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भारत की बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी एवं RBI के उपाय

Lokesh Pal January 29, 2025 04:11 64 0

संदर्भ

भारत की बैंकिंग प्रणाली तरलता की कमी से जूझ रही है, जो 27 जनवरी, 2025 तक ₹3.13 लाख करोड़ तक पहुँच गई है। इस चुनौती से निपटने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने स्थिरता एवं विकास सुनिश्चित करने के लिए मौद्रिक नीति समायोजन के साथ-साथ कई तरलता उपाय प्रारंभ किए हैं। 

परिवर्तनीय दर रेपो नीलामी 

  • इसे ‘टर्म रेपो रेट’ भी कहा जाता है, यह अर्थव्यवस्था में तरलता प्रबंधन के लिए RBI का एक ‘लिक्विडिटी इंजेक्शन टूल’ है।
  • VRR नीलामी: ये नीलामी RBI द्वारा तब आयोजित की जाती हैं, जब अंतर-बैंकिंग मुद्रा बाजार में भारित औसत कॉल मनी दर, रेपो दर से अधिक हो जाती है, जो RBI को ’सिस्टम लिक्विडिटी डेफिसिट’ के संकेत के रूप में कार्य करती है।
  • कार्यकाल: यह संपार्श्विक के विरुद्ध एक अल्पकालिक ‘लिक्विडिटी इंजेक्शन’ है, जिसकी अवधि आमतौर पर ओवरनाइट से 13 दिन तक होती है।
  • ब्याज दर: यह आमतौर पर बाजार द्वारा तय की गई दर पर उधार लिया जाता है, जो आमतौर पर रेपो दर से कम होती है (हालाँकि रिवर्स रेपो दर से कम नहीं)।

RBI के प्रमुख उपाय

  • बॉण्ड खरीद: RBI, 30 जनवरी, 13 फरवरी एवं 20 फरवरी, 2025 को तीन किस्तों में ₹60,000 करोड़ के सरकारी ‘बॉण्ड बायबैक’ का संचालन करेगा।
    • इसमें बैंकों से सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदना, बैंकिंग प्रणाली में सीधे नकदी हस्तांतरण करना शामिल है।
    • प्रभाव
      • बॉण्ड खरीद, बैंकों को तत्काल तरलता प्रदान करती है, उन्हें अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने एवं ऋण देने की क्षमता बढ़ाने में सहायता करता है।
      • बढ़ती माँग के कारण बॉण्ड बाजार में प्रतिफल को कम करके उधार लेने की लागत को कम करता है।
      • प्रणाली में पर्याप्त नकदी भंडार सुनिश्चित करके बाजार का विश्वास बढ़ाता है।
  • रेपो नीलामी: 7 फरवरी, 2025 को ₹50,000 करोड़ मूल्य की 56-दिवसीय परिवर्तनीय दर रेपो नीलामी आयोजित की जाएगी।
    • यह बैंकों को लंबी अवधि के लिए पात्र प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में गिरवी रखकर धन उधार लेने की अनुमति देता है।
    • प्रभाव
      • पूर्वानुमानित एवं निरंतर तरलता प्रदान करके अल्पकालिक उधार के दबाव को कम करता है।
      • ओवरनाइट एवं अल्पकालिक उधार दरों को स्थिर करता है, तरलता की कमी के कारण बढ़ी हुई लागत को कम करता है।
      • विशेष रूप से नकदी प्रवाह चुनौतियों का सामना करने वाले क्षेत्रों में अविरत ऋण आवश्यकताओं (Ongoing credit requirements) का समर्थन करता है।
  • करेंसी स्वैप
    • $5 बिलियन मूल्य की USD/INR खरीद/बिक्री स्वैप नीलामी 31 जनवरी, 2025 के लिए निर्धारित की गई है।
    • तंत्र
      • RBI बैंकों से डॉलर खरीदेगा, जिससे इस प्रणाली में रुपये की बराबर मात्रा में तरलता आएगी।
      • छह महीने के बाद ‘स्वैप रिवर्स’ हो जाएगा, जिसमें बैंक, डॉलर की पुनर्खरीद करेंगे एवं RBI को रुपये लौटा देंगे।
    • प्रभाव
      • तरलता के दबाव को कम करते हुए, बैंकिंग प्रणाली में लगभग ₹43,000 करोड़ का निवेश किया गया।
      • विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करता है एवं USD/INR दरों में अत्यधिक अस्थिरता को कम करता है।

तरलता की कमी 

  • बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी तब होती है, जब बैंकों के पास ग्राहकों की ऋण की माँग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकदी नहीं होती है। 
  • ऐसा तब हो सकता है, जब बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से उधार देने की तुलना में अधिक पैसा उधार लेते हैं। 

तरलता की कमी के कारण

  • उच्च ऋण माँग: व्यवसायों एवं व्यक्तियों द्वारा उधार में वृद्धि।
  • RBI का विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप: रुपये को स्थिर करने के लिए डॉलर बेचने से रुपये की तरलता कम हो जाती है।
  • कर बहिर्प्रवाह: RBI के पास सरकारी नकदी शेष बढ़ने के कारण तिमाही कर भुगतान में वृद्धि से तरलता समाप्त हो जाती है।
  • सरकारी उधार: उधार बड़े पैमाने पर अत्यधिक तरलता को अवशोषित करता है, जिससे बैंकों के लिए उपलब्ध धनराशि सीमित हो जाती है।
  • धीमी जमा वृद्धि: जमा वृद्धि क्रेडिट माँग, तरलता में कमी के कारण पिछड़ गई है।
  • बाह्य आर्थिक कारक: वैश्विक ब्याज दरों में बढोतरी एवं पूँजी बहिर्प्रवाह से घरेलू तरलता पर दबाव पड़ता है।

तरलता की कमी के प्रभाव

  • उच्च ब्याज दरें: जब प्रणाली में कम पैसा उपलब्ध होता है, तो बैंक कमी की भरपाई के लिए ऋण पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं, जिससे व्यवसायों एवं व्यक्तियों के लिए उधार लेने की लागत प्रभावित होती है। 
  • ऋण उपलब्धता में कमी: बैंक ऋण देने में सख्ती कर सकते हैं, जिससे ऋण प्राप्त करना कठिन हो जाएगा, निवेश एवं खर्च धीमा हो जाएगा।
  • उधार लेने की लागत में वृद्धि: जैसे ही धन की माँग आपूर्ति से अधिक हो जाती है, मुद्रा बाजार में पैसे उधार लेने की लागत बढ़ जाती है, जिससे ट्रेजरी बिल एवं अन्य अल्पकालिक उपकरणों पर दरें प्रभावित होती हैं। 
  • आर्थिक विकास में मंदी: कम ऋण उपलब्धता निवेश एवं आर्थिक विकास में बाधा बन सकती है, क्योंकि व्यवसायों को विस्तार के लिए आवश्यक धन तक प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। 
  • बाजार में अस्थिरता: तरलता की कमी से वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है क्योंकि निवेशक धन सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे स्टॉक की कीमतें एवं अन्य परिसंपत्ति वर्ग प्रभावित होते हैं। 
  • विकासात्मक परियोजनाओं पर प्रभाव: सरकारी पहल एवं बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को सीमित ऋण उपलब्धता के कारण देरी या धन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

RBI के उपायों का महत्त्व

  • अल्पकालिक राहत: बैंकिंग प्रणाली में तरलता की तत्काल कमी को दूर करता है।
  • स्थिरता: अल्पकालिक ब्याज दरों में बढोतरी को रोकता है एवं आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करता है।
  • बाजार का विश्वास: यह सुनिश्चित करता है, कि बैंकों के पास ऋण माँगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि है।
  • मुद्रा स्थिरता: ‘करेंसी स्वैप’ विदेशी मुद्रा भंडार को प्रबंधित करने एवं रुपये को स्थिर करने में मदद करता है।

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