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भारत द्वारा COP-30 में ऊर्जा दक्षता लक्ष्य बढ़ाने की संभावना

Lokesh Pal September 25, 2025 04:20 22 0

संदर्भ

भारत COP-30 (बेलिम, ब्राजील, नवंबर 2025) में अपने अद्यतित ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contributions- NDC) को प्रस्तुत कर सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के बारे में

  • परिभाषा: NDC, पेरिस समझौते (वर्ष 2015) के तहत देशों द्वारा निर्धारित ऐसे लक्ष्य हैं, जिनका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को नियंत्रित करना है, ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम और यथासंभव 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जा सके, जो औद्योगिक युग से पूर्व के स्तर से कम है।
  • अद्यतित नियम: देशों को प्रत्येक पाँच वर्ष में अपने NDC को अपडेट करना होता है।

GDP का उत्सर्जन स्तर

  • GDP की उत्सर्जन तीव्रता का अर्थ है-आर्थिक उत्पादन की प्रति यूनिट में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा।
  • इसका अर्थ यह नहीं है कि ग्रीनहाउस गैसों के कुल उत्सर्जन में कमी आई है।

भारत और NDC

  • भारत की प्रतिबद्धता: यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज  (UNFCCC) और पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश के रूप में, भारत ने वर्ष 2015 में अपना पहला NDC और वर्ष 2022 में अद्यतित NDC प्रस्तुत किया।
  • पंचामृत: COP26 (ग्लासगो, यू.के.) में, भारत ने अपनी जलवायु कार्रवाई को और मजबूत करने के लिए पाँच मुख्य तत्त्वों, पंचामृत की घोषणा की। ये भारत के अद्यतित NDC का आधार हैं।
    • वर्ष 2030 तक 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता।
    • वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा आवश्यकता का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना।
    • वर्ष 2030 तक GDP में उत्सर्जन दर में 45% की कमी (वर्ष 2005 के स्तर से)।
    • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 अरब टन की कमी।
    • वर्ष 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन।
      • भारत का NDC किसी भी क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन में कमी के दायित्व या कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं करता है।
  • भारत का नवीनतम अपडेट (वर्ष 2022)
    • वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से होने वाले उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर से 45% कम करना।
    • वर्ष 2030 तक कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का 50% हिस्सा जीवाश्म ईंधन के स्थान पर गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना।
    • वर्ष 2030 तक वृक्षारोपण और पुन: वृक्षारोपण के माध्यम से 2-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कार्बन सिंक निर्मित करना।
  • अब तक की प्रगति
    • वर्ष 2005 से वर्ष 2019 के मध्य, भारत ने GDP से होने वाले उत्सर्जन को 33% तक कम कर दिया।
    • जून 2025 तक, भारत की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का 50% हिस्सा पहले ही  गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त हो रहा था, जो निर्धारित लक्ष्य से 5 वर्ष पहले ही हासिल हो गया।

भारत का अपेक्षित NDC 3.0 (वर्ष 2035 के लिए)

  • तीसरे NDC अद्यतन (NDC 3.0) में वर्ष 2035 तक के लिए की गई प्रतिबद्धताओं को शामिल किया जा सकता है।
  • संभावित विशेषताएँ
    • ऊर्जा दक्षता पर अधिक ध्यान देना, जिसमें उद्योग, परिवहन, उपकरण और इमारतों के संबंध में कठोर मानक शामिल हैं।
    • परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (PAT) योजना का विस्तार, जो उद्योगों को ऊर्जा-दक्ष तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
    • वर्ष 2026 तक इंडिया कार्बन मार्केट को लागू करना, जो 13 क्षेत्रों में अनिवार्य उत्सर्जन-तीव्रता लक्ष्य निर्धारित करेगा और उत्सर्जन में कमी संबंधी प्रमाण-पत्र का व्यापार करने की अनुमति देगा।
    • सतत् खपत और माँग में कमी को बढ़ावा देने के लिए मिशन LiFE (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) का एकीकरण।

वैश्विक संदर्भ

  • यूरोपीय संघ (EU): वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2035 तक उत्सर्जन में 66-72% कमी का प्रस्ताव रखा, हालाँकि फ्राँस और जर्मनी के विरोध के कारण यह निर्णय टाल दिया गया।
  • ऑस्ट्रेलिया: वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2035 तक उत्सर्जन में 62-70% की कमी का लक्ष्य रखने की घोषणा की।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: पेरिस समझौते से हटने के कारण इसका दृष्टिकोण अभी भी अनिश्चित है।
  • चीन: उसने अभी तक वर्ष 2035 के लिए अपने लक्ष्य की घोषणा नहीं की है।
    • इन लक्ष्यों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगर सभी मौजूदा NDCs पूरी तरह से प्राप्त भी हो जाते हैं, तो भी वर्ष 2100 तक विश्व में लगभग 3°C तापमान वृद्धि होने की संभावना है।
  • फाइनेंस और द्विपक्षीय तंत्र: भारत ने स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने और कार्बन क्रेडिट साझा करने के लिए जापान के साथ जॉइंट क्रेडिटिंग मैकेनिज्म (Joint Crediting Mechanism- JCM) पर हस्ताक्षर किए हैं।
    • अन्य देशों के साथ भी इसी तरह के समझौतों पर चर्चा चल रही है। चुनौतियाँ बनी हुई हैं क्योंकि विकसित देश पर्याप्त जलवायु वित्त उपलब्ध नहीं करा रहे हैं, जबकि भारत जैसे विकासशील देश, विकास परियोजनाओं के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं।

ऊर्जा दक्षता लक्ष्य को बढ़ाने का महत्त्व

  • लागत-प्रभावी उत्सर्जन में कमी: ऊर्जा दक्षता के उपाय नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की तुलना में प्रायः कम खर्चीले होते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: अधिक दक्षता से भारत की जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता कम होती है।
  • आर्थिक लाभ: ऊर्जा दक्षता से बिजली बिल कम होते हैं, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) की प्रतिस्पर्द्धा क्षमता बढ़ती है और यह घरों के लिए वहनीय होती है।
  • जलवायु कूटनीति: लक्ष्य बढ़ाने से COP30 में आयोजित होने वाली अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता में भारत की नेतृत्व क्षमता मजबूत होगी।

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