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संयुक्त राष्ट्र मतदान में भारत का अनुपस्थित रहना सर्वकालिक उच्चतम स्तर पर

Lokesh Pal July 22, 2025 02:57 25 0

संदर्भ 

भारत, संयुक्त राष्ट्र में स्पष्ट समर्थन या विरोध व्यक्त करने के बजाय, मतदान से दूर रहने की प्रवृत्ति अपना रहा है। वर्ष 2025 में, भारत लगभग 44% प्रस्तावों से मतदान से दूर रहा, जो संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में अब तक का सबसे उच्चतम स्तर है। यह रुझान वैश्विक भू-राजनीति में बदलाव और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों की बढ़ती जटिलता दोनों को दर्शाता है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 1946 से जून 2025 तक संयुक्त राष्ट्र में पारित 5,500 से अधिक प्रस्तावों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत द्वारा स्पष्ट समर्थन के पक्ष में मतदान का वार्षिक प्रतिशत घटकर 56% रह गया है, जो वर्ष 1955 के बाद से सबसे कम है।
  • मतदान से दूर रहने की दर बढ़कर 44% हो गई है, जो भारत के संयुक्त राष्ट्र मतदान इतिहास में अब तक का सबसे अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान प्रणाली

  • एक सदस्य, एक वोट: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य (कुल 15) के पास एक वोट होता है।
  • प्रक्रियात्मक मामले: प्रक्रियात्मक मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए 9 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है, वीटो की आवश्यकता नहीं होती।
  • मूलभूत मामले: गैर-प्रक्रियात्मक मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए 9 सकारात्मक वोटों की आवश्यकता होती है, जिसमें सभी 5 स्थायी सदस्यों की सहमति भी शामिल है।
  • वीटो का अधिकार
    • स्थायी पाँच (P5) सदस्य – चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के पास वीटो शक्ति है।
    • कार्य: किसी भी P5 सदस्य द्वारा किया गया एक भी नकारात्मक मत, किसी भी महत्त्वपूर्ण मामले पर प्रस्ताव को पारित होने से रोक देता है।
    • किसी P5 सदस्य द्वारा मतदान में भाग न लेने से कोई प्रस्ताव अवरुद्ध नहीं होता। इस प्रकार, यदि कुछ P5 सदस्य मतदान में भाग न लें, तो भी कोई प्रस्ताव 9 सकारात्मक मतों से पारित हो सकता है।
  • अध्याय VI (विवादों का शांतिपूर्ण समाधान) के तहत, विवाद में शामिल देश को मतदान से दूर रहना होगा।

मतदान से दूरी का अर्थ है — मतदान में न तो हाँऔर न ही नहींका चयन करना, जिससे कोई पक्ष स्पष्ट रूप से नहीं लिया जाता। यह एक प्रकार से समर्थन या विरोध से बचना होता है।

ऐतिहासिक मतदान रुझान

  • 1946–1960 के दशक के उत्तरार्द्ध: भारत में मतदान में उतार-चढ़ाव रहा; ‘हाँ’ वाले मत 20% से 100% तक रहे और मतदान में भाग न लेने वालों की संख्या 0% से 40% तक रही।
  • वर्ष 1970–1994: उतार-चढ़ाव कम हुआ। ‘हाँवाले मत 74%-96% के बीच रहे और मतदान में भाग न लेने वालों की संख्या 8%-19% के बीच रही।
  • वर्ष 1995–2019: मतदान का पैटर्न और स्थिर हुआ,हाँवाले मत 75%-83% के बीच रहे और मतदान में भाग न लेने वालों की संख्या 10%-17% रही।
  • मतदान में भाग न लेने वालों की संख्या में वर्तमान वृद्धि वर्ष 2019 के आस-पास प्रारंभ हुई।

संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों से भारत का दूर रहना

  • वर्ष 2017– भारत, रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध म्याँमार सेना की कार्रवाई की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा।
  • वर्ष 2021– म्याँमार के सैन्य शासन पर हथियार प्रतिबंध लगाने के आह्वान वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा।
  • वर्ष 2022 (दिसंबर)– म्याँमार के सैन्य शासन की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा।
  • वर्ष 2022 (दिसंबर) – फिलिस्तीन पर इजरायल के अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की राय माँगने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहा।
  • वर्ष 2022 (फरवरी से) – यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने वाले सभी संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों पर अनुपस्थित रहा।

मतदान से परहेज में वृद्धि के पीछे कारण

  • प्रमुख वैश्विक शक्तियों के बीच बढ़ते मतभेदों के कारण संयुक्त राष्ट्र में आम सहमति बनाना लगातार कठिन होता जा रहा है। इसी जटिलता के चलते भारत जैसे देश अक्सर द्विआधारी (हाँ या नहीं) रुख अपनाने के बजाय मतदान से परहेज करना चुनते हैं।
  • प्रस्तावों की जटिलता: आधुनिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों में प्रायः कई मुद्दे शामिल होते हैं, जिससे स्पष्ट समर्थन या विरोध करना मुश्किल हो जाता है।
    • ऐसे मामलों में, भारत कुछ पक्षों से सहमत हो सकता है, लेकिन अन्य पक्षों से नहीं, जिससे स्पष्ट रूप से हाँया नहींमें मतदान करना अव्यावहारिक हो जाता है – इसलिए, मतदान से दूर रहना ही बेहतर विकल्प बन जाता है।
  • भारत का रुख: मतदान से दूर रहने से भारत को कूटनीतिक लचीलापन बनाए रखने और स्वतंत्र पक्ष व्यक्त करने का अवसर मिलता है।

कूटनीति और नीति पर प्रभाव

  • रणनीतिक स्वायत्तता: मतदान से दूर रहने से भारत को जटिल अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों और भू-राजनीतिक मतभेदों के बीच अपने हितों की रक्षा करने का अवसर प्राप्त होता है।
  • प्रत्यक्ष टकराव से बचाव: मतदान से दूर रहने का विकल्प चुनकर, भारत प्रायः किसी एक पक्ष के साथ अत्यधिक निकटता से जुड़ने से बचता है, विशेषतः जब किसी प्रस्ताव में ध्रुवीकृत दृष्टिकोण या विभाजित अंतरराष्ट्रीय राय शामिल होती है।
  • घरेलू राजनीतिक आलोचना: विपक्षी दल सरकार पर नैतिक त्याग का आरोप लगाते हैं, विशेषतः जब मतदान से दूर रहने का संबंध मानवाधिकार, लोकतंत्र या मानवीय संकटों से जुड़े मुद्दों से हो।
  • वैश्विक नैतिक नेतृत्व का क्षरण: बार-बार मतदान से दूर रहने से भारत का नैतिक अधिकार और एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी छवि कमजोर हो सकती है।
  • भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की आकांक्षाएँ: उच्च-स्तरीय मुद्दों पर भारत का बार-बार मतदान से दूर रहना, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिए उसके दावे को कमजोर कर सकता है।

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