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Samsul Ansari January 20, 2024 10:56 270 0
संदर्भ
एक चीन रणनीति या वन चाइना पॉलिसी को लेकर चीन के साथ बढ़े तनाव के बीच ताइवान में हाल ही में हुए चुनावों ने अमेरिका और यूरोप का ध्यान खींचा है।
संबंधित तथ्य
भारत और ताइवान संबंध
हाल के रुझान:
भारत 1950 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) को मान्यता देने वाले पहले गैर-कम्युनिस्ट देशों में से एक था, जिसने तेजी से वन-चाइना नीति का समर्थन किया और 1971 तक ताइवान द्वारा आयोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) सीट पर पीआरसी के दावे का समर्थन किया।
एक चीन नीति (One China Policy):
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग:
शिक्षा सहयोग:
सांस्कृतिक आदान-प्रदान:
राजनयिक जुड़ाव: भारत के ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। हालाँकि, ताइवान ने अपनी नई साउथबाउंड नीति के तहत व्यापार, वाणिज्य, आर्थिक सहयोग, प्रतिभा विनिमय, संसाधन साझाकरण और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में पहचाना है।
रणनीतिक साझेदार: भारत और ताइवान दोनों चीन को एक खतरे के रूप में देखते हैं, और अपनी रणनीतिक साझेदारी और सहयोग को बढ़ावा देने और मजबूत करने का प्रयास करते हैं
ताइवान और चीन-प्लस-वन (China-Plus-One Strategy) रणनीति के साथ भारत की भागीदारी: उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-linked incentive) योजना के ढांचे के भीतर ताइवान के साथ भारत की भागीदारी इसकी व्यापक चीन-प्लस-वन रणनीति के अनुरूप है।
इस सहभागिता के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
भारत पर हालिया चुनाव का प्रभाव:
चुनौतियाँ:
आगे की राह:
ताइवान के प्रति भारत का रुख राजनयिक दोराहे पर है, जहाँ आंतरिक और बाहरी कारक सक्रिय जुड़ाव को बढ़ावा देने की मांग करते हैं।
निष्कर्ष: भारत और ताइवान को चीन की छाया से दूर, सुसंगत और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। दोनों लोकतंत्रों के बीच संबंध सहयोग (विशेष रूप से व्यापार, प्रौद्योगिकी और लोगों से लोगों के आदान-प्रदान में) के नए रास्ते खोलने हेतु कार्य करना चाहिये।
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