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भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन 2025

Lokesh Pal August 28, 2025 03:05 6 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा (29-30 अगस्त, 2025) 15वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन (15th India–Japan Annual Summit) का प्रतीक है, जिसमें सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, ऊर्जा और डिजिटल सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

चर्चा के प्रमुख क्षेत्र

  • सुरक्षा सहयोग का उन्नयन: भारत और जापान सुरक्षा सहयोग पर वर्ष 2008 के संयुक्त घोषणा-पत्र में संशोधन करने की योजना बना रहे हैं।
    • यह परिवर्तित क्षेत्रीय वास्तविकताओं को दर्शाता है, जिसमें रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, समुद्री सुरक्षा और हिंद-प्रशांत स्थिरता पर जोर दिया गया है।

  • आर्थिक सुरक्षा पहल: सेमीकंडक्टर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, दूरसंचार, महत्त्वपूर्ण खनिजों और स्वच्छ ऊर्जा को शामिल करते हुए एक नई पहल का शुभारंभ किया जाएगा।
    • जापान के सेमीकंडक्टर केंद्र सेंडाई का दौरा, प्रौद्योगिकी-संचालित विकास और मजबूत आपूर्ति शृंखलाओं पर बल देता है।
  • भारत में जापानी निवेश में वृद्धि
    • मूल लक्ष्य: 5 ट्रिलियन जापानी येन (लगभग 34 बिलियन डॉलर) का निवेश (वर्ष 2026 तक) वर्ष 2025 में ही प्राप्त हो चुका है।
    • नया लक्ष्य: अगले दशक में 7-10 ट्रिलियन जापानी येन (लगभग 68 बिलियन डॉलर)।
    • केंद्रित क्षेत्र: बुनियादी ढाँचा, विनिर्माण, गतिशीलता और हरित ऊर्जा।
  • नवीन साझेदारियाँ: डिजिटल, ऊर्जा और गतिशीलता।
    • डिजिटल साझेदारी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अर्द्ध-चालक और सार्वजनिक डिजिटल अवसंरचना को बढ़ावा देना।
    • ऊर्जा साझेदारी: हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था और नवीकरणीय परियोजनाओं को बढ़ावा देना।
    • गतिशीलता साझेदारी: रेलवे, सड़कें, पुल और बुलेट ट्रेन परियोजनाओं का विस्तार करना।
  • ‘जन-से-जन’ का संबंध: भारतीय कुशल युवा गतिशीलता और प्रशिक्षण पहलों के माध्यम से जापान की वृद्ध होती आबादी की समस्या का समाधान।
  • स्थानीय शासन विनिमय: जापानी प्रांतों और भारतीय राज्यों/नगरपालिकाओं के मध्य सहभागिता को बढ़ावा देना।

भारत और जापान के लिए वर्तमान चुनौतियाँ

  • हिंद-प्रशांत सुरक्षा चिंताएँ: चीन की समुद्री आक्रामकता और पूर्वी तथा दक्षिण चीन सागर में बढ़ती उपस्थिति दोनों देशों के लिए चुनौती उत्पन्न कर रही है।
    • दोनों देश ‘मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत’ (Free and Open Indo-Pacific- FOIP) सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
  • ट्रंप 2.0 के तहत अमेरिकी रणनीतिक अनिश्चितता: अमेरिकी प्रशासन की टैरिफ नीतियाँ और आकस्मिक संलग्नता संदेह पैदा करती हैं।
    • ट्रंप की अनिश्चितता क्वाड की सुसंगतता को कमजोर करती है, जिससे भारत-जापान सुरक्षा योजना प्रभावित होती है।
  • भारत-चीन संबंधों का प्रबंधन: गलवान संघर्ष (2020) के बाद, वीजा प्रतिबंधों में ढील के साथ तनाव में अस्थायी कमी देखी गई है।
    • फिर भी, विश्वास की कमी बनी हुई है; जापान यात्रा मोदी की तियानजिन में SCO शिखर सम्मेलन की यात्रा से पहले हो रही है, जो संतुलन का संकेत देती है।
  • आपूर्ति शृंखला व्यवधान: महत्त्वपूर्ण खनिजों और अर्द्धचालकों के लिए चीन पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर वैश्विक चिंताएँ उभर कर सामने आ रही हैं।
    • भारत-जापान साझेदारी का उद्देश्य आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाना और उन्हें सुरक्षित बनाना है।
  • जनसांख्यिकीय और आर्थिक दबाव: जापान वृद्ध कार्यबल का सामना कर रहा है; भारत को अपनी युवा आबादी के लिए रोजगार सृजित करने होंगे।
    • प्रवासन, कौशल विकास और सामाजिक सुरक्षा संवाद के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं।

वार्ता के निहितार्थ

  • रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना: वर्ष 2008 के सुरक्षा समझौते में संशोधन से रक्षा संबंधों का आधुनिकीकरण होगा।
    • गहन नौसैनिक अभ्यास, प्रौद्योगिकी सह-विकास और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के खतरों पर खुफिया जानकारी साझा करने की संभावना जताई गई है।
  • भारत के प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के आधार को मजबूत करना: सेमीकंडक्टर, शिंकानसेन ट्रेनों और स्वच्छ ऊर्जा में जापानी निवेश भारत के तकनीकी और बुनियादी ढाँचे के परिदृश्य का विस्तार करता है।
    • उदाहरण: मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर के लिए E10 शृंखला शिंकानसेन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को दर्शाती है।
  • चीन और अमेरिका के साथ रणनीतिक संतुलन: चीन से पहले जापान के साथ वार्ता करके, भारत रणनीतिक स्वायत्तता का संकेत देता है।
    • जापान और चीन के साथ साझेदारी को संतुलित करना भारत की बहुध्रुवीय कूटनीति को दर्शाता है।
  • आर्थिक विकास और रोजगार सृजन: 10 ट्रिलियन जापानी येन के निवेश का वादा भारत के बुनियादी ढाँचे, डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था क्षेत्रों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।
    • जापान में बढ़ती आयु के साथ श्रम की कमी को दूर करते हुए भारत के युवाओं के लिए रोजगार सृजन की संभावना जताई है।
  • हिंद-प्रशांत स्थिरता और नियम-आधारित व्यवस्था: भारत-जापान गठबंधन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संरक्षणवाद का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय ढाँचे को मजबूत करता है।
    • अमेरिका की विश्वसनीयता पर उठते प्रश्नों के बावजूद, यह क्वाड ढाँचे के अंतर्गत साझेदारी को मजबूत करता है।

भारत-जापान संबंध

भारत और जापान के मध्य विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी है, जो सभ्यतागत संबंधों पर आधारित है तथा आर्थिक सहयोग, सुरक्षा वार्ता और लोगों के बीच आदान-प्रदान के माध्यम से और भी गहरी हुई है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान (छठी शताब्दी): भारत से जापान में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जिसने जापानी आध्यात्मिकता, कला और दर्शन को आकार दिया।
  • युद्धोत्तर संबंध: वर्ष 1949 में, प्रधानमंत्री नेहरू ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सद्भावना के प्रतीक के रूप में टोक्यो के उएनो चिड़ियाघर को एक हाथी भेंट किया।
  • राजनयिक संबंध (1952): 28 अप्रैल, 1952 को हस्ताक्षरित एक शांति संधि से भारत जापान के साथ संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक बना।
  • आर्थिक सुधार की भूमिका: भारतीय लौह अयस्क निर्यात ने जापान के युद्धोत्तर औद्योगिक पुनरुद्धार में सहायता की; जापान ने वर्ष 1958 में भारत को अपना पहला जापानी येन ऋण दिया।

रक्षा और सामरिक संबंध

रणनीतिक समझौते

  • सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा (Joint Declaration on Security Cooperation) (2008): यह घोषणा द्विपक्षीय रक्षा संबंधों का आधार है।
  • अधिग्रहण और ‘क्रॉस-सर्विसिंग’ समझौता (Acquisition and Cross-Servicing Agreement) (वर्ष 2020, प्रभावी 2021): सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति/सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान को सक्षम बनाया।
  • रक्षा उपकरण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता (Transfer of Defence Equipment & Technology Agreement) (2015): संयुक्त परियोजनाओं और रक्षा प्रौद्योगिकी साझाकरण को सुगम बनाया।

रक्षा वार्ता और अभ्यास (Defence Dialogues and Exercises)

  • 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता: वर्ष 2022 में टोक्यो में दूसरी बैठक आयोजित की गई।
    • यह दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की भागीदारी वाली एक उच्च-स्तरीय राजनयिक वार्ता है।
  • वार्षिक रक्षा मंत्रिस्तरीय वार्ता और तटरक्षक बल सहयोग को बढ़ावा  देना।
  • द्विपक्षीय अभ्यास: JIMEX (नौसेना), ‘वीर गार्जियन’ और शिन्यू मैत्री (वायुसेना) तथा धर्म गार्जियन (थल सेना)
  • मालाबार नौसैनिक अभ्यास: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ आयोजित, हिंद-प्रशांत समुद्री सुरक्षा को मजबूत करता है।

आर्थिक संबंध

व्यापार और निवेश

  • व्यापार वृद्धि: द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2015 में 1.57 ट्रिलियन जापानी येन (10.5 बिलियन डॉलर) से बढ़कर वर्ष 2024 में 3.7 ट्रिलियन (24.8 बिलियन डॉलर) से अधिक हो गया।
  • व्यापार संतुलन: जापान भारत को आयात से अधिक निर्यात करता है; वर्ष 2024 में, भारत का निर्यात 1,059 बिलियन जापानी येन (~7.1 बिलियन डॉलर) रहा, जबकि जापान का 2,651 बिलियन जापानी येन (~17.8 बिलियन डॉलर) रहा।
  • निवेश: जापान भारत के शीर्ष 5 निवेशकों में से एक है; वर्ष 2023 में प्रत्यक्ष निवेश 1,137 बिलियन जापानी येन (~7.6 बिलियन डॉलर) के शिखर पर पहुँच गया।

आर्थिक सहायता

  • जापान, भारत को सर्वाधिक आधिकारिक विकास सहायता (ODA) प्रदान करता है।
    • दिल्ली मेट्रो, भारत को जापान की ODA की एक प्रमुख सफलता की कहानी है।
  • यह सहयोग हाई-स्पीड रेल (मुंबई-अहमदाबाद शिंकानसेन), स्वच्छ ऊर्जा और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण तक विस्तृत है।

जन-से-जन के बीच संबंध

  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: वर्ष 2012 राजनयिक संबंधों की 60वीं वर्षगाँठ थी; वर्ष 2017 को “मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान का वर्ष”  (Year of Friendly Exchanges) घोषित किया गया।
  • निवासी समुदाय: वर्ष 2024 तक, लगभग 8,102 जापानी भारत में और 53,974 भारतीय जापान में रह रहे थे।
  • कौशल एवं युवा आदान-प्रदान: जापान की वृद्ध होती जनसंख्या और भारत में युवा रोजगार की चुनौती से निपटने के लिए सहयोग करना।

भारत और जापान के बीच महत्त्वपूर्ण समझौते

वर्ष  समझौता उद्देश्य
वर्ष 1952 शांति संधि (Treaty of Peace) युद्धोत्तर राजनयिक संबंध स्थापित किए गए।
वर्ष 1957 सांस्कृतिक समझौता सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।
वर्ष 1985 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग उन्नत संयुक्त अनुसंधान और प्रौद्योगिकी सहयोग।
वर्ष 2011 व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) विस्तारित व्यापार, निवेश और सेवाएँ।
वर्ष 2015 रक्षा उपकरण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता रक्षा सह-उत्पादन और संयुक्त अनुसंधान एवं विकास को सक्षम बनाया।
वर्ष 2017 परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौता जापान को शांतिपूर्ण उपयोग के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी की आपूर्ति की अनुमति दी गई।

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निष्कर्ष

वर्ष 2025 का भारत-जापान शिखर सम्मेलन रणनीतिक, आर्थिक और तकनीकी रूप से सशक्त होते संबंधों की दिशा में एक निर्णायक परिवर्तन का प्रतीक है। अमेरिका की अनिश्चितता से लेकर चीन की हठधर्मिता तक, चुनौतियाँ बनी हुई हैं, लेकिन जापान, एशिया में भारत का सबसे स्थायी और दीर्घकालिक साझेदार बनकर उभर रहा है। यह शिखर सम्मेलन, ऐतिहासिक साझेदारी को मजबूती देने के साथ-साथ रक्षा, डिजिटल, ऊर्जा और जन-से-जन संबंधों के क्षेत्रों में भविष्य के सहयोग की नींव रखता है, जिससे अनिश्चित वैश्विक परिदृश्य में भारत-जापान संबंध स्थिरता का आधार बने रहते हैं

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