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भारत की जैव अर्थव्यवस्था

Lokesh Pal March 28, 2025 02:16 120 0

संदर्भ

हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) द्वारा भारत जैव अर्थव्यवस्था रिपोर्ट (India BioEconomy Report) जारी की गई। 

भारत जैव अर्थव्यवस्था रिपोर्ट, 2025 की मुख्य अंतर्दृष्टि

  • वर्तमान बाजार का आकार एवं विकास
    • भारत की जैव अर्थव्यवस्था वर्ष 2020 में 86 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 165 बिलियन डॉलर हो गई, जो कि केवल पाँच वर्षों में लगभग दोगुनी हो गई।
    • अनुमानित वृद्धि वर्ष 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है और वर्ष 2047 तक 10.6% (वर्ष 2024-30) और 7.5% (वर्ष 2030-47) के CAGR के साथ 1 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगी।
  • सकल घरेलू उत्पाद में योगदान
    • वर्ष 2024 में, भारत की जैव अर्थव्यवस्था देश के सकल घरेलू उत्पाद में 4.2% से अधिक का योगदान देगी।
    • हालाँकि यह आँकड़ा संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बराबर है, लेकिन यह स्पेन और इटली जैसे देशों की तुलना में काफी कम है, जहाँ जैव अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद का 20% से अधिक भाग है।

  • क्षेत्रवार योगदान
    • बायोइंडस्ट्रियल (BioIndustrial) (47.2%): सबसे बड़ा खंड ($78.2 बिलियन), जैव ईंधन, एंजाइम और बायोप्लास्टिक द्वारा संचालित है।
    • बायोफार्मा (BioPharma) (35.2%): $58.4 बिलियन, टीके, डायग्नोस्टिक्स और चिकित्सा विज्ञान द्वारा संचालित है।
    • बायोसर्विसेज (BioServices) (9.4%): सबसे तेजी से बढ़ने वाला ($15.6 बिलियन) क्षेत्र, जिसमें अनुबंध अनुसंधान और AI-संचालित जैव सूचना विज्ञान शामिल हैं।
    • बायोएग्री (BioAgri) (8.1%): $13.5 बिलियन, जिसमें बीटी कॉटन और जैव उर्वरकों की प्रमुखता है।
  • कंपनियों और रोजगार में वृद्धि
    • पिछले तीन वर्षों में जैव अर्थव्यवस्था क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों की संख्या में 90% की वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2021 में 5,365 से बढ़कर वर्ष 2024 में 10,075 हो गई है।
    • वर्ष 2030 तक, यह संख्या फिर से दोगुनी होने की उम्मीद है, इस क्षेत्र में लगभग 35 मिलियन लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है।
  • भौगोलिक असमानताएँ
    • पाँच राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश) ने जैव अर्थव्यवस्था में उत्पन्न कुल मूल्य का दो-तिहाई से अधिक हिस्सा प्राप्त किया।
    • पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों ने कुल मूल्य में 6% से भी कम का योगदान दिया, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन उजागर हुआ।

  • स्टार्टअप इकोसिस्टम
    • वर्ष 2024 में बायोटेक स्टार्टअप की संख्या 10,075 (वर्ष 2012 में 50 थी) को पार कर गई। 
    • वर्ष 2024 में 1,544 नए स्टार्टअप जुड़ेंगे, जिनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना सबसे आगे हैं। 
    • ‘बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल’ (BIRAC) ने 800 से ज्यादा उत्पादों, 1,300 से ज्यादा आईपी फाइलिंग और 5,500 करोड़ रुपये के निवेश का समर्थन किया।

जैव अर्थव्यवस्था (Bioeconomy) क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, जैव अर्थव्यवस्था ‘जैविक संसाधनों का उत्पादन, उपयोग और संरक्षण है, जिसमें संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार शामिल हैं, ताकि सभी आर्थिक क्षेत्रों को सूचना, उत्पाद, प्रक्रियाएँ और सेवाएँ प्रदान की जा सकें, जिसका उद्देश्य एक स्थायी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना है’।

भारत की जैव अर्थव्यवस्था के क्षेत्र

  • औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी: वर्ष 2024 में जैव अर्थव्यवस्था के मूल्य का लगभग 50%।
    • प्रमुख क्षेत्र
      • जैव ईंधन (Biofuels): गन्ने, मक्का और अन्य फसलों के किण्वन के माध्यम से एथेनॉल उत्पादन।
      • बायोप्लास्टिक (Bioplastics): पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक के विकल्प के रूप में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का विकास।
      • जैव-आधारित रसायन और एंजाइम (Bio-based Chemicals and Enzymes): परंपरागत रसायनों को सतत्, जैव-व्युत्पन्न विकल्पों से प्रतिस्थापित करना।
  • फार्मास्यूटिकल्स और हेल्थकेयर: जैव अर्थव्यवस्था के कुल मूल्य का लगभग 35% हिस्सा है।
    • प्रमुख क्षेत्र
      • टीके: मुख्य योगदानकर्ता, भारत टीके के उत्पादन में वैश्विक नेता है।
      • बायोमेडिसिन: जैव संसाधनों से प्राप्त दवाओं और उपचारों का विकास।
      • निदान और चिकित्सा: रोग की रोकथाम और उपचार के लिए अभिनव जैव प्रौद्योगिकी समाधान।
  • कृषि जैव प्रौद्योगिकी: विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के मामले में महत्त्वपूर्ण लेकिन विनियामक बाधाओं के कारण कम उपयोग किया गया।
    • प्रमुख क्षेत्र
      • फसल सुधार: उच्च उपज, सूखा प्रतिरोधी और कीट प्रतिरोधी फसलों के विकास के लिए जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग।
      • जैव उर्वरक और जैव कीटनाशक: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के लिए सतत् विकल्प।
      • परिशुद्ध कृषि: बेहतर उपज पूर्वानुमान और संसाधन प्रबंधन के लिए जैव सूचना विज्ञान और AI का लाभ उठाना।
  • अनुसंधान, जैव सूचना विज्ञान और आईटी: वर्ष 2024 में सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र, अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी नवाचारों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
    • प्रमुख क्षेत्र 
      • बायोटेक सॉफ्टवेयर विकास: डेटा विश्लेषण और दवा खोज के लिए प्लेटफॉर्म।
      • क्लिनिकल परीक्षण और दवा अनुसंधान: शोध प्रक्रियाओं में तेजी लाने के लिए जैव सूचना विज्ञान का उपयोग।
      • सिंथेटिक जीव विज्ञान: वांछित लक्षणों के साथ आनुवंशिक रूप से इंजीनियर सूक्ष्मजीवों का विकास।
  • पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी: बढ़ते महत्त्व के साथ उभरता हुआ क्षेत्र।
    • प्रमुख क्षेत्र
      • अपशिष्ट प्रबंधन और जैव उपचार: औद्योगिक अपशिष्ट और पर्यावरण प्रदूषकों के उपचार के लिए सूक्ष्मजीवों का उपयोग।
      • जलवायु-लचीली प्रौद्योगिकियाँ: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए जैव-आधारित समाधान।

  • समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी: विशिष्ट लेकिन उच्च विकास क्षमता।
    • प्रमुख क्षेत्र
      • समुद्री जैव प्रौद्योगिकी: फार्मास्यूटिकल्स, जैव ईंधन और जैव सामग्री के लिए समुद्री जैव संसाधनों की खोज।
      • अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी: अंतरिक्ष में जीवन को बनाए रखने और अभिनव अंतरिक्ष सामग्री विकसित करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी समाधानों का अनुप्रयोग।
  • जैव-विनिर्माण और जैव-आधारित वस्त्र: भविष्य की उच्च संभावनाओं वाला उभरता हुआ क्षेत्र।
    • प्रमुख क्षेत्र
      • जैव-निर्मित वस्त्र: पारंपरिक कपड़ों के लिए सतत् विकल्प।
      • जैव-निर्माण प्लेटफॉर्म: जैव-आधारित रसायनों और सामग्रियों का उत्पादन।

प्रमुख वैज्ञानिक सफलताएँ

  • जीनोमइंडिया परियोजना (GenomeIndia Project)
    • 99 विविध समुदायों के 10,074 भारतीयों की संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण प्रक्रिया पूरी की।
    • ‘भारतीय जनसंख्या के लिए पहला संदर्भ जीनोम’ बनाया, जिससे भारत की आनुवंशिक विविधता के अनुरूप व्यक्तिगत चिकित्सा संभव हो सकी।
    • नेतृत्व: जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), जिसमें 20 राष्ट्रीय संस्थान सहयोग कर रहे हैं।
  • कैंसर के लिए स्वदेशी CAR-T सेल थेरेपी
    • बी-सेल नॉन-हॉजकिन लिंफोमा (B-cell non-Hodgkin lymphoma) के लिए भारत की पहली स्वदेशी CAR-T सेल थेरेपी, क्वॉर्टेमी (Qartemi) का आरंभ।
      • इम्यूनल थेरेप्यूटिक्स (Immunel Therapeutics) द्वारा विकसित, इसकी कीमत ₹35-50 लाख (बनाम वैश्विक लागत लगभग ₹3-4 करोड़) है।
  • नैफिथ्रोमाइसिन (Nafithromycin): AMR के खिलाफ भारत का पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक
    • विकसितकर्ता: BIRAC के समर्थन से वॉकहार्ट (Wockhardt)
    • लक्ष्य: दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाला सामुदायिक-अधिग्रहित जीवाणु निमोनिया (Community-Acquired Bacterial Pneumonia-CABP)।
    • प्रभावकारिता: एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin) की तुलना में 10 गुना अधिक प्रभावी, उच्च नैदानिक ​​उपचार दर के साथ।
  • उन्नत टीके
    • न्यूमोशील्ड 14 (PneumoShield 14) या एबॉट (Abbott): बच्चों के लिए 14-वैलेंट न्यूमोकोकल कंजुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine), जो मौजूदा वैक्सीन की तुलना में अधिक स्ट्रेन को शामिल करती है।
    • हिलचोल (HILLCHOL) (भारत बायोटेक): एकल खुराक वाली ‘ओरल हैजा वैक्सीन’, जो वैश्विक कमी को संबोधित करती है।
    • कैडिफ्लू टेट्रा (Cadiflu Tetra) या कैडिला (Cadila): नैनोपार्टिकल तकनीक का उपयोग करके क्वाड्रिवेलेंट इन्फ्लूएंजा वैक्सीन।
  • इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (Ethanol Blending Program)
    • उपलब्धि: वर्ष 2024 तक 15% एथेनॉल मिश्रण प्राप्त किया जाएगा (वर्ष 2025 तक 20%)।
      • जीवाश्म ईंधन के आयात में कमी: भारत अब 16.2 बिलियन लीटर बायोएथेनॉल उत्पादन क्षमता (गन्ने, कृषि अपशिष्ट से) के साथ विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा एथेनॉल उत्पादक है।
  • जैव-प्रबलित फसलें और जलवायु-अनुकूल कृषि
    • बीटी कॉटन का प्रभुत्व: बायोएग्री सेक्टर का 76% हिस्सा ($10.3 बिलियन) है।
    • बायोफर्टिलाइजर/बायोपेस्टिसाइड: बाजार बढ़कर $1.6 बिलियन (2024) हो गया, जिससे रासायनिक उपयोग में कमी आई।
    • डेयरी फार्मिंग के लिए स्वदेशी IVF मीडिया: इंडिया इम्यूनोलॉजिकल्स द्वारा ‘Shashthi’ ने IVF लागत में 33% की कटौती की, जिससे पशुधन उत्पादकता में वृद्धि हुई।
  • AI-संचालित जैव प्रौद्योगिकी नवाचार
    • बायो-रेड (Bio-Rad) की ddSEQ किट: कैंसर/इम्यूनोलॉजी अनुसंधान के लिए एकल-कोशिका RNA अनुक्रमण को सक्षम बनाती है।
    • न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स की जिनी (Geniee): रोग जोखिम के पूर्वानुमान के लिए व्यक्तिगत जीनोमिक्स प्लेटफॉर्म।
    • बायो-एआई हब: BioE3 नीति (BioE3 Policy) के तहत AI को बायोमैन्युफैक्चरिंग के साथ एकीकृत करने का प्रस्ताव।
  • समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी
    • समुद्री जैव-पूर्वेक्षण (Marine Bioprospecting): समुद्री शैवाल की खेती और रोगाणुरोधी यौगिकों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • अंतरिक्ष अनुसंधान: डीबीटी-बीआईआरएसी (DBT-BIRAC) जैव-विनिर्माण पर सूक्ष्म-गुरुत्व प्रभावों की खोज कर रहा है।
  • ड्रोन-आधारित स्वास्थ्य सेवा वितरण (Drone-Based Healthcare Delivery)
    • स्काई एयर मोबिलिटी और कैरिटास अस्पताल (Skye Air Mobility & CARiTAS Hospital): केरल में ड्रोन मेडिकल सप्लाई नेटवर्क लॉन्च किया, जिससे डिलीवरी का समय घंटों से घटकर 5-7 मिनट रह गया।
  • वैश्विक सहयोग
    • ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस (GBA): भारत, अमेरिका और ब्राजील के नेतृत्व में सतत् ऊर्जा को बढ़ावा देना।
    • Ind-CEPI मिशन: महामारी के लिए टीके विकसित करना (जैसे- भारत बायोटेक का चिकनगुनिया टीका चरण 2/3 परीक्षणों में)।

भारत को जैव अर्थव्यवस्था की आवश्यकता क्यों है?

  • संधारणीय आर्थिक विकास: जैव अर्थव्यवस्था औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए नवीकरणीय जैविक संसाधनों (पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव) का लाभ उठाती है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
    • यह पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए आर्थिक विकास के लिए एक स्थायी विकल्प प्रदान करता है।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना: एथेनॉल और बायोडीजल जैसे जैव ईंधन पेट्रोलियम आधारित ईंधन के विकल्प प्रदान करते हैं।
    • जैव ईंधन को बढ़ावा देने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिलती है।
  • नवाचार और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: जैव प्रौद्योगिकी, जैव सूचना विज्ञान और सिंथेटिक जीव विज्ञान में प्रगति ने दवा विकास, निदान तथा संधारणीय औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए नए रास्ते खोले हैं।
  • रोजगार सृजन और कौशल विकास: जैव अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास से लाखों रोजगार सृजित होने की संभावना है, विशेष तौर पर जैव प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और जैव विनिर्माण में।
    • वर्ष 2030 तक, इसमें 35 मिलियन लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है, जिससे अत्याधुनिक क्षेत्रों में कौशल विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: जैव प्रौद्योगिकी आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों, जैव उर्वरकों और परिशुद्ध खेती के माध्यम से कृषि में क्रांति ला सकती है।
    • ये नवाचार फसल की पैदावार में सुधार करते हैं, कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हैं और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण और अपशिष्ट प्रबंधन: जैव-आधारित समाधान अपशिष्ट प्रबंधन, जैव-उपचार और प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकते हैं।
    • जैव संसाधनों का उपयोग ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु लचीलापन में योगदान देता है।
  • भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मजबूत करना: भारत को जैव-विनिर्माण और जैव-आधारित अनुसंधान के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने से जैव प्रौद्योगिकी एवं संबद्ध क्षेत्रों में इसकी वैश्विक स्थिति में वृद्धि होगी।

जैव अर्थव्यवस्था से संबंधित पहल

  • BioE3 नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी), 2024
    • इसका उद्देश्य भारत को जैव-विनिर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र और जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
  • राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन (National Biopharma Mission-NBM): वर्ष 2017 में ₹1,500 करोड़ के बजट के साथ लॉन्च किया गया।
    • उद्देश्य: स्वदेशी बायोफार्मास्युटिकल्स के विकास में तेजी लाना और आयात पर भारत की निर्भरता कम करना।
  • जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council-BIRAC): जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के तहत वर्ष 2012 में जैव प्रौद्योगिकी स्टार्टअप को वित्त पोषण, मार्गदर्शन और ऊष्मायन सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया।
  • जैव प्रौद्योगिकी पार्क और इनक्यूबेटर योजना: संपूर्ण भारत में अत्याधुनिक जैव प्रौद्योगिकी अवसंरचना और इनक्यूबेशन केंद्र स्थापित करता है।
  • बायोडिजाइन कार्यक्रम: नवाचार के माध्यम से स्वदेशी चिकित्सा प्रौद्योगिकियों और उपकरणों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अपशिष्ट से धन मिशन (PM-STIAC के तहत): अपशिष्ट को मूल्यवान संसाधनों में बदलने के लिए जैव प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने का लक्ष्य।
  • डीप ओशन मिशन (Deep Ocean Mission-DOM): इसमें गहरे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र से जैव संसाधनों की खोज के लिए समुद्री जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित घटक शामिल हैं।

भारत में जैव अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ

  • विनियामक अनिश्चितता और नीतिगत बाधाएँ: विशेष रूप से आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (GM) की स्वीकृति में स्पष्ट और सुसंगत नीतियों का अभाव।
    • उदाहरण: सिद्ध लाभों के बावजूद, केवल बीटी कपास की ही व्यावसायिक खेती की जाती है, जबकि GM सरसों एवं बैंगन को लंबे समय तक विनियामक संबंधी देरी का सामना करना पड़ता है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों की सीमित स्वीकृति: जनता की धारणा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण जीएम फसलों को अपनाने की अनिच्छा।
    • तिलहन उत्पादकता बढ़ाने के लिए विकसित जीएम सरसों को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee-GEAC) द्वारा मंजूरी दिए जाने के बावजूद अंतिम विनियामक अनुमोदन का इंतजार है।
  • अपर्याप्त निधि और अनुसंधान एवं विकास निवेश: जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार के लिए अपर्याप्त निधि, विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में।
    • सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.7% ही अनुसंधान एवं विकास पर खर्च किया जाता है, जबकि जैव अर्थव्यवस्था से संबंधित नवाचारों पर सीमित ध्यान दिया जाता है।
  • बुनियादी ढाँचे और क्षमता संबंधी बाधाएँ: पर्याप्त जैव-विनिर्माण बुनियादी ढाँचे और उच्च-स्तरीय अनुसंधान सुविधाओं का अभाव है।
    • केवल पाँच राज्य (महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात और आंध्र प्रदेश) जैव अर्थव्यवस्था उत्पादन में 67% से अधिक योगदान देते हैं, जिससे अन्य क्षेत्र अविकसित रह जाते हैं।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और व्यावसायीकरण अंतराल: प्रयोगशाला अनुसंधान को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य जैव-आधारित उत्पादों में बदलने में कठिनाई होती है।
    • जैव-आधारित नवाचार, विशेष रूप से जैव ईंधन और जैव प्लास्टिक में, प्रोत्साहनों की कमी के कारण पायलट चरणों में ही बने हुए हैं।
  • जैव-आधारित समाधानों के बारे में कम जागरूकता: जैव-आधारित समाधानों के लाभों के बारे में किसानों और उद्योगों के बीच जागरूकता और तकनीकी जानकारी का अभाव है।
    • नीतिगत प्रयासों के बावजूद, जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों का उपयोग कम ही हो रहा है, क्योंकि अधिकांश किसान रासायनिक उर्वरकों पर ही निर्भर हैं।
  • समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी का सीमित अन्वेषण: समुद्री जैव प्रौद्योगिकी और गहरे समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र से जैव संसाधनों में अप्रयुक्त क्षमता है।
    • भारत के डीप ओशन मिशन (Deep Ocean Mission-DOM) का उद्देश्य समुद्री जैव संसाधनों का दोहन करना है, लेकिन अन्वेषण अभी भी प्रारंभिक चरण में है। 

वैश्विक जैव अर्थव्यवस्था नीति रूपरेखा

देश

नीतिगत ढाँचा

प्रमुख फोकस क्षेत्र

भारत का संरेखण

संयुक्त राज्य अमेरिका राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी और जैव विनिर्माण पहल (National Biotechnology & Biomanufacturing Initiative) (2022)
  • बायोमैन्युफैक्चरिंग
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि
  • AI-संचालित दवा खोज
भारत के BioE3 के समान ही इसका फोकस जैव-विनिर्माण केंद्रों और बायो-AI पर है।
यूरोपियन संघ यूरोपियन ग्रीन डील और जैव अर्थव्यवस्था रणनीति (2023)
  • चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था
  • 2050 तक कार्बन तटस्थता
  • समुद्री बायोटेक
भारत के कार्बन कैप्चर और ब्लू इकोनॉमी मिशन यूरोपीय संघ की प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
ब्राजील राष्ट्रीय जैव अर्थव्यवस्था नीति (National BioEconomy Policy) (2024)
  • अमेजन जैव संसाधन
  • एथेनॉल और जैव ईंधन
  • बायोप्लास्टिक
भारत ने एथेनॉल पर GBA के माध्यम से सहयोग किया; ब्राजील के गन्ना मॉडल से सीखा।
जर्मनी जैव अर्थव्यवस्था काउंसिल रणनीति
  • औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी
  • टिकाऊ रसायन
  • जैव-आधारित सामग्री
भारत का जैव-औद्योगिक क्षेत्र ($78.2 बिलियन) जर्मनी के तकनीक-संचालित ऐप के अनुरूप है।

भारत में जैव अर्थव्यवस्था के लिए आगे की राह और नीतिगत सिफारिशें

  • नीति एकीकरण और समन्वय को मजबूत करना: कृषि, जैव प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और उद्योग में प्रयासों को संरेखित करने के लिए एक एकीकृत राष्ट्रीय जैव अर्थव्यवस्था रणनीति विकसित करना।
    • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति और जैव-अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय मिशन जैसी पहलों के बीच सामंजस्य सुनिश्चित करना।
  • संधारणीय कृषि और बायोमास उपयोग को बढ़ावा देना: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए जैव-आधारित कृषि पद्धतियों, जैव-उर्वरकों और जैविक खेती को प्रोत्साहित करना।
    • ऊर्जा और औद्योगिक उपयोग के लिए कुशल बायोमास संग्रह और रूपांतरण की सुविधा के लिए नीतियाँ स्थापित करना।
  • अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: उच्च मूल्य वाले जैव उत्पादों तथा जैव ईंधनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में निवेश करना।
    • नवीन जैव-आधारित समाधानों के व्यावसायीकरण में तेजी लाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs) को बढ़ावा देना।
  • जैव-विनिर्माण और औद्योगिक क्लस्टर विकसित करना: उत्पादन, प्रसंस्करण और वितरण को एकीकृत करने के लिए जैव-रिफाइनरियों और जैव-औद्योगिक क्लस्टरों की स्थापना करना।
    • उद्योगों को जैव-आधारित प्रौद्योगिकी और सामग्री अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • कौशल विकास और क्षमता निर्माण: जैव-उद्यमियों और कार्यबल के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
    • जैव प्रौद्योगिकी, कृषि और औद्योगिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अंतःविषय शिक्षा को बढ़ावा देना।
  • जैव-अर्थव्यवस्था विकास के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना: जैव-आधारित उद्योगों की निगरानी, ​​उनकी क्षमता और दक्षता में सुधार के लिए AI, IoT और ब्लॉकचेन का उपयोग करना।
    • जैव-संसाधन प्रबंधन में सटीक कृषि और वास्तविक समय डेटा-संचालित निर्णय लेने का समर्थन करना।
  • वैश्विक सहयोग और बाजार पहुँच का विस्तार करना: ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए यूरोपीय संघ जैव अर्थव्यवस्था रणनीति और अंतरराष्ट्रीय जैव अर्थव्यवस्था मंच जैसे वैश्विक प्लेटफॉर्मों के साथ जुड़ना।
    • अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत के जैव-आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए निर्यात-उन्मुख नीतियाँ विकसित करना।

निष्कर्ष 

भारत की जैव अर्थव्यवस्था में सतत् विकास, नवाचार और रोजगार को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएँ हैं। नियामक सुधारों, उन्नत अनुसंधान एवं विकास निवेश और लक्षित नीति प्रोत्साहनों के माध्यम से नियामक चुनौतियों का समाधान करना भारत के लिए वर्ष 2047 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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