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भारत- सिंगापुर द्विपक्षीय संबंध

Lokesh Pal March 27, 2024 05:40 147 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने सिंगापुर के विदेश मंत्री के साथ व्यापार मुद्दों पर चर्चा की।

संबंधित तथ्य

  • इस वार्ता में निम्नलिखित मुद्दों शामिल थे:- 
    • भारत-प्रशांत और पश्चिम एशिया क्षेत्र, व्यापार, हरित ऊर्जा, आपूर्ति शृंखला एवं रक्षा मुद्दे।

भारत-सिंगापुर संबंध: विभिन्न पहलू

  • विभिन्न मंचों का हिस्सा: दोनों देश कई वैश्विक मुद्दों पर सहमत हैं एवं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, G20, राष्ट्रमंडल आदि जैसे कई मंचों का हिस्सा हैं।
  • व्यापार एवं आर्थिक सहयोग: भारत एवं सिंगापुर के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 18% बढ़कर 35.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।

  • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग: सिंगापुर भारत समुद्री द्विपक्षीय अभ्यास  (Singapore India Maritime Bilateral Exercise- SIMBEX) जैसे नियमित संयुक्त सैन्य अभ्यास एक साथ आयोजित किए जाते हैं।
  • सांस्कृतिक एवं जन भागीदारी: सिंगापुर की लगभग 9.1% आबादी (लगभग 3,50,000 लोग) भारतीय मूल की है।

सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

सकारात्मक

नकारात्मक

  • व्यापार वृद्धि: आर्थिक संबंधों को मजबूत करने से दोनों देशों के लिए निवेश एवं निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
  • हरित ऊर्जा सहयोग: स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में संयुक्त प्रयासों से पर्यावरणीय लाभ एवं तकनीकी प्रगति हो सकती है।
  • आपूर्ति शृंखला लचीलापन: सिंगापुर के साथ सहयोग भारत की आपूर्ति शृंखला विविधीकरण एवं जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को बढ़ा सकता है।
  • रक्षा और सुरक्षा: घनिष्ठ सहयोग आपसी रक्षा हितों एवं क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित करता है।
  • क्षेत्रीय प्रभाव: व्यापक क्षेत्रीय गतिशीलता पर विचार करने से दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि एवं स्थिरता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • व्यापार चुनौतियाँ: दोनों देशों को वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान एवं बाजार में अस्थिरता जैसी आर्थिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसे दूर करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होती है।
  • रक्षा प्राथमिकताएँ: हालाँकि रक्षा सहयोग महत्त्वपूर्ण है, संसाधनों एवं प्राथमिकताओं को संरेखित करना जटिल हो सकता है, जिसके लिए अन्य राष्ट्रीय अनिवार्यताओं के साथ संतुलन की आवश्यकता होती है।
  • सीमित मूर्त परिणाम: व्यापार एवं हरित ऊर्जा पर चर्चा के बावजूद, कोई विशिष्ट समझौते या कदम की घोषणा नहीं की गई।
  • जटिल क्षेत्रीय गतिशीलता: भारत-प्रशांत एवं पश्चिम एशिया क्षेत्रों में मुद्दों को संबोधित करने में जटिल भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटना शामिल है, जो संबंधों में तनाव पैदा कर सकती हैं।

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