन तथा अन्य आपात स्थितियाँ कठोर नीतिगत सुधारों के लिए आवश्यक आम सहमति बनाने के अवसर प्रदान कर सकती हैं।
  • उच्चतम सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ: इसलिए यह सुनिश्चित करना हमारे नीति निर्माताओं का दायित्व है कि वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लिए भारत का लक्ष्य केवल सीमित क्षेत्रों तक सीमित न रहे, बल्कि इसे समावेशी और व्यापक बनाया जाए।
  • अवसंरचना विकास: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) जैसे तंत्रों के माध्यम से सड़क, बंदरगाह, बिजली और डिजिटल नेटवर्क सहित अवसंरचना में निवेश में तेजी लाना होगा।
    • उदाहरण के लिए, स्मार्ट सिटीज मिशन एक पहल है, जिसका उद्देश्य सतत् तथा समावेशी शहरी समाधान विकसित करना है।
  • शासन में सुधार: लालफीताशाही को कम करने के लिए प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और नियामक ढाँचे में सुधार करना।
    • शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़े कदम उठाना।

निष्कर्ष

मध्यम आय के जाल से बचने के लिए भारत को बहुआयामी रणनीति लागू करनी होगी, जिसमें आर्थिक, शैक्षिक और शासन सुधार शामिल होंगे। लक्षित नीतियों और संरचनात्मक सुधारों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ, भारत निरंतर वृद्धि और विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिससे यह उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था की स्थिति की ओर अग्रसर हो सकता है।

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