आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने शीर्ष दस व्यापारिक साझेदारों में से नौ के साथ व्यापार घाटा दर्ज किया है।
संबंधित तथ्य
व्यापार घाटा (Trade Deficit): वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का कुल व्यापार घाटा पिछले वित्तीय वर्ष के 264.9 बिलियन डॉलर के मुकाबले घटकर 238.3 बिलियन डॉलर हो गया है।
घाटे में वृद्धि (Increase in Deficit): वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 की तुलना में चीन (85 बिलियन डॉलर), रूस (57.2 बिलियन डॉलर), कोरिया (14.71 बिलियन डॉलर) और हांगकांग (12.2 बिलियन डॉलर) के साथ घाटे में वृद्धि दर्ज की गई है।
घाटे में कमी (Reduction in Deficit): संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, रूस, इंडोनेशिया और इराक के साथ व्यापार घाटा कम हुआ है।
व्यापार अधिशेष (Trade Surplus): वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 36.74 बिलियन डॉलर है।
भारत ने ब्रिटेन, बेल्जियम, इटली, फ्राँस और बांग्लादेश जैसे अन्य भागीदारों के साथ भी व्यापार अधिशेष दर्ज किया है।
सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार: वित्तीय वर्ष 2023-24 में चीन 118.4 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ अमेरिका को पीछे छोड़कर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
वाशिंगटन वित्तीय वर्ष 2021-22 और वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान नई दिल्ली का शीर्ष व्यापारिक भागीदार था।
मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement): भारत ने अपने चार शीर्ष व्यापारिक भागीदारों यानी सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, कोरिया और इंडोनेशिया (एशियाई ब्लॉक के हिस्से के रूप में) के साथ मुक्त व्यापार समझौता स्थापित किया है।
व्यापार घाटा (Trade Deficit)
व्यापार घाटा को नकारात्मक व्यापार संतुलन (Balance of Trade- BoT) के रूप में भी जाना जाता है। यह स्थिति उत्पन्न होती है, जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक हो जाता है।
व्यापार संतुलन की गणना विभिन्न श्रेणियों के लेन-देन जैसे माल, सेवाएँ, वस्तु-सेवाएँ और अंतरराष्ट्रीय लेन-देन (जैसे- चालू खाता, पूँजी खाता और वित्तीय खाता) के लिए की जा सकती है।
व्यापार घाटे में कटौती के लिए निर्यात को बढ़ावा देना, अनावश्यक आयात को कम करना, घरेलू उद्योगों को विकसित करना और मुद्रा एवं ऋण प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना आवश्यक है।
लाभ
उपभोग को बढ़ावा देना: व्यापार घाटा की स्थिति किसी देश को अपने उत्पादन से अधिक उपभोग करने की अनुमति देती है तथा अल्पावधि में देशों को माल की कमी एवं अन्य आर्थिक समस्याओं से बचने में सहायता कर सकती है।
तुलनात्मक लाभ: यह देशों को तुलनात्मक लाभ प्रदान करता है क्योंकि देश प्रत्येक वस्तु के उत्पादन के बारे में चिंता करने के बजाय अपनी क्षमता और संसाधनों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है।
चिंताएँ
मुद्रा का अवमूल्यन (Depreciation of Currency): व्यापार घाटा में निरंतर वृद्धि देश की मुद्रा के अवमूल्यन का कारण बन सकता है क्योंकि कई जरूरी वस्तुओं के आयात के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। मुद्रा का अवमूल्यन आयात को अधिक महँगा बनाता है, जिससे घाटा में और वृद्धि होती है।
अधिक उधार (More Borrowing): देश को आयात को पूरा करने के लिए विदेशी ऋणदाताओं से अधिक उधार लेने की आवश्यकता होती है, जिससे बाहरी ऋण में वृद्धि होगी, फलस्वरूप विदेशी मुद्रा भंडार कम हो जाएगा।
निवेश की भावना (Investment Sentiments): व्यापार घाटा में वृद्धि निवेशकों को आर्थिक अस्थिरता का संकेत देती है, परिणामस्वरूप विदेशी निवेश में कमी आएगी।
निर्भरता: द्विपक्षीय व्यापार घाटा एक बड़ा मुद्दा बन जाता है, जब कोई देश महत्त्वपूर्ण आपूर्ति के लिए दूसरे पर अत्यधिक निर्भर हो जाता है।
उदाहरण के रूप में, महत्त्वपूर्ण दुर्लभ खनिजों और सक्रिय फार्मा सामग्री के लिए भारत की चीन पर उल्लेखनीय निर्भरता।
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