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भारत-इजरायल संबंध

Lokesh Pal November 07, 2025 02:00 6 0

संदर्भ

हाल ही में इजरायली विदेश मंत्री अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर भारत आए। 

  • उल्लेखनीय है कि 03 नवंबर, 2025 को रक्षा सहयोग पर 17वीं भारत-इजरायल संयुक्त कार्य समूह (JWG) बैठक तेल अवीव, इजरायल में आयोजित की गई, जिसकी सह-अध्यक्षता भारत के रक्षा सचिव और इजरायली मंत्रालय के महानिदेशक ने की।

दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की वार्ता

  • आतंकवाद-रोधी सहयोग: भारत और इजरायल वैश्विक आतंकवाद का मुकाबला करने के प्रयासों को तीव्र करने और सभी प्रकार के आतंकवाद के प्रति ‘जीरो-टाॅलरेंस’ दृष्टिकोण को बढ़ावा देने पर सहमत हुए।
  • गाजा शांति योजना पर चर्चा: दोनों पक्षों ने गाजा में चल रहे शांति प्रयासों का समर्थन किया और स्थायी क्षेत्रीय स्थिरता की आवश्यकता पर बल दिया।

  • आर्थिक और तकनीकी संबंधों का विस्तार: इस वार्ता में व्यापार, बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा, अर्द्धचालक और साइबर सुरक्षा में सहयोग शामिल था।
  • संपर्क पहलों के लिए समर्थन: भारत और इजरायल ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) और I2U2 साझेदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC)

  • इसकी औपचारिक घोषणा नई दिल्ली में G-20 शिखर सम्मेलन (सितंबर 2023) के दौरान की गई, जिसका फ्राँस, जर्मनी और इटली सहित प्रमुख साझेदारों ने समर्थन किया, जो नियम-आधारित कनेक्टिविटी नेटवर्क के निर्माण में भारत के नेतृत्व को दर्शाता है।

IMEC की डिजाइन एवं संरचना

  • IMEC की परिकल्पना समुद्री, रेल, डिजिटल और ऊर्जा नेटवर्क को मिलाकर एक बहु-मॉडल संपर्क ढाँचे के रूप में की गई है।
  • पूर्वी गलियारा: भारत के पश्चिमी बंदरगाहों (मुंद्रा, कांडला, JNPT) को संयुक्त अरब अमीरात के बंदरगाहों (फुजैरा, जेबेल अली, अबू धाबी) से जोड़ता है।
  • उत्तरी गलियारा: खाड़ी बंदरगाहों को सऊदी अरब और जॉर्डन होते हुए हाइफा बंदरगाह (इजरायल) से और आगे पिरियस (ग्रीस) और अन्य यूरोपीय गंतव्यों से जोड़ता है।
  • मुख्य घटक
    • हाई स्पीड फ्रेट रेलवे नेटवर्क।
    • हरित हाइड्रोजन और विद्युत पाइपलाइनें।
    • डेटा कनेक्टिविटी के लिए समुद्र के नीचे डिजिटल केबल।
    • उन्नत बंदरगाह और रसद अवसंरचना।

I2U2 समूह

  • I2U2 का अर्थ है:- भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका।
  • इस समूह की संकल्पना पहली बार अक्टूबर 2021 में इजरायल में चारों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान की गई थी।
  • उद्देश्य: ‘पारस्परिक हितों के साझा क्षेत्रों पर चर्चा करना, अपने-अपने क्षेत्रों और उसके बाहर व्यापार तथा निवेश में आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना’।
  • दोनों देशों ने आपसी सहयोग के छह क्षेत्रों (जल, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा) की पहचान की है।

17वीं भारत-इजरायल संयुक्त कार्य समूह (JWG) बैठक – तेल अवीव, इजरायल

रक्षा सहयोग समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर: यह समझौता ज्ञापन रक्षा संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण और नीतिगत दिशा प्रदान करता है।

  • सह-विकास और सह-उत्पादन को बढ़ावा: यह समझौता ज्ञापन उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास और उत्पादन हेतु संयुक्त पहलों को सक्षम बनाता है।
  • सहयोग के विस्तारित क्षेत्र: दोनों पक्ष रणनीतिक वार्ता, रक्षा उद्योग, अनुसंधान एवं विकास, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा और तकनीकी नवाचार में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए।
  • आतंकवाद-विरोध पर ध्यान: संयुक्त कार्य समूह ने आतंकवाद का मुकाबला करने और साझा सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए आपसी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
  • रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ बनाना: इस बैठक ने आपसी विश्वास, साझा हितों और दीर्घकालिक सहयोग पर आधारित भारत-इजरायल रक्षा संबंधों को सुदृढ़ किया।

भारत-इजरायल संबंधों की समयरेखा

  • वर्ष 1947: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के विभाजन का विरोध किया और धार्मिक मानदंडों के आधार पर अलग राष्ट्र बनाने के विचार को अस्वीकार कर दिया।
  • वर्ष 1950: भारत ने आधिकारिक तौर पर इजरायल के अस्तित्व को मान्यता दी।
    • वर्ष 1953: इजरायल ने मुंबई में मुख्यतः व्यापार और वीजा सेवाओं के लिए एक वाणिज्य दूतावास खोला।
  • 1950-1980 के दशक: भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के तहत अरब समर्थक नीति बनाए रखी और फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन किया।
    • शीतयुद्ध की गतिशीलता और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के प्रति प्रतिबद्धता के कारण, इसने पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए।
    • इसके बावजूद, गुप्त तरीके से रक्षा और खुफिया संपर्क धीरे-धीरे विकसित हुए, विशेषकर वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध और वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद।
  • वर्ष 1992: भारत और इजरायल ने पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किए।

डी-हाइफनेशन नीति

भारत ने स्पष्ट रूप से ‘डी-हाइफनेशन’ नीति अपनाई है, जिसमें यह दावा किया गया है कि इजरायल के साथ उसका संबंध फिलिस्तीनियों के साथ उसके ऐतिहासिक संबंधों से स्वतंत्र है।

  • वर्ष 2017: भारतीय प्रधानमंत्री की इजरायल की राजकीय यात्रा के साथ भारत-इजरायल संबंधों में एक बड़ा बदलाव आया और प्रधानमंत्री मोदी ऐसा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने।
  • वर्ष 2018: भारत ने संयुक्त राष्ट्र में तुर्किए और यमन द्वारा प्रस्तुत एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के अमेरिकी निर्णय का विरोध किया गया था।
  • वर्ष 2021: भारत ने गाजा, वेस्ट बैंक और फिलिस्तीन में मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिए एक स्थायी आयोग बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया।

द्विपक्षीय निवेश समझौता (Bilateral Investment Agreement- BIA)

सितंबर 2025 में, भारत सरकार और इजरायल सरकार द्विपक्षीय निवेश समझौते (BIA) पर हस्ताक्षर किया।

  • इजरायल भारत के अद्यतन निवेश-संधि मॉडल को अपनाने वाला पहला OECD (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) देश बन गया है।
  • भारत और इजरायल के बीच द्विपक्षीय निवेश वर्तमान में लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।

यह भारत-इजरायल आर्थिक संबंधों में एक रणनीतिक मील का पत्थर है, जो मुख्य रूप से रक्षा/प्रौद्योगिकी साझेदारी से व्यापक वाणिज्यिक एकीकरण की ओर बढ़ने का संकेत देता है।

भारत-इजरायल संबंध: सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

  • आर्थिक एवं वाणिज्यिक संबंध: द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 1992 में 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर (मुख्य रूप से हीरे) से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 (चरम) में 10.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर (रक्षा को छोड़कर) हो गया।
    • भारत, वस्तु व्यापार के लिए एशिया में इजरायल का दूसरा सबसे बड़ा देश-साझेदार है।
    • प्रमुख निर्यात: मोती और कीमती रत्न, ऑटोमोटिव डीजल, रासायनिक तथा खनिज उत्पाद, मशीनरी एवं विद्युत उपकरण, प्लास्टिक, कपड़ा व परिधान उत्पाद, आधार धातुएँ और परिवहन उपकरण, कृषि उत्पाद।
    • प्रमुख आयात: मोती और कीमती रत्न, रासायनिक और खनिज/उर्वरक उत्पाद, मशीनरी और विद्युत उपकरण, पेट्रोलियम तेल, रक्षा, मशीनरी और परिवहन उपकरण।
  • I2U2 साझेदारी: I2U2 समूह को वर्ष 2021 में गठित किया गया था, इसमें भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका शामिल हैं।
    • इसका उद्देश्य आर्थिक विकास, वैज्ञानिक नवाचार और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है।
  • रक्षा सहयोग: इजरायल भारत के प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है और आतंकवाद-रोधी सहयोग पर भी कार्य करता है।
    • पिछले दस वर्षों में, भारत ने इजरायल से 2.9 बिलियन डॉलर मूल्य के सैन्य उपकरण आयात किए हैं, जिनमें रडार, निगरानी और लड़ाकू ड्रोन, और मिसाइलें शामिल हैं।
  • कृषि सहयोग: वर्ष 1993 में, कृषि में सहयोग पर पहला समझौता हुआ।
    • वर्ष 2006: कृषि पर व्यापक कार्य योजना (3-वर्षीय चक्र) शुरू की गई, जिसका कार्यान्वयन MASHAV (इजरायल की अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी) के माध्यम से किया जाता है।

कृषि सहयोग समझौते और बागवानी क्षेत्र में कार्य योजना के फोकस क्षेत्र

  • खाद्य सुरक्षा, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और गुणवत्तापूर्ण बीज विकास पर सहयोग।
  • उत्कृष्टता केंद्रों (CoE) का विस्तार और उत्कृष्टता ग्राम (VoE) मॉडल का कार्यान्वयन।
  • उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए प्रस्तावित पंचवर्षीय बीज सुधार योजना (FYSIP) का शुभारंभ किया गया।
  • कीट प्रबंधन, क्षमता निर्माण और फसल कटाई-पश्चात् कृषि प्रौद्योगिकियों पर सहयोग करना।
  • रणनीतिक दृष्टि: दोनों पक्षों ने जलवायु चुनौतियों के बीच कृषि लचीलेपन के लिए नवाचार और अनुसंधान एवं विकास का लाभ उठाने के साझा लक्ष्य की पुष्टि की।
    • इजरायल ने कृषक सशक्तीकरण के लिए भारत के डिजिटल कृषि मिशन में गहरी रुचि दिखाई है।
  • संस्थागत तंत्र: निरंतर संवाद, लक्ष्य निर्धारण और प्रगति की निगरानी सुनिश्चित करने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह (JWG) की स्थापना।

    • वर्ष 2025: मृदा एवं जल प्रबंधन, बागवानी एवं कृषि उत्पादन, फसल कटाई उपरांत एवं प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी, कृषि यंत्रीकरण, पशुपालन और अनुसंधान एवं विकास जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए बागवानी क्षेत्र में एक नए कृषि सहयोग समझौते और कार्य योजना पर हस्ताक्षर किए गए।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (S&T) में भारत-इजरायल सहयोग की देख-रेख विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर संयुक्त समिति द्वारा की जाती है, जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में हस्ताक्षरित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते के तहत की गई थी।
    • I4F कोष भारत और इजरायल के बीच औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देता है।
    • 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारत-इजरायल औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी नवाचार कोष (I4F) वर्ष 2017 में दोनों देशों की कंपनियों के बीच संयुक्त औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था।
  • ऊर्जा: भारत इजरायल के तामार और लेवियंथन गैस क्षेत्रों में अन्वेषण लाइसेंस के लिए सक्रिय रूप से बोली लगा रहा है। भारतीय कंपनियों ONGC विदेश और इंडियन ऑयल को अन्वेषण लाइसेंस प्रदान किए गए हैं।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: लगभग 85,000 भारतीय मूल के यहूदी इजरायल में रहते हैं, जो सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देते हैं। शैक्षणिक सहयोग और संयुक्त अनुसंधान वित्तपोषण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।

भारत-इजरायल संबंधों में चुनौतियाँ

  • ईरान के साथ संबंध: इजरायल, ईरान को एक खतरा मानता है, जबकि भारत ऊर्जा आपूर्ति और चाबहार बंदरगाह मार्ग के लिए ईरान के साथ सहयोग को महत्त्व देता है।
    • क्षेत्रीय अस्थिरता, विशेष रूप से इजरायल-हमास संघर्ष (2023-25), भारत को सतर्क कूटनीतिक रुख अपनाने और प्रत्यक्ष सैन्य समर्थन से बचने के लिए बाध्य करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: इजरायल और ईरान के बीच संघर्ष भारत के ऊर्जा आयात तथा क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं, जिनमें चाबहार बंदरगाह और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) शामिल हैं, के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न करता है।
    • फारस की खाड़ी या लाल सागर में अवरोध भारत के तेल आपूर्ति मार्गों और रणनीतिक समुद्री हितों को सीधे प्रभावित कर सकता है।
  • अरब जगत के साथ संबंधों में संतुलन: भारत की पश्चिम एशिया नीति को इजरायल और ईरान तथा फिलिस्तीन सहित अरब देशों के बीच संबंधों में संतुलन स्थापित करना होगा।
    • भारत फिलिस्तीनी हितों का समर्थन करता है और खाड़ी देशों के साथ उसके गहरे ऊर्जा, व्यापार तथा प्रवासी हित हैं।
    • इजरायल के साथ किसी भी तरह का खुला गठबंधन (जैसे- गाजा संघर्ष के दौरान) भारत के तेल, प्रेषण और श्रम बाजार के लिए महत्त्वपूर्ण अरब भागीदारों के साथ राजनयिक टकराव का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • चीन एक कारक के रूप में: चीन, एशिया में इजरायल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो इजरायल के साथ बीजिंग के मजबूत तकनीकी और निवेश संबंधों के कारण भारत-इजरायल संबंधों को जटिल बना रहा है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में देरी: मजबूत व्यापार के बावजूद, दोनों देशों के बीच अभी तक कोई FTA नहीं हुआ है।
    • यह रक्षा और हीरों से परे निवेश विविधीकरण की संभावना को सीमित करता है।
  • सुरक्षा और साइबर चिंताएँ: पेगासस स्पाइवेयर विवाद (2021) और संदिग्ध साइबर जासूसी जैसी घटनाएँ विश्वास तथा गोपनीयता के मुद्दे उठाती हैं।

आगे की राह  

  • रणनीतिक अभिसरण को गहरा करना: 17वें संयुक्त कार्य समूह की गति को क्रेता-विक्रेता रक्षा संबंधों से आगे बढ़कर सह-विकास और संयुक्त उत्पादन की ओर बढ़ना, जिससे आत्मनिर्भर भारत के तहत वास्तविक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुनिश्चित हो।
  • राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देना: भारत को इजरायल और अरब देशों, दोनों के साथ व्यवहार में लचीलापन बनाए रखते हुए मध्य पूर्व में अपने हितों को संतुलित करना होगा।
  • व्यापक सहयोग: सरकारी, व्यावसायिक और अंतर-व्यावसायिक स्तरों पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना।
  • आतंकवाद-रोधी और साइबर ढाँचों को मजबूत करना: आतंकवाद और डेटा संबंधी खतरों का मुकाबला करने के लिए संयुक्त खुफिया जानकारी साझाकरण और साइबर-सुरक्षा प्रोटोकॉल को संस्थागत बनाना, जिससे पारदर्शिता और विश्वास सुनिश्चित हो सके।
  • लोगों-से-लोगों (P2P) के बीच संपर्क बढ़ाना: नागरिकों के बीच आपसी सहभागिता में वृद्धि द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर सकती है।
  • व्यापार मात्रा का विस्तार करना: आपसी संबंधों के विकसित होने के बावजूद, व्यापार अभी भी क्षमता से कम है। व्यापार क्षेत्र का विस्तार करने के लिए एक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए।
  • इजरायल-फिलिस्तीन संबंधों में संतुलन: भारत को भू-रणनीतिक और नैतिक दृष्टिकोण से इजरायल और फिलिस्तीन के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाना चाहिए।
  • लोगों के बीच आपसी और शैक्षणिक संबंधों को मजबूत करना: सुरक्षा क्षेत्रों से परे एक स्थायी ज्ञान साझेदारी बनाने के लिए विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और स्टार्ट-अप्स के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • बहुपक्षीय मंचों का उपयोग: पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय संपर्क, लचीली आपूर्ति शृंखलाओं और साझा नवाचार को बढ़ावा देने के लिए I2U2 और IMEC ढाँचों का उपयोग करना।

निष्कर्ष

भारत-इजरायल संबंध रक्षा, प्रौद्योगिकी और नवाचार पर आधारित एक बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी के रूप में विकसित हुए हैं, जो गहरे पारस्परिक विश्वास और साझा हितों को दर्शाता है। आगे बढ़ते हुए, एक संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण दोनों देशों को क्षेत्रीय स्थिरता और भारत के व्यापक पश्चिम एशियाई हितों की रक्षा करते हुए सहयोग का विस्तार करने में सक्षम बनाएगा।

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