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भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 (ISFR 2023)

Lokesh Pal December 24, 2024 03:15 101 0

संदर्भ

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 (India State of Forest Report- ISFR 2023) जारी की। 

भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) के संबंध में

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) द्वारा द्विवार्षिक रूप से प्रकाशित।
  • पहली रिपोर्ट वर्ष 1987 में प्रकाशित हुई थी; वर्ष 2023 की रिपोर्ट 18वाँ संस्करण है।
  • इस रिपोर्ट में वन आवरण, वृक्ष आवरण, मैंग्रोव आवरण, बढ़ते स्टॉक, भारत के जंगलों में कार्बन स्टॉक, वनाग्नि की घटनाएँ, कृषि वानिकी आदि के बारे में जानकारियाँ शामिल हैं।

भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI)

  • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) एक सरकारी संगठन है, जो भारत के वन संसाधनों की निगरानी और मूल्यांकन करता है।
  • अधिकार: FSI की मुख्य भूमिका देश के वन संसाधनों का नियमित रूप से सर्वेक्षण और मूल्यांकन करना है।
  • इतिहास: FSI की स्थापना 1 जून, 1981 को हुई थी, जिसने वन संसाधनों के पूर्व-निवेश सर्वेक्षण (Pre Investment Survey of Forest Resources- PISFR) की जगह ली थी, जिसे वर्ष 1965 में शुरू किया गया था।

वन आवरण मानचित्रण

  • परिभाषा: 1 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाली भूमि, जिसमें वृक्षों की कैनोपी हो और घनत्व 10% से अधिक हो, जिसमें वृक्षों के बगीचे, बाँस, ताड़ आदि शामिल हों।

  • वन का वर्गीकरण
    • बहुत घना जंगल (Very Dense Forest-VDF): कैनोपी घनत्व ≥70%।
    • मध्यम रूप से घना जंगल (Moderately Dense Forest- MDF): कैनोपी घनत्व 40–70%।

    • खुला जंगल (Open Forest-OF): कैनोपी घनत्व 10–40%।
    • झाड़ियाँ (Scrub): कैनोपी घनत्व < 10%, आम तौर पर पेड़ों के बीच झाड़ियाँ होती हैं।
  • डेटा स्रोत: IRS रिसोर्ससैट उपग्रहों पर इसरो के LISS-III सेंसर से उपग्रह इमेजरी का उपयोग करता है।

वर्गीकरण

क्षेत्रफल (वर्ग किमी.)

बढोतरी (%)

वन क्षेत्र में वृद्धि

156.41 0.05%

कुल वन एवं वृक्ष आवरण (हरित आवरण) में वृद्धि

1,445.81 0.18%

मुख्य बिंदु

  • भारत में वन एवं वृक्ष आवरण
    • कुल वन एवं वृक्ष आवरण: 8,27,356.95 वर्ग किमी. (भारत के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17%)।
    • वन आवरण: 7,15,342.61 वर्ग किमी. (भौगोलिक क्षेत्र का 21.76%)।
    • वृक्ष आवरण: 1,12,014.34 वर्ग किमी. (भौगोलिक क्षेत्र का 3.41%)।
  • मैंग्रोव आवरण
    • कुल मैंग्रोव कवर: भौगोलिक क्षेत्र का 4,992 वर्ग किमी. (0.15%)।
    • वर्ष 2021 से शुद्ध मैंग्रोव कवर में कमी: 7.43 वर्ग किमी.
    • कमी: गुजरात में सबसे अधिक हानि (-36.39 वर्ग किमी.)।
    • वृद्धि: आंध्र प्रदेश (+13.01 वर्ग किमी.) और महाराष्ट्र (+12.39 वर्ग किमी.)।

राज्यों की रैंकिंग: सबसे बड़ा वन और वृक्ष आवरण क्षेत्र

राज्य  वन एवं वृक्ष आवरण (वर्ग किमी.)
1. मध्य प्रदेश 85,724
2. अरुणाचल प्रदेश 67,083
3. महाराष्ट्र 65,383

वन एवं वृक्ष आवरण में वृद्धि के मामले में शीर्ष राज्य (2021-2023)

राज्य

क्षेत्रफल में वृद्धि (वर्ग किमी.)

1. छत्तीसगढ़

684

2. उत्तर प्रदेश

559

3. ओडिशा

559

4. राजस्थान

394

राज्य रैंकिंग: उच्चतम प्रतिशत वन आवरण

रैंक

राज्य

कवर किए गए भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत

1 लक्षद्वीप 91.33%
2 मिजोरम 85.34%
3 अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह 81.62%

वन आवरण में अधिकतम परिवर्तन वाले राज्य

वर्गीकरण

राज्य

परिवर्तन (वर्ग किमी.)

अधिकतम वृद्धि छत्तीसगढ़ +684
अधिकतम कमी मध्य प्रदेश -612

  • कार्बन स्टॉक
    • कुल कार्बन स्टॉक: 7,285.5 मिलियन टन।
    • वर्ष 2021 से 81.5 मिलियन टन की वृद्धि।
    • कुल स्टॉक में मृदा कार्बनिक कार्बन का हिस्सा 55.06% है।
  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (WGESA)
    • पश्चिमी घाट के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों में वन क्षेत्र: 44,043.99 वर्ग किमी. (WGESA का 73%)।
    • 10 वर्षों में हानि: 58.22 वर्ग किमी.।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र में वन क्षेत्र
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुल वन क्षेत्र 1,74,394.70 वर्ग किलोमीटर है, जो इस क्षेत्र के भौगोलिक क्षेत्र का 67% है।
    • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में वन क्षेत्र में 327.30 वर्ग किलोमीटर की गिरावट दर्ज की गई।
    • मिजोरम में वन क्षेत्र में 178 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई।
  • पहाड़ी जिलों में वन क्षेत्र
    • भारत के पहाड़ी जिलों में कुल वन क्षेत्र 2,83,713.20 वर्ग किलोमीटर है, जो इन जिलों के भौगोलिक क्षेत्र का 40% है।
    • वर्ष 2021 से पहाड़ी जिलों में वन क्षेत्र में 234.14 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
  • कृषि वानिकी (Agroforestry)
    • भारत में कृषि वानिकी के अंतर्गत कुल वृक्ष हरित आवरण 1,27,590.05 वर्ग किलोमीटर अनुमानित है।
    • वर्ष 2013 से कृषि वानिकी वृक्ष हरित आवरण में 21,286.57 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है।
    • कृषि वानिकी के अंतर्गत कुल बढ़ता स्टॉक 1,291.68 मिलियन क्यूबिक मीटर अनुमानित है, जो वर्ष 2013 की तुलना में 28.56% की वृद्धि दर्शाता है।

वन एवं पर्यावरण से संबंधित भारत की राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ

  • पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs)
    • भारत का लक्ष्य वनरोपण और वृक्ष आवरण वृद्धि के माध्यम से वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO₂ समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाना है।
    • वर्तमान प्रगति: वर्ष 2005 से अब तक 2.29 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन सिंक।
  • हरित भारत मिशन (Green India Mission-GIM)
    • इसका उद्देश्य 5 मिलियन हेक्टेयर तक वन/वृक्ष क्षेत्र को बढ़ाना तथा अन्य 5 मिलियन हेक्टेयर की गुणवत्ता में सुधार करना है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली, जैव विविधता संरक्षण तथा वन आधारित आजीविका को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • सामुदायिक भागीदारी: संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management- JFM) 
    • वन संरक्षण, वनरोपण और सतत् प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करना।

वन एवं पर्यावरण से संबंधित भारत की वैश्विक प्रतिबद्धताएँ

  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) (1992): UNFCCC एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को संबोधित करना है।
    • कन्वेंशन के एक पक्ष के रूप में, भारत को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और भूमि उपयोग, वानिकी तथा भूमि-उपयोग परिवर्तन (LULUCF) से संबंधित गतिविधियों पर रिपोर्ट करना आवश्यक है। 
  • क्योटो प्रोटोकॉल (1997): औद्योगिक राष्ट्रों को निर्दिष्ट लक्ष्यों के साथ GHG उत्सर्जन को कम करने के लिए अनिवार्य करके UNFCCC को क्रियान्वित करता है।
  • पेरिस समझौता (2015): ग्लोबल वार्मिंग को 2°C (अधिमानतः 1.5°C) से नीचे सीमित करने पर ध्यान केंद्रित करता है और जलवायु शमन एवं अनुकूलन में वनों की भूमिका पर जोर देता है।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG): SDG 15 (स्थल पर जीवन) वन संरक्षण और पुनर्स्थापन को लक्षित करता है; अन्य प्रासंगिक SDG में SDG 14, 1, 2, 3, 6 और 13 शामिल हैं।
  • जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD): ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में वर्ष 1992 के पृथ्वी शिखर सम्मेलन में इस पर बातचीत की गई और हस्ताक्षर किए गए तथा यह वर्ष 1993 में लागू हुआ।
    • भारत को जैव विविधता को संरक्षित करने, सतत् उपयोग को बढ़ावा देने और वन आवास संरक्षण (लक्ष्य 5) सहित आईची जैव विविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बाध्य करता है।
  • वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा (New York Declaration on Forests-NYDF): संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में वर्ष 2014 में शुरू किया गया।
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2020 तक वनों की कटाई को आधा करना, वर्ष 2030 तक इसे समाप्त करना और स्थायी वन प्रबंधन तथा पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना है।
  • संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UN Convention to Combat Desertification- UNCCD): वर्ष 1994 में अपनाया गया और वर्ष 1996 में लागू हुआ।
    • यह देशों को मरुस्थलीकरण, सूखे के प्रभावों से निपटने और स्थायी भूमि प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य करता है।
  • बॉन चैलेंज: जर्मन सरकार और IUCN द्वारा वर्ष 2011 में शुरू किया गया।
    • क्षरित भूमि को पुनःस्थापित करने के लिए वैश्विक प्रयास, जिसमें भारत ने वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुनःस्थापित करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • एशिया प्रशांत वानिकी आयोग (Asia Pacific Forestry Commission-APFC) (1949): संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) का एक क्षेत्रीय आयोग, जो देशों को वन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • आर्द्रभूमि पर रामसर अभिसमय (1971): मैंग्रोव सहित आर्द्रभूमि के पारिस्थितिकी महत्त्व को मान्यता देता है तथा उनके संरक्षण और सतत् उपयोग को बढ़ावा देता है।

भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR), 2023 में उजागर की गई चुनौतियाँ

  • मध्यम सघन वन (Moderately Dense Forest-MDF) और खुले वन (Open Forest-OF) में कमी: शहरीकरण, कृषि विस्तार और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कारण विभिन्न राज्यों में MDF और OF क्षेत्रों में उल्लेखनीय कमी देखी गई।
  • पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों में वनों की कटाई: पश्चिमी घाटों में, पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों में वन क्षेत्र एक दशक में 58.22 वर्ग किलोमीटर कम हो गया है।
    • जैव विविधता हॉटस्पॉट में वन क्षेत्रों में कमी पारिस्थितिकी संतुलन और प्रजातियों के संरक्षण के लिए जोखिम उत्पन्न करती है।
  • वनाग्नि भेद्यता (Forest Fire Vulnerability): वनाग्नि की बढ़ती घटनाओं ने बड़े वन क्षेत्रों के क्षरण को बढ़ावा दिया है, जिससे जैव विविधता और पुनर्जनन क्षमता प्रभावित हुई है।
    • वर्ष 2023-24 में वनाग्नि की सबसे ज्यादा घटनाएँ जिन राज्यों में देखने को मिली वे शीर्ष तीन राज्य उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ हैं।
    • लगभग 32.06% वन ‘अत्यधिक आग-प्रवण’ के रूप में वर्गीकृत हैं।
  • वन संसाधनों पर दबाव: लकड़ी, गैर-लकड़ी वन उत्पादों (NTFP) और ईंधन की लकड़ी की बढ़ती माँग वन पारिस्थितिकी तंत्र पर अस्थिर दबाव डालती रहती है।
  • विखंडन और आवास की हानि: बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ, खनन और शहरी विस्तार, विशेष रूप से हिमालय और पश्चिमी घाट क्षेत्रों में आवास विखंडन में योगदान करते हैं।
  • प्रबंधन और निगरानी में कमी: वन क्षेत्रों में व्यापक निगरानी और प्रवर्तन तंत्र की कमी से अवैध कटाई और अतिक्रमण जैसी समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
  • अस्थायी संसाधन उपयोग: गैर-लकड़ी वन उत्पादों (NTFPs) का अत्यधिक दोहन, चराई और लकड़ी संग्रह से वनों का क्षरण होता है।
  • जैव विविधता की हानि: आवास की हानि और अवैध शिकार के कारण देशज वनस्पतियों एवं जीवों में कमी आ रही है, विशेषकर पश्चिमी घाट जैसे जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट में।
  • वन संसाधनों पर दबाव: ग्रामीण और आदिवासी समुदायों की वन उत्पादों पर अत्यधिक निर्भरता से संसाधनों का ह्रास बढ़ रहा है।
  • मरुस्थलीकरण: वनों की कटाई से मरुस्थलीकरण और मिट्टी का कटाव होता है, विशेषकर शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में।
    • पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे पश्चिमी घाट में वन क्षेत्र में समय के साथ लगातार गिरावट देखी गई है।

भारत के वनों पर मंडरा रहे खतरों से निपटने के लिए आगे की राह

  • नीति कार्यान्वयन को मजबूत करना: वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 जैसे मौजूदा वन संरक्षण कानूनों को लागू करना और अवैध कटाई एवं अतिक्रमण जैसे उल्लंघनों के लिए सख्त दंड सुनिश्चित करना।
  • सतत् वन प्रबंधन (SFM) को बढ़ावा देना: वैज्ञानिक वन प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना, जो गैर-लकड़ी वन उत्पादों (NTFP) की सतत् कटाई सहित संसाधन उपयोग के साथ संरक्षण को संतुलित करती हैं।
  • सामुदायिक भागीदारी: वन संसाधनों के सतत् उपयोग और संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से स्थानीय समुदायों और जनजातीय आबादी की भागीदारी को बढ़ाना।
  • जलवायु परिवर्तन और आक्रामक प्रजातियों का मुकाबला करना: वनों पर जलवायु प्रभावों को कम करने के लिए अनुकूल रणनीति विकसित करना, जिसमें देशी प्रजातियों के साथ पुनर्वनीकरण और लैंटाना कैमरा जैसे आक्रामक पौधों का प्रबंधन शामिल है।
  • वनीकरण और बहाली के प्रयासों का विस्तार करना: क्षतिग्रस्त परिदृश्यों को पुनर्स्थापित करने और कार्बन पृथक्करण को बढ़ाने के लिए ग्रीन इंडिया मिशन और बॉन चैलेंज जैसी पहलों को आगे बढ़ाना।
  • निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: प्रभावी निगरानी, ​​आकलन और खतरों पर प्रतिक्रिया के लिए उपग्रह इमेजरी, जीआईएस मैपिंग तथा वास्तविक समय वनाग्नि चेतावनी प्रणालियों का लाभ उठाएँ।
  • जैव विविधता हॉटस्पॉट और मैंग्रोव पर ध्यान देना: जैव विविधता को संरक्षित करने और जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लचीलापन बढ़ाने के लिए पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र जैसे पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में संरक्षण को प्राथमिकता देना।
  • जागरूकता और शिक्षा: ‘एक पेड़ माँ के नाम’ जैसे अभियानों के माध्यम से वन संरक्षण के महत्त्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष 

भारत के वन पारिस्थितिकी संतुलन, जैव विविधता और जलवायु शमन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। वनों की कटाई, क्षरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान करने के लिए मजबूत नीतियों, सामुदायिक सहभागिता और तकनीकी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। एक सतत् एवं समावेशी दृष्टिकोण भविष्य की पीढ़ियों के लिए वनों के संरक्षण और पुनर्स्थापन को सुनिश्चित करेगा।

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