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भारत-अमेरिका 10-वर्षीय रक्षा साझेदारी ढाँचा

Lokesh Pal November 03, 2025 03:03 36 0

संदर्भ

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मलेशिया के कुआलालंपुर में आयोजित 12वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-प्लस) के अवसर पर प्रमुख रक्षा साझेदारी (2025-2035) के लिए 10-वर्षीय रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए, जो उनके रणनीतिक सहयोग में एक नए चरण का प्रतीक है।

संबंधित तथ्य

यह ढाँचा वर्ष 2005-2015 और वर्ष 2015-2025 के पूर्व 10-वर्षीय समझौतों का उत्तरवर्ती है, जो नीतिगत निरंतरता सुनिश्चित करता है और सीमित रक्षा सहयोग से व्यापक रणनीतिक साझेदारी की ओर एक सतत् विकास सुनिश्चित करता है।

भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग का विकास

  • असहज संबंधों से रणनीतिक जुड़ाव तक: 2000 के दशक के आरंभ तक, शीतयुद्ध की विरासत के कारण भारत-अमेरिका रक्षा संबंध सीमित रहे हैं।
    • वर्ष 2005 के बाद, असैन्य परमाणु समझौते और नियमित उच्च-स्तरीय रणनीतिक वार्ताओं के उपरांत, रक्षा सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का एक केंद्रीय स्तंभ बन गया।
  • शीर्ष समन्वय: 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता एक शीर्ष संस्थागत तंत्र के रूप में कार्य करती है, जो दोनों देशों के रक्षा और विदेश नीति लक्ष्यों को बेहतर रणनीतिक सामंजस्य के लिए संरेखित करती है।
    • भारत-अमेरिका 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच एक उच्च-स्तरीय रणनीतिक वार्ता है।
  • वर्ष 2015 से संस्थागत ढाँचे: रक्षा सहयोग पर वर्ष 2013 की संयुक्त घोषणा और वर्ष 2015 के ढाँचे के समझौते ने एक संरचित रोडमैप प्रदान किया।
  • हस्ताक्षरित प्रमुख आधारभूत समझौतों में शामिल हैं:-
    • LEMOA (लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट, 2016): सैन्य रसद और ईंधन आपूर्ति संबंधी स्थानों तक पारस्परिक पहुँच को सक्षम बनाता है।
    • प्रमुख रक्षा साझेदार (2016): अमेरिका ने वर्ष 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार (MDP) के रूप में नामित किया, जिससे उन्नत तकनीकों और गहन रणनीतिक जुड़ाव तक दीर्घकालिक पहुँच औपचारिक हो गई।
    • COMCASA (संचार संगतता और सुरक्षा समझौता, 2018): एन्क्रिप्टेड संचार प्रणालियों के सुरक्षित, वास्तविक समय के आदान-प्रदान की अनुमति देता है।
    • औद्योगिक सुरक्षा समझौता (ISA, 2019): गोपनीय रक्षा सूचनाओं की सुरक्षा करता है और भारतीय एवं अमेरिकी निजी उद्योगों के बीच सुरक्षित सहयोग को सुगम बनाता है।
    • BECA (बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट, 2020): स्थितिजन्य जागरूकता बढ़ाने के लिए उन्नत भू-स्थानिक, मानचित्रण और उपग्रह डेटा के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
    • SOSA (आपूर्ति सुरक्षा व्यवस्था, 2024): महत्त्वपूर्ण सामग्रियों और प्रौद्योगिकियों में अनुकूलित और सुरक्षित रक्षा आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करता है।
      • उत्तरवर्ती समझौतों, जैसे कि संपर्क अधिकारी समझौते, ने दोनों सेनाओं के बीच परिचालन समन्वय तथा अंतर-संचालन को और मजबूत किया।
  • रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण (STA–Tier 1, 2018): इसने भारत को संवेदनशील दोहरे उपयोग वाली तकनीकों तक लाइसेंस-मुक्त पहुँच प्रदान करके सहयोग को और बढ़ावा दिया, जिससे विश्वास और दीर्घकालिक समन्वय पर जोर दिया गया।
  • एक दशक-व्यापी दृष्टिकोण की ओर: नया वर्ष 2025 का ढाँचा, इन तंत्रों को एक दीर्घकालिक रणनीतिक ढाँचे में एकीकृत करता है, जिसमें रक्षा उद्योग, रसद, खुफिया जानकारी और संयुक्त अनुसंधान शामिल हैं।

रक्षा साझेदारी ढाँचे की मुख्य विशेषताएँ

  • एकीकृत रणनीतिक विजन: उत्पादन, रसद, सूचना साझाकरण और नवाचार में सहयोग का मार्गदर्शन करने वाला 10-वर्षीय नीतिगत रोडमैप स्थापित करता है।
    • निरंतर सहयोग के लिए खंडित पहलों को एक सुसंगत ढाँचे में समेकित करना।
  • औद्योगिक एवं तकनीकी सहयोग: ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के अंतर्गत उन्नत प्लेटफॉर्मों के उत्पादन और विकास को बढ़ावा देता है।
    • एयरोस्पेस, ड्रोन और नौसेना प्रणालियों में आपूर्ति-शृंखला एकीकरण और संयुक्त उद्यमों का विस्तार करना।
    • रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप: रक्षा औद्योगिक सहयोग रोडमैप (2023) का उद्देश्य जेट इंजन, ड्रोन और अंतरिक्ष प्रणालियों जैसे क्षेत्रों में सह-उत्पादन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में तेजी लाना है और उद्योग को रणनीतिक प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करना है।
  • भारत एक ‘रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल’ (Maintenance, Repair, and Overhaul- MRO) केंद्र के रूप में: इसका उद्देश्य भारत को अमेरिकी विमानों, जहाजों और प्रणालियों के लिए एक क्षेत्रीय MRO केंद्र बनाना है।
    • इससे रोजगार, राजस्व और भारत-प्रशांत क्षेत्र में साझेदार देशों के प्लेटफॉर्मों की सेवा करने की भारत की क्षमता में वृद्धि होगी।
  • परिचालन अंतर-संचालन: ‘युद्ध अभ्यास’, ‘मालाबार’ तथा ‘टाइगर ट्रायंफ’ जैसे त्रि-सैन्य संयुक्त सैन्य अभ्यासों को शामिल किया जा रहा है, जो पारंपरिक स्थलीय आयामों से आगे बढ़ते हुए वायु, साइबर तथा अंतरिक्ष जैसे नवीन युद्धक क्षेत्रों तक विस्तृत हो चुके हैं।
    • भारत के शस्त्रागार में अब C-130J, C-17, P-8I, अपाचे, चिनूक और MH-60R सीहॉक्स शामिल हैं, जो COMCASA-सुरक्षित प्रणालियों के अंतर्गत संयुक्त मिशन तत्परता और अंतर-संचालन को बढ़ाते हैं।
    • यह तीनों सेनाओं के समन्वय, संयुक्त रसद और खुफिया संचलन को प्रोत्साहित करता है।
  • बहुपक्षीय एकीकरण और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रीकरण: नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए द्विपक्षीय ढाँचे को क्वाड, आसियान और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) के उद्देश्यों के साथ संरेखित करता है।
    • BECA और LEMOA के अंतर्गत सूचना-साझाकरण नेटवर्क को बढ़ाता है, जिससे क्वाड सदस्यों के बीच सामूहिक तत्परता सुनिश्चित होती है।
    • यह बेहतर साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष सहयोग और संयुक्त निवारक तंत्रों के माध्यम से चीन की ‘ग्रे-जोन’ गतिविधियों का समाधान करता है।

12वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक– प्लस (ADMM-Plus) के बारे में

  • भारत के संबोधन का विषय: भारत ने ‘ADMM-प्लस पर 15 वर्षीय आगे की राह तैयार करना’ विषय पर बात की, जिसमें रक्षा प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा में सहयोग पर प्रकाश डाला गया।
  • ADMM-प्लस में भारत की भूमिका: भारत, मलेशिया के साथ आतंकवाद-निरोध पर विशेषज्ञ कार्य समूह (2024-2027) का सह-अध्यक्ष है।
    • परिचालन संबंधी अंतर-संचालन क्षमता में सुधार के लिए दूसरा आसियान-भारत समुद्री अभ्यास (AIME) 2026 में आयोजित किया जाना है।
  • चर्चा के प्रमुख क्षेत्र: आतंकवाद-निरोध, समुद्री क्षेत्र जागरूकता, साइबर और अंतरिक्ष सुरक्षा, मानवीय सहायता और रक्षा उद्योग में सहयोग को मजबूत करना।
  • परिणाम: बैठक में आसियान की केंद्रीयता की पुष्टि की गई, बहुपक्षीय रक्षा सहयोग को प्रोत्साहित किया गया और एक स्वतंत्र, मुक्त और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत के साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया गया।

आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ADMM-Plus) के बारे में 

  • प्रकृति और उद्देश्य: ADMM-प्लस आसियान के अंतर्गत सर्वोच्च रक्षा परामर्शदात्री और सहयोगात्मक तंत्र है, जिसका उद्देश्य संरचित रक्षा संवाद और व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और आपसी विश्वास को बढ़ावा देना है।
  • उद्घाटन बैठक: पहला ADMM-प्लस 12 अक्टूबर, 2010 को हनोई, वियतनाम में आयोजित किया गया था।
  • आवृत्ति: यह बैठक वर्ष 2017 से प्रतिवर्ष आयोजित की जाती रही है, जिससे सदस्य देशों के बीच निरंतर जुड़ाव और समन्वय सुनिश्चित होता है।
  • संरचना: इसमें आसियान के सदस्य देश और 8 संवाद साझेदार (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड) शामिल हैं।
    • आसियान सदस्य: आसियान देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, तिमोर-लेस्ते और वियतनाम शामिल हैं।
      • पूर्वी तिमोर (तिमोर-लेस्ते) आधिकारिक तौर पर आसियान का 11वाँ सदस्य बन गया है, जो वर्ष 1999 में कंबोडिया के प्रवेश के बाद से इस समूह का पहला विस्तार है।
  • मुख्य उद्देश्य: इस तंत्र का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ाना, रक्षा कूटनीति को बढ़ावा देना और आसियान तथा उसके सहयोगियों के बीच पारदर्शिता एवं विश्वास निर्माण को मजबूत करना है।
  • सहयोग के प्रमुख क्षेत्र: यह सात प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है:- समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध, मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR), शांति अभियान, सैन्य चिकित्सा, मानवीय प्रतिक्रिया और साइबर सुरक्षा।
  • ADMM के साथ जुड़ाव: ADMM-प्लस, आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) के अंतर्गत कार्य करता है, जो स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए आसियान का प्राथमिक रक्षा नीति मंच है।
  • भारत का सहयोग: भारत वर्ष 1992 में एक संवाद भागीदार बना, जिससे रक्षा और सुरक्षा सहयोग में आसियान के साथ जुड़ाव गहरा हुआ।
  • भारत की भूमिका: भारत अपनीएक्ट ईस्ट’ नीति और इंडो-पैसिफिक’ विजन के तहत समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध और क्षमता निर्माण में सक्रिय रूप से योगदान देता है।
  • वर्तमान भूमिका (2024-2027): भारत, मलेशिया के साथ आतंकवाद-निरोध पर विशेषज्ञों के कार्य समूह का सह-अध्यक्ष है।
  • भविष्य की गतिविधियाँ: दूसरा आसियान-भारत समुद्री अभ्यास (AIME), 2026 में आयोजित किया जाएगा, जो भारत के बढ़ते परिचालन सामंजस्य और क्षेत्रीय नेतृत्व को प्रदर्शित करेगा।

भारत के लिए महत्त्व

  • एक्ट ईस्ट नीति’ को सशक्त बनाना: यह मंच आसियान के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को मजबूत करता है, उसकी हिंद-प्रशांत कूटनीति को मजबूत करता है और सुरक्षा सहयोग का विस्तार करता है।
  • समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता: LEMOA और BECA के अंतर्गत सहयोग भारत की समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) तथा हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक व्यापक सुरक्षा प्रदाता के रूप में कार्य करने की क्षमता में सुधार करता है।
  • आतंकवाद-रोधी सहयोग: आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञों के कार्य समूह की सह-अध्यक्षता सूचना-साझाकरण, खुफिया जानकारी और संयुक्त अभ्यासों पर समन्वय को गहरा करती है।
  • हिंद-प्रशांत सहयोग: क्वाड के अंतर्गत भारत की साझेदारियों के साथ संरेखित होता है और एक स्वतंत्र एवं खुले हिंद-प्रशांत के उसके दृष्टिकोण का समर्थन करता है, जो आसियान की केंद्रीयता को बनाए रखता है।
  • रक्षा औद्योगिक और तकनीकी संबंध: सह-विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त विनिर्माण को प्रोत्साहित करता है, जो भारत की आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ नीतियों का पूरक है।
  • कूटनीतिक और रणनीतिक लाभ: भारत को आसियान और अन्य प्रमुख शक्तियों के बीच एक सेतु के रूप में स्थापित करता है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा, संकट प्रतिक्रिया और आपूर्ति-शृंखला लचीलेपन में योगदान देता है।
  • भविष्य का दृष्टिकोण: ADMM-प्लस में भारत की सक्रिय भूमिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बहुपक्षीय रक्षा सहयोग, क्षमता निर्माण और रणनीतिक अभिसरण को बढ़ावा देती रहेगी।

सामरिक महत्त्व

  • क्षेत्रीय स्थिरता की आधारशिला: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में निवारक ढाँचे को मजबूत करता है और क्षेत्रीय दमनकारी व्यवहार के विरुद्ध समुद्री संतुलन सुनिश्चित करता है।
  • रणनीतिक अभिसरण को गहरा करना: आतंकवाद-निरोध, समुद्री सुरक्षा और तकनीकी नवाचार में सामंजस्य स्थापित करता है, क्रेता-विक्रेता से संयुक्त क्षमता निर्माण की ओर अग्रसर होता है।
  • तकनीकी बढ़त और रक्षा आधुनिकीकरण: तेजस Mk-2 के लिए GE F-414 जेट इंजन तथा 31 MQ-9B HALE ड्रोन जैसी उच्च-प्रौद्योगिकीय परियोजनाएँ भारत–अमेरिका रक्षा औद्योगिक सहयोग में सह-उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी-साझेदारी की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के रूप में उभर रही हैं।
    • ये अमेरिकी निर्यात कानूनों के तहत प्रतिबंधित अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों तक भारत की पहुँच का विस्तार करती हैं।
  • आर्थिक और रक्षा-व्यापार आयाम: वर्ष 2007 से वर्तमान में द्विपक्षीय रक्षा व्यापार 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है, जिससे अमेरिका भारत के शीर्ष तीन रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया है।
    • यह रक्षा ढाँचा संचालित व्यापार संवादों का पूरक है और संभावित रूप से टैरिफ एवं GSP से संबंधित मुद्दों के समाधान में सहायता कर सकता है।
    • इस प्रकार, रक्षा सहयोग व्यापक आर्थिक संबंधों में विश्वास बढ़ाने का कार्य करता है।
  • समुद्री क्षेत्र की जागरूकता को बढ़ाना: हिंद महासागर में वास्तविक समय में खुफिया जानकारी साझा करने और रसद पहुँच को मजबूत करता है।
    • भारत की क्षेत्रीय निगरानी और निवारक क्षमता में सुधार करता है, जिससे एक व्यापक सुरक्षा प्रदाता के रूप में इसकी स्थिति मजबूत होती है।

नवाचार और उभरते क्षेत्र

  • इंडस-एक्स (INDUS-X) (2023): भारत-अमेरिका रक्षा त्वरण पारिस्थितिकी-तंत्र स्टार्ट-अप्स, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और निजी उद्योग को AI, अंतरिक्ष तथा रोबोटिक्स में अत्याधुनिक प्रणालियों के सह-विकास के लिए जोड़ता है, जो सरकार-दर-सरकार से उद्योग-दर-उद्योग सहयोग की ओर अग्रसर है।
  • स्वायत्त प्रणाली उद्योग गठबंधन (एशिया, 2025): AI-संचालित, रोबोटिक और स्वायत्त रक्षा प्रणालियों को बढ़ावा देता है, जिससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नवाचार तथा परिचालन दक्षता में वृद्धि होती है।
    • यह ढाँचा साइबर, अंतरिक्ष और स्वायत्त युद्ध में सहयोग का विस्तार करता है, जिससे भविष्य के संघर्षों में डेटा सुरक्षा, स्थितिजन्य जागरूकता और डिजिटल निवारण में सुधार होता है।

भारत-अमेरिका रक्षा ढाँचे का भारत के मुख्य रणनीतिक उद्देश्यों के साथ एकीकरण

नीतिगत/ रणनीतिक उद्देश्य भारत-अमेरिका रक्षा ढाँचे से जुड़ाव
सामरिक स्वायत्तता (मुख्य विदेश नीति) औपचारिक गठबंधन से दूर रहते हुए रूस के अलावा हथियार स्रोतों में विविधता लाना। CAATSA पर अमेरिका का व्यावहारिक दृष्टिकोण भारत की गुटनिरपेक्ष स्वायत्तता की पुष्टि करता है।
मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ (रक्षा नीति) GE जेट इंजन, UAV का सह-उत्पादन तथा MRO केंद्रों की स्थापना से सीधे तौर पर स्वदेशी रक्षा क्षमता का निर्माण होगा तथा आयात पर निर्भरता कम होगी।
हिंद महासागर क्षेत्र में नेट सुरक्षा प्रदाता (क्षेत्रीय रणनीति) BECA और LEMOA खुफिया जानकारी और रसद तक पहुँच को बढ़ाते हैं, जिससे भारत समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने, निगरानी में सुधार करने और पड़ोसियों को समर्थन देने में सक्षम हो जाता है।
एकीकृत थिएटर कमांड (सैन्य सुधार) संयुक्त अभ्यास, COMCASA-सुरक्षित संचार तथा तीनों सेनाओं की योजना अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ाती है तथा एकीकृत थिएटर कमान संरचनाओं के लिए सेनाओं को तैयार करती है।

चुनौतियाँ और सीमाएँ

  • प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण बाधाएँ: निर्यात-नियंत्रण व्यवस्थाएँ और बौद्धिक संपदा संबंधी बाधाएँ राजनीतिक इच्छा के बावजूद उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को सीमित कर सकती हैं।
  • रणनीतिक स्वायत्तता और रूस कारक: भारत को रूस के साथ रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंधों को संतुलित करना होगा।
    • भारत द्वारा S-400 प्राप्त करने के बावजूद इस साझेदारी को बनाए रखने की अमेरिका की इच्छा, CAATSA के व्यावहारिक लचीलेपन को दर्शाती है, जो भारत की पूर्व प्रणालियों और बहु-संरेखण नीति को स्वीकार करती है।
  • साइबर और अंतरिक्ष सुरक्षा चुनौतियाँ: अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता और साइबर लचीलेपन को एकीकृत करना जटिल बना हुआ है, जिसके लिए निरंतर क्षमता निर्माण और सुरक्षित संचार ढाँचे की आवश्यकता है।
  • नौकरशाही और खरीद संबंधी अवरोध: धीमी खरीद प्रक्रियाएँ एवं परस्पर भिन्न औद्योगिक मानक, सह-उत्पादन आधारित रक्षा साझेदारी की गति को बाधित करते हुए, प्रमुख परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब उत्पन्न कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय संवेदनशीलताएँ: भारत-अमेरिका के मध्य घनिष्ठ संबंध चीन या रूस से रणनीतिक प्रतिवाद को उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे भारत के सामने कूटनीतिक संतुलन संबंधी बाधा उत्पन्न हो सकती है।

निहितार्थ

  • भारत के लिए
    • रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा: वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में उन्नत प्रौद्योगिकी पहुँच और एकीकरण।
    • रणनीतिक लाभ: हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में मजबूत निवारक क्षमता और परिचालन तत्परता।
    • आर्थिक अवसर: रक्षा रसद और प्रौद्योगिकी के लिए एक MRO केंद्र और नवाचार केंद्र के रूप में उभरना।
    • राजनयिक प्रभाव: भारत एक क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता एवं नियम-आधारित व्यवस्था के संवर्द्धन हेतु एक विश्वसनीय शक्ति के रूप में उभर रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए
    • विश्वसनीय क्षेत्रीय साझेदार: दक्षिण एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को एक लोकतांत्रिक आधार के रूप में सुदृढ़ करता है।
    • आर्थिक और औद्योगिक लाभ: भारत के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र और आपूर्ति शृंखलाओं तक पहुँच का विस्तार करता है।
    • रणनीतिक गहराई: एशिया में अमेरिकी रणनीतिक उपस्थिति को बढ़ाता है और क्वाड के सुरक्षा ढाँचे का समर्थन करता है।

आगे की राह

  • INDUS-X के माध्यम से नवाचार को संस्थागत बनाना: INDUS-X (इंडिया यू.एस. डिफेन्स एक्सिलरेशन ईकोसिस्टम) स्टार्ट-अप्स, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और निजी उद्योगों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष और रोबोटिक्स में उन्नत प्रणालियों के सह-विकास के लिए जोड़ता है।
    • यह सरकार-से-सरकार (G2G) से उद्योग-से-उद्योग (I2I) सहयोग की ओर एक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है।
  • आपूर्ति शृंखला लचीलापन बनाना: एकल-स्रोत आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए भारतीय फर्मों को अमेरिकी रक्षा विनिर्माण नेटवर्क में एकीकृत करना।
  • परिचालन और बहुपक्षीय एकीकरण: संयुक्त कमान अभ्यास, अंतरिक्ष स्थितिजन्य जागरूकता कार्यक्रम और समेकित क्षेत्रीय प्रतिरोध के लिए बहु-स्तरीय समन्वय का विस्तार करना।
  • नीति निरंतरता और द्विपक्षीय समर्थन: दोनों देशों में द्विपक्षीय समर्थन के माध्यम से रक्षा ढाँचे को बनाए रखना तथा नेतृत्व परिवर्तन के बावजूद दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष 

भारत-अमेरिका 10-वर्षीय रक्षा साझेदारी ढाँचा (2025-2035) वाणिज्य प्रेरित संबंधों से प्रौद्योगिकी-संचालित रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तन का प्रतीक है, जो रक्षा को भारत-प्रशांत स्थिरता की आधारशिला के रूप में पुष्ट करता है और उभरते एशियाई सुरक्षा ढाँचे में भारत को एक महत्त्वपूर्ण, स्वायत्त शक्ति के रूप में स्थापित करता है।

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