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भारत में भूकंपीय जोखिम और संरचनात्मक तैयारी

Lokesh Pal July 18, 2025 04:22 35 0

संदर्भ

10 जुलाई, 2025 को दिल्ली के निकट उथले केंद्र वाले 4.4 तीव्रता के भूकंप ने शहर की गहन अवसंरचनात्मक कमजोरियों को उजागर कर दिया।

  • यद्यपि इस घटना से कोई बड़ी क्षति नहीं हुई, लेकिन यह भारत की भूकंपीय स्थिति और अपर्याप्त तैयारियों के कारण उसके समक्ष उपस्थित व्यापक जोखिम को उजागर करती है।

संबंधित तथ्य

  • फरवरी 2025 में, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री और पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने भारत की उभरती आपदा प्रबंधन रणनीति को रेखांकित किया, जिसमें भूकंप के जोखिमों को कम करने के लिए तकनीकी उन्नति, संस्थागत सुधार और सार्वजनिक जागरूकता पर जोर दिया गया, विशेष रूप से गुजरात, उत्तराखंड और हिमालयी बेल्ट जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में।

भारत की विकसित होती आपदा प्रबंधन रणनीति की मुख्य विशेषताएँ

  • संस्थागत सुधार एवं पहल
    • गुजरात में वर्ष 2001 के भूकंप के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात पहला राज्य था, जिसने आपदा प्रबंधन समिति की स्थापना की, जिससे वर्ष 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के गठन को प्रेरणा मिली।
    • गुजरात में भूकंपीय अनुसंधान संस्थान और बाद में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र की स्थापना हुई।
  • वैज्ञानिक और निगरानी प्रगति
    • भूकंपीय वेधशालाओं की संख्या 80 (वर्ष 2014) से बढ़कर 168 (वर्ष 2024) हो गई है, जो एक दशक में दोगुनी है।
    • पूर्वोत्तर में निगरानी केंद्रों का निरंतर विस्तार हो रहा है, अब वेधशालाएँ 3.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों का पता लगा रही हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की रेट्रोफिटिंग एवं संहिता का अनुपालन
    • एम्स, दिल्ली और भुज अस्पताल, गुजरात जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की रेट्रोफिटिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
    • भारतीय मानक (IS) भूकंपीय भवन संहिताओं का कठोरता से पालन किया जाएगा, साथ ही स्कूलों और सार्वजनिक भवनों की रेट्रोफिटिंग के प्रयास भी किए जाएँगे।
    • भूकंप-प्रतिरोधी भारत के लिए विजन 2047 के अनुरूप राष्ट्रव्यापी रेट्रोफिटिंग योजना शुरू की जाएगी।
  • जन जागरूकता और सामुदायिक तैयारी
    • नियमित मॉक ड्रिल, जन अभियान (जैसे- दूरदर्शन पर ‘आपदा का सामना’), और सरलीकृत गृहस्वामी भूकंप सुरक्षा मार्गदर्शिका का प्रसार किया जा रहा है।
    • वर्ष 2021 में, भारतीय भवन संहिता के अंतर्गत संरचनात्मक सुरक्षा के लिए सरलीकृत दिशा-निर्देश जारी किए गए।
  • हिमालयी बेल्ट और पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ
    • उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्यों में पूर्व चेतावनी प्रणालियों और सुपरिभाषित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल की तैनाती की जा रही है।
    • आपदा शिक्षा, तैयारी और वास्तविक समय अलर्ट पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
  • पूर्वोत्तर पर ध्यान और विकासात्मक प्रोत्साहन
    • पूर्वोत्तर में भूकंपरोधी क्षमता सर्वोच्च प्राथमिकता बनी हुई है।
    • ‘मिशन मौसम’ जैसे मिशन, अंतरिक्ष-तकनीकी कार्यक्रम और अंतरिक्ष स्टार्ट-अप के लिए ₹1,000 करोड़ का आवंटन शुरू किया गया है।
  • जोखिम हस्तांतरण और बीमा तंत्र
    • भूकंपीय क्षति के विरुद्ध बुनियादी ढाँचे के बीमा के लिए ‘जोखिम हस्तांतरण तंत्र’ की शुरुआत की गई है।
    • क्षति आकलन और बीमा प्रावधान के लिए अब व्यापक प्रोटोकॉल लागू हैं।

भूकंप प्रतिरोधक क्षमता के बारे में

  • परिभाषा: लोगों, बुनियादी ढाँचे और प्रणालियों की भूकंपों को झेलने, उनके अनुकूल ढलने तथा न्यूनतम व्यवधान के साथ उनसे उबरने की क्षमता को भूकंप प्रतिरोधक क्षमता कहा जाता है। यह अवसंरचनात्मक पतन को रोकने से कहीं आगे जाकर त्वरित सुधार एवं निरंतर कार्यक्षमता सुनिश्चित करता है।

घटक

मुख्य उद्देश्य

मुख्य क्रियाएँ

सहनशीलता (मजबूती) अवसंरचनात्मक विनाश को रोकना
  • भूकंप-रोधी डिजाइन
  • तन्य सामग्री (स्टील, प्रबलित कंक्रीट)
  • प्रौद्योगिकियाँ: बेस आइसोलेशन, डैंपर्स, ब्रेसिंग।
अनुकूलन (अनुकूली क्षमता) विकसित होना और तैयारी करना
  • भवन संहिताओं को अद्यतन करना।
  • पुरानी इमारतों का नवीनीकरण करना।
  • जोखिम क्षेत्रीकरण और खतरों का मानचित्रण करना।
  • स्मार्ट शहरी नियोजन।
पुनर्प्राप्ति (तीव्रता और संसाधनशीलता) पुनर्प्राप्ति
  • आपातकालीन योजनाएँ और अभ्यास
  • लचीली विद्युत/जल/परिवहन
  • जन जागरूकता
  • आर्थिक पुनर्वास और ‘बेहतर पुनर्निर्माण’।

भूकंप के बारे में

  • पृथ्वी की पर्पटी में ऊर्जा का अचानक निर्मुक्त होना, जिससे भूकंपीय तरंगें उत्पन्न होती हैं, भूकंप कहलाता है।
  • मुख्य शब्दावली
    • केंद्र: जिसे हाइपोसेंटर भी कहा जाता है, पृथ्वी के भीतर वह बिंदु है, जहाँ भूकंप उत्पन्न होता है।
    • उपरिकेंद्र (Epicenter): पृथ्वी की सतह पर भूकंप के फोकस या स्रोत के ठीक ऊपर स्थित बिंदु होता है।
    • भ्रंश (Fault): पृथ्वी की पर्पटी में एक दरार, जहाँ दो टेक्टॉनिक प्लेटें आपस में मिलती हैं।
    • फोरशॉक (Foreshocks): छोटे भूकंप, जो उसी स्थान पर मुख्य भूकंप से पहले आते हैं।
    • आफ्टरशॉक (Aftershocks): छोटे भूकंप, जो किसी बड़े भूकंप के बाद आते हैं, क्योंकि पृथ्वी अचानक होने वाली हलचल के साथ सामंजस्य स्थापित करती है।
    • भूकंपमापी (Seismographs): एक उपकरण जो भूकंप के कारण होने वाली भू-गति को मापता एवं रिकॉर्ड करता है।
    • भूकंप विज्ञान: विज्ञान की वह शाखा, जिसके अंतर्गत भूकंपों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
    • भूकंपीय तरंगें: ऊर्जा की वे तरंगें, जो पृथ्वी की पर्पटी से होकर गुजरती हैं और भूकंप के दौरान भूमि में संचलन उत्पन्न करती हैं।

भूकंप के विविध कारण

  • प्लेट टेक्टॉनिक्स: पृथ्वी की टेक्टॉनिक प्लेटों की गति, जब प्लेट सीमाओं के साथ परस्पर क्रिया करती हैं, भूकंप का कारण बन सकती है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023 में तुर्किए-सीरिया भूकंप, जो अनातोलियन और अरब प्लेट के मध्य पूर्वी अनातोलियन भ्रंश के स्थानांतरित होने के कारण हुआ था।
  • ज्वालामुखी गतिविधियाँ: भूकंप तब भी उत्पन्न हो सकते हैं, जब ज्वालामुखी के नीचे मैग्मा गति करता है, जिससे भूमि में संचलन उत्पन्न होता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2024-2025 में माउंट रेनियर (Mount Rainier) में संचालित ‘सेस्मिक स्वार्म’ और पटल विरूपण क्रिया से भूमिगत मैग्मा के संचलन का संकेत मिलता है, हालाँकि इसमें विस्फोट नहीं होता है, लेकिन नियमित रूप से छोटे-मोटे भूकंपीय कंपन होते रहते हैं।
  • मानवीय गतिविधियाँ: मानवीय गतिविधियाँ, जैसे अपशिष्ट निपटान के लिए जमीन में तरल पदार्थ अंतःक्षेपित करना या भूमिगत जलाशयों से तेल और गैस निकालना, भूकंप उत्पन्न कर सकती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2023-2025 के दौरान पश्चिमी टेक्सास (जैसे- मिडलैंड बेसिन के आस-पास) में लगातार भूकंपीय गतिविधियाँ, जो तेल और गैस संचालन से अपशिष्ट जल के निकलने से जुड़ी है।
  • जलाशय-जनित भूकंप: झीलों या बाँधों जैसे बड़े जलाशयों के भरने या खाली होने से भूकंप आ सकते हैं क्योंकि जल का भार बदल जाता है और पृथ्वी की पर्पटी प्रभावित होती है।
    • उदाहरण: 2011 के दशक की शुरुआत में चीन में थ्री गॉर्जेस बाँध के पास भूकंपीय घटनाएँ देखी गईं, जिनकी जल स्तर में उतार-चढ़ाव से संभावित संबंधों के लिए निगरानी जारी है।
  • हिमनद प्रतिक्षेप: हिमनदों की गति, उनके आगे बढ़ने या सिकुड़ने के कारण भूकंप का कारण बन सकती है और पृथ्वी की पर्पटी में परिवर्तन ला सकती है।
    • उदाहरण: अक्टूबर 2023 में सिक्किम में विनाशकारी दक्षिण ‘ल्होनक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ (GLOF)

भूकंपों को मापना: परिमाण एवं तीव्रता के पैमाने को समझना

  • भूकंपों का मापन: भूकंप का परिमाण और तीव्रता उसके आकार तथा प्रभाव को मापने के दो तरीके हैं।
  • परिमाण: भूकंप का परिमाण उसकी ऊर्जा उत्सर्जन का माप है और यह भूकंप द्वारा उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के मापन से निर्धारित होता है।
    • भूकंप की तीव्रता मापने के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला पैमाना रिक्टर पैमाना है, जिसे 1930 के दशक में विकसित किया गया था।
    • रिक्टर पैमाना 0 से 9 तक होता है और परिमाण में एक की वृद्धि ऊर्जा उत्सर्जन में दस गुना वृद्धि दर्शाती है।
  • तीव्रता: भूकंप की तीव्रता किसी विशिष्ट स्थान पर उसके प्रभाव का माप है, और यह जमीन, इमारतों और लोगों पर भूकंपीय तरंगों के प्रभाव से निर्धारित होती है।
    • भूकंप की तीव्रता मापने के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला पैमाना संशोधित मरकेली तीव्रता (MMI) पैमाना है, जो I से XII तक होता है।
    • MMI पैमाना भवन निर्माण के प्रकार, भवन की ऊँचाई और भूकंप के केंद्र से दूरी जैसे कारकों को ध्यान में रखता है।

भारत में भूकंपीय संवेदनशीलता

  • विश्व में सातवें सबसे अधिक भूकंप-प्रवण देश के रूप में शामिल भारत ने अपने पूरे इतिहास में 58 बड़े भूकंप झेले हैं और यह भूकंपीय गतिविधियों के प्रति संवेदनशील है।
  • भू-वैज्ञानिक अस्थिरता: प्रमुख स्थलमंडलीय प्लेटों के अभिसरण पर स्थित, भारत दुनिया के सबसे अधिक भूकंपीय रूप से अस्थिर क्षेत्रों में से एक के केंद्र में स्थित है।
  • हिमालयी खतरा: भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के विरुद्ध उत्तर की ओर 4-5 सेमी. प्रति वर्ष का स्थिर दबाव भारत में भूकंपीय जोखिम को बढ़ाता है, जिससे हिमालय का निर्माण होता है, जो 8 तीव्रता से अधिक के विनाशकारी भूकंप के लिए एक सक्रिय क्षेत्र है।
    • ऐसी घटना से उत्तरी भारत, नेपाल और भूटान में 300 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रारंभिक जनहानि से कहीं अधिक विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।

  • अखिल भारतीय संवेदनशीलता: भारत का लगभग 59% हिस्सा भूकंप के प्रति संवेदनशील है और भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने भूकंप के जोखिम के आधार पर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में वर्गीकृत किया है, जो जोन II से जोन V तक हैं।
    • जोन V सबसे अधिक सक्रिय है, जिसमें हिमालय जैसे क्षेत्र शामिल हैं, जबकि जोन II सबसे कम प्रभावित है। पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने कई विनाशकारी भूकंप देखे हैं।
      • उदाहरण: मई 2025 में तिब्बत में आए 5.7 तीव्रता के भूकंप से सिक्किम भी प्रभावित हुआ, जिससे पूरे हिमालयी क्षेत्र की अंतर्निहित संवेदनशीलता और बढ़ गई।
    • मणिपुर, नागालैंड और मिजोरम सहित पूर्वोत्तर भारत (जोन V) में प्रायः भूकंपीय झटके आते रहते हैं, सबसे हालिया उदाहरण मार्च 2025 में आए 7.7 तीव्रता के मांडले भूकंप में देखा गया।
    • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (जोन V) सबडक्शन जोन की गतिविधियों से उत्पन्न सुनामी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना हुआ है, जैसा कि वर्ष 2004 में दुखद रूप से प्रदर्शित हुआ था।

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के बारे में

  • वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन की गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास हेतु BIS अधिनियम 2016 के अंतर्गत स्थापित भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है।
  • इस अधिनियम में सरकार के लिए ऐसे प्रावधान हैं, जिनसे वह किसी भी अनुसूचित उद्योग, प्रक्रिया, प्रणाली या सेवा तथा किसी भी वस्तु को अनिवार्य प्रमाणन व्यवस्था के अंतर्गत ला सकती है, जिसे वह आवश्यक समझे:
    • जनहित में या मानव, पशु या पादप स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए
    • पर्यावरण की सुरक्षा
    • अनुचित व्यापार प्रथाओं की रोकथाम, या राष्ट्रीय सुरक्षा
    • कीमती धातु वस्तुओं की हॉलमार्किंग अनिवार्य बनाने के लिए।

  • भूकंपीय लचीलेपन में ऐतिहासिक विफलताएँ:र्ष 2001 के भुज भूकंप (7.7 तीव्रता) और वर्ष 2015 के नेपाल भूकंप (7.8 तीव्रता), जिनमें क्रमशः लगभग 20,000 और लगभग 9,000 मौतें हुईं, इस बात को रेखांकित करते हैं कि अपर्याप्त तैयारियाँ किस प्रकार बड़े पैमाने पर मौतों, बुनियादी ढाँचे के पतन और दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक व्यवधान का कारण बनती हैं।
  • वैश्विक विवर्तनिक अंतर्संबंध: मार्च 2025 से ग्रीस, इंडोनेशिया, चिली-अर्जेंटीना और इक्वाडोर में आए भूकंपों सहित वैश्विक भूकंपीय गतिविधियों में हालिया वृद्धि, गतिशील ग्रहीय विवर्तनिकी का संकेत देती है।
    • यद्यपि ये घटनाएँ सीधे तौर पर भारतीय भूकंपों को उत्प्रेरित नहीं करतीं, फिर भी ये घटनाएँ वैश्विक स्तर पर सतर्कता और तैयारी बढ़ाने की आवश्यकता की याद दिलाती हैं।

भारत की भूकंप संबंधी तैयारी

  • प्रमुख सरकारी एजेंसियाँ
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भूकंप जोखिम न्यूनीकरण के लिए जोखिम-विशिष्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं।
      • जोखिम न्यूनीकरण पर दिशा-निर्देश: NDMA ने सुरक्षित निर्माण और सूचित स्वामित्व के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शिकाएँ तैयार की हैं।
        • गृहस्वामी मार्गदर्शिका (2019): चिनाई और प्रबलित सीमेंट कंक्रीट (RCC) संरचनाओं में सुरक्षा मानदंडों का पालन करके, घर बनाते या खरीदते समय नागरिकों को भूकंप और चक्रवातों से सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती है।
        • सरलीकृत भूकंप सुरक्षा दिशा-निर्देश (2021): NBC 2016 (राष्ट्रीय भवन संहिता) पर आधारित, ये दिशा-निर्देश लोगों को घर खरीदने या निर्माण करने में सहायता करते हैं, विशेषकर शहरी बहुमंजिला इमारतों में।
        • मॉडल बिल्डिंग उपनियम, 2016 और NBC, 2016 (राष्ट्रीय भवन संहिता) में अनिवार्य भूकंपीय सुरक्षा प्रावधान शामिल हैं, लेकिन इनका प्रवर्तन एक चुनौती बना हुआ है।
    • राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) देश में भूकंपीय गतिविधियों की निगरानी के लिए भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।
    • भारतीय राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (INCOIS) और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भूकंपमापी, उपग्रहों और भू-संवेदकों के संयोजन का उपयोग करके एक उन्नत भूकंपीय निगरानी नेटवर्क संचालित करते हैं।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) नियमित रूप से उच्च जोखिम वाले शहरी क्षेत्रों और पहाड़ी क्षेत्रों में मॉक अभ्यास और भूकंप प्रतिक्रिया अभ्यास आयोजित करता है।
  • नीतिगत उपाय
    • भारत की राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) में भूकंप की तैयारी, पुनर्निर्माण और प्रतिक्रिया तंत्र पर एक समर्पित खंड शामिल है, जिसे वर्ष 2019 में संशोधित किया गया है।
    • भूकंप संबंधी वास्तविक समय की जानकारी के लिए भूकंप ऐप (BhooKamp App) लॉन्च किया गया था।
    • राष्ट्रीय भूकंप जोखिम न्यूनीकरण परियोजना (NERMP) का उद्देश्य उच्च जोखिम वाले राज्यों में भूकंपरोधी निर्माण, क्षमता निर्माण और जन जागरूकता को बढ़ाना है।
    • कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (CAP) के तहत, भूकंप संबंधी अलर्ट अब भू-लक्षित और बहुभाषी हैं, जिन्हें SMS, मोबाइल ऐप, TV, सायरन आदि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
    • भूकंप आपदा जोखिम सूचकांक (EDRI) का उद्देश्य खतरे, भेद्यता और जोखिम जैसे मापदंडों का उपयोग करके शहरी भूकंप जोखिम का आकलन और मानचित्रण करना है।
  • अन्य
    • कई राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMA) ने भूकंपीय क्षेत्रों में स्कूल सुरक्षा कार्यक्रम, मॉक ड्रिल और अस्पतालों व स्कूलों जैसे भवनों के पुनर्निर्माण की पहल की है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) इंजीनियरों, वास्तुकारों और योजनाकारों के लिए भूकंपरोधी क्षमता पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।
    • इनसैट और डॉप्लर वेदर रडार (DWR) तकनीकें हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भूकंप से जुड़े भूस्खलन या बाढ़ के जोखिमों की निगरानी में भी मदद करती हैं।
    • भारत बिम्सटेक (BIMSTEC), SCO और जापान के माध्यम से भूकंप अनुसंधान और पूर्वानुमान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दे रहा है।

स्मृतिवन स्मारक, भुज: लचीलेपन का सम्मान

  • गुजरात के भुज में स्थित स्मृतिवन भूकंप स्मारक और संग्रहालय, वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप (7.9 तीव्रता) के पीड़ितों की स्मृति में बनाया गया है, जिसमें लगभग 13,000 लोग मारे गए थे और कच्छ में 15 लाख लोग प्रभावित हुए थे।
  • अगस्त 2022 में उद्घाटन किया गया, स्मृतिवन स्मारकीकरण, आपदा शिक्षा और स्थिरता का मिश्रित रूप है। यह भुजियो डूंगर पर 470 एकड़ में विस्तृत है और इसमें शामिल हैं:
    • 1.1 मेगावाट का सौर संयंत्र
    • पीड़ितों के नाम उत्कीर्ण 50 चेक-डैम
    • दुनिया का सबसे बड़ा मियावाकी वन (3 लाख से अधिक पौधे)।
  • संग्रहालय में सात विषयगत खंड हैं:- पुनर्जन्म, पुनःखोज, पुनर्स्थापना, पुनर्निर्माण, पुनर्विचार, पुनःजीवित (5D सिम्युलेटर के साथ) और नवीनीकरण।
  • यूनेस्को द्वारा प्रिक्स वर्सेल्स 2024 (Prix Versailles 2024) के लिए चयनित, यह मान्यता प्राप्त करने वाला भारत का पहला संग्रहालय है। स्मृतिवन इस बात का उदाहरण है कि वास्तुकला, स्मृति और लचीलापन कैसे सार्थक रूप से सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।

भारत में बढ़ती भूकंपीय गतिविधियों से उत्पन्न चुनौतियाँ

  • तत्काल प्रभाव एवं खतरे
    • संरचनात्मक पतन: गैर-भूकंप रोधी निर्माण से इमारतें और पुल ढह जाते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर जनहानि एवं संपत्ति का नुकसान होता है, विशेषकर शहरी इलाकों में।
    • भू-विरूपण: भ्रंशों के टूटने और तीव्र कंपन से संरचनाओं को नुकसान पहुँचता है; संतृप्त मृदा में द्रवीकरण के कारण इमारतें धँस जाती हैं या झुक जाती हैं।
    • भूस्खलन एवं चट्टानें: पहाड़ी इलाकों में होने वाले भूस्खलन, बस्तियों को ढहा कर सड़कों को अवरुद्ध कर देते हैं और समुदायों को अलग-थलग कर देते हैं।
    • सुनामी: जल के नीचे आने वाले भूकंप, विशेषकर सबडक्शन जोन में, तटीय बाढ़ और बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बनते हैं।
    • आग एवं विस्फोट: गैस लाइनों के टूटने और विद्युत की खराबी के कारण प्रायः भूकंप के बाद आग लग जाती है, जिससे बचाव कार्य में बाधा आती है।
    • बाँधों का टूटना: भूकंप बाँधों और जलाशयों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
    • खतरनाक रिसाव: भूकंप औद्योगिक इकाइयों को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं, जिससे जहरीले रसायन या प्रदूषक निकल सकते हैं।
    • सेवा में व्यवधान: विद्युत कटौती, जल की कमी, संचार विफलताएँ और क्षतिग्रस्त सड़कें आपातकालीन प्रतिक्रिया को कमजोर कर देती हैं।
  • सुरक्षा नियमों का कमजोर कार्यान्वयन
    • हालाँकि अब भूकंपों को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है और इंडियाक्वेक ऐप (IndiaQuake app) जैसे पूर्व चेतावनी उपकरण भी उपलब्ध हैं, फिर भी जानकारी और व्यवहार में अभी भी एक बड़ा अंतर है।
    • प्रायः भवन निर्माण नियमों का पालन नहीं किया जाता है और अधिकांश लोगों को यह भी नहीं पता कि सुरक्षित कैसे रहें।
    • इसकी तुलना में, ताइवान जैसे देश सुरक्षा नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, और बैंकॉक जैसे शहरों ने नुकसान कम करने के लिए अपने भूकंप कानूनों में सुधार किया है।
    • दूसरी ओर, म्याँमार जैसे स्थानों को अधिक नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि वहाँ ऐसे नियमों का पालन नहीं किया गया।
  • सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
    • एक शक्तिशाली भूकंप न केवल मौतें और इमारतों को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि यह दैनिक जीवन और अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर सकता है।
    • इससे लोगों के घरों का विनाश हो सकता हैं, आवश्यक सेवाएँ (जैसे- विद्युत, जल और परिवहन) ठप हो सकती हैं और रोजगार को नुकसान हो सकता है।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर अत्यधिक भार पड़ सकता है और मानसिक तनाव व्यापक हो सकता है।
    • सब कुछ फिर से बनाने में बहुत खर्च आएगा और प्रभावित क्षेत्रों का विकास कई वर्षों तक धीमा पड़ सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन से जुड़ाव
    • जलवायु परिवर्तन भूकंप के खतरों को और भी खतरनाक बना देता है।
    • भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएँ भवनों और सड़कों को कमजोर कर सकती हैं, जिससे भूकंप के दौरान उनके गिरने की संभावना बढ़ जाती है।
    • ये आपदाएँ बचाव और पुनर्वास प्रयासों में भी देरी कर सकती हैं।
    • ये सब मिलकर समस्याओं की एक शृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं, जिसका प्रबंधन करना मुश्किल होता है।

आगे की राह

  1. वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना
    • ताइवान: वर्ष 1999 के ची-ची भूकंप के बाद, ताइवान ने आपदा प्रबंधन में व्यापक बदलाव किए, सख्त भवन संहिताएँ लागू कीं और एक वास्तविक समय भूकंपीय निगरानी नेटवर्क बनाया। बेस आइसोलेशन, ट्यून्ड मास डैम्पर्स और जन जागरूकता ने वर्ष 2024 के हुआलिएन भूकंप के दौरान न्यूनतम क्षति सुनिश्चित की।
    • जापान: जापान सख्त भूकंपीय संहिताओं को लागू करता है, बेस आइसोलेशन और डैम्पिंग प्रणालियों का उपयोग करता है, और प्रबलित सामग्रियों से निर्माण करता है। इसकी पूर्व चेतावनी प्रणाली त्वरित अलर्ट प्रदान करती है, जबकि सार्वजनिक अभ्यास और आपदा निवारण दिवस बार-बार आने वाले भूकंपों के विरुद्ध उच्च सामुदायिक तैयारी सुनिश्चित करते हैं।
    • चिली: चिली के अनुकूली भवन संहिताएँ बड़े भूकंपों के बाद विकसित होती हैं। प्रबलित कंक्रीट शियर वॉल का उपयोग व्यापक है। प्रदर्शन-आधारित डिजाइन भूकंप के बाद भवन की कार्यक्षमता सुनिश्चित करते हैं, जबकि सुनामी चेतावनी प्रणालियाँ समय पर निकासी को सक्षम बनाती हैं, जैसा कि वर्ष 2015 के M8.3 भूकंप के दौरान देखा गया था।
    • न्यूजीलैंड: कैंटरबरी भूकंपों के बाद, न्यूजीलैंड ने जीवन-सुरक्षा-उन्मुख संहिताएँ लागू कीं और बेस आइसोलेटर और रॉकिंग वॉल जैसी कम क्षति वाली तकनीकों का लाभ उठाया। यह सर्व-विपदा दृष्टिकोण का अनुसरण करता है तथा भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति समग्र अवसंरचना की लचीलापन को बढ़ाता है।
  2. मजबूत कानून और बेहतर समन्वय
    • सख्त भवन नियम: सभी नए भवनों, विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में, को IS 1893:2016 भूकंपीय संहिता का पालन करना होगा। स्वतंत्र निरीक्षण अनिवार्य होना चाहिए।
    • कानूनों को नियमित रूप से अद्यतन करना: आपदा प्रबंधन कानूनों और भवन नियमों को नए वैज्ञानिक ज्ञान के साथ नियमित रूप से संशोधित किया जाना चाहिए।
    • बेहतर समन्वय: पृथ्वी विज्ञान, आवास, शहरी मामले, परिवहन जैसे मंत्रालयों और राज्य आपदा निकायों को प्रभावी योजना तथा कार्रवाई के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए।
    • सुरक्षित नगर नियोजन: कमजोर या खतरनाक भूमि पर निर्माण से बचने के लिए शहरों में भूकंपीय माइक्रोजोनेशन (जोखिम का विस्तृत मानचित्रण) का उपयोग करना।
  3. रेट्रोफिटिंग और सुरक्षित बुनियादी ढाँचा 
    • पुरानी इमारतों पर ध्यान केंद्रित करना: बड़े पैमाने पर रेट्रोफिटिंग अभियान चलाना, विशेषकर दिल्ली जैसे संवेदनशील शहरों में। स्टील जैकेटिंग, फाइबर रीइन्फोर्स्ड पॉलीमर (FRP) रैपिंग और बेस आइसोलेशन जैसे तरीकों का उपयोग करना।
    • आवश्यक सेवाएँ
      • दूरसंचार: सुनिश्चित करना कि मोबाइल टॉवर भूकंपों से बच सकें; केबलों का मानचित्रण करना और आपातकालीन बैकअप प्रणालियाँ स्थापित करना, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में।
      • बिजली: ब्लैकआउट से बचने के लिए विद्युत संयंत्रों, सबस्टेशनों और ग्रिडों को मजबूत बनाना।
      • जल एवं सीवेज: भूकंप के बाद बीमारियों के प्रकोप से बचने के लिए जल उपचार और सीवेज प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना।
      • परिवहन: पुलों, सुरंगों और फ्लाईओवरों को भूकंपरोधी बनाना; बैकअप मार्ग बनाना।
    • लागत अनुमान: रेट्रोफिटिंग के लिए प्रतिवर्ष लगभग 50,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता हो सकती है, जिसके लिए समर्पित वित्तपोषण और स्मार्ट वित्त मॉडल की आवश्यकता होगी।
  4. प्रौद्योगिकी और डेटा उपयोग
    • अधिक सेंसर: बेहतर ट्रैकिंग और त्वरित अलर्ट के लिए भूकंप सेंसर बढ़ाना तथा अपग्रेड करना।
    • पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: जनता को शीघ्र सूचित करने के लिए शेकमैप और अन्य अलर्ट टूल का विस्तार करना।
    • AI और मशीन लर्निंग का उपयोग: बेहतर पूर्वानुमान, क्षति का पूर्वानुमान और योजना बनाने के लिए AI का उपयोग करना।
    • GIS मैपिंग: संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने और प्रतिक्रिया योजना बनाने के लिए भवन, भूमि तथा जनसंख्या डेटा को मिलाकर डिजिटल मानचित्रों का उपयोग करना।
  5. जन भागीदारी और जागरूकता
    • शिक्षा अभियान: भूकंप सुरक्षा, आपातकालीन किट और निकासी योजनाओं पर बहुभाषी जागरूकता कार्यक्रम चलाना।
    • नियमित अभ्यास: तैयारी में सुधार के लिए स्कूलों, कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर मॉक ड्रिल आयोजित करना।
    • नागरिक भागीदारी: लोगों को असुरक्षित इमारतों की सूचना देने और स्थानीय सर्वेक्षणों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • स्थानीय टीमों को प्रशिक्षित करना: प्राथमिक चिकित्सा, बचाव और क्षति की सूचना देने में प्रशिक्षित सामुदायिक आपदा टीमें बनाना। भुज भूकंप ने दिखाया कि स्थानीय लोग प्रायः सबसे पहले प्रतिक्रिया देते हैं।
    • पारंपरिक ज्ञान: स्थानीय, समय-परीक्षित भूकंप-सुरक्षित भवन शैलियों का दस्तावेजीकरण और प्रचार करना।

निष्कर्ष

जुलाई 2025 में दिल्ली में आए भूकंप सुरक्षा और सम्मान के संवैधानिक मूल्यों पर आधारित भूकंपीय लचीलेपन की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। भवन निर्माण संहिताओं को लागू करना, लचीले बुनियादी ढाँचे में निवेश करना और जन जागरूकता SDG 11 (सतत् शहर) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप हैं।

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