भारत को वर्ष 2022 के दौरान जलवायु प्रदर्शन में सातवें स्थान पर रखा गया है। लेकिन देश प्रभावी रूप से चौथे स्थान पर है क्योंकि किसी भी देश को ‘अत्यंत उच्च’ प्रदर्शन श्रेणी में पहले तीन रैंक पर नहीं रखा गया है।
दुबई में संचालित हो रहे COP-28 के मौके पर 8 दिसंबर को प्रकाशित वार्षिक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI) रिपोर्ट, 2024 में बताया गया है कि भारत ने पिछले वर्ष के प्रदर्शन की तुलना में एक स्थान का सुधार दिखाया है।
देशों की स्थिति:
डेनमार्क 75.59 प्रतिशत अंक के साथ शीर्ष स्थान पर है।
एस्टोनिया और फिलीपींस 72.07 और 70.70 के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।
भारत 70.25 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर है। पिछले साल भारत का स्कोर 67.35 था।
सऊदी अरब प्रदर्शन सूची में सबसे नीचे 67वें स्थान पर है, जबकि COP-28 मेजबान देश संयुक्त अरब अमीरात65वें स्थान पर है।
भारत के अलावा उभरती अर्थव्यवस्थाओं के BASIC (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) समूह के अन्य सदस्यों ने भी मूल्यांकन में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
चीन ने एक वर्ष पहले की तुलना में वही स्थान (51वाँ) बरकरार रखा है। ब्राज़ील ने 15 स्थान का सुधार किया और दक्षिण अफ़्रीका एक स्थान नीचे आ गया।
यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, इटली और अन्य सहित अधिकांश विकसित देशों ने पिछले वर्ष की तुलना में खराब प्रदर्शन किया है, जिससे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए कार्रवाई पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है।
विकसित देशों में इटली रैंकिंग में 15 स्थान, यूनाइटेड किंगडम और फ्राँस नौ स्थान, जापान आठ स्थान और संयुक्त राज्य अमेरिका पाँच स्थान नीचे चले गए हैं। जर्मनी और यूरोपीय संघ में मामूली सुधार हुआ।
रिपोर्ट से संबंधित अन्य तथ्य:
उचित प्रयास की कमी: CCPI में शामिल देशों को 1.5°C लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उत्सर्जन स्तर को वर्ष 2030 तक आधा किया जाना चाहिए। सभी क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज़ करने की तत्काल आवश्यकता के बावजूद वर्ष 2022 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों (GHG) में वृद्धि हुई है और वायुमंडलीय CO2 अब पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक है।
जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI) रिपोर्ट:
यह एक वार्षिक रिपोर्ट है जो वर्ष 2005 से लगभग 450 जलवायु और ऊर्जा विशेषज्ञों की भागीदारी के साथ तैयार की जाती है, यह प्रत्येक देश के प्रदर्शन का चार श्रेणियों में आकलन करती है:
समग्र रैंकिंग में 40 प्रतिशत के साथ ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन,
20 प्रतिशत के साथ नवीकरणीय ऊर्जा ,
20 प्रतिशत के साथ ऊर्जा उपयोग,
20 प्रतिशत के साथ जलवायु नीति।
उत्सर्जन का अपरिवर्तित होना: उत्सर्जन कम करने की अवधि और प्रगति की तुलना में पिछले वर्षों में वैश्विक प्रदर्शन में शायद ही कोई सुधार हुआ है। एक विश्लेषण से पता चला है कि 64 देशों का मूल्यांकन किया गया, जिनमें से 37 देश पिछले वर्ष के प्रदर्शन की तुलना में अच्छा नहीं कर। जबकि पाँच देशों की स्थिति अपरिवर्तित रही।
पेरिस समझौते के लक्ष्यों का मापक: पेरिस में निर्धारित जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक देश उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा उपयोग के क्षेत्रों में किस हद तक कार्रवाई कर रहा है।
भारत की प्रतिबद्धता: भारत न केवल घरेलू प्रगति पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, बल्कि वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सतत् विश्व के निर्माण हेतु वैश्विक प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है।
भारत की जनसंख्या और नीतिगत आलोचना :
भारत की उच्च जनसंख्या, जो स्वचालित रूप से प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपयोग को कम करती है, इसे जलवायु प्रदर्शन में उच्च स्थान दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
विचार किए गए चार सूचकांकों में से, मूल्यांकन किए गए देशों में भारत GHG उत्सर्जन में 9वें और ऊर्जा उपयोग में 10वें स्थान पर था; दोनों को निम्न प्रति व्यक्ति बेंचमार्क द्वारा प्रेरित किया जा रहा है। जलवायु नीति में भी भारत सूची में शामिल देशों में 10वें स्थान पर था। नवीकरणीय ऊर्जा में, भारत 37वें स्थान पर है, जो ‘उच्च’ प्रदर्शन श्रेणी में नहीं है। पिछले वर्ष के मूल्यांकन में भारत इस श्रेणी में 24वें स्थान पर था।
इस रिपोर्ट में भारत द्वारा कोयले के उपयोग पर सवाल उठाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि भारत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को पूरा करने की कोशिश कर रहा है, जिसमें स्पष्ट दीर्घकालिक नीतियाँ हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करती हैं लेकिन भारत की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को अभी भी कोयला, तेल और गैस पर भारी निर्भरता से पूरा किया जा रहा है।
यह निर्भरता GHG उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है और विशेष रूप से शहरों में गंभीर वायु प्रदूषण का कारण बनती है।” भारत दुनिया के सबसे अधिक वायु प्रदूषित देशों में से एक है।
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