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भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल कर लिया

Lokesh Pal June 02, 2025 03:20 24 0

संदर्भ

महालेखा नियंत्रक (Controller General of Accounts- CGA) द्वारा जारी अनंतिम आँकड़ों के अनुसार, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 4.8% के अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सफलतापूर्वक पूरा किया।

संबंधित तथ्य

  • राजकोषीय घाटा लक्ष्य के अनुरूप: राजकोषीय घाटा 15.77 लाख करोड़ रुपये रहा, जो सकल घरेलू उत्पाद के 4.8% के बराबर है।
    • यह मामूली राजस्व कमी के बावजूद संशोधित अनुमानों में निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप है।

वर्ष 2024-25 में सरकारी वित्त

  • कुल प्राप्तियाँ: केंद्र का कुल राजस्व (कर, गैर-कर और पूँजीगत प्राप्तियाँ) 30.78 लाख करोड़ रुपये रहा।
    • यह संशोधित अनुमान का 97.8% है, जो मामूली कमी दर्शाता है।

  • कुल व्यय: सरकार ने ₹46.55 लाख करोड़ खर्च किए, जो संशोधित अनुमान का 97.8% है।
    • पूँजीगत व्यय: ₹10.52 लाख करोड़ (लक्ष्य का 103.3%), परिसंपत्ति निर्माण में मजबूत निवेश को दर्शाता है।
    • राजस्व व्यय: ₹36.03 लाख करोड़ (अनुमान से 2.5% कम), इसमें वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी शामिल हैं।

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य

  • चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 4.4% के बराबर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य।
  • यह सरकार के चालू राजकोषीय समेकन मार्ग का हिस्सा है।

राजकोषीय घाटा

  • राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष के दौरान उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियों पर कुल व्यय की अधिकता के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
    • यह ब्याज भुगतान सहित व्यय के वित्तपोषण के लिए सरकार की उधार आवश्यकताओं को दर्शाता है।
  • सूत्र
    • राजकोषीय घाटा = (राजस्व व्यय + पूँजीगत व्यय) – (राजस्व प्राप्तियाँ + उधार को छोड़कर पूँजीगत प्राप्तियाँ)
  • भावी देयताओं का सूचक: यह ब्याज भुगतान और ऋण चुकौती पर सरकार की भावी देयताओं में वृद्धि का सूचक है।

उच्च राजकोषीय घाटे के निहितार्थ

  • मुद्रास्फीति का दबाव: सरकारें, केंद्रीय बैंक से उधार लेकर घाटे का वित्तपोषण कर सकती हैं, जिससे मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है।
    • इससे माँग आधारित मुद्रास्फीति सृजित हो सकती है, विशेषतः अगर अर्थव्यवस्था पूर्ण क्षमता के करीब हो।
  • उच्च ब्याज दरें (क्राउडिंग आउट प्रभाव): सरकारी उधार वित्तीय बाजार में धन के लिए निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्द्धा करता है।
    • इससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, निजी निवेश हतोत्साहित हो सकता है और आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
  • ऋण का बोझ: निरंतर राजकोषीय घाटे से सार्वजनिक ऋण का संचय होता है।
    • इस ऋण (ब्याज भुगतान) की सेवा करने में भविष्य के बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है, जिससे उत्पादक खर्च के लिए राजकोषीय स्थान कम हो जाता है।
  • मुद्रा अवमूल्यन: उच्च राजकोषीय घाटे से आर्थिक स्थिरता के संबंध में चिंताएँ पैदा हो सकती हैं।
    • इससे विदेशी निवेशक बाहर निकल सकते हैं, जिससे मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है तथा आयात महंगा होने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
  • आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना (कीनेसियन दृष्टिकोण): मंदी के दौरान, राजकोषीय घाटा प्रति-चक्रीय हो सकता है, जिससे सरकारी खर्च के माध्यम से माँग को बढ़ावा मिलता है।
    • इससे आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने, रोजगार सृजित करने और आय बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के सामान्य तरीके

  • घरेलू स्रोतों से उधार लेना
    • बाजार उधार: सरकारी बॉण्ड, ट्रेजरी बिल जारी करना।
    • बैंक और वित्तीय संस्थान: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों या विकास बैंकों से ऋण।
  • बाहरी स्रोतों से उधार लेना
    • बहुपक्षीय और द्विपक्षीय एजेंसियाँ: विश्व बैंक, IMF, एशियाई विकास बैंक।
    • विदेशी सरकारें और बाजार: सॉवरेन बॉण्ड या ऋण।
  • घाटे का मुद्रीकरण
    • केंद्रीय बैंक से उधार लेना: भारतीय रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदने के लिए धन का मुद्रण करता है।
    • इससे मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है और मुद्रास्फीति हो सकती है।
  • लघु बचत और सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF): सरकार राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र जैसी योजनाओं के माध्यम से नागरिकों की बचत से उधार लेती है।

राजकोषीय समेकन का महत्त्व

  • सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करना: राजकोषीय घाटे-से-जीडीपी अनुपात को धीरे-धीरे कम करने से आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि सार्वजनिक वित्त सतत् बना रहे।
    • यह अत्यधिक उधार लेने और ऋण संचय को रोकता है, जो भविष्य की आर्थिक स्थिति को खतरे में डाल सकता है।
  • विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों को लागू करना: प्रभावी राजकोषीय प्रबंधन में व्यय को युक्तिसंगत बनाना, राजस्व वृद्धि के उपाय और सब्सिडी सुधार शामिल हैं।
    • ये कार्य उधार पर निर्भरता को कम करने और राजकोषीय असंतुलन को दूर करने में मदद करते हैं, जिससे अधिक संतुलित और सतत् बजट को बढ़ावा मिलता है।
  • निवेशकों का विश्वास बढ़ाना: राजकोषीय प्रबंधन के प्रति अनुशासित दृष्टिकोण निवेशकों का विश्वास बढ़ाता है।
    • कम राजकोषीय घाटा और स्थिर ऋण स्तर राजकोषीय जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं, जिससे देश घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बन जाता है।

राजकोषीय घाटा प्रबंधन से संबंधित सरकारी पहल

  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM अधिनियम), 2003:
    • परिचय: FRBM अधिनियम राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए वित्तीय अनुशासन स्थापित करता है। इसका उद्देश्य राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करना और व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है।
    • FRBM अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
      • मध्यम अवधि राजकोषीय नीति वक्तव्य: यह तीन वर्षों के लिए बजट घाटे के आकार की सीमाएँ निर्धारित करता है तथा कर और गैर-कर प्राप्तियों के लिए लक्ष्य निर्धारित करता है।
      • यह केंद्र के वार्षिक राजकोषीय घाटे के अनुपात (FDR) के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 3% लक्ष्य निर्धारित करता है।
      • राज्यों को अपने स्वयं के FRBM अधिनियम का निर्माण करना पड़ा, जिससे राज्य के FD को उसके स्वयं के GDP के 3% तक सीमित किया जा सके।
  • FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट (अध्यक्ष: एन.के. सिंह)
    • प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण: समिति ने राजकोषीय नीति के लिए प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण का उपयोग करने का सुझाव दिया।
    • GDP अनुपात के लिए ऋण: FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने वर्ष 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिए GDP अनुपात हेतु ऋण की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार के लिए 40% और राज्य सरकारों के लिए 20% शामिल है।
    • RBI से उधार लेना: समिति के सुझावों के अनुसार, सरकार को RBI से उधार नहीं लेना चाहिए, सिवाय इसके कि:-
      • केंद्र को प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना है।
      • RBI किसी भी विचलन को वित्तपोषित करने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों की सहायता लेता है।
      • RBI द्वितीयक बाजार से सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद करता है।
    • राजकोषीय परिषद: समिति ने केंद्र द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और दो सदस्यों के साथ एक स्वायत्त राजकोषीय परिषद बनाने का प्रस्ताव रखा। 
    • विचलन: समिति ने अवलोकित किया कि FRBM अधिनियम के तहत, सरकार राष्ट्रीय आपदा, राष्ट्रीय सुरक्षा या इसके द्वारा अधिसूचित अन्य असाधारण परिस्थितियों के मामले में लक्ष्यों से विचलित हो सकती है।

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