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भारत-अमेरिका व्यापार तनाव

Lokesh Pal August 06, 2025 02:50 7 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के साथ भारत के व्यापार (विशेषकर तेल खरीद को लेकर) को चिंता का विषय बताते हुए भारतीय आयात पर 25% टैरिफ लगाया है।

  • इस परिप्रेक्ष्य में भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पश्चिमी देशों के दोहरे चरित्र को उजागर किया है तथा अपनी ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं पर जोर दिया है।

उठाए गए प्रमुख मुद्दे

  • टैरिफ अधिरोपण
    • ट्रंप का आरोप: भारत, रूस से तेल खरीद कर दोबारा उसे दुनिया के बाजार में बेचकर लाभ कमा रहा है साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध की विभीषिका की अनदेखी कर रहा है।
    • शुल्क संबंधी निर्णय: भारतीय आयातों पर 25% शुल्क और अतिरिक्त दंड 7 अगस्त से प्रभावी होगा।
    • शुल्क संबंधी भ्रांति: अमेरिकी शुल्क तकनीकी रूप से अमेरिकी आयातकों द्वारा चुकाए जाते हैं, भारत द्वारा नहीं।
  • रूस से भारत का तेल आयात: भारतीय विदेश मंत्रालय का दृष्टिकोण
    • पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं के हटने पर भारत ने रूसी तेल का आयात प्रारंभ किया।
    • वैश्विक ऊर्जा बाजारों को स्थिर करने के लिए अमेरिका द्वारा आयात को प्रोत्साहित किया गया।
    • इसका उद्देश्य भारतीय उपभोक्ताओं के लिए वहनीय और विश्वसनीय ऊर्जा सुनिश्चित करना था।

भारत के प्रतिवाद

  • यूरोपीय संघ और अमेरिका का रूस के साथ भारत की तुलना में व्यापार अधिशेष
    • यूरोपीय संघ-रूस व्यापार (वर्ष 2024): €67.5 बिलियन (वस्तुएँ) + €17.2 बिलियन (सेवाएँ, वर्ष 2023)।
    • रूस से अमेरिका का आयात: यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (परमाणु उद्योग के लिए उपयोगी), पैलेडियम (EV के लिए उपयोगी), उर्वरक एवं रसायन।
  • सामरिक और आर्थिक स्वायत्तता
    • भारत स्वतंत्र विदेश नीति और व्यापार विकल्पों के अपने अधिकार का बचाव करता है।
    • रूस के साथ यूरोपीय संघ और अमेरिका के व्यापार की तुलना में असंगत लक्ष्यीकरण पर प्रकाश डालता है।
  • वैश्विक ऊर्जा संदर्भ
    • रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद ऊर्जा बाजार में अस्थिर उत्पन्न हुई।
    • परिणामतः भारत ने घरेलू आर्थिक स्थिरता और उपभोक्ता कल्याण को प्राथमिकता दी।
    • रूसी तेल ने वैश्विक बाजार में तेल मूल्य संबंधी तनावों को कम करने में मदद की।

भारत-अमेरिका व्यापार तनाव के आर्थिक प्रभाव

  • द्विपक्षीय व्यापार प्रवाह में व्यवधान: भारतीय वस्तुओं पर 25% टैरिफ, वर्ष 2024 में अमेरिका के साथ भारत के 45.7 बिलियन डॉलर के व्यापार अधिशेष को कम कर सकता है।
    • वस्त्र, आभूषण और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों को मूल्य वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होगी।
  • टैरिफ वृद्धि से प्रभावित निर्यात क्षेत्र: टैरिफ वृद्धि से अमेरिका को भारत का एल्युमीनियम और कपड़ा निर्यात काफी प्रभावित हो सकता है, जिससे प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो सकती है।
    • 10.8 बिलियन डॉलर का कपड़ा क्षेत्र विशेष रूप से असुरक्षित है।
  • ऊर्जा क्षेत्र पर प्रभाव: उच्च टैरिफ अमेरिकी तेल आयात की लागत बढ़ा सकते हैं, जिसमें उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
    • इससे भारत के लिए लागत बढ़ाए बिना ऊर्जा सुरक्षा बनाए रखना जटिल हो जाएगा।
  • आर्थिक वृद्धि और GDP पर प्रभाव: टैरिफ से वित्त वर्ष 2026 में भारत की GDP में 0.3% की कमी आने का अनुमान है।
    • इसका मुख्य रूप से अल्पावधि में मुद्रास्फीति और औद्योगिक उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा।
  • आपूर्ति शृंखलाओं में परिवर्तन और बाजार विविधीकरण: अमेरिकी टैरिफ के कारण भारत चीन, ब्राजील और यूरोपीय संघ के साथ अपनी व्यापारिक साझेदारियों में विविधता लाने पर विचार कर सकता है।
    • इस परिवर्तन से अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
  • अल्पकालिक आर्थिक असंतुलन: MSME क्षेत्र और कृषि जैसे उद्योगों को टैरिफ का सर्वाधिक परिणाम भुगतना पड़ेगा।
    • इससे रोजगार में कमी आ सकती है और वृद्धि दर कम हो सकती है, विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में।

भारत-अमेरिका व्यापार तनाव के रणनीतिक निहितार्थ

  • ऊर्जा और रक्षा संबंधों पर भू-राजनीतिक तनाव: अमेरिका, भारत की रूस से ऊर्जा खरीद और रक्षा संबंधों को चिंताजनक मानता है, जिससे तनाव बढ़ता है।
    • पश्चिम और रूस दोनों के साथ संबंध बनाकर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की रणनीति ने अमेरिका के साथ उसके संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है।

  • भारत की सामरिक स्वायत्तता और वैश्विक स्थिति: भारत अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए रूस, ईरान और अमेरिका के साथ एक साथ सक्रिय भूमिका में है।
    • यह संतुलन प्रायः टकराव का कारण बनता है, विशेषकर इसलिए क्योंकि अमेरिका ऐसे संबंधों को वैश्विक भू-राजनीति में अपनी स्थिति को कमजोर करने वाला कदम मानता है।
  • भारत की वैश्विक भूमिका को लेकर अमेरिका की चिंताएँ: अमेरिका ने भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव, विशेषकर ब्रिक्स के अंतर्गत और ईरान व रूस के साथ उसके संबंधों को लेकर चिंता व्यक्त की है।
    • भारत की बढ़ती वैश्विक दृढ़ता, वैश्विक व्यवस्था और उसके अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व के बारे में अमेरिकी दृष्टिकोण को चुनौती देती है।
  • भारत-अमेरिका रक्षा और सामरिक सहयोग पर प्रभाव: हालाँकि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंध बढ़े हैं, लेकिन ये तनाव सैन्य सहयोग को धीमा कर सकते हैं या हथियारों के व्यापार में नई बाधाएँ खड़ी कर सकते हैं।
    • शुल्क मौजूदा रक्षा समझौतों या प्रमुख अमेरिकी रक्षा प्लेटफॉर्मों की खरीद को बाधित कर सकते हैं।
    • 20 अरब डॉलर के रक्षा व्यापार में अपाचे हेलीकॉप्टर जैसी प्रमुख सैन्य प्रणालियों के लिए देरी या उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है।
  • आर्थिक दबाव और वैश्विक व्यापार संरेखण का जोखिम: ये टैरिफ अमेरिका की ओर से भारत पर आर्थिक दबाव डालने का प्रयास हैं, ताकि वह रूस और व्यापार संबंधी नीतियों पर अमेरिकी दृष्टिकोण के अधिक करीब आ सके।
    • इससे भारत अपने व्यापक व्यापार संरेखण पर पुनर्विचार कर सकता है और संभवतः अमेरिका के दायरे से बाहर नए व्यापार साझेदारों की तलाश कर सकता है।
  • चीन-अमेरिका-भारत त्रिकोणीय संबंध: जैसे-जैसे अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के निकट आता है, चीन के प्रतिकार के रूप में भारत की भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण होती जाती है।
    • यह उभरती हुई त्रिकोणीय गतिशीलता भारत-अमेरिका संबंधों को जटिल बनाती है क्योंकि हिंद-प्रशांत और उसके बाहर भारत के रणनीतिक हित अमेरिकी नीतियों से टकराते हैं।
  • विदेश नीति पर घरेलू राष्ट्रवाद का प्रभाव: अमेरिका और भारत दोनों में राष्ट्रवादी भावनाओं का उदय विदेश नीति को आकार देता है, जिससे व्यापार और रक्षा तनाव बढ़ता है।
    • दोनों देशों की घरेलू राजनीति ऐसे रणनीतिक टकरावों को बढ़ावा देती रह सकती है, जिससे कूटनीतिक लचीलापन सीमित हो सकता है।

अमेरिका द्वारा भारत पर पूर्व प्रतिबंध और कर अधिरोपण

  • वर्ष 1974, शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (Peaceful Nuclear Explosion- PNE): भारत ने वर्ष 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण, स्माइलिंग बुद्धा’ किया, जिससे परमाणु प्रसार को लेकर अमेरिका की चिंताएँ बढ़ गईं।
    • प्रतिबंध
      • विदेशी सहायता अधिनियम के तहत अमेरिकी आर्थिक और सैन्य सहायता का निलंबन।
      • अमेरिकी दबाव में परमाणु निर्यात को नियंत्रित करने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) का गठन किया गया।
  • वर्ष 1998, पोखरण-II परमाणु परीक्षण: भारत ने मई 1998 में पाँच परमाणु परीक्षण किए, जिसकी वैश्विक निंदा हुई।
    • शस्त्र निर्यात नियंत्रण अधिनियम के ग्लेन संशोधन के तहत आर्थिक, सैन्य और तकनीकी सहयोग को लक्षित करते हुए प्रतिबंध लगाए गए।
  • धारा 232 (व्यापार विस्तार अधिनियम, 1962) टैरिफ (2018): अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए भारत सहित वैश्विक स्तर पर स्टील (25%) और एल्युमीनियम (10%) के आयात पर टैरिफ लगाया।
    • भारत के स्टील और एल्युमीनियम निर्यात पर असर पड़ा, जिसका मूल्य लगभग 1 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष था।
  • सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalized System of Preferences – GSP) की वापसी (2019): जून 2019 में, अमेरिका ने सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (GSP) के लिए भारत की पात्रता समाप्त कर दी।
    • GSP ने कुछ भारतीय वस्तुओं के लिए शुल्क-मुक्त प्रवेश की अनुमति दी थी, लेकिन अमेरिका ने भारत की व्यापार बाधाओं और अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार तक पहुँच में कमी को इसे रद्द करने का कारण बताया।
  • भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध: वर्ष 2018 में, अमेरिका ने काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरज थ्रू सेंक्शंस एक्ट’ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) के तहत रूस से रक्षा प्रणालियाँ खरीदने वाली भारतीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए।
    • ये प्रतिबंध भारत द्वारा रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणालियों की खरीद के कारण लगाए गए थे।

भारत-अमेरिका व्यापार एवं आर्थिक संबंध

  • द्विपक्षीय व्यापार अवलोकन
    • कुल व्यापार: वर्ष 2023 में 190.1 बिलियन डॉलर, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन जाएगा।
    • भारत का अमेरिका को निर्यात: 83.8 बिलियन डॉलर (वर्ष 2023), जिसमें व्यापारिक वस्तुएँ (83.7 बिलियन डॉलर) और सेवाएँ (36.3 बिलियन डॉलर) शामिल हैं।
    • अमेरिका का भारत को निर्यात: 69.98 बिलियन डॉलर (वर्ष 2023), पिछले वर्षों की तुलना में निर्यात में गिरावट के साथ।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
    • भारत के लिए अमेरिका प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्रोत: तीसरा सबसे बड़ा स्रोत, वित्त वर्ष 2023-24 में 4.99 बिलियन डॉलर का योगदान, कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 9%।
    • अमेरिका में भारतीय निवेश: 40 बिलियन डॉलर से अधिक तथा 4,25,000 प्रत्यक्ष रोजगार सृजित।
  • निवेश सहयोग
    • DFC साझेदारी: भारत ने इक्विटी निवेश और तकनीकी सहायता के लिए अमेरिकी विकास वित्त निगम के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
    • लघु एवं मध्यम उद्यम (SME): पारस्परिक यात्राओं और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान के माध्यम से वैश्विक भागीदारी में सुधार हेतु अगस्त 2024 में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
  • ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी
    • जलवायु एवं स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा: नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण और उभरती प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित।
    • ऊर्जा व्यापार: वित्त वर्ष 2023-24 में 13.6 बिलियन डॉलर के व्यापार के साथ अमेरिका, भारत का छठा सबसे बड़ा ऊर्जा साझेदार है।

भारत-अमेरिका संबंधों में व्यापार वार्ता तंत्र

  • भारत-अमेरिका व्यापार नीति मंच (TPF): वर्ष 2005 में स्थापित TPF, भारत और अमेरिका के मध्य बाजार पहुँच तथा व्यापार संबंधी मुद्दों पर विचार-विमर्श करता है।
    • 14वाँ TPF जनवरी 2024 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापार विवादों को सुलझाना और द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाना था।
  • भारत-अमेरिका वाणिज्यिक वार्ता: भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री और अमेरिकी वाणिज्य सचिव की सह-अध्यक्षता में, वाणिज्यिक वार्ता मानकों, व्यापार सुगमता और यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों में वाणिज्यिक सहयोग को शामिल करती है।
    • पाँचवाँ वाणिज्यिक संवाद वर्ष 2023 में नई दिल्ली में और छठा वर्ष 2024 में वाशिंगटन डीसी में आयोजित किया गया था।
  • भारत-अमेरिका CEO फोरम: यह फोरम दोनों देशों के CEO को आर्थिक अवसरों, व्यापार बाधाओं और सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा करने के लिए एक साथ लाता है।
    • यह मंच वाणिज्यिक वार्ता के दौरान अलग से बैठक करता है, जिसकी नवीनतम बैठक 2 अक्टूबर, 2024 को वाशिंगटन डीसी में आयोजित की गई थी।
  • भारत-अमेरिका सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communications Technology- ICT) वार्ता: इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में स्थापित एक कार्य समूह है।
    • नवीनतम बैठक अक्टूबर 2024 में नई दिल्ली में आयोजित की गई थी, जिसमें प्रौद्योगिकी सहयोग और डिजिटल व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • भारत-अमेरिका आर्थिक एवं वित्तीय भागीदारी (Economic and Financial Partnership- EFP): वित्त मंत्री और अमेरिकी वित्त मंत्री के सह-नेतृत्व में आयोजित यह वार्ता वित्तीय और नियामक मामलों पर केंद्रित है।
    • 9वीं EFP मंत्रिस्तरीय वार्ता नवंबर 2022 में नई दिल्ली में हुई, जिसके बाद 11वीं वित्तीय एवं नियामक वार्ता मार्च 2023 में हुई।
  • भारत-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF): भारत मई 2022 में IPEF में शामिल हुआ, जिसका उद्देश्य आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन को मजबूत करना, एक निष्पक्ष अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना है।
    • IPEF की मंत्रिस्तरीय बैठकें मार्च और जून 2024 में आयोजित की गईं, जिसमें भारत ने IPEF स्तंभ 3, 4 और व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में आगे की राह 

  • व्यापार वार्ता पर ध्यान केंद्रित करना: भारत तथा अमेरिका को व्यापार विवादों, विशेष रूप से 25% टैरिफ लगाने के मुद्दे को सुलझाने के लिए रचनात्मक वार्ता करनी होगी।
    • दोनों देशों के बाजारों तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने के लिए द्विपक्षीय व्यापार समझौतों का विस्तार किया जा सकता है।
  • व्यापार साझेदारों में विविधता लाना: भारत को अमेरिकी बाजार पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए चीन, ब्राजील और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ अपने व्यापार संबंधों में विविधता लानी चाहिए।
  • रक्षा एवं सामरिक संबंधों को मजबूत करना: आर्थिक तनाव के बावजूद दोनों देशों को रक्षा सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और रक्षा खरीद दीर्घकालिक सामरिक संबंधों को बनाए रखने में मदद करेंगे।
  • ऊर्जा सहयोग: ऊर्जा सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है और भारत व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए अमेरिका से तेल और गैस का आयात बढ़ा सकता है।
    • दोनों देशों को नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा भंडारण जैसे स्वच्छ ऊर्जा सहयोग को बढ़ाने पर कार्य करना चाहिए।
  • लक्षित रियायतों के साथ टैरिफ विवादों का समाधान: भारत को कृषि और MSMEs जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की सुरक्षा करते हुए अमेरिकी चिंताओं को दूर करने के लिए रणनीतिक टैरिफ रियायतें देने पर विचार करना चाहिए।
  • बहुपक्षीय मंचों का लाभ उठाना: भारत वैश्विक व्यापार सुधारों का समर्थन करने के लिए IPEF और विश्व व्यापार संगठन जैसे मंचों का उपयोग कर सकता है।
    • आपूर्ति शृंखलाओं और स्वच्छ ऊर्जा पर बहुपक्षीय सहयोग अमेरिकी शुल्कों पर निर्भरता को भी कम कर सकता है।
  • घरेलू आर्थिक सुधार: भारत को अपनी विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिए घरेलू आर्थिक सुधारों को लागू करना जारी रखना चाहिए कि उद्योग भविष्य में किसी भी व्यापारिक परिवर्तन के लिए तैयार रहें।
    • इसमें बुनियादी ढाँचे में सुधार और मूल्यवर्द्धित निर्यात का विस्तार शामिल है।

निष्कर्ष

भारत-अमेरिका के मध्य चल रहे व्यापारिक तनाव, भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों से प्रभावित वैश्विक व्यापार संबंधों की जटिलताओं को दर्शाते हैं। जोखिमों को कम करने के लिए, दोनों देशों को रणनीतिक संवाद में शामिल होना चाहिए, आपसी चिंताओं का समाधान करना चाहिए और विविध साझेदारियों की तलाश करनी चाहिए, साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी आर्थिक और सुरक्षा प्राथमिकताएँ बनी रहें।

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