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भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि

Lokesh Pal March 12, 2025 03:38 16 0

संदर्भ

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने घोषणा की कि उनके प्रशासन ने तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी है।

संबंधित तथ्य

  • राणा के खिलाफ आरोप: लश्कर ए तैयबा (LeT) को सहायता प्रदान करने, 26/11 हमलों में मदद करने का आरोप; IPC और UAPA के तहत हत्या तथा भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप लगा है।
  • अमेरिका में कानूनी कार्यवाही: अमेरिकी न्यायालयों ने इस संधि के अनुच्छेद-6 के तहत राणा के दावे को खारिज करते हुए प्रत्यर्पण को बरकरार रखा और भारत में यातना के बारे में चिंताओं को खारिज कर दिया।
  • भारत का अगले कदम: प्रत्यर्पण के बाद, राणा को NIA विशेष न्यायालय के तहत मुकदमे का सामना करना पड़ेगा, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड सहित संभावित दंड शामिल हैं।

प्रत्यर्पण के बारे में

  • प्रत्यर्पण वह कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत एक देश किसी अपराध के आरोपी या दोषी व्यक्ति को दूसरे देश को सौंपता है, जहाँ अपराध किया गया था।
  • यह देशों के बीच द्विपक्षीय या बहुपक्षीय संधियों पर आधारित है।
  • प्रत्यर्पण का उदाहरण: विजय माल्या केस (2020) को वित्तीय धोखाधड़ी और मनी लॉण्ड्रिंग के आरोपों पर यूनाइटेड किंगडम से भारत प्रत्यर्पित करने का आदेश दिया गया था। हालाँकि, कानूनी कार्यवाही के कारण उनकी वापसी में देरी हुई।

भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के बारे में

  • भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि पर दोनों देशों के बीच वर्ष 1997 में हस्ताक्षर किए गए थे।
  • उद्देश्य: यह उन व्यक्तियों के प्रत्यर्पण के लिए एक कानूनी ढाँचा स्थापित करता है, जिन पर किसी भी देश में गंभीर अपराधों के आरोप लगाए गए हैं या उन्हें दोषी ठहराया गया है।
  • कार्यान्वयन: वर्ष 2002 से 2018 के बीच, इस संधि ने केवल 11 भगोड़ों को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित करने में मदद की थी।
    • लगभग 60 प्रत्यर्पण अनुरोध अभी भी अमेरिकी सरकार के पास लंबित हैं।

प्रत्यर्पणीय अपराध (Extraditable Offences)

  • न्यूनतम दंड: प्रत्यर्पण के लिए पात्र अपराधों के लिए न्यूनतम एक वर्ष की कारावास की सजा होनी चाहिए, जिसमें वित्तीय अपराध भी शामिल हैं।
  • दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत: जिस अपराध के लिए प्रत्यर्पण की माँग की जाती है, उसे भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के कानूनों के तहत अपराध माना जाना चाहिए।
  • प्रादेशिक दायरा: अपराध जिस स्थान पर किया गया था, उस पर ध्यान दिए बिना प्रत्यर्पण दिया जाता है।

अपवाद

  • राजनीतिक अपराध: इस संधि के तहत राजनीतिक अपराध प्रत्यर्पण योग्य नहीं हैं।
  • राजनीतिक अपराधों से बाहर के अपराध संबंधी अपवाद
    • सरकार के प्रमुख के खिलाफ जानबूझकर किए गए अपराध।
    • विमान अपहरण।
    • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित व्यक्तियों के विरुद्ध अपराध।
    • बंधक बनाना।
  • दोहरा खतरा: यदि व्यक्ति को पहले ही अनुरोधित देश में उसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जा चुका है या दोषमुक्त किया जा चुका है तो प्रत्यर्पण नहीं दिया जाता है।

भारत में प्रत्यर्पण ढाँचा

  • विधान: वर्ष 1962 का प्रत्यर्पण अधिनियम, जिसे वर्ष 1993 में महत्त्वपूर्ण रूप से संशोधित किया गया था, भारत से भगोड़ों के विदेशी देशों में प्रत्यर्पण को नियंत्रित करता है।
  • नोडल प्राधिकरण: विदेश मंत्रालय (MEA) भारत में प्रत्यर्पण मामलों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार नामित प्राधिकरण है।
  • अंतिम निर्णय: प्रत्यर्पण पर अंतिम निर्णय भारत सरकार लेती है, जिसके विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
  • प्रत्यर्पण संधियाँ एवं समझौते
    • भारत के पास वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और बांग्लादेश सहित 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियाँ हैं।
    • भारत के पास 12 देशों के साथ प्रत्यर्पण समझौते भी हैं।

प्रत्यर्पण के सिद्धांत

  • प्रत्यर्पणीय अपराधों का सिद्धांत: प्रत्यर्पण केवल दो देशों के बीच संधि में विशेष रूप से उल्लिखित अपराधों पर लागू होता है।
  • दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत: अपराध अनुरोध करने वाले और अनुरोधित दोनों देशों के कानूनों के तहत अपराध होना चाहिए।
  • प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने की आवश्यकता: अनुरोधित देश को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं।
  • विशेषता का नियम: प्रत्यर्पित व्यक्ति पर केवल उसी विशिष्ट अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है, जिसके लिए प्रत्यर्पण दिया गया था।
  • निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार: प्रत्यर्पित व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुरूप निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • संधि देशों से परे आवेदन: प्रत्यर्पण संधि की अनुपस्थिति में भी, न्यायिक और कानूनी अधिकारी प्रत्यर्पण अनुरोधों से निपटने के दौरान इन सिद्धांतों को लागू कर सकते हैं।

भारत से प्रत्यर्पण अनुरोध कौन कर सकता है?

  • अनुरोध करने का अधिकार: केवल विदेश मंत्रालय (MEA), भारत सरकार, औपचारिक रूप से किसी अन्य देश को प्रत्यर्पण अनुरोध प्रस्तुत कर सकती है।
  • राजनयिक चैनल: अनुरोध राजनयिक चैनलों के माध्यम से संबंधित देश को प्रस्तुत किया जाता है।
  • कोई सार्वजनिक अनुरोध नहीं: व्यक्ति या निजी संस्थाएँ प्रत्यर्पण का अनुरोध नहीं कर सकती हैं।

भारत किन देशों से प्रत्यर्पण का अनुरोध कर सकता है?

  • किसी भी देश को प्रत्यर्पण अनुरोध: भारत किसी भी विदेशी देश को प्रत्यर्पण अनुरोध कर सकता है।
  • संधि भागीदारों के दायित्व: जिन देशों की भारत के साथ प्रत्यर्पण संधि है, वे भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध पर विचार करने के लिए बाध्य हैं।
  • संधि के अभाव में प्रत्यर्पण
    • यदि कोई संधि मौजूद नहीं है, तो प्रत्यर्पण विदेशी देश के घरेलू कानूनों और प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है।
    • विदेशी देश पारस्परिकता के आश्वासन के आधार पर भारत के अनुरोध पर सहमत हो सकता है।

प्रत्यर्पण से संबंधित चुनौतियाँ

  • कानूनी एवं प्रक्रियागत देरी: प्रत्यर्पण के मामलों में अक्सर अपील, न्यायिक समीक्षा और मानवाधिकार संबंधी चिंताओं के कारण लंबी कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ता है, जिससे प्रक्रिया में काफी देरी होती है।
  • दोहरी आपराधिक आवश्यकता: प्रत्यर्पण केवल तभी संभव है, जब अपराध दोनों देशों में पहचाना जाता है, जिससे कानून अलग-अलग होने पर, विशेषकर वित्तीय या साइबर अपराधों में, खामियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • राजनीतिक एवं कूटनीतिक बाधाएँ: देश राजनीतिक आधार पर या तनावपूर्ण राजनयिक संबंधों के कारण प्रत्यर्पण से इनकार कर सकते हैं, विशेषकर देश में शरण संबंधी दावों से जुड़े मामलों में।
  • मानवाधिकार और निष्पक्ष सुनवाई की चिंताएँ: कुछ देश प्रत्यर्पण प्रस्तावों को अनुरोध करने वाले देश में यातना, अनुचित सुनवाई या जेल की स्थितियों के बारे में चिंताओं के कारण अस्वीकार कर देते हैं।

आगे की राह 

  • द्विपक्षीय संधियों को मजबूत करना: भारत को प्रत्यर्पण संधियों का विस्तार और आधुनिकीकरण करना चाहिए, जिससे स्पष्ट कानूनी रूपरेखा तथा तीव्र समाधान तंत्र सुनिश्चित हो सके।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना: इंटरपोल, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों और क्षेत्रीय समझौतों के साथ सहयोग प्रत्यर्पण को सुव्यवस्थित करने और प्रक्रियागत देरी को दूर करने में मदद कर सकता है।
  • न्यायिक और कानूनी सुधार: तीव्र न्यायिक प्रक्रिया, डिजिटल साक्ष्य साझाकरण और पारस्परिक कानूनी सहायता समझौते (MLAT) प्रत्यर्पण दक्षता में सुधार कर सकते हैं।
  • निष्पक्ष सुनवाई का आश्वासन सुनिश्चित करना: भारत को विश्वास बढ़ाने और साझेदार देशों की आपत्तियों को कम करने के लिए कानूनी तथा मानवाधिकार आश्वासन प्रदान करना चाहिए।

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