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भारत-जापान समुद्री संबंध

Lokesh Pal June 04, 2025 03:02 79 0

संदर्भ

हाल ही में भारत और जापान ने अपने समुद्री संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ किया है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सतत् विकास, क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक एकीकरण के लिए साझा दृष्टिकोण को दर्शाता है।

  • भारत और जापान के मध्य दीर्घकालिक साझेदारी है, जो सांस्कृतिक आत्मीयता, रणनीतिक विश्वास और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है।

सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

  1. पोत निर्माण और समुद्री उद्योग सहयोग
    • पोत निर्माण और मरम्मत में जापान की प्रसिद्ध विशेषज्ञता, जिसका प्रतिनिधित्व इमाबारी शिप बिल्डिंग, जेएमयूसी, कनागावा डॉकयार्ड और मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियाँ करती हैं, भारतीय शिपयार्ड के साथ साझेदारी करने के लिए तैयार है।
    • आंध्र प्रदेश जैसे भारतीय राज्यों में संयुक्त उद्यमों और ग्रीनफील्ड निवेश की खोज।
    • पर्यावरण की दृष्टि से सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए समुद्री औद्योगिक समूहों के भीतर स्वच्छ ऊर्जा केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
  2. बंदरगाह डिजिटलीकरण और हरित बंदरगाह पहल: डिजिटल प्रौद्योगिकियों के माध्यम से भारतीय बंदरगाहों के आधुनिकीकरण के लिए सहयोगात्मक प्रयास करना, ताकि परिचालन दक्षता और लचीलापन बढ़ाया जा सके।
    • कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए वैश्विक पर्यावरण मानकों के अनुरूप हरित बंदरगाहों का विकास करने के उद्देश्य से पहल करना।
  3. स्मार्ट द्वीपों का विकास: द्वीपीय अवसंरचना में जापान की विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए भारत के अंडमान एवं निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीपों को स्मार्ट द्वीपों में बदलने के लिए संयुक्त प्रयास।
    • सतत् विकास और पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट मोबिलिटी सिस्टम और डिजिटल अवसंरचना की तैनाती।
  4. समुद्री प्रशिक्षण और मानव संसाधन कौशल विकास: जापान की समुद्री कार्यबल माँगों को पूरा करने के लिए भारतीय नाविकों को प्रशिक्षण और कौशल विकास में सहयोग।
    • जापान के उन्नत समुद्री ज्ञान के आधार पर भारतीय इंजीनियरों और श्रमिकों के कौशल को बढ़ाने के लिए संभावित संरचित कार्यक्रम।
  5. अनुसंधान और विकास (Research and Development- R&D): सतत् समुद्री प्रौद्योगिकियों और अगली पीढ़ी के पोत डिजाइन में शोध एवं अनुसंधान सहयोग को मजबूत करना।
    • भारतीय विश्वविद्यालयों, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड और सार्वजनिक एजेंसियों के साथ संयुक्त अनुसंधान के अवसरों की खोज करना।
  6. सांस्कृतिक और विरासत सहयोग: गुजरात के लोथल में भारत की राष्ट्रीय समुद्री विरासत संग्रहालय परियोजना में जापान की संभावित भागीदारी, जो भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास और विरासत को प्रदर्शित करती है।
  7. सामरिक समुद्री सुरक्षा सहयोग: क्वाड फ्रेमवर्क और भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया ‘सप्लाई चेन रिजिलिएंस इनिशिएटिव’ (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) के तहत क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना।
    • भारत-प्रशांत क्षेत्र में आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे और बढ़ी हुई कनेक्टिविटी के लिए साझा प्रतिबद्धता।

भारत-जापान समुद्री सहयोग का महत्त्व

  1. क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता में वृद्धि: भारत और जापान का सहयोग हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन को मजबूत करता है, जो वैश्विक व्यापार और सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
    • समुद्री सुरक्षा साझेदारी के माध्यम से, वे उभरती भू-राजनीतिक चुनौतियों का प्रतिकार करने के लिए एक स्वतंत्र, खुली और नियम आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देते हैं।
  2. सतत् आर्थिक विकास: बंदरगाह आधुनिकीकरण, हरित नौवहन और स्मार्ट द्वीप विकास में संयुक्त प्रयास पर्यावरणीय चिंताओं को संबोधित करते हुए सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं।
    • यह भारत के ‘समुद्री भारत विजन 2030’ और ‘समुद्री अमृत काल विजन 2047’ के अनुरूप है।
  3. तकनीकी और औद्योगिक उन्नति: पोत निर्माण और समुद्री अवसंरचना में जापानी तकनीकी विशेषज्ञता के समावेश से भारत के समुद्री क्षेत्र के आधुनिकीकरण में तेजी आएगी, जिससे नवाचार और हरित प्रौद्योगिकी अपनाने को बढ़ावा मिलेगा।
  4. रोजगार सृजन और मानव पूँजी विकास: जापान में भारतीय नाविकों को कौशल प्रदान करने और रोजगार, कौशल वृद्धि और ज्ञान हस्तांतरण के नए मार्ग खुलेंगे, जिससे भारत के विशाल समुद्री कार्यबल को लाभ होगा।
  5. द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाना: समुद्री सहयोग व्यापक भारत-जापान रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करता है, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक अंतरनिर्भरता पर आधारित है।
    • यह पारंपरिक राजनयिक संबंधों से परे दीर्घकालिक सहयोग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण है।
  6. सतत् समुद्री पहल में वैश्विक नेतृत्व: अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA), आपदा रोधी अवसंरचना के लिए गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI), और उद्योग परिवर्तन के लिए नेतृत्व समूह (Leadership Group for Industry Transition- LeadIT) जैसी वैश्विक पहलों में दोनों देशों की नेतृत्वकारी भूमिकाएँ स्थिरता के प्रति उनकी संयुक्त प्रतिबद्धता को उजागर करती हैं।

निष्कर्ष

भारत-जापान समुद्री संबंधों का गहरा होना उनकी उभरती हुई साझेदारी का प्रमाण है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देना है। यह सहयोग न केवल भारत और जापान को लाभ पहुँचाता है बल्कि वैश्विक समुद्री शासन और सतत् विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

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